छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

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शनिवार, 23 जुलाई 2016

अवकाश

राम लंका विजय कर चुके थे.इसका समाचार कस्टम विभाग को मिला तो उसने गुÄ बैठक बुलायी.जब सभी उपक्स्थत हो गए तो वरिþ अधिकारी ने कहा- आप लोगो को ज्ञात होगा कि लंका सोने की नगरी है और राम वहां से आ रहे हैं....।
एक ने बीच  में कहा- तो यिा हो गया ?सोना आभूषण बनवाने के लिए ला रहे होगे.
वरिþ अधिकारी ने डांटा - चुप रहो,राम दूसरों को ईमानदार बनने शिक्षा देते हैं.तस्करों को सफाया करने का आदेश देते हैं.लेकिन स्वयं अघोषित सोना ला रहे हैं.इसलिए उन्हें ऐरोड¬म पर ही धर लेना है.
दूसरे ने शंका की - लेकिन सर,इतने बड़े आदमी को रंगे हाथ पकड़ना आसान नहीं.अगर आपकी बात मान भी ले तोवे बाद में बदला लेंगे.
- चाहे कुछ हो.य दि कोई अधिकारी घूंस ले तो राम अपराध निरोधक दल के द्वारा पकड़वा कर दंड दिलायेंगे ही इसलिए उनकी पोल खुलनी ही चाहिए.
इधर कस्टम विभाग की मीटिंग च लरही थी उधर राम के गुÄच रों ने इसकी सूच ना उन तक पहुंचा दी.राम हड़बड़ाये.तुरंत भरत को फोन किया-हैलो..हैलो,भरत...।
भरत ने कहा- हां भइया,मैं भरत हूं लेकिन आप कहां से बोल रहे हैं.
राम ने गुस्से में भर कर कहा- जहÛुम से....।
 - च ौदह वषोY तक आपकी वाणी सुनने को नहीं मिली थी.आया तो ककर्श है.लगता है- आप मुझसे नाराज हैं.
- और नहीं तो यिा .ऐसे तो तुम मेरे नाम की माला टरकाते हो पर मेरे ऊपर मुसीबत आ जाती है तो सहाय ता करने से मुंह मोड़ लेते हो.य ही नहीं दुख को और बढ़ाते हो.
- जबरन आरोप यिों लगा रहे हो .मैंने ऐसे कब किया ?.
भरत के पूछने पर राम ने बताया- लो प्रमाण देता हूं...जब लक्ष्मण को शIिबाण लगा था तो हनुमान को मैंने दवाई लाने भेजावह हिमाच ल प्रदेश से संजीवनी ला रहा था तो तुमने मार कर गिराया था कि नहीं..।
राम के द्वारा गलती पकड़े जाने पर भरत नवर्स हुए.उन्होंने क्षमा मांगते हुए कहा- भैया पिछली बातों को भूल जाइये.और अभी यिा करनी है बताइये.
राम ने बताया- मैं लंका सेसोना ला रहा हूं.इसकी जानकारी कस्टम विभाग को हो गयी है.उसने मुझे पकड़ने के लिए जाल बिछाया है.य दि माल बरामद हो गयी तो बड़ी बदनामी होगी.लोग मेरी पूजा करने से कतरायेंगे.
- आप ठीक कह रहे हैं.आपने इस च क्रव्यूह से बच ने के लिए कौन सा उपाय  सोचा है.
- त्य ौहार मनाने के लिए आज का अवकाश दे दो.
भरत ने पूछा- छुuी देने से कमर्चारी काय र् छोड़ कर अपने घर च ले जायेगे तो राý¬ की उÛति में बाधा उपक्स्थत होगी कि नहीं ?
राम ने कहा- भाड़ में जाये राý¬ की उÛति.मैं य ही तो चाहता हूं कि कमर्चारी काय र्स्थल पर न रहे.ताकि मैं सोना को लेकर सुरक्षित राजमहल पहुंच  जाऊं.
भरत ने बड़े भाई के आज्ञा को शिरोधाय र् कर तत्काल दीपावली अवकाश की घोषणा कर दी.

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

अंधे

सूरदास महान कवि के पद पर प्रतिþित हो चुके थे. इसी बीच  उनकी पुस्तकों के प्रकाशक को किसी ने बताया कि सूरदास अंधे है.प्रकाशक हड़बड़ाये.वे सम्पादक के पास दौड़े.उस वI सम्पादक सूरदास की रच ना को स्वीकृति देने की सोच  रहे थे.उन्होंने प्रकाशक से कहा - रच ना को पढ़कर तो देखिये.सूरदास जी ने कृष्ण के बाल - च रित्र का कितना सजीव वणर्न किया है -मैंया मैं नहीं माखन खायो,ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो...। सच  कहूं - सूरदास के सिवा मुझे कोई दूसरा कवि जमता नहीं.मैं उन्हें फस्टर् प्रिफरेंस देता हूं.
प्रकाशक ने सिर पिट लिया.कहा - बहुत खूब,मेरी सलाह है - पूरी पत्रिका ही उनके नाम से कर दीजिये.लेकिन कभी पता लगाया कि सूरदास अंधे है ?
सम्पादक विश्वास कैसे करते.पूछा - ऐसे कैसे  हो सकता है.अंधा कोई काव्य  रचेगा.
प्रकाशक ने कहा - य ही प्रश्न तो मेरा भी है.देखिये,आपने सूरदास को धड़ाधड़ छापा तो मैंने सोचा कि आप उनसे अच्छी तरह परिचि त होगे.मैंने भी उनकी पुस्तक निकाल दी.अब किसी दूसरे कवि ने मुकदमा दाय र कर दिया कि मेरी पांडुलिपियां चोरी च ली गई.उन्हें प्रकाशक सूरदास के नाम पुस्तकाकार दे रहे हैं.मैं तो सफाई देते - देते परेशान हो जाउंगा.अब यिा होगा. आप ही रास्ता निकालिये.आपने ही मुझे धंसाया है.
सम्पादक ने कहा - इतने दिनों तक आपने राय ल्टी हड़पी.माले मुKत दिले बेरहम से उड़ाया.जब फंसने की नौबत आयी तो दोष मुझ पर मढ़ रहे हो.मुझसे भूल हो गयी तो आपको ही छानबीन कर लेनी थी.
प्रकाशक ने कहा - आपस में जुझने से कोई  फाय दा नहीं.पहले तो य ह पता कर लें कि सूरदास अंधा है या नहीं .साहित्य  में एक दूसरे की टांग खींची जाती है.किसी ने ईष्यार्वश अफवाह उड़ा दिया हो तो ?
सम्पादक बोले - अब आये लाइन पर.ठीक है किसी जासूस को निय I कर देते हैंवास्तविकता ज्ञात करने .
और उन्होंने सूरदास के पीछे एक जासूस लगा दिया.जासूस ने अपना काय र् प्रारंभ दिया.वह पूरा छानबीन कर चुका तो सम्पादक - प्रकाशक के पास आया.बोला - वास्तव में सूरदास अंधे है...।
सम्पादक प्रकाशक के होश उड़ गये.चीखे - ऐं, यिा सच  ?
जासूस ने कहा -हां, मगर घबराइये नहीं..साफ  बात य ह है कि  सूरदास की आंखें कम्प्यूटर Òýि सी तेज है.वे किसी भी चीज का बारीकी से अवलोकन करते हैं.फिर भी सूरदास अंधे है यानि साहित्यि क अंधे.देखिये समझाता हूं - आपने मुझे भेजा तो मैं उनके पीछे छाया की तरह लग गया.एक दिन की बात है - सूरदास कुछ ढ़ूंढ़ते हुए सड़क नाप रहे थे.इतने में उनका भाग्य  च मका.उन्होंने देखा कि कुछ गु·डे एक लड़की को छेड़ रहे हैं.एक आदमी ने सूरदास को पानी च ढ़ाया कि कविवर, आपके रहते इतना बड़ा अनथर्.च लिए तो गु·डों की ठुकाई करें.लड़की की इƒत बचाये.
सूरदास उस आदमी के ऊपर बरसे -दाल भात के बीच  तू मूसलकंद कहां से टपक पड़ा.अरे, बहुत दिनों से लिखने के लिए मैं मसाला ढ़ूंढ़ रहा था, मिला भी तो तू सत्यानाश करने च ला है.तू य हां से रफूच Oर होता है कि  नहीं.मुझे इस पर लिखने तो दे...।
उन्होंने लड़की को गु·डों से मुI नहीं कराया.हां, उस घटना पर शानदार कविता जरूर लिखी.
सूरदास पेन कागज लेने बाजार जा रहे थे.उन्होंने देखा कि पुलिस लोगों पर गोलियां की वषार् कर रही है.एक आदमी ने सूरदास से कहा-आपके सामने जनता पर अत्याचार हो रहा है आप विरोध यिों नहीं करते ?
सूरदास ने कहा - विरोध यिों करूं ?पुलिस अत्याचार करेगी और जनता सहेगी.इस पच ड़े में पड़ूंगा तो कविता कौन लिखेगा ?
और उन्होंने उस घटना पर कविता लिखी.अब आप समझ गये होंगे कि सूरदास की आंखें दिखती है.मगर जुल्म और दमन को सूरदास जी अनदेखा कर जाते हैं तो वे अंधे ही है.
सम्पादक - प्रकाशक के सिर से चिंता का बोझ उतर गया. 

