छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

तीसरा पांत

३. कोदो पांत
अपन स्वार्थ बर सब झन जीथंय परहित बर कम प्राणी।
पर के सुख बर जउन हा जीयत ते प्रणाम अधिकारी ।।
विनती करों शहीद के जेमन हमला दीन अजादी ।
संस्कृत – साहित्य अउ समाज ला उंकरे लहू बचाइस ।।
”चलो चलो दीदी ओ
आगू आओ बहिनी मन
काम करे बर हम जाबो ।
धरती के सेवा करबो तब
खाबो अउ खवाबो ।।
घर बइठे मं काम बरकथय
देह हलाए परथय
कामिल मनसे के आए ले
आलस पट ले मरथय.
टोर के जांगर – गिरा पसीना
झींक सरग ला लाबो – – ।।
खेती हा मिहनत ला मंगथय
सब झन जानत एला
तभो लुका के बइठे हव तुम
जइसे नरियर भेला.
उचे काम ला पूरा करके
सुवा ददरिया गाबो – – ।।
आगू असन भेद नइये
औरत – मर्द बरोबर
नवा जमाना आय हमर बर
रखबो दू मन आगर.
हिरदे मं उत्साह ला रख के
आगू पांव बढ़ाबो – – ।.
चलो चलो दीदी ओ
आगू आओ बहिनी मन
काम करे बर हम जाबो – – ।”
इसने गुनमुनात दुखिया हा, आगू तन जावत धर राह
धनवा के खटला हा अभरिस, जानव ओकर फगनी नाम.
फगनी हा खखुवा के कहिथय – “”किरही, कते डहर तंय जात
हमर खार के कांदी लूथस, चोरी करत सरम नइ आय !
सब कांदी के रांड़ बेचागे, तिंहिच हा करथस खुंटीउजार
अगर घुसरबे फेर खेत मं, चुंदी झींक के झड़िहंव खूब.”
फगनी के कहना सुन दुखिया, हाय करत मुड़ ला धर लीस –
गोई, तंय हा समझदार हस, पर काबर बोलत हस अैंठ !
तुम्हर खेत मं कभू गेंव नइ, कभू काट लानेंव नइ घास
टार दई, तब ले झड़कत हस, डारत हवस व्यर्थ के दोष.
अपन राह धर आथंव जाथंव, मुड़ी उठा झांकव नइ भूल
बहिनी, खूब बखानत फोकट, कोचकत हस बात के तिरछूल.”
फगनी बोलिस -“”कलबेंदरी अस, बन निछंद घूमत हस गांव
गली – गली मं गीत सुनावत, युवक ला मोहिनी थापत रोज.
तंय हा “पैंठू’ घुस के रहिबे, जान लेन हम तोर चरित्र
ग्राम सभा मं नाक कटा गिस, थोरिक कर ले एकर याद !
मंय हा जब सच ला बोले हंव, हंसिया अस लूवत हस गोठ
चाल मं कीरा परय दुखाही, मरद बनाबे तंय दस – बीस.
भूले हवस गरीबा संग तंय, खबर ला जानत सब अतराप
नाट कटागे तभो उपरहा, देत प्रमाण – नेक मंय आंव.”
हाथ उचा अउ झुला शक्ति भर फगनी करत लड़ाई ।
दुखिया ओ तिर खड़े कलेचुप – नइ कर सकत चढ़ाई ।।
उहां खड़े कई मांई लोगन, केजा हा कहिथय कर व्यंग्य –
“”दुखिया दुश्चरित्र नवयुवती, ओकर पास लाज ना शर्म.
गांव गली मं घूमत रहिथय, गाथय सुवा – ददरिया गीत
ओहर लोकगायिका होगिस, एकर साथ करत हे नाच.”
फेंकन बोलिस -“”मंय बतात हंव – जेकर रहिथय पतित चरित्र
ओहर कई ठक नाटक करथय, अइसन गुण दुखिया मं खूब.
एहर गलत राह पर चलथय, यदि दूसर हा करिहय साथ
ओमन घलो पतित हो जाहंय, बिगड़ के रहिहय ओकर चाल.
दुखिया ला का बद्दी देवन, कहां गथेलही ला कुछ लाज
खुद बिगड़त अउ पर ला धोहय, एक जगह ले पर ठंव खाज.”
सोनू हा फगनी ला छेंकिस -“”बहू मचा झन फोकट शोर
छोटे मन संग मुंह टकरा के, अपन हाथ खुद पत झन बोर.
एमन दू कउड़ी के होथंय, इंकर जाय नइ इज्जत – आन
पर हम बड़े गोसैंय्या होथन, इहिच वजह घट जाहय मान.”
मण्डल आभा मार बकत हे, ऊपर ले ललियावत आंख
मगर कोन हा ओला छेंकय, सोनू बिफड़ के करही खाख.
उहां बिलमना हवय निरर्थक, दुखिया चलिस छोड़ फरफंद
घास लाय बर ओहर चल दिस, काबर करय काम ला बंद!
हंसिया मं कांदी लू डरथय, बना लीस बोझा बड़े जान
बोझा ला उठाय बर सोचत, पर आखिर मं खावत हार.
