नूतन प्रसाद
सुदामा
श्री कृष्ण से मिलकर आये और जब इसका समाचार लोगों को बतलाया गया तो उन्हें
विश्वास ही न हुआ। सुदामा ने कसमें खायी पर उनकी बातों को सभी ने हंसी में
उड़ा दी। उन्होंने कहा - हम यह मान सकते हैं कि आप राजधानी गये होंगे
क्योंकि रोजी - रोटी की तलाश में अनेकों जा रहे हैं लेकिन कृष्ण से आपकी
मुलाकांत या आपसी चर्चा हुई होगी, यह असम्भव लगता है।
सुदामा बोले - वे मेरे बचपन के मित्र हैं, बात कैसे नहीं करेंगे।
- लड़कपन की बात जाने दीजिये। अब तो वे शासक के सर्वोच्च पद पर बैठे
हैं। बड़े - बड़े राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों से मिल भेंट करेंगे कि आप
जैसे चिथड़े पहने देहाती से ?
- नहीं - नहीं, हमारे कृष्ण ऐसे कठोर स्वभाव के नहीं हैं। वे किसी
के प्रति भेदभाव नहीं रखते। उन्होंने मेरी बड़ी आवभगत की। अपने सभाकक्ष में
बैठाया। यहां तक कि उन्होंने अपने आँसुओं से मेरे चरण भी धोये।
-
लो और लो। झूठ बोलने की हद हो गयी। सुदामा महाराज, कम से कम अपनी उम्र का
तो ख्याल रखिये। कहाँ वे सम्राटों के सम्राट और आप कहाँ दीन - हीन। राजा
भोज और गंगुआ की मित्रता कब से होने लगी।
गाँव वाले सुदामा ऊपर हंसने लगे तब सुदामा ने कृष्ण के साथ खिंचाया
हुआ अपना चित्र दिखाया। इसके अलावा समाचार पत्रों की कतरनें भी प्रमाण
स्वरूप प्रस्तुत किया लेकिन ग्रामवासियों ने मानने से इन्कार कर दिया। बोले
- अगर कृष्ण आपके मित्र हैं तो उन्हें गाँव बुलवाइये तब हम विश्वास करेंगे
कि आप उनसे मिलकर आये हैं। बतलाइये, क्या वे यहाँ पधारेंगे ?
सुदामा ने दृढ़ता पूर्वक कहा - अवश्य आयेंगे। मित्र के प्रेम को कैसे ठुकरायेंगे।
सुदामा को अपना वचन पूरा करके दिखाना था अत: उन्होंने तत्काल
श्रीकृष्ण के नाम निमंत्रण पत्र भेज दिया। डाक - तार विभाग में ईमानदारी थी
अत: चिट्ठी कृष्ण को जल्दी ही मिल गई। जिस समय पत्र प्राप्त हुआ कृष्ण
शासकीय कार्य में बुरी तरह उलझे थे। उनके पास क्षण भर का अवकाश नहीं था।
बावजूद समय निकाल कर निमंत्रण पत्र को पढ़ें। तथा निज सचिव से गाँव जाने के
संबंध में पूछा तो वह बोला - दीनबन्धु, वैसे ग्रामों के विकास के लिए
सरकार ने कई कागजी प्रस्ताव पारित किए हैं लेकिन आपके किसी गाँव में जाने
या पदयात्रा करने की सरकारी स्तर पर चर्चा नहीं हुई है। और फिर गाँव जाना
आपके लिए हितकर भी नहीं है। वहाँ का वातावरण से सामंजस्य स्थापित नहीं कर
पायेंगे। ग्रामीण जीवन अत्यन्त निम्न स्तर का होता है। वहाँ के लोग रूखे -
सुखे खा लेते हैं। गंदे नाले को जल पी लेतें हैं। आप हमेशा छप्पन प्रकार के
स्वादिष्ट एवं पौष्टिक आहार के लेने वाले तथा नल का छना हुआ पानी पीने
वाले हैं। आपका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। इलाज भी करवा लेते तो वहाँ औषधालय
नहीं होता है।
गाँव में किसान और मजदूर अर्थात श्रमिक ही रहते हैं। वे सदा मिट्टी
से सने तथा गंदे रहते हैं। उनके कपड़ों और देह से दुर्गन्ध आती है। आप
स्वच्छ वस्त्र में रहने के आदी हैं, क्या ग्रामीणों के साथ संटकर बैठ
सकेंगे। क्या उबकाई नहीं आयेगी।
किसी ने कहा है - नगर बसे सो देवानाम, ग्राम बसे सो भूतानाम्। आप
वैभवपूर्ण सुख, सम्पदा से पूर्ण राजधानी के रहने वाले तथा विद्वानों के बीच
उठने - बैठने वाले हैं। वहाँ असभ्य और अपड़ लोगों से पाला पड़ेगा। उन्हें
बड़ों के सामने कैसी बातें करनी चाहिए जानते ही नहीं। अगर उन्होंने
मूढ़तावश उल्टी - सीधी जुबान लड़ायी तो आपको क्रोध नहीं आयेगा ?