धमकी

हनुमान धवलागिरी मेडिकल स्टोसर् में प्रविþ हुए.विक्रेता से कहा-लक्ष्मण बहुत सीरिय स है.उनके उपचार के लिए दवाई की आवश्य कता है.तुम दो .हड़बड़ी में पैसा लाना भूल गया.
विक्रेता ने कहा- तब तो गुरू माफ करें य हां आज नकद -कल उधार का कानून हैं.आपको दवाई लेनी है तो नकद भुगतान कीजिए.
हनुमान ने धमकी दी -देखो,तुम्हारे सभी धांधली मुझे ज्ञात है.तुम अस्पताल की दवाइयां चोरी से लेते हो.तगड़ा दाम वसुलते हो इंकमटेसि पटाने में बेईमानी करते हो.इसकी शिकाय त राम से कर दूंगा.वे मेडिकल स्टोसर् को कबाड़ी में बदल देंगे.
विक्रेता -धमकी और किसी को दीजिए.राम मेरा यिा कर लेगा.सत्ता पर होते तो बात और होती.
हनुमान-बेटे तुम भारतीय  राजनीति से अनभिज्ञ हो .य हां वंशानुसार ही सब काम च लता है.सुन-य हां रघु,दिलीप,अजऔर दशरथ हुए तो तुम्हीं बताओ दशरथ के बाद शासक कौन होगा ?
- अरे बाप रे ,वास्तव में राम के अलावा दूसरा शासक हो ही नहीं सकता.।विक्रेता ने कहा -आपको जो दवाई चाहिए,ले जाइये.साथ ही निवेदन है कि मेरी शिकाय त राम से नहीं करेंगे.
हनुमान ने लिस्ट थमा दी.विक्रेता दवाई पैक करने लगा.हनुमान ने कहा-क्रेडिट बिल भी दे दो ताकि रूपए जल्द से जल्द भिजवा सकूं.
विक्रेता ने कहा- मैं कोई पराया हूं.जो लेaन -देन की बात करते हो.मुझे भी लक्ष्मण की सेवा करने का अवसर तो दीजिए....।
और उसने मुKत में हनुमान को दवाइयां टिका दी.

कवि और समीक्षक

मलयालम के कवि एरितच्छना रायणम क्लिपाट पूण र्कर चुके थे.वे समीक्षकों के पास गए.बोले-आप लेखकों को छिलने में उस्ताद हैं.मेरी पुस्तक की समीक्षा तो कर दीजिए.
समीक्षकों ने रामाय ण पढ़ी.कहा-हूंह,इसमें कोई दम नहीं है.भाषा गवारू और च लताऊ है.हमसे चीरफाड़ करनी है तो संस्कृत में लिखिए.संस्कृत देववाणी है.
एरितच्छन ने कहा -साहित्य  वह है जो सबके पल्ले पड़े.संस्कृत में घसीटने से विश्रि  वग र्ही पढ़ पाएंगे.मैने लोकभाषा में इसलिए लिखा कि सब कोई सरलता से पढ़े और समझे.
समीक्षकों ने ऐरितच्छन की बातों को हंसी में उड़ा दी.एरितच्छन को बड़ा गस्सा आया.बोले -आप मुझे मुख र्न समझे .मैं संस्कृत में लिखकर दिखा दूं.मगर सोच  छ्वीजिए,मेरा राम राजधानी छोड़कर जंगलों की खाक नहीं छानेगे.ग्रामीणों को मुंह नहीं लगाएंगे.अत्याचारी रावण से मित्रता काय म करेंगे.कहिये लिख दूं संस्कृत में.
समीक्षकों की भृकुटि टेढ़ी हो गई.बोले -आप कवि होकर हमें दबा रहे हैं.नहीं करनी है आपकी समीक्षा.
एरितच्छन ने कहा-धौस किसी और को दीजिए.मै भाषा शैंली नहीं बदलूंगा.मैंने जिसके लिए लिखा है वह इसका महत्व समझ जायेगा.
वे वापस हुए और रामाय ण को जनता को सौंप दी.

कैंची

वह अध्यक्ष था सेंसर बोर्ड का। कितनी भी शिक्षा प्रद फिल्म हो उसमें आंख मूंदकर कैची चला देता था। नगद नारायण मिल जाये तो सैक्सी फिल्मों को भी देता था - ए सर्टिफिकेट।ं
ंएक दिन उसने नई केेैंची लायी.धार की परीक्षा लेने की तैयारी च ल रही थी कि य मराज आ गया.अध्य क्ष समझा फिल्मी य मराज होगा.डपटकर कहा -य ह शुटिंग स्थल नहीं,मेरा कायार्लय  है.बड़े-बड़े निमार्ता बिना दुआ सलाम के अंदर नहीं धंस सकते.तुम्हें फिल्मों से दूध की मखिी की तरह नहीं फिकवाया तोमुझे अध्य क्ष नहीं भूत कह देना.
य मराज हंसा.बोला-अभी भूत नहीं हो पर बन जाओगे.मैं भी किसी जगह का अध्य क्ष हूं.
य मराज ने रस्सी फेंकी और अध्य क्ष के गले को फंसा लिया.अध्य क्ष ने सोचा -पहले इस रस्सी को उड़ा लूं फिर य मराज के बग्े को ्यलाप करूंगा। वह रस्सी को काटने लगा.वह पसीना-पसीना हो गया पर रस्सी कटने से रही.य मराज ने कहा-बेटे य ह फिल्मी रील नहीं ,य मफांस है.तुम्हें भव बंधन से मुढ्ढि दिए बिना मानेगी नहीं.
अब तो अध्य क्ष घबराया.उसने लालच  दी कि जितनी लक्ष्मी चाहिए ले लो मगर मुझे जीवनदान दो.
य मराज ने कहा-दंद-फंद मृत्युलोक में ही च लते है.नक र्ही एक ऐसी जगह है जहां घूस च लता है न धांधली वहां तुम्हारे जैसे पापियों को ए सटिर्फिकेट देने का प्रावधान नहीं है.
इतना कहा य मराज अध्य क्ष के जीव को सेंसर करके अपने साथ ले गया.

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

जनकवि

       नूतन प्रसाद

       कालीदास गधा, बैल याने कई जानवरों के दर्शन कर चुके थे पर ऊंट का नहीं.एक दिन ऊंट ने उनकी आंखों को सफल कर ही दिया.कालीदास घबराये.बोल पड़े - उस्‍ट -उस्ट...।
       विद्योत्तमा ने सुना तो अवाक रह गई.वह दौड़ी - दौड़ी उन्हीं साहित्य पंडितों के पास गई जिन्होंने विद्योत्तमा का विवाह कालीदास से कराया था. विद्योत्तमा ने कहा - आप लोगों ने मुझे किसके गले बांध दिया.उन्हें ठीक से बोलना भी नहीं आता.''
       पडितों ने कहा - उन्होंने रामचन्द्र को रामचन, साहब को साहेब, डाक्‍टर को दांगतर कहा होगा.लेकिन ये अकारण नहीं है.दरअसल वे जनता के कवि है. जनभाषा का प्रयोग करते हैं......।
       विद्योत्तमा सारी बातें समझ गई. वह लौटी और कालीदास के चरणों पर गिर गई कि नाथ, मैं आपको जड़मति समझ रही थी.आप पहुंचे हुए विद्वान हैं.मैंने आपको अपमानित किया उसके लिए मुझ मूर्खा को क्षमा कीजिए.''
कालीदास ने कहा - '' एवमत्तु !''