ओहर फूलबती ला देखिस, पास बलाय दीस आवाज –
“”तंय हा झपकुन पहुंच मोर कर, तोर पास आवश्यक काम.
बोझा हवय गंज अक भारी, तब उठाय बर मुस्कुल जात
तंय हा मोर मदद कर थोरिक, बोझा ला रख दे सिर मोर.”
फूलबती हा तिर मं अमरिस, दुखिया के संग करत मजाक –
“”ऊहुंक, मोला नेम कुछुच झन, तंय झन राख आसरा मोर.
तंय हा कांदी लुए हवस अभि, फगनी के चक के ए घास
यदि फगनी हा सच ले वाकिफ, ओहर बना दिही गत मोर.”
दुखिया कथय -“”डरा झन मोला, तुरूत पहुंच फगनी के पास
मंय हा नीयत ला बोरे हंव, खोल दे सफ्फा ओकर पोल.
मोर विरूध्द गवाह घलो बन, एकर बदला अमर इनाम
यदि तंय कहूं ले लाभ ला पावत, मंय हा सब ले अधिक प्रसन्न.”
फूलबती हा दीस पलोंदी, दुखिया के सिर रख दिस घास
फूलबती हा करिस दिल्लगी -“”मंय हा देवत नेक सुझाव –
फगनी के घर तन ले झन जा, फेर लड़ई उठ सकत तड़ाक
तंय हा दूसर तन ले घर जा, खुद ला बने सुरक्षित राख.”
दुखिया कथय -“”बंड हंव मंय हा, मंय होगेंव बहुत बदनाम
एक बार जब नाक हा कटथे, ओकर नाक बढ़त हे लाम.”
दुखिया जब घर मं पहुंचिस पूछत हे अंकालू ।
मंय हा एक खबर अमरे हंव ओहर सच के झूठा ।।
तंय अउ फगनी लड़ई करे हव, सोनसाय तक बोम मचैेंस
आखिर तोर कुजानिक कतका, झगरा के कारण ला फोर. ?”
दुखिया कथय -“”सुने हस तंय हा, बिलकुल सच ए पवन समान
सोनू – फगनी – गांव के महिला, ताना मार लड़िन हें खूब.”
अंकालू हा कथय क्रोध कर -“”वाकई दिखत तोर अन्याय
बकचण्डी डांटत का मेचकी, काबर लेगेस ओ बल पांव !
खेत जाय बर राह बहुत ठक, तंय हा धरते दूसर राह
मण्डल मन ले दुरिहा रहिते, उठ नइ पातिस लड़ई – बवाल.
लेकिन तंय हा जिद्द करत हस, पूरा करे अपन भर टेक
तंय हा कतको मार सफाई, पर सब गल्ती हा बस तोर.”
पुत्री हा बदनाम होय झन, दंहसत देवत बखलत बाप
दुखियावती सुकुड़दुम ठाढ़े, ओकर ऊपर दुख के ताप.
इही बीच मेहरुकवि पहुंचिस, अंकालू ले मंगिस जुवाप –
“”दुखिया ला तंय काबर डांटत, आखिर बपरी के का दोष ?
मानव सदा शांति ला भावत, दूर रखत हे उग्र – तनाव
पर जब तंय हा बोम मचावत, कुछ ना कुछ कारण हे ठोस ?”
अंकालू हा सत्य निखारिस -“”मोर तर्क ला तंय सुन साफ
कतको गल्ती करंय दुसर मन, मगर हमर पर दोष के मार.
चक्कू ला कोंहड़ा पर मारो, चक्कू पर कोंहड़ा ला राख
चक्कू के उद जरय कुछुच नइ, कोंहड़ा हा कट के कई भाग .
आज लड़िन दुखिया अउ फगनी, दुनों पक्ष तन गल्ती होय
पर फगनी पर दोष आय नइ, ओहर हवय सदा निर्दाेष.
दीन – हीन पर गल्ती आथय, तब दुखिया पर आहय दोष
एकरे बर मंय करत प्रताड़ित, दुखिया खुद मं लाय सुधार.
“”मेहरू कथय – “”विचार हे उत्तम, पर ला झन बांटव उपदेश
एकर बदला खुद ला बदलव, अपन मं लानव सुघर सुधार.
सोनसाय ला घलो देख तंय, पर ला समझत हे निकृष्ट
धनवन्ता मन इसनेच होथंय, जश्न मनाथंय पर पत लूट.
मण्डल अपन ला पुंजलग समझत, बेढ़े जावत हवय अकास
धन हा ओला अंधरा कर दिस, ओढ़े हवय गरब के खाल.”
अंकालू कहिथय -“”ठंउका अस, सच रहस्य खोले हस आज
सोनू के धन उरक जहय तंह, रांड़ बेचा जाहय सब टेस.”
“”बात उही तंय समझ पाय नइ, मोर डहर दे थोरिक कान
जेकर तिर धन तेहर करथय, खो खो भूंज खाय इंसान.
सोनू अभी पइसहा मनखे, करत भयंकर अत्याचार
यदि दूसर तिर ओ धन जाहय, उहू करय नइ कुछ उद्धार.