कृष्ण ने आपत्ति की - ऐसा नहीं है, ग्रामीण बड़े सीधे और सरल होते हैं। उनके समीप जाने से शांति मिलेगी।
- यही तो कूटनीति है भगवन, जो ग्रामवासियों को सीधे और सरल की उपाधि दी गई है। इसमें यह राज है वे किसी भी प्रकार की माँग सरकार से न करे। और माँग करे तो पूर्ति न होने पर विद्रोह न करें। आँख मूंदकर कानून का पालन करें। यह आप लोगों के द्वारा ही बनायी विधि है। कृपा कर पोल मत खुलवाइये। आप शांति प्राप्त करने की बात कर रहे हैं, वहाँ जाने के बाद मोहभंग हो जाएगा। चैन की बांसुरी बजा नहीं पायेंगे। उनका दुख, रोना, धोना सुनते - सुनते परेशान हो जायेंगे।
कृष्ण ने आपत्ति की - ऐसा नहीं है, ग्रामीण बड़े सीधे और सरल होते हैं। उनके समीप जाने से शांति मिलेगी।
- यही तो कूटनीति है भगवन, जो ग्रामवासियों को सीधे और सरल की उपाधि दी गई है। इसमें यह राज है वे किसी भी प्रकार की माँग सरकार से न करे। और माँग करे तो पूर्ति न होने पर विद्रोह न करें। आँख मूंदकर कानून का पालन करें। यह आप लोगों के द्वारा ही बनायी विधि है। कृपा कर पोल मत खुलवाइये। आप शांति प्राप्त करने की बात कर रहे हैं, वहाँ जाने के बाद मोहभंग हो जाएगा। चैन की बांसुरी बजा नहीं पायेंगे। उनका दुख, रोना, धोना सुनते - सुनते परेशान हो जायेंगे।
- कुछ परेशानी नहीं होगी। मैं भी गाँव में रहा हूं।
- बचपने की बात और थी। उस समय आपने दही भी चुराये। उसी कार्य को अब
भी करेंगे तो क्या बदनामी नहीं होगी ? अभी आप शासक के सर्वोच्च पद पर
विराजमान हैं। भावुकता में बहकर अनुचित - अशोभनीय कार्य करने का निर्णय न
लें। पद की भी गरिमा होती है।
- लेकिन सुदामा मेरे अच्छे मित्र हैं। उनके निमंत्रण की अवहेलना करना मेरे बस की बात नहीं है। कुछ उपाय सुझाओ।
- ठीक है भगवन, अपने मित्र से मिलने की ठान ही ली है तो जाइये लेकिन
बाद में क्योंकि अभी वर्षा - काल है। पानी बहुत बरस रहा है। गाँव में
छत्ता उपलब्ध नहीं होगा। भींग जायेंगे। सर्दी लग जायेगी। वहां जगह - जगह
कीचड़ ही कीचड़ रहता है , पीताम्बर सत्यानाश हो जाएगा। ड्राईक्लीनर तो
होगा नहीं जो तत्काल धाकर दे दे। आपके कमल - सदृष्य पैर गंदे हो जायेंगे
क्योंकि जूते चलेंगे नहीं। गाँव में अभी कृषि - कार्य जोरों पर चल रहा होगा
ब्यासी चल रही होगी। ग्रामीणों ने अगर परीक्षा लेने के लिए हल पकड़ा दिया
तो सारी इज्जत धूल में मिल जाएगी। इस मौसम के देवता सिर्फ सोने का काम
करते हैं। कहीं प्रवास नहीं करते फिर आप तो देवेश्वर हैं। चादर तानकर
सोइये। देवउठनी एकादशी के पश्चात ही देहात जाने का कार्यक्रम बनाना उचित
होगा।
कृष्ण को निज सचिव का सलाह सही लगा। वे रूक गये। वे चार माह तक कहीं