कृतध्‍न

       एक साधू थे.उनकी कुटिया में एक चूहे ने शरण ले ली.एक दिन एक बिल्ली आयी.वह चूहे को खाने दौड़ी.
चूहा घबराकर साधु के पास गया.चूहे ने कहा - मैं तो यह सोच कर आपके यहां आश्रय लिया कि मेरा बाल भी बांका नहीं होगा.मुझे क्‍या मालूम कि यहां भी मेरा काल धमक सकता है.''
       साधु ने कहा - तुम कृतध्न हो. जिसका खाते हो, उसी के पत्तल में छेद करते हो.मेरे सारे कपड़े कुतर डाले. मुसीबत सिर पर आयी तो गिड़गिड़ा रहे हो.अब बांधों न बिल्ली के गले में घन्‍टी !''
       चूहे ने विनती की - मेरे अपराध क्षमा कीजिये. बिल्ली से बचाइये.''
- बचाना क्‍या , तुम्हें ही बिल्ली बना देता हूं.''
       इतना कह साधु ने चूहे को बिल्ली बना दिया.एक दिन वह बिल्ली सौ चूहे खाकर हज करने जाने वाली थी कि उसे कुत्ता काटने दौड़ाया.बिल्ली साधु के पास दौड़ी.साधु ने कहा - मैं सिर्फ तुम्हारी ही रक्षा करता रहूं या मेरा भी कुछ काम है ! दूध चुराकर खाती हो, अब भोगो चोरी का फल ! तुम ऐसी हो कि पिछली बातें भूला जाती हो और गल्तियां दोहराने लग जाती हो .''
       बिल्ली ने कहा - लीजिये, अब कभी गलती न करने के लिए गंगाजल उठाती हूं.''
     साधु ने बिल्ली को कुत्ता बना दिया.इस तरह उस चूहे की इतनी पदोन्‍नति हुई कि एक दिन वह शेर बन गया.अब क्‍या था - वह घास पात थोड़े ही खाता.उसे चाहिए था खून और मांस .वह साधु के ऊपर झपटा. साधु ने कहा - अरे अरे, ये तुम क्‍या कर रहे हो.मैं तुम्हें चूहे से शेर बनाया तो मुझे ही सफाचट करने चले.ऐसे में मैं तुम्हें पुन:  '' मुसको भव '' का श्राप देकर तुम्हारी शक्ति  छीन लूंगा.''
       शेर ने कहा - गुरू अब ऐसा होने से रहा.तरक्‍की करके मैं गिरने वाला नहीं.आप मूर्ख हैं जो दूसरो की उन्‍नति  चाहते हैं.परोपकार करने का फल भोगिये.....।''
और शेर ने साधु को अपना भोजन बना लिया.

मूर्ख सम्‍मेलन

नूतन प्रसाद 

एक दिन राजा भोज को उनकी रानी लीलावती ने मूर्ख कह दिया.राजा साहब तुरंत दरबार में आये.वे आये तो दरबारियों को दौड़ते - पड़ते आना ही पड़ा.राजा ने एक से कहा - तुम मूर्ख हो !''
       दरबारी ने कहा - जी हां, मैं मूर्ख हूं . आप कभी गलत थोड़े ही बोलेंगे.''
       राजा ने उसे भगा दिया.दूसरे आया तो उसे भी राजा ने मूर्ख कहा तो उसने कहा - मैं मूर्ख ही नहीं, महामूर्ख हूं .''
       इसी प्रकार जितने भी दरबारी आये वे मूर्ख की पदवी से सुशोभित होकर लौट गये.अंत में कालीदास की बारी आयी.राजा ने रट्टू तोते की तरह उन्हें भी मूर्ख कहा.सुनकर कालीदास मुस्कराये.बोले -राजन, वचन देकर उसे पूरा न करने वाला, दूसरों को दुख पहुंचाकर उसके बदले प्रशंसा पाने की  इच्छा रखने वाला पत्नी के रहते दूसरी औरत पर नीयत खराब करने वाला मूर्ख, बेवकूफ, पापी सभी होता है.मैंने ये कार्य किये ही नहीं तो मैं मूर्ख किं कारणम् ?''
       राजा को प्रश्न का उत्तर मिल गया.उन्होंने एक दासी के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा था.जिसे रानी जान गई  थी. 

न्‍याय

न्याय

       संयुक्‍त राज्‍य संघ के न्यायालय  के दरवाजे अभी खुले ही थे कि रावण हाहाकार करता आया .उसने विनती करी - त्राहि माम, मेेरी रक्षा करो .राम की सेनाएं लंका की सीमा पर अतिक्रमण करने ही वाली है.मेरे रा्ज्‍य ऊपर युद्ध का विमान मंडरा रहे हैं.बम गिरने ही वाला है.युद्ध विराम के लिए तत्काल कार्यवाही न हुई तो लंका पर राम का डंका बज जायेगा.''
       जूरी के सदस्य  हैरान रह गये.उन्होंने कहा कि यह हुआ कैसे ! कुछ दिन पूर्व राम ने स्वयं विश्व में शान्‍ित रखने सम्मेलन आहूत किया था.जिसमे सभी राज्‍यों के अधिकारों की रक्षा एवं निरस्त्रिकरण पर जोर दिया था.फिर वे संधि का अंतिम संस्कार करने पर क्‍यों तुले हैं ! यह रावण झूठा आरोप तो नहीं मढ़ रहा ?''
       बेतार यंत्र से राम तत्काल बुलाये गये.बलात युद्ध करने का कारण पूछा गया तो राम ने सफाई दी - गजब हो गया. चोर कोटवार को डांट रहा है.स्वयं रावण मेरे पिता के जमाने से अयोध्या पर आक्रमण करता आ रहा है.इसकी हड़प नीति की सीमा नहीं.इसने कुबेर के राज्‍य को छीना.अभी भी शनि दिग्पाल वगैरह इसके कैद में है. क्‍या यह विश्व शांति में बाधक नहीं ?''
       रावण ने अपना बचाव किया - राम का आरोप पूर्ण असत्य  एवं निराधार है.इन्होंने मारीच  एवं सुबाहु के राज्‍यों को अपने राज्‍य में मिलाया.आज विश्व के नक्‍से पर उनके राज्‍यों का नाम निशान नहीं है.पम्पापुर के राज्‍याध्य क्ष बालि का तीन सौ दो किया और सुग्रीव को गद्दी सौंप दी.गृहयुद्ध और आंतरिक तोड़ - फोड़ कराने में इनके समान दूजा न कोय  .मैं खुद परेशान हूं - विभीषण से. वह देश के साथ गद्दारी करने आतुर है.उसने लंका की सैनिक छावनियों,  कारखानों एवं नाजुक स्थलों की जानकारियां राम तक पहुंचा दी है.मेरे देश का हर राज राम जान गये हैं. क्‍या कहूं हुजूर, इनके राजदूत अंगद ने भरी सभा में मेरी बेइज्‍जती की.राजदूत का कर्तव्य  है कि वह राज्‍यों के आपसी संबंधों  में मधुरता लाये, मगर उसने जहर घोल दिया.''
       राम ने अमोघ चलाया - खुद रावण ने बैल को आमंत्रित किया कि आ और मुझे मार.मैंने अपने पी.ए.हनुमान को समझौते के लिए भेजा था मगर इसने उसकी इतनी दुगर्ति की कि वह आज तक अस्पताल में है.उसका ही बदला अंगद ने लिया.''
       हनुमान का नाम सुनते ही रावण रो पड़ा.कहा - पवन के बल ने ही तो मेरी लंका को राख में बदला है.हालत यह है कि '' बचा न नगर वसन घृृत तेला '' तो कपड़ों के  बिना लोगों को जबरन साधु और नागा बाबा बनना पड़ रहा है . खाने को तेल नहीं मिल रहा.पेट्रोल के बिना कार - मोटर साइकिलें सड़ रही हैं.यही नहीं हनुमान ने बाग - बगीचे, खेत- खलिहानो को भी तहस - नहस कर डाला.मेरे देश वासी अन्‍न के अभाव में भूखों मर रहे हैं . जल्द न्याय  हो वरना अंधेर हो जायेगा....।''
       जूरी के सदस्य  एक साथ चिंघाड़ उठे - हमारे पास देर है पर अंधेर नहीं.उन्होंने न्याय का तराजू मंगाया.राम - रावण को बिठाया.सच  - झूठ परखा.तत्पश्चात निर्णय  दिया - हमनें वादी - प्रतिवादी की झड़पें गंभीरता पूवर्क सुनीं.ये एक  - दूसरे    पर कीचड़ उछाल रहे हैं.राज्‍यों का आपस में तनाव एवं टांग खिंचाई विश्व शांति में बाधक है.विश्व को बचना है तो शांति चाहिए.शांति क्रांति से आयेगी.क्रांति के लिए संघर्ष जरूरी है......।
       राम - रावण का धैर्य  खत्म हो गया था.उनने बीच  में कहा - लम्बा - चौंड़ा हांकने की जरूरत नहीं.हमें बताइये, आखिर करें क्‍या ?''
सदस्यों ने न्याय  दिया - युद्ध....।''