मानव हवय अपंग – विवश अस, पूंजी करत गलत या नीक
जहां समान सबो तिर बंटिहय, ककरो मुड़ पर नइ बदनाम.”
मेहरुकतको फुरियाइस पर नइ मानिस अंकालू ।
बोलिस -“”काबर कहत लबारी – तेल दीस कब बालू ।।
तुम कवि मन असत्य ला लिखथव, विचरण करत कल्पना लोक
जउन बात हा रथय असम्भव, यत्न करत हव सम्भव होय.
मृगतृष्णा जल हरिण हा पीथय, पर बुझाय नइ ओकर प्यास
तब पूंजी ला कोन बांटिहय, कहां सबो झन एक समान !
अमृत असन झूठ बोले हस, अमृत हा यथार्थ नइ होय
पर ओहर हा होथय कहि के, मनसे करथंय झूठ प्रचार.
मोर अउर सुन बात एक ठन – सोनू जब लानिस विद्धान
ओमन हांक बजा के बोलिन – कोन हा करही एक समान !
पुरबल कमई ले बड़हर हिनहर, करनी भोगत जइसन भाग
मनसे पास कहाँ कुछ ताकत, कर दे एक देवारी फाग !
बेर दिया तारा में अंतर, कमती अति हे उंकर प्रकाश
उंकर प्रकाश कोन हा बांटय, बंटन सकय नइ एक समान.”
“”इही विडम्बना हे समाज मं, शिक्षित मन फइलावत भ्रांति
अटपट तर्क रखत ते कारण, सफल होन पावत नइ क्रांति.
तुम किसान मन जांगर पेरत, तभे हाथ मं आत अनाज
उसने भाग्य के बात ला छोड़व, भेद के शासन खुंटीउजार.”
ए चर्चा हा उरक जथय तंह, मेहरुलेत एक ठक भेद –
“”जेकर घर सगियान छोकरी, ओ मनखे ला जेवत फिक्र.
दुखिया के शादी जमाय बर, खोजे हस का कहूं दमांद
अगर मिलिस तब बता भला तंय – हलका करत हवस कब खांद?”
अंकालू कल्हरिस -“”का बोलंव, घुप अंधियार सुझत नइ राह
मोर अस कंगला के लड़की संग, कोन झपात करे बर ब्याह !
लाहो लेत टुरा वाले मन, मांग रखत सक – अधिक दहेज.
करना पूर्ति कठिन काबर के – मंय रूपिया नइ रखेंव सहेज.
जम्मों कमई पेट के चइ गिस, ऊपर ले टोंटा भर कर्ज
दुखिया के बिहाव हा बिलमत, पूर्ण होत नइ पिता के फर्ज.”
मेहरुदीस समर्थन -“”सच हस, एकरे कारण गिरत समाज
लड़की, लकड़ी असन भुुंजावत, बपरी के बेचात मरजाद.
पहली युग भी रिश्ता जोड़िन, तुलसी – बाल्मिकी ब्याह रचैन
ओमन अड़बड़ योग्य ज्ञानधर, पर दाईज मं कुछ नइ पैन.
वर – वधु दुनों बरोबर किमती, होय चही नइ उनकर मोल
लेकिन पूंजीवाद केयुग तब, मानवता के पेट मं खोल.
एकर मतलब अइसन नइ के खो देवन जिनगानी ।
एहर कायरता नासमझी खुद चोला के हानी ।।
रूढ़ि नियम संग बजनी बाजव, अनियायी के संग संघर्ष
तब जग नवा – प्रगति हा दुगना, कदम चूमिहय खुद सुख हर्ष.
अउ फिर सब नइ एक बरोबर, हर झन कहां लालची भ्रष्ट !
कतको समझदार आदर्शी, फूलत कमल फूल जस कीच.
इही गांव मं हवय गरीबा, जेकर चाल आचरण ठीक
ओकर संग संबंध जुड़त हे, लड़का लड़की जोड़ी नीक.”
अंकालू हा स्वीकृति देइस -“”बने कहत हस दिल ला खोल
यदि दुखिया के हाथ हा पींयर, आय हाथ मं भागत ओल.
पर सुध्दूु तिर बात होय नइ, ओकर ले नइ मंगेव जुवाप
खोजत बुद्धिमान अस सटका, काम बनावय रिश्ता खाप.
एक बात बर मन डर्रावत, लगा सकंव नइ दाइज रास
यदि राहू अस बीच मं बाधा, मोर दीन बर जग अधियार.”
“”सुध्दू तिर मंय थहा लगाहंव, होय गोठ के करिहंव जिक्र
खुशी के कलेवा मंय पाहंव, अगर समाप्त तोर सब फिक्र.
ओमन घलो कमइया मनखे, गिरा पसीना पावत खाय
रखत उंकर पर बिकट भरोसा – लालच नइ मरिहंय धन पाय.”
अंकालू ला दीस आसरा, अब मेहरुहोवत चुपचाप
अंकालू के मन हा फूलिस , लगत खतम चिंता संताप.
मेहरुउसल चलिस ओ तिर ले, हो गिस भेंट गरीबा – साथ
मेहरुहंसिस – “”याद आवत मं, भूत हा हाजिर होत दड़ांग.