नहीं गये। चतुर्मास व्यतीत करने के पश्चात जब ठंड ऋतु आई तो उन्होंने निजी
सचिव को पुन: बुलवाया और कहा - अब सुदामा के गाँव में किसी प्रकार की
कठिनाई नहीं होगी। मेरे प्रस्थान करने का प्रबन्ध करो।
निजी सचिव अपने आराध्य देव का बहुत ख्याल रखते थे। बोले - प्रभु,
देहात में मुसीबत ही मुसीबत है। आप सोच रहे होगें कि वहाँ पिकनिक मनाने और
घूमने में बहुत आनंद आयेगा लेकिन जब ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर चलने का समय
आयेगा तो पैर जवाब दे जायेंगे। अभी ठंड का मौसम है। ग्रामीण पत्थर के कीड़े
के समान कठिन स्वभाव के होत हैं। वे कथरी और कमरा ओढ़ लेते हैं। अलाव
तापकर और पैरा पर सोकर रात काट लेते हैं। आप हर प्रकार से सुविधा सम्पन्न
हैं। दुख कभी जाना नहीं। कोट, स्वेटर, गद्दा, मखमली के अभाव में ठिठुर
जायेंगे। वहां अभी धान की कटाई चल रही होगी। अगर ग्रामीणों ने आपको धान
काटने कह दिया या धान का भारा उठाने के लिए विवश कर दिया तो क्या सुर को
कंधे पर रखकर खलिहान तक ले जायेंगे।
कृष्ण जी तमतमा गये। बोले - कदापि नहीं, मुझसे मिहनत का काम कभी
नहीं होगा। दूसरों को श्रम करवाने के लिए सत्ता पर बैठा हूं। मैं क्यों
पसीना बहाऊंगा।
- तो फिर गाँव जाने का विचार ही त्याग दीजिये।
- परन्तु सुदामा की बहुत सुधि आ रही है। उनके पास पहुंचना अत्याश्यक है। कोई शुभ समय निकालो।
- गाँव जाने की जिद्द ही है तो ठंड को व्यतीत होने दीजिये। गर्मी में चले जाइयेगा।
निजी सचिव की नेक सलाह मानकर कृष्ण धैर्य धारण कर रूक गये। जब शरद
ऋतु समाप्त हुई तो गर्मी का आगमन हुआ तो उन्होंने अपने हितैषी निजी सचिव को
बुलाकर पुराना राग अलापना प्रारंभ किया - क्यों अब गाँव जाना ठीक है न, अब
तो वहाँ किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा।
निजी सचिव जो अपने इष्ट की सुरक्षा का सदैव ध्यान रखते थे, गम्भीरता
पूर्वक बोले - क्या बतलाऊं नाथ, गर्मी के मौसम में देहात का प्रवास तो और
भयंकर दुखकारक है। ऊपर से सूरज तपेगा और नीचे से धरती जलाएगी। वातानुकूलित
कमरे तो होंगे नहीं जो गर्म लू से सुरक्षित हो सकेंगे। और तो और पंखा भी
नसीब नहीं होगा। गन्ने का रस, लस्सी, दूध कोल्ड्रिंक, फ्रीज का पानी सबसे
वंचित रहना पड़ेगा। ऊपर से गाँव वालों ने भरी दोपहरी में पद - यात्रा करने
बाध्य कर दिया तो पांव में फफोले पड़ जायेंगे।
- अच्छा, मैं सुदामा के पैरों को आंसुओं से धोंऊ और मेरे चरणों में
फफोले पड़े। नहीं जाना है ऐसे गाँव में। तुमने अच्छा किया जो वास्तविक तथ्य
खोलकर मुझे गलत कदम उठाने से रोक दिया, नहीं तो मैं गाँव जाकर कठिनाई में
पड़ जाता। भगवान बचायें - गाँव जाने से ...।
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