पवित्र प्रेम

नूतन प्रसाद

       जी हां, मै उसी सुरेन्दर की बात कर रहा जिसने नारियों को स्वतंत्रता और सम्मान दिलाने के लिए सवर्प्रथम पान का बीड़ा चबुलाया था.वह जब कभी बलात्कार या नारी - दहन का समाचार सुनता.वह क्रोध से पागल हो जाता था.प्रतिशोध लेने बीहड़ में कूद जाने की ठान लेता था . आज नारियां सुरक्षित - सम्मानित है तो सुरेन्दर की बदौलत ?
       उदाहरण के लिए प्रस्तुति आवश्यक है तो एकदा सावित्री को कुछ लोग पत्थर से मार रहे थे.उनका तर्क था कि वह  पापिन है.इतने में सुरेन्दर का धूमकेतु की तरह आगमन हुआ.वह चिल्लाया - यह अबला है, सबला नहीं, इसलिए इसे सताओ. पत्थर से मारो, बंदूक से धूंकों .एटमबम पटक दो, पर मैं पूछता हूं - इस भीड़ में पापी कौन नहीं है ?
       लोगों ने अपने - अपने गिरेबाज झांककर देखे तो सभी पापी निकले.वे चुपचाप खिसक लिये. सावित्री ने कहा - भइया, तुमने इस बार मुझे बचा लिया.भविष्य  में और मुसीबत आई तो कौन सहायता देगा ?''
       सुरेन्दर ने आश्वस्त किया - बहन, मेरे रहते चिंता की चिता में जलने की आवश्यकता नहीं.कभी तुम पर अत्याचार हुआ तो मेरी पुकार करना.तुम्हारी रक्षा करूंगा. मैं दूसरों सा पापी थोड़े ही हूं.''
       सावित्री झूम उठी. वह गा पड़ी - भै़या,मेरी राखी के बंधन को निभाना....।'' उसने फर्र से साड़ी फाड़ी.सुरेन्दर की कलाई में सुशोभित किया.अब क्‍या था सुरेन्दर , सावित्री का धर्मभाई बन गया, सावित्री  सुरेन्दर की धर्म बहन.उस दिन के बाद से जब भी रक्षा बंधन का पर्व आता तो राखी बांधने और बंधवाने का कायर्क्रम सम्पन्‍न होता.आखिर उनमें पवित्र प्रेम जो था.
       इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन मैं उन दोनों के बीच  दाल - भात में मूसलचंद बन गया.मैंने सावित्री से कहा - सुरेन्दर घिस भाई लल्लू फोकट का चंदन है.राखी बंधवाता है.मिठाई खाता है पर देता कुछ नहीं.तुम इस बार राखी न बांधों जब तक वह जब तक सुख सुविधाएं एवं सुरक्षा का आश्वासन दे. भाई का कर्तव्‍य  है कि वह बहन की हर प्रकार से सहायता करें.
       सावित्री शर्म से लाजवन्ती बन गई.सुरेन्दर ने कहा - मैं अपने कर्तव्य  - पथ से डिगा ही कब हूं.तुम्हारे चोंच  मारने से पहले ही सावित्री को सब प्रकार की सुख - सुविधाएं प्रदान कर दी.अब तो वह गृहस्वामिनी है.जिस चीज की आवश्यकता होगी स्वयं निकाल लेगी.
       मैं चौंका'- छक्‍का लगाया - कैसी स्वामिनी, वह तो तुम्हारी धर्म बहन है.''
सुरेन्दर ने भ्रम तोड़ा - थी.. पर अब धमर्पत्नी है.धर्म ज्‍यों का त्यों है.सिर्फ बहन को पत्नी में बदला. उसने पूछा - है कोई मेरे समान नारियों का सम्मान करने वाला ?

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सुअवसर

एक शेर  हिरण और सांभर का खून पी कर आराम कर रहा था कि एक चूहा आया.शेर ने उसे पकड़ लिया.चूहे ने कहा - मेरी स्वतंत्रा पर तू यिों डांका डाल रहा है , मुझे छोड़ दे.
शेर गुरार्कर बोला - हरगिज नहीं, मैं तुझे खाऊंगा.
- तुमने दो जानवर मार खाये फिर भी भूख नहीं मिटी ? चूहेे ने कहा .
- बेवकूफ नहीं जानता समुद्र में सबसे अधिक पानी रहता है फिर भी वह प्यासा रहता है ?
- तुम कैसे राजा हो, जो निबर्ल का भक्षण करते हो ?
- जो निबर्ल - असहायों के अधिकार छीनने, उन्हें सताने में सक्षम होता है. वह तो राजा बनता है.
- दूसरों का खून पीते हुए दया नहीं आती ?
- बिल्कुल नहीं, दूसरों का खून पीने के कारण ही तन्दुरूस्त और बलवान हूं.खून न पीने के कारण तुम कमजोर हो तभी तो बि„ी मौसी भी उदरस् थ कर  लेती है.
चूहे ने शेर की पकड़ से छूटने का प्रय त्न किया.वह असफल रहा.उसने पुरानी बातों की दुहाई दी -एक बार एक शिकारी ने तुम्हें अपने जाल में फंसा लिया था. तुमने बहुत प्रय त्न किये पर जाल से छूट न सके .मैं दौड़कर आया और जाल काटकर तुम्हारी रक्षा की.उसका अहसान भूल जाओगे ?
- हां....।
- यिों ?
- वह तो तुम्हारा कतर्व्य  था.छोटों को चाहिए कि वह बड़ों के हित की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दें.अगर मैं तुम्हारे जैसों का ऋणी बनता रहा तो दुबला होक र मर जाऊंगा .
- मैं तो तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकता.फिर अभय दान देने से यिों डर रहे हो ?
- इसका उत्तर देने से पहले छत्तीसगढ़ी कहानी सुनो - एक हाथी सन के खेत में घुस जाता था और सन के पेड़ को रौंद डालता था.सन दुखी तो थे पर हाथी से लोहा लेने में अश्मथर् थे.एक दिन वे संगठित हुए और डोर बन गये. इतने में हाथी झूमता हुआ आया कि डोर ने उसे बांध कर जमीन पर पटक दिया.साथ ही उसके गले के लिए फांसी का फंदा भी बन गया.फिर यिा था हाथी थोड़ी ही देर में मर गया.इसी तरह मैंने अगर हाथ आया अवसर खो दिया तो तुम अपने साथियों को बुला लोगे और सब मिलकर मुझे ही खत्म कर दोगे.इसलिए मैं भूलकर भी खतरा मोल नहीं ले सकता.
इतना कह शेर ने चूहे को मार डाला.