गोठिया आय तोर संबंधित, एक ठउर मं हार जबान
रखत तोर पर बहुत भरोसा – मोर बात के रखबे मान.”
कथय गरीबा – ”सफा फोर – झन छितरा शंका लाई।
तोर वचन ला मान दुहूं – यदि दिखिहय मोर भलाई।।
मेहरुमन मं लुका नइ राखिस, सम्मुख खोल दीस सब हाल
सुनत गरीबा हा मुसकावत, ओकर मुंह पताल अस लाल.
कहिथय -“”एक प्रश्न मंय ढीलत, करबे झनिच मोर पर क्रोध
पाय पारितोषिक बिहाव पर, करत हवस का कोई शोध ?”
मेहरुबोलिस -“”ठीक गहत हस, मंय हा करत “विषय’ पर सोच
काबर के लघु बात छुटई मं, देश समाज मं परगे लोच.
जानत हवस फिरत ला तंय हा, जेहर दुश्चरित्र इंसान
ओकर संग इसने चर्चा तंह, ललिया गीस जेठ कस घाम.
बोलिस “”कभू बिहाव करंव नइ, जग मं अउर गंज अक काम
रहि स्वतंत्र जन सेवा करिहंव, चहत उठाना गिरे समाज.”
अइसे ओकर मुंह बोलिस पर, कतको अबला साथ कुकर्म
कतको झन ला नरख ढकेलिस, फोर बताय मं आवत शर्म.”
कथय गरीबा -“”सच बताय हस, कथनी करनी मं हे भेद
मगर मोर पर राख भरोसा, मानवता पर करों नइ छेद.
दुखिया हा पसंद हे मोला, हमर दुनों के फबिहय जोड़
अंतिम क्षण तक रबो एक संग, अन तन नइ जावंव मुंह मोड़.”
मेहरुरखे एक ठक दैनिक, जेकर नाम हे – ग्रामोत्थान
एक चित्र हा छपे हे ओमां, फट ले परिस गरीबा के आंख.
कथय गरीबा – “”छपे पत्र मं, ओहर हा भारत के चित्र
पर उपकार करिस ते कारण, महमहात हे यश के इत्र.
मुढ़ीपार मं कतको जन पर यहू एक झन प्राणी ।
जेहर अपन देश बर खोइस रतन असन जिनगानी ।।
जीयत रिहिस बांकुरा भारत, भेंट करेंव मंय ओकर साथ
बात ढिलिस मदरस अस मिट्ठी, सुन के मंय हो गेंव सनाथ.
यद्यपि भारत पुन& मिले बर, करिस प्रतिज्ञा कई – कई बार
लेकिन ओकर मुख दर्शन नइ, जय जोहार तक नइ एक बार.”
मेहरुकथय -“”गरीबा भइया, मत हो दुखित – ना मर अफसोस
भारत पर अपराध लगा झन, झनिच डार ओकर मुड़ दोष.
भारत बपुरा कहां ले आतिस, दुश्मन करिस चढ़ई तनतीन
उहिच युद्ध मं मृत्यु शत्रु हा, हमर ले भारत ला छिन लीस.
छेंक गरीबा बात उठाथय -“”मोर कुजानिक करबे माफ
भारत – कथा ला जानत थोरिक, मगर पता नइ फरिहर साफ.
यदि तंय जमों कथा ला जानत, खोल भला जीवन के पृष्ट
मंय हा दोष ढिलत भारत पर, तउन भूल के होय सुधार.”
मेहरु किहिस – ”जमों कहिहंव पर रखत कहानी बाकी ।
ओकर पूर्व देखाय चहत भारत के जीवन झांकी ।।
मुढ़ीपार मं मिल जुल मानिन, हर्षित कर पुन्नी तिवहार
काम धाम हा कड़कड़ रुकगे, कोन करय मिहनत जा खार !
जउन जगह बाजार हा लगथय, उहां युवक मन सकला गीन
उंकर बीच टीकम हा बोलिस -“”तुम्हर लइक हेरत मंय गोठ.
बुजरुक मन हा दौड़ सकंय नइ, तब ओमन भंजात हें न्याय
लेकिन हम हा खेल सकत हन, काबर गप झड़ समय गंवान !
यदि सब के मन खेल करे बर, खेल कबड्डी होवन देव
जेन आदमी ला नइ भावत, ओहर छेंक सकत बिन भेव.”
भारत स्वीकृति दीस तड़ाका -“”तुम सुझाव देवत हव नेक
इसने खेल, खेल सकथन हम, कभु नइ खेलन सकन क्रिकेट.
ओकर बर कंस रुपिया लगथय, चले जात हे समय बेकार
बने रहय सुर पूक कबड्डी, एमां कहां होत धन ख्वार !”
सब जवान मन फट रजुवा गिन, हर्ष जमाय कबड्डी खेल
दू दल बंट के शुरुकरिन अब, एक – दुसर के हेरत तेल.
दउड़त तूकत पकड़त झींकत, जमों खिलाड़ी मन मं जोश
कतको थके पिरावत तन पर, उझले परत उंकर उत्साह.
भारत हा खुडुवाय गीस अउ कूदिस दूसर कोती ।
दुसरा दल ला झुझकावत हे खिरखिंद एती – ओती ।।
अरि दल भारत ला पटके बर, करत यत्न एक सुम्मत बांध
तभे उदुप भारत हा झुझका, छुइच दीस देवलू के खांद.
प्रतिद्वन्दी मन बिकट खार खा, पकड़ लीन भारत के गोड़
भारत गिरगे तभो बढ़त हे, ताकि हार झन जावय होड़.
शक्ति लगा – पेटघंइया घसलत, पहुंच के छू दिस डांड़ टपाक
भारत अपन विरोधी दल के, बुचुवा कर दिस लम्हा नाक.
प्रतिद्वन्दी टीकम हा बोलिस -“”भारत, तंय हमला झन हांस
तंय मरगे काबर के टुटगे, डांड़ छुए के पहिलिच सांस.”
हार गीन प्रतिद्वन्दी तब ले, जीत गेन कहि करत लड़ई
भारत उंकर गोठ फांकिस तंह, ओकर ऊपर करत चढ़ई.
भारत ला मारत जबरन भिड़, बंगी पढ़त अनाप शनाप
भारत के दल निर्बल हे तब, प्रतिद्वन्दी नइ पावत ज्वाप.
तभे विरोधी बोंगडू हा खब, भारत के अधिकार मं अ‍ैस
ओला भरता असन बनावत, ओकर उपर उतारत झार.
तुरुत विरोधी दल हा भिड़थय, करा लीस बोंगड़ू ला मुक्त
देवलू हा भारत ला बोलिस -“”होवत इहां प्रेम के खेल.
तंहू हा अपने खेल देखा ले, एकर बाद लहुट घर जाव
लेकिन तंय हा खूब लड़ंका, हमर गड़ी ला रचका देस.
हमर ले झगड़े मं का मिलिहय एक गांव के भाई ।
नता मया ला भूल के कोड़त हस दुश्मनी के खाई ।।
यदि खरथरिहा वीर बांकुरा, समझ तहस खुद ला हुसनाक
होव सम्मिलित सेना मं तुम, ककरो तिर बताय बिन हांक.
भारत माता के सेवा कर, बाहिर शत्रु ले बचवा देश
पर उपकार करे बर भिड़बे, तंहने कोन मारिहय ठेस !”
बोंगडू हा गुचकेला खाईस, तब ओकर आवत हे याद
ओहर कथय व्यंग्य के भाषा -“”मंहू देत हंव नेक सलाह –
अगर देश बर जिनगी चंदन, ओकर घलो सुखद अंजाम
तोला मान बड़ाई मिलिहय, नाम अमर जब तक हे चाँद.”
प्रतिद्वन्दी मन देवत ठोसरा, भारत एल्हई सुनत चुपचाप
खेल जमाय आय भारत हा, इहां परत हे बद के थाप.
बात के बान हा बेध करेजा, करिस घाव – गोदर बड़े जान
पर कोई ला कुछ नइ बोलिस, मुड़ निहरा के गीस मकान.
अंतस दरद प्रकाश लात नइ, चेहरा रौनक कर मुसकात
खटला अमरउती झन जानय, तइसे गुरतुर बात चलात.
पहिली गवन आय अमरउती, धीरे अस बोलत मर लाज
भारत डहर देख के तिरछा, मुच मुसका के काम बजात.
इही बीच दुन्नों झन देखिन – चिरई गोड़ेला मन एक ठौर
नर – मादा मन चोंच जुड़ो के, चारा बांट उड़ावत कौर.
तब नर भड़क के मादा ऊपर मारिस चोंच दुधारी ।
मादा रुठ दुसर ठंव गे तंह नर ला फिक्कर भारी ।।
गिड़गिड़ात मादा के तिर मं, क्रोध खतम बर करत उपाय
पर मादा के रिस अउ भड़कत, नर कोती देखत कर लाल.
किसनो कर भुरिया मादा ला, कर दिस खुश ढिल गुरतुर बोल
मादा के मन मैल धोवा गिस, फेंकिस कपट दुराव टटोल.
दुनों चिरई फिर चिंव – चिंव चहकत, प्रेम सिंधु बुड़ डुबकी लेत
भारत, अमरउती ला नोखिया, केंवरी गाल चिकोटी देत.
भारत हा पत्नी ला बोलिस -“”देखे हवस चिरई के हाल
मादा के रिस बढ़े पुरा अस, नर हा मना लीस कहि मीठ.
पर तंय हा कभु क्रोधित होबे, मंय हा नइ मनांव कभु भूल
ऊपर ले तंय जेवन देबे, मोर बात के करबे मान.”
अमरउती हा हंस के बोलिस – “”तोर बात हे अस्वीकार
यदि तंय मोला नइच मनाबे, मंय हा रुठ हटहूं दूर.
तंय हा कतको जेवन मंगबे, पर मंय नइ मानंव आदेश
तंय हा परेशान यदि होबे, मोर हृदय मं खिलिहय फूल.”
“”तंय पांडादह ला जानत हस, ओहर हा ऐतिहासिक ठौर
अगर उहां के मंड़ई अउ मेला, तब का करबे कहि तंय साफ ?”