पूर्वाभास

कालीदास जिस पर डाल पर बैठे थे उसी पर कुल्हाड़ी च ला रहे थे.उधर से कुछ लोग निकले.उनमें से एक ने कहा-बेचारी डाल ने आपको आश्रय  दिया.उसका उपकार मानना चाहिए था लेकिन आप उसका ही घात करने तुले हैं.य ह तो सरासर बेईमानी है.
कालीदास अपने काय र् पर डंटे रहे.उनके पास पसीना पोंछने का वI नहीं था तो बात करने का सवाल ही नहीं उठता.लोगों में एक अनुभवी बूढ़ा भी था.उसने कहा - किसी के काम में रोड़ा यिों बनते हो ! कालीदास को कवि बनना हैं तो पूवार्¨यास कर रहे हैं.उनका ध्यान भंग मत करो.
- बुâे, तुम्हारी बुद्धि सठिया तो नहीं गई - ऐसा कैसे हो सकता है !
बुâे ने कहा - साहित्य  के झमेले में तुम पड़े नहीं तो आश्च य र् करोगे ही.देखो, कोई भी कवि साहित्यि क क्षेत्र में पदापर्ण करता है तो सम्पादकों, प्रकाशकों, समीक्षकों गिड़गिड़ाता है.ये शरण देते हैं तो वह च मक भी जाता है.तब कवि का रौद्ररूप आता है सामने.वह इन तीनों को शोषक, लुटेरे और अत्याचारी करार देता है.कालीदास वैसे ही अपने आश्रय दाता के साथ घात नहीं करेंगे तो उनकी इच्छा कैसे पूणर् होगी.
और वास्तव में उस बूढ़े की भविष्य वाणी सत्य  साबित हुई. कालीदास कवि बन  कर रहे.   

पितृभक्ति

च मरूराम श्रमिक नेता था.उसका च न्द्रमा के समान एक ही पुत्र था- कमलेश.च मरू की सिफर् एक ही इच्छा थी-मैं मजदूरों का सेवक हूं.मेरा पुत्र पढ़ लिख गया तो उसे भी मजदूरों की सेवा में लगा दूंगा.
और एक दिन हो गया उसका सपना पूरा.याने कमलेश बन गया लेबर इंस्पे×टर.पिता ने उसे उपदेशामृत पिलाया कि बेटा,मैंने गरीब मजदूरों से चंदे वसूले.उन पैसों के बल पर ही तुम शिक्षित हुए.य हां तक कि तुम्हारी नौकरी के लिए अधिकारियों को खिलाने के पहले पिलाया भी.तुम मजदूरों के हितों का ध्यान रखना वरना मेरी आत्मा रो पड़ेगी.
कमलेश पितृभI था ही.हाथ में गंगाजल लेकर कहा- आप निक्श्चंत रहिये.मैं मजदूरों का सदा पक्ष लूंगा.
कमलेश एक गांव में आया.वह कंगालसिंह के खेत में गया.वहां देखा तो मजदूर अपने कतर्व्य  में जूटे हैं.कमलेश ने उनसे पूछा-तुम्हें कितनी मजदूरी मिलती है.कंगालसिंह तुम्हें चुस तो नहीं रहा है?
मजदूरों ने बताया-ना बाबा ना.कंगालसिंह तो बड़े उपकारी हैं.वे हमें जीने के लाय क रोजी देते हैं.
कमलेश ने कंगालसिंह की कालर पकड़ी.फटकारा- यिों जी,तुम मजदूरों को मजबूर जानकर उन पर अत्याचार करते हो.काम तो खूब लेते हो मगर उचि त मजदूरी नही देते.दयालु सरकार गरीबों को पूंजीपति बनाने के लिये धुंआधार घोषणाएं कर रही है और तुम उसके काय र्क्रम को सत्यानाश करने तुले हो ?
कंगालसिंह उवाच -शहर के होटलों में जो लोग दिन रात खपते हैं.उन्हें सिफर् भजिया चाय  मिलती है.आपने कभी उन पर दया बरसायी?सरकसों में लोग जानवरों की तरह सामान ढ़ोते हैं.उन्हें जानवरों से बचे जूठन ही मिलते हैं.उनकी ओर देखने के लिए सरकारी आंखें अंधी यिों हो जाती है?मजदूर मेरे ब‚े हैं.उन्हें कुछ दूं या न दूं पाप का फल तो मुझे च खना है.
कमलेश क्रोधित हो उठा-च लाना किसी और को.तुम्हारा काम अवैधानिक है.मैं तुम्हारे विरूद्ध रिपोटर् देता हूं.तब आटा दाल का भाव पता च लेगा.
कंगालसिंह के हाथ पांव फूल गये.वह गिड़गिड़ाया- अजी साब,मैं तो मजाक कर रहा था.आप ही मांई -बाप है.कुछ ले देकर मामला रफा दफा कीजिये न !
कमलेश ने कहा-तुम घूंस खिलाकर मेरा ईमान खरीदना चाहते हो.मजदूरों का नुकसान हुआ तो मेेरे पिता की आत्मा को ठेस नहीं पहुचेगी.हां,एक रास्ता है-मुझे एक मजदूर दे दो उसकी मजदूरी तुम ही अदा करना.मुझे घरू काम के लिये एक आदमी की जरूरत है.
कंगालसिंह को तैयार होना ही पड़ा.उसने बुद्धू से कहा- जा रे साहब के साथ.इनके साथ रहेगा तो तेरी बड़ी इƒत होगी.
बुद्धू ने कहा-मैँ नहीं जाऊंगा.दंगे के बीच  फंस गया तो ?वाहन के नीचे आकर च टनी बन गया तो ?
कंगालसिंह ने कहा- अबे,गांव में रखा यिा है!य हां अपढ़ गंवारों के बीच  रहता है.शहर च ला गया तो स¨य ता सीखेगा.आलीशान बंगले देखने मिलेंगे.
बुद्धू कमलेश के साथ जाने तैयार हो गया.कंगालसिंह ने कमलेश से कहा-मुझ कंगाल का ध्यान रखियेगा.मुझ पर सरकारी गाज न गिरे.
कमलेश ने विश्वास दिलाया - तुमने मजदूरों का हक कभी छीना नहीं तो घबराते यिों हो!बेफिक्र रहो.
कमलेश बुद्धू को लेकर घर आया.पिता से कहा- आप श्रमिकों पर श्रद्धा रखते हैं.लीजिये इसके दशर्न च ौबीसों घ·टे कीजिये.
कमलेश अपने कायार्लय  गया.वहां उसने रिपोटर् दी कि कंगालसिंह हृदय  से बहुत धनवान है.उसके पास मजदूर बहुत सुखी है.आखिर बात- वह स्वयं मजदूर है तो मजदूर लोग मालिक......।