“”वइसे रिस मं चूरत रहिहंव, मगर मंड़ई मं जाहंव साथ
मनसे हा यदि लाभ ला पावत, छोड़य तुरुत शत्रुता – क्रोध.”
उदुप बिलई हा चिरई के तिर गिस, अउ नर ला धर लीस खबाक
पकड़ शिकार बिलई हा भागत, ठउर सुरक्षित कोती ताक.
बिलई ला भारत हा कुदाइस अउ, दोहनिस रगड़ के कमचिल एक
बिलई दरद मं करला भागिस, धरे तेन तन चिरई ला फेंक.
मगर चिरई के जीव कतिक अस, तुरूत निकल गिस ओकर जीव
मादा निज जोड़ी तिर पहुंचिस, खूब विलाप करत भर शोक.
भारत देखिस दारुण घटना, बात करत अमरउती साथ –
“”चिरई बिचारी बाय बियाकुल, जोड़ी बिन असहाय अनाथ.
ओमन का सोचिन भविष्य बर, पर सब सपना सत्यानाश
अब मादा के जीवन दूभर, ओकर हालत दिखत हताश.”
अमरउती बोलिस -”सच मं बुड़गे चिड़िया के नैया ।
जिनगी के कुछ कहां ठिकाना घरी घाम – पल छैंहा ।।
भारत देख के उत्तम अवसर, अमरउती ले मंगत जुवाप –
“”मंय हा एक प्रश्न पूछत हंव, झनिच समझबे बात खराब.
अगर तोर ले बिछड़ जात हंव, या बन जहंव काल के ग्रास
तंय का उदिम या रउती करबे, सच ला फुरिया फोंक ला छोड़ ?”
“”काबर अशुभ गोठ हेरत हव, का मतलब पहिली कर सोच
जीवन बाग लहलहावत मं, पतझड़ ला झन लाव खरोंच.”
“”घट सकथय बिन सोचे घटना, कभु उड़ सकथे जीव अमोल
अपन जिये बर तंय का करबे, हृदय खोल के सच ला बोल ?”
“”वइसे मंय कह सकत लबारी – जीवन मोर, तोर बिन लाश
अगर तुम्हर पर मृत्यु ही विजयी, झटका जहय भविष्य प्रकाश.
मछरी हा जल बिन पटियाथय, पानिच बिगर सुखाथय धान
तइसे पति विहीन मंय अबला, क्षण अंदर तज देहंव प्राण.
पर तुम सच उछराय चहत तब, उत्तर देवत सोच विवेक –
तुम्हर उपस्थिति मं मंय पावत, अनसम्हार अक सुख आनंद.
पर कहुं तुम हो जाहव चंदन, तब ले प्राण देंव नइ भूल
पर का उदिम उमझ नइ आवत, रवन निकाल देव अनुकूल ?”
भारत किहिस -”तोर अस जग मं मिलथय बिरला नारी।
जेहर छल प्रंपच ले दुरिहा नइ झड़काय लबारी ।।
छाती गर्व से लफ लफ फूलत, खुश कर देस सच भात परोस
तोर अस खटला अमर धन्य मंय, संसो खतम – पूर्ण संतोष.
रुढ़ि विचार ला भगवाये बर, मांईलोगन मरद समान
ककरो ऊपर बोझ बनय मत, तब कर सकत अपन कल्याण.
जे संघर्ष ले लुका के भगथय, ओकर मिलत बुरा परिणाम
अपन हाथ मं जिनगी छिनना, डरपोकना कायर के काम.
लक्ष्मीबाई विधवा होगिस, सती होय कूदिस नइ आग
ओहर दुश्मन साथ युद्ध कर, दुश्मन के निकाल दिस कांच.
तिसने मोर बिना साहस कर, मिहनत बजा पाटबे पेट
गिरे सर्वहारा संग सुंट बंध, शोषक संग भिड़बे नकसेट.”
भारत हा गंभीर हवय अउ, बोलत तेन हा वजनी ठोस
अमरउती ला अचरक होवत, समझ ले बाहिर बात के अर्थ.
अमरउती पूछिस -“”तुम काबर, असमय देत ज्ञान उपदेश
काय कार्यक्रम ला जोंगत हव, साफ सुनाव अगर नइ क्लेश ?”
भारत किहिस -“”रहस्य ला खोलत, मोर बात सुन कान ला खोल
अपन देश बर होय समर्पित, मन जोसियात देत हिचकोल.
मंय हा सैनिक बनना चाहत, तंय सम्मुख रख मन के भेद
यदि पठोय बर स्वीकृति देवत, मोर उड़ाहय चिंता खेद.”
“”सेना मं अवश्य तुम जावव, करना चहत काम जब नेक
भले मोर पर दुख हा आये, पर बन ढीठ करंव नइ छेंक.”
भारत ला कर्तव्य पूर्ण बर राह दीस अमरौती ।
भारत के शंका मिटगे तंह चमकत आंख के ज्योती।।
वाकई एक दिवस भारत हा, छोड़िस औरत मया मकान
सेना मं नियुक्ति पत्र पा लिस, निज योग्यता के राख प्रमाण.
पूर्ण प्रशिक्षण अमर के भारत, जीतिस देशभक्ति वि·ाास
ओकर बल ईमान बुद्धि के, समता बिरले जन के पास.
उदुप एक ठक शत्रु राष्ट्र हा, हमर देश संग युद्ध उठैस
भारत देश परिस अचरझ मं, कते डहर ले आफत अ‍ैस ?
आखिर काय करय भारत हा, देवत हे अन्याय के ज्वाप
सेना ला आज्ञा कर भेजिस – अरि के रगड़ा टोरो छाप.
सब सैनिक मन संग भारत हा, दुश्मन ला जुवाप कंस देत
बोइर सहि भर भर झर्रावत, बइरी मन पटात रण खेत.
तभे वीर भारत पकड़ा गिस दुश्मन मन दिन धोखा ।
जस अभिमन्यु बांकुरा ला तिर लिस अरि के सोखा हा ।।
दुश्मन के अधिकार मं भारत, पात कष्ट खावत कंस मार
बइरी मन रहस्य ला पूछत, भारत ला बनाय गद्दार.
कहिथंय – हमर पास तंय फुरिया – अपन फौज के जम्मों राज
बता महत्व के ठंव जेमां हम, बम ला पटक सिधोवन काम.
अगर बेंझाय रहस्य लुकाबे, निछ देबो हम चमड़ी तोर
फोकट जान गंवाये परही, बिन कसूर कट गिरथय पेड़.”
भारत सोचिस – “”यदि बतात नइ, एमन चमड़ी लिहीं ओदार
बन परपन्ची भेद ला उगलत, अपन हाथ मं देश हा ख्वार.
एक डहर हे गहिरी खाई, दुसर डहर मं कुआं खनाय
पर आवश्यक पार के नहकइ, ताकि सफल होवय उद्देश्य.
देश के रक्षक समझ के भेजिन, तेमां लगिच जाय झन दाग
कर कर्तव्य देश पत राखंव, बोवत बिरता लगा दिमाग.
कहिथय -“”तस्कर चोर बिकत यदि, अनसम्हार अक झोरत नोट
पर मंय हा रहस्य ला देवत, पाहव तुमन जीत लहलोट.
मोला जब गद्दार बनावत, तुम्हर वजह मंय हा बदनाम
एकर एवज तुमन का देहव, सुनना चहत कतिक अस दाम ?”
भारत के कहना ला सुन खुश होवत अरि – अधिकारी ।
सोचत – यदि ए समय गंवावत – नइ मिलिहय अउ पारी।।
बोलिन -“”अगर हमर तंय सुनबे, तंय पाबे धन मरत अतेक
कतको खर्च तभो नइ उरकय, सुख पाहंय संतान जतेक.”
दुश्मन दीन बहुत लालच तब, भारत किहिस -“”मोर संग आव
मंय तुमला ओ जगह मं लेगत, जिंहा हवय सैनिक ठहराव.
जीतव चौकी ला बिन डर भय, जीतव निधड़क भारत देश
झंडा अपन गाड़ देवव खब, जगय जगत मं उंचहा टेस.”
सुन के शत्रु खूब खुश होवत, भारत संग मिलात हें हाथ
कहिथंय -“”शुभ कारज मं देरी, करिहय कते मुरुख इंसान !
कृषक हा सुघ्घर पाग अमरथय, नांगर ला दउड़ाथय हांक
आय हमर बर उत्तम अवसर, तब हम पूर्ण करन उद्देश्य.”
अरि मन भारत के तोलगी धर, मारत लुहंगी जावत राह
रण मं विजय अवश्य हवय कहि, उंकर हृदय उझलत उत्साह.
खुसुरपुसुर आपुस मं बोलिन -“”देखव घरकुलुवा के हाल
अपन देश के जर खुद कोड़त, लालच मं बिगाड़ लिस चाल.
धोखा देवत अपन देश ला, ओकर कतेक असन विश्‍वास !
पाछू हमर ले धोखा करिहय, एहर नइ ईमान के दास.
हमर काम यदि पात सफलता, जियत दफनबो एला आज
ताकि सीख पावंय दूसर मन, बिसरंय राष्ट्र घात के काम.”
दुश्मन चाल चलत शतरंजी, भारत घलो चलत हे दांव
एमां कोन होत हे विजयी – सांस रोक देखव परिणाम.
भारत हा सुरंग तिर पहुंचिस, कहिथय -”पुछी चाब सब आव
सुजी गिरे तक पांव बजय झन, वरना बुड़िहय रण के नाव.
बहुत अकन सैनिक हें अंदर, उंकर कान झन जाय अवाज
अमर कलेचुप मार बिछावव, तहां बजाव शोर कर साज.”
भारत के कहना सुन दुश्मन करिन कलेचुप बोली ।
अंदर चलत अश्त्र पिचका धर खेले लहू के होली ।।
अंदर पहुंच सबो तन देखत, पर दउहा नइ मनखे एक
दुश्मन पूछिन – “”कहां हमर अरि, सब ला हमर पास मं लान.
लबरा, हमला धोखा देवत, तंय निकले सब ले बइमान
दुश्मन मन के दउहा नइ तब, अब हम लेबो जीवन तोर.”
भारत बोलिस – “”सुनव घातिया, तुम सोचत भारत डिग जाय
पर भारत हा परलोखिया नइ, जेहर रुपिया मं बिक जाय.