गाड फादर

अभियंता से मिलने उसका मित्र आया.उसनेअभियंता के घर की  खस्ता हालात देखी.उसके नाक भौं सिकुड़ गये.बोला- आश्च य र्,घोर आश्च य र्.तुम तो गिनीज बुक में स्थान पाने लाय क हो.लोग निमार्ण विभाग में अभियंता हो मगर परलोक में आÛद लूटने के लिए तुम्हारे पास न कार है न टी.वी. न फ्रीज.
अभियंता ने कहा- भाई साहब ये सामान मुKतमेंंनहीं मिलते.इनके लिए रूपये चाहिए.वेतन से खरीदना मुश्किल है.उसे तो दाल-चांवल ही खींच  ले जाते हैं.
- अबे,वेतन को कौन कुत्ता पूछता है.तुम्हारे पास आय  के इतने स्त्रोत है कि तुम यिा न खरीद लो.रोना रो रहे हो.तुम चु„ू भर पानी में डूब मर यिों नही जाते?
अभियंता को मित्र की बात लग गई.वह घर से भागा.उसे चु„ू भर पानी नहीं मिला.वह रेल कीपटरी पर सो गया.इतने में पत्रकार नारद जी आये.ये जनाब अपने  धंधे में इतने माहिर थे कि दूसरे तो पहाड़ खोदने के बाद खबर की चूहिया नहीं निकाल पाते थे मगर ये पंच वन से शेर खिंच  लेते थे.नारद ने अभियंता से कहा-अरे..अरे ,इन पटरियों को सरकार ने परीक्षा में असफल होने वाले छात्रों के लिए बिछाई है.तुम अनाधिकार चेþा यिों कर रहे हो ,च लो उठो.
अभियंता ने कहा- बिल्कुल नहीं,मैं मरने आया हूं तो मर कर ही रहूंगा.
नारद बोले-वाह बेटा,तुम ऊपर जाकर मौन मनाओ मैं पड़ूं पुलिस के च Oर में .बताओ तो आखिर बात यिा है?
अभियंंता ने अपनी व्य था बतायी.नारद जी बोले-तुम्हारे मित्र ने ठीक ही कहा.वास्तव मेंएक इƒतदार आदमी को फटीच र के पास जाने में शमर् आयेगी ही.तुम भी लूटो पाटो और एक शरीफ इंसान की तरह रहो.नल-नील भी तो अभियंता है.यिा नहीं है उनके पास. आलीशान बंगला,बैंक बैलेंस,सब कुछ तो है.
अभिय न्ता ने कहा- मेरी भी इच्छा है कि शान से रहूं.मगर कमाने का तरीका जानूं तब तो ?
नारद ने कहा- हां,इसे मैं नहीं बता सकता.तुम और नल-नील एक ही विभाग के आदमी हो.उन्हीं से गुरूमंत्र ले लो.खग ही जानहि,खक की भाखा ।
अभिय न्ता नल-नील के पास गया.उनके जबरदस्त कारोबार को देखा तो आश्च य र् से आंखें फट गई.वह संगमरमर के फशर् पर  च ला तो फिसल कर गिर पड़ा.सोफे पर बैठा तो कई फीट ऊपर उछल गया.उसने कहा-सर,मैं लोगो के ताने से तंग आ गया हूं.वे कहते हैं उपरी कमाई करो.मगर ये धांधली कैसे की जाती है,मैं नहीं जानता.मुझे तरीका बताइये.ताकि मैं भी आपके समान  सभ्रांत नागरिक होने का दजार् पा सकूं.
नल-नील - अबे, य ह कौन सी बड़ी बात है.लोहा खाओ,सीमेंट खाओ.मजदूर को पेमेंट न करो.फिर देखो ,तुम्हारे  दिन कैसे फिरते है.
अभियंता ने कहा- मगर य ह तो बेईमानी होगी.
नल-नील के गुस्से का बांध ही टूट गया.भड़के-बेईमानी किसे कहते हैं,जानते हो.अगर फारेस्टर ने लकड़ियां नही चुरवाई तो वह वन विभाग के लिए बेईमान होगा.ए.ई.ओ. ने खाद -बीज नहीं खाया तो वह कृषि विभाग के लिए भ्रý होगा.अभियंता संघ की बैठक में य ह बात रखी जायेगी कि एक कतर्व्य हीन हमारे बीच  घूस आया है.वह लोक निमार्ण के प्रति वफादार नहीं है.इसलिए उसे दूध की मखिी बनाने के लिए एकजूट होकर प्रयास किया जाये.मेजाटी शुद्ध बी ग्रा·टेड का जमाना है.तुम धOे मार कर निकाल दिए जाओगे.तब यिा होगा?
अब तो अभियंता के पैर तले की जमीन खिसकी.बोले - सर,आप मुझ पर नहीं मेरे टिंचू-पप्पू पर रहम खाइये.मैं आपके कदमों पर दौड़ लगाने तैयार हूं.मगर फंस गया तो ?
नल-नील बोले - कैसे फसोगे.हमने तो बिना छड़-सीमेंट के हजारों पुल बनाकर बहा दिए मगर जरा भी आंच  नही आयी.तुम भी हमारी तरह चैन सिस्टम से फिKटी-फिKटी के सिद्धांत का पालन करो.साथ ही एक बात और राम कृपा बिनू सुलभ न होई... तुम पहले राम को पटा लो.फिर कोई तुम्हारा बाल भी बांका करे तो कहना.
अभियंता वहां से च ल पड़ा नल-नील के कदमों पर च लने. 

कर्तव्‍य परायण

Jक्ष्मण अचेत पड़े थे.राम ने हनुमान से कहा - लक्ष्मण अंतिम सांसें गिन रहा है.उसका उपचार होना जरूरी है वरना लोग ऊंगली उठाएंगें कि राम सौतेले भाई है.लक्ष्मण स्वस्थ हो या न हो उन्हें यिा मतलब ! इसलिए तुम डा.सुषेण को इसी वI बुुला लाओ.
हनुमान को यिा, उन्हें आज्ञा पालन करना था.वे तैयार हो गये डा.को लाने.इतने में जामवन्त आ गये.उन्होंने कहा - आप ज्ञानीनाम अग्रग·य म्, सकल गुण निधानम् कहलाते हैं मगर इस वI आपकी बुद्धि घास च रने तो नहीं च ली गई !  सुषेण शत्रु राý¬ के डाटिर है.वे लक्ष्मण को जीवन देंगे या मृत्यु ? दुख के कारण राम की मति मारी गई मगर आपको तो कुछ सोच ना चाहिए !
हनुमान को होश आया.बोले - आपका कहना ठीक है. शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.सुषेण तो विख्यात डाटिर है.उन्होंने जहर की सुई ही घुसेड़ दी तो उनका कोई यिा कर लेगा ! डाटिरों को मृत्यु दान करने के लिए ही तो सटिर्फिकेट मिला रहता है.आप ही बताइये, यिा करूं ?
जामवन्त ने रास्ता बताया - अयोध्या जाइये न,वहां भरत शत्रुघन है ही.एक यिा अनेक डाटिर भेज देगें.या च लें जाइये जनकपुर, जनक तो डाटिरों की फौज ही भेज देंगें. कौन ससुर नहीं चाहेगा कि मेरा दामाद शीघ्र स्वस्थ हो. आखिरी बा त - आप लंका के डाटिर के सिवा किसी को ला सकते हैं.आफत मुफत में तो भी नहीं खरीदनी चाहिए.
हनुमान ने प्रश्न उठाया -मगर एक बात है, राम ने सुषेण को ही लाने आज्ञा दी है. दूसरे को बुला लाया तो वे नाराज न हो जाये ? छोड़िए, जामवन्त जी, मैं सुषेण को ही ले आता हूं. लक्ष्मण अपने रिश्तेदार थोड़े ही हैं जो चिंता करें.
हनुमान च ले. वे डाटिर सुषेण के घर पहुंचे.उन्होंने पूछा - यिा आप ही डाटिर सुषेण हैं ?
सुषेण ने कहा - हां, यिो कुछ काम है.
हनुमान - जी हां, लक्ष्मण काफी सीरिय स हैं.उनकी इलाज जरूरी है. आशा है ,आप उन्हें जीवनदान देंगें .
सुषेण - किसी को जीवनदान देने का ठेका मैंने नहीं लिया है. मैं तो बस उपचार कर देता हंू .बाकी वह जिये या मरे.
हनुमान को विश्वास हो गया कि मेरी आशंका सच  में बदलेगी.इतने में मेघनाथ का आना हुआ.वह सुषेण को एक ओर ले गया. हनुमान समझ गये कि गुप्त मंत्रणा होगी.वे उनकी ओर सरक लिए.मेघनाथ सुषेण से कह रहा था - देखिए, डाटिर साहब, लक्ष्मण मेरे कuर शत्रु में से हैं .मैंने निशान लगाया था कि उनकी पूरी छुuी करूं लेकिन असफल रहा.खैर, आधा काम मैंने किया. बच त काम आप करें.पिता जी से कह कर आपको पदोÛति दिलवाऊंगा साथ ही पुरस्कार भी.
सुषेण ने सहमति दी . कहा - मुझे यिा, आज्ञा का पालन करना है.जाल में फंसी मछली को कोई छोड़ता भी है !
हनुमान ने सुना तो सिर पीट लिया.इसके सिवा दूसरा चारा भी तो नहीं था.उनकी इच्छा हुई कि चुप भाग जाये मगर रामाज्ञा की बात याद आयी तो विवश होकर  रूकना पड़ा.मेघनाथ और सुषेण की गुKतगूं खत्म हो चुकी थी.सुषेण हनुमान के पास आये. बोले -आप बड़े कतर्व्य  विमुख हैं. वैसे तो राम काज कीन्ह बिना मोहि कहां बिश्राम का नारा लगाते हैं मगर आराम फरमाने की सोच  रहे हैं.च लिए, देर न कीजिए .
सुषेण और हनुमान राम के पास आये.सुषेण ने लक्ष्मण की बारीकी से जांच  की.कहा - मेरे पास संजीवनी वटी नहीं है.य दि कोई धवलागिरी क म्पनी से उI औषधि ला देता है तो फटाफट उपचार किये देता हूं.
राम ने हनुमान को पुन: बुलाया.कहा - तुम डाटिर साहब के बताये पते पर जाकर दवाई ले आओ. देर करने की जरूरत नहीं.
हनुमान च ले.वे धवलागिरी कम्पनी में प्रविý हुए. एजेन्ट से कहा -मुझे संजीवनी वटी चाहिए.मगर नकली न हो.
एजेन्ट मशीन बन गया - यिा कहते हैं हमारे य हां कि सभी दवाइयां पेटेन्ट एवं विश्वनीय  है.एसिपाय री डेट खत्म होने के बावजूद एक सदी तक च लती है.दुनिया में ऐसी कोई कम्पनी नहीं जो इसकी समता करें.अपनीयोग्य ता के कारण इसने कई स्वणर् पदक जÄ किये.य दि इस कम्पनी को झूठी प्रमाणित कर दे. तो आपको एक लाख रूपये ईनाम मिलेंगे.....। य हां वटी ही नहीं रस्म भस्म भी उपलबध है.
हनुमान ने कहा - मैं संजीवनी वटी की मांग कर रहा हूं और तुम गिनती पहाड़ा पढ़ रहे हो.है या नहीं बताते यिों नहीं ?
एजेन्ट ने कहा -  है, मगर कौनसी चाहिए ! य हां हजारोंप्रकार की संजीवनी वटी हैं.
अब तो हनुमान परेशान हुए.सोचा - इधर ये एजेन्ट साफ - साफ बताता नहीं.दूसरी ओर डा.सुषेण मुझे फंसाने की सोच  रहे हैं.य दि लक्ष्मण को कुछ हो गया तो कह देंगें - मैंने हनुमान को संजीवनी वटी मंगायी थी.उन्होंने मृत्यु वटी लाकर पटक दी तो मैं यिा करूं ?इस तरह वे सारा दोष मेरे सिर मढ़ देंगे.उससे अच्छा पूरी कम्पनी को ही उखाड़ ले च लता हूं.उन्हें जिस दवाई की जरूरत पड़ेगी, स्तेमाल कर लेंगे.कम से कम मैं तो साफ बच  जाऊंगा.
सोचा यिा , हनुमान ने पूरी धवलागिरी कम्पनी को जड़ समेत उखाड़ा.उसे लाकर सुषेण के सामने पटक दिया.सुषेण तत्काल लक्ष्मण का उपचार करने युद्ध स्तर पर भिड़ गये.उन्होंने प्रात: से पूवर् लक्ष्मण को चंगा कर दिया.लक्ष्मण ने हनुमान को देखा तो कहा - मेरा धनुष बाण तो लाना. जरा दुश्मनों के दांत खuे करूं.
हनुमान अच क्म्भत रह गये.बोले - आपका उपचार अभी ही हुआ है.कमजोरी होगी. थोड़ा और आराम कर लीजिए
लक्ष्मण ने कहा - मैं बीमार तो नहीं कि आराम करूं. मैं एकदम स्वस्थ हूं.
हनुमान दौड़े -दौड़े सुषेण के पास गये.बोले - डाटिर साहब,मैं शमिर्न्दा हूं. मुझे क्षमा करें.
सुषेण ने कहा - आपने मेरे साथ कोई दुव्य र्वहार नहीं किया.न आपकी कोई गलती दिखती तो क्षमा यिों मांगना ?
हनुमान ने कहा - मेरी शंका य ह थी कि आप शत्रु- राý¬ के डाटिर हैं.लक्ष्मण का अहित जरूर करेंगे मगर आपने उन्हें जीवनदान दे दिया.अब आप न पुरस्कृत होंगे न मिलेगी पदोÛति.अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कारण समझ नहीं आया ?
सुषेण ने कहा - डाटिर का न कोई राý¬, न धमर्, न जाति होती है.वह निलोर्भी, परोपकारी, याने मानवतावादी होता है.उसका कतर्व्य  एक ही है कि रोगी को जीवन देने के लिए हर संभव प्रयास करें.मैंने वही किया.
हनुमान उनकी आदशर्वादिता के सामने झुक गये. अपने को धिOारने लगे मगर वे उस समय  सÛ से रह गये जब उन्हें ज्ञात हुआ कि धवलागिरी कम्पनी को डाटिर सुषेण के नाम च ढ़ाने का आश्वासन राम ने दे दिया है.

युग की ईमानदारी

नौकरी हड़पने के लिए उसने आकाश पाताल, स्वगर् नकर् एक किया था.नेताओं के च रण धोये.अधिकारियों को पुष्पं पत्रं समपिर्त किया. बाबुओं को दक्षिणा भेंटी.
आज उसे कायार्लय  की शरण जाना था तो आशिवार्द लेने पिता के पास पहंुचा.वह नियुIि पत्र को पितृ च रण पर रखना ही चाहता था कि पिता ने अधर उठा लिया.पिता ने लाय क बेटे को कहा- मेरे लाल दूध देने वाली गाय  की दुलत्ती भी मीठी होती है तो तुम पैर पकड़ने की भूल मत करो.तुम मेरे लिए च न्द्रमा हो जो लाखों तारों- जुगनुओं को धूल चंटाकर विजयी हुए.
पुत्र ने हें हें किया - य ह सब बंजारे साहब की कृपा है.य दि वे सहाय ता नहीं करते तो मैं वाकआउट कर दिया जाता.वे गरजे थे तो बरस कर भी दिखाये.बड़े ईमानदार हैं.
पिता जलभूनकर राख हो गया.बेचारे के तीस हजार रूपये जो शहीद हुए थे.कहा- उनकी प्रशंसा यिा करना जो घूंसखोर है.अरे, वे तो बड़े बेईमान एवं भ्रý हैं.
- देखिये डैडी, आप बंजारे साहब की निंदा न करें वरना आपकी डेड बाडी मरघट में नजर आयेगी.
- यिों न करूं,गलत रास्ते पर च लने वाले को वाहन कुच लेगा ही...।
पिता - पुत्र एक दूसरे पर गोला- बारी करने लगे.पिता बंजारे की च मड़ी उधेड़ता तो पुत्र मरहम लगाता.आखिर वे न्याय  कराने लाल बुझOड़ के आधीन हुए.लाल बुझOड़ ने पहले वीटों का प्रयोग कर युद्ध शांत किया.बातें ध्यानस्थ होकर सुनीं.मनन किया तत्पश्चात गम्भीरवाणी में निणर्य  दिया कि सुन बुâे इस युग में  डाके डाल कर गरीबों की सहाय ता करने वाला व्य Iि समाजसेवक है.अनेक Íियों की इƒत लूट कर किसी धनी Íी से बिन दहेज विवाह करने वाला उदार और शरीफ है तो बंजारे साहब ने घूंस लेकर तुम्हारे बेटे को नौकरी दी तो यिा वे सत्य व्रती और ईमानदार नहीं ?
पिता का सिर इस निणर्य  के सामने झुक गया.

गठबंधन

वह सबसे सफल निमार्ता था यानि फिल्म उद्योग का कुबेर.उसके पास कितना धन था नहीं बताया जायेगा यिोकि आय कर अधिकारी डांका न डाल दें.हां, य ह जरूर बताया जा सकता है कि सांप उसके धन का रक्षक था.
उसने विवाह, सात फेरे, गठबंधन जैसी अनेक फिल्में बनाई मगर वास्तविक जीवन में अविवाहित रहा.य ह बात और है कि वह  िवांरा नहीं था.एक दिन ससुर का दामाद कहलाने की उसकी इच्छा जगी.च ट मंगनी - पट विवाह हो भी गया मगर मित्र उस वI हैरान रह गये जब सुना कि उसने दहेज लेने से इंकार कर दिया है. मित्रों ने सलाह दी कि यार फिल्म उद्योग में सफलता किसी की बपौती नहीं.अभी चांगड़े हो .कल मिuीपलीत हो गई तो पुनरोत्थान के लिए दांतों पसीना आ जायेगा.तुम दहेज अवश्य  झपटो ताकि भविष्य  में काम आए.
वह मित्रों पर च ढ़ बैठा - नारियो पर श्रद्धा नहीं तो दया ही बरसाओ.देखो दहेज प्रथा ने कई वधुओं को जबरन सती बना दी.मैं इस हत्यारी प्रथा की हत्या कर देश का नव निमार्ण करना चाहता हूं.पैसा ही भगवान नहीं होता. नैतिकता और आदशर् भी है.मुझे विश्वास है - नवयुवक मुझ इंजिन के पीछे डिबबे बनेंगे.
मित्रों ने कहा - दहेज से तुम्हें घृणा है तो कोई बलात नहीं पकड़ा रहा लेकिन तुम्हारी फिल्मों पर सेंसर की कैंची च लेगी.फिल्में रिलीज होने के पहले Kलाप होगी.करोंड़ों का घाटा खाओगे तो हृदयाघात तुम्हारा घात करेगा. उस वI यिा होगा ?
मित्रों ने सत्य  उगलाने अनशन हड़ताल के साथ तोड़ फोड़ की काय र्वाही शुरू की तो निमार्ता को झुकना ही पड़ा. बोला - किसी कैंची में इतना दम नहीं कि मेरी फिल्मों पर धावा बोले यिोंकि मैंने सैंसर बोडर् के अध्य क्ष की कन्या से विवाह किया है.य दि मेरी फिल्मों पर कैंची च ली तो विवाह के गठबंधन में मैं भी कैंची च ला दूंगा ?

आश्‍वासन की रेवड़ी

गोपाल कहीं जा रहा था.उसे रास्ते में एक ढ़पोरशंख पड़ा मिला.गोपाल ने उसे लालच वश उठाया कि ढ़पोरशंख ने कहा -मैं कई वषोYसे पड़ा सड़ रहा था लेकिन किसी ने छुआ तक नहीं.मैं तुमसे अत्यंत प्रसÛ हूं.बताओ यिा चाहिए, जो मांगोंगे , मैं दूंगा.
गोपाल को बिना मांगें मोती मिल रहे थे.उसकी खुशी का ठिकाना न रहा.उसने कसम खिलाई कि यिा सच मुच  मेरी इच्छा पूणर् कर दोगे ?
- यिों नहीं, य ह भी कोई पूछने की बात है. बेहिच क मांगो न . ढ़पोरशंख ने विश्वास दिलाया तो गोपाल ने अपनी मांग रखी - मुझे दस हजार रूपये चाहिए...।
- यिा करोगे ? ढ़पोरशंख ने पूछा.
- धंधा खोलूंगा . गोपाल ने कहा.
ढ़पोरशंख ने हंसा - इतनी छोटी रकम से धंधा यिा खाक खुलेगा ! ज्यादा मांगों.
- तो पचास हजार दे दो.
ढ़ पोरशंख ने गोपाल की हंसी उड़ाई - य हां मैं सवर्स्व लुटाने बैठा हूं पर तुम्हें मांगना भी नहीं आ रहा.समुद्र से एक ग्लास पानी मांगोगे तो समुद्र की बेइƒती नहीं होगी.पचास हजार में ठीक से जनरल स्टोसर् भी नहीं खुलेगा.खूब सोच कर मांगो.
गोपाल शमिर्न्दा हुआ कि य हां दाता अपना खजाना खोलकर बैठा है लेकिन भिखारी हाथ फैलाने में भी कंजूसी दिखा रहा है.आखिर उसने खूब सोच  समझ कर मांग रखी- मुझे दो लाख दे  दो, छोटा मोटा होटल खोल लूंगा.
ढ़पोरशंख ने कहा - उससे अच्छा फाइव स्टार होटल खोल. रूपये तो मैं दूंगा.
गोपाल ने कहा - ठीक है, य दि तुमने मेरी इतनी सहाय ता कर दी तो मेरा जीवन सफल समझो.
ढ़पोरशंख ने कहा - तुम्हारा जीवन सफल बनाने के लिए ही मैंने बीड़ा उठाया है.मेरा मानो तो दो चार टाकीज भी खोल लो.उनसे  भी अच्छी आय  होगी.....।
अब गोपाल का दिमाग च कराया.उसने भड़ककर कहा - यिा तुम मुझे उ„ू समझते हो, जो सिफर् बातों के जाल में उलझाते हो.जब कुछ देना नहीं हैं तो फोंक  यिों मारते हो ?
ढ़पोरशंख ने असलिय त बताई - यिा करूं, विवश हूं.पूवर्जन्म की आदत नहीं छूटती.
गोपाल ने पूछा - पूवर्जन्म में यिा था ?
ढ़पोरशंख ने कहा - नेता....।    

दोहरी नीति

शाला में ब‚े दजर् किये जा रहे थे.एक पालक ने प्रधानाध्यापक के पास आकर कहा - मैं अपने लड़के को शाला में भतीर् कराना चाहता हूं .
प्रधानाध्यापक ने कहा - ठीक है, अपने लड़के का नाम बताइये ?
- महेश ...। पालक ने बताया.
- आपका ?
- रामप्रसाद ।
- और जाति ।
पालक ने आश्च य र् में भरकर कहा - आप भी बड़े विचि त्र हैं.य हां तो जात पात समाÄ करने की बात च ल रही है और आप जाति पूछ रहे हैं ?
प्रधानाध्यापक ने असमथर्ता व्य I की - यिा करूं , मजबूरी है.
- कैसी मजबूरी,एक ओर आप जैसे शिक्षित लोग सबको समान करने के लिए धुंआधार प्रचार कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर जाति - जाति का रट लगा रहे हैं.ऐसी दोहरी नीति यिों ?
- ये सब औपचारिकताएं हैं श्रीमान,वास्तविकता तो दूसरी है.
पालक ने ठोस शबदों में कहा - भले ही आपकी कथनी और करनी में अंतर हो पर किसी भी क्स्थति में अपनी जाति नहीं बताऊंगा.
प्रधानाध्यापक ने भीअंतिम निणर्य  दिया - न बताना हो तो कोई दबाव नहीं हैं लेकिन य ह भी सुन लीजिए कि जाति बताये बिना आपका लड़का शाला में भतीर् हो ही नहीं सकता.    

दानवीर

कुबेर को जाने यि  हुआ कि उन्होंने अपने कारखाने को दान कर दिया.लोग उनके दशर्नाथर् दौड़ कर आये.उन्होंने प्रश्नों की छड़ी लगाई तो कुबेर ने बताया-आप लोगो को ज्ञात होगा कि मैं शोषक और रI पिपासु के नाम से विख्यात था जबकि मैं शाकाहारी हूं.साहित्य कार घड़ियाल, बरगद, और समुद्र से मेरा संबंध जोड़ते थे.वास्तव में मैं श्रमिकों के साथ ज्यादती कर  रहा था वे दिन रात हाथ पांव तोड़कर भी पेटभर भोजन नहीं कर पाते थे और मैं उनकी कमाई पर उड़ाता था गुलछरेर्.लेकिन अब मुझे अपने कमोY के कारण बड़ी ग्लानी हो रही है.मैं किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहता.इसलिए कारखाने को दान  कर दिया.
दान-पु·य -प्राय क्श्च त  अपरिग्रह के भी तोे कुछ महत्व होते है.लोगो ने पुन: कहा - आपकी महानता और उदारता की प्रशंसा करने के लिए हमारे पास शबद नहीं है.लगे हाथ य ह भी बता दीजिए कि अब से कारखाने का मालिक कौन होगा ?
कुबेर ने तपाक से कहा-मजदूर...?
लोगो में प्रसÛता की लहर दौड़नी ही थी किदिग्पालों ने तालियां बजाई.आकाश भी पुष्प वृýि करने से नहीं चूका.सम्मान समारोह किया गया जिसमें कुबेर को दानियों में शिरोमणी की उपाधि दी गई.
य ह रहस्य  अंत तक तो खुलता कि कुबेर का ही दूसरा नाम मजदूर था ।