लेकिन तुम हताश झन होवव, मंय हा चहत लेंव कुछ सांस
तंहने तुम्हर शत्रु ला लावत, ओकर कर दव बिन्द्रा बिनास.”
भारत हा माचिस हेरिस अउ, खर्र मार बारिस तत्काल
बस आंखी झपकावत भर मं, पकड़ लीस आगी बिकराल.
उहां रिहिस गोला बारुद अउ, विस्फोटक पदार्थ भण्डार
तेन दनादन देत धमाका, मचिस भयंकर हाहाकार.
कहूं भगे बर समय मिलिस नइ, करे विचार खतम अवसान
जमों आदमी स्वाहा होगिन, हूम बर बांचिन नइ इंसान.
भारत देश के रक्षा बर भारत खोइस जिनगानी ।
जइसे बरदी ला बचाय बर प्राण देत चरवाहा ।।
भारत के चरित्र हे जतका, मेहरुकवि हा साफ बतैस
अतिशयोक्ति साहित्य मं होथय, एकोकन नइ करिस प्रयोग.
सुन के कथा गरीबा पूछिस -“”अमरउती के अभि का हाल
काय काम कर जिनगी पालत, यदि तंय जानत सफा निकाल ?”
मेहरुकिहिस -“”काय बतावंव मंय, अमरउती के स्थिति दीन
मिहनत बजा के जिनगी पालत, काटत समय घरी पल छीन.
जेकर पति हा देश बर मरगे, तेन पात नइ खाय अनाज
लेकिन जेहर देश ला लूटत, इन्द्र असन भोगत सुख राज.”
एकर बाद गरीबा मेहरु, हट गिन दूनों ओ तिर छोड़
घर मं अमर गरीबा देखत, बुढ़ुवा बाप करत खेर खेर.
कथय गरीबा -“”ददा, बता तंय, काय लगत का धरे अजार
बला चिकित्सक मंय अभि लावत, ताकि तोर होवय उपचार.
मंय पलाय हंव बालक पन ले, जिनगी ला बचाय कर कर्ज
मंहू घलो सेवा सटका कर, करना चहत अदा कुछ कर्ज.”
सुद्धू कथय -”अजार झपाथय आथय जहां सियानी ।
मंय जी गेंव अपन रउती भर सुख ला पाय जवानी ।।
“”मंय जावत हंव लाय चिकित्सक, लेकिन कहां मिलत ए गांव
यदि प्रबंध तब जिये लइक मन, काबर मरतिन दवई अभाव !
सुन्तापुर मं कुछ प्रबंध नइ, पर ढारा मं एक इंसान
दुधे नाम ओकर परसादे, कतको झन नव जीवन पैन.
ओकर पास आदमी भेजत, या फिर मंय हा खुद चले जात
सुनते साठ दुधे हा आहय, कतको काम तउन ला थेम.”
अतका बोल गरीबा निकलिस, लकर – धकर तजदीस मकान
दू आड़ी भुंइया बसे नापे, सुखी छेंक दिस चिल्ला तान.
सुखी के आर्थिक मध्यम स्थिति, ना धनपति ना हवय गरीब
पर ला उभरा खुद डर भागत, ढुलमुल नीति केकरा चाल.
सुखी कथय -“”मंय मदद मंगत हंव, कुसुवा धन ला धरे अजार
ओकर दवई अगर तंय जानत, मोर माल के कर उपचार.
बइला हा पागुर नइ भांजत, मुंह तक मं नइ लेगत घास
पसर पसर गजरा ला फेंकत, बहुत कष्ट मं लेवत सांस.
ओकर जोड़ी पुट ले मरगे, महिना पहिली आप सरूप
सपड़गे शनि अउ राहु मोर पर, अब उबरंव कइसे दुख कूप !”
कथय गरीबा -”पास समय नइ लकर धकर हे मोला ।
लेकिन तोर साथ नइ जाहंव गुस्सा लगिहय तोला ।।
सुखी गरीबा दुन्नों झन गिन, केंघरत कुसुवा धन के तीर
ओकर पेट फुले कोंहड़ा अस, दुख मं छटपटात तरमीर.
हालत देख गरीबा कहिथय -“”हाय करे नइ बचय परान
यदि धन ला बचाय बर सोचत – मेथी, जुन्नागुड़ झप लान.
असगंद कांदा, जाली हरदी, सोंठ, फिटकरी, अरसी तेल
केऊ कांदा अउ हुरहुरिया, तुरते दवई बनावत मेल.”
सुनते सुखी सब जिनिस लानिस, अउर गरीबा – पास मड़ैस
उसरंउहा कुट पीस गरीबा, धन खाये बर दवई बनैस.
माल के मुंह ला उला खवा दिस, जउन दवई ला रखे बनाय
धन हा गुटक पेट मं लेगिस, थोरिक बाद लगिस पगुराय.
कांदी खाय लमावत मुंह अउ, फुरसुद अस झटकारत देह
ओकर हटत अजार देख के, सुखी हा सारत जता के प्रेम.
किहिस – “”मित्र तंय बचा डरे हस, एकड़ा धन के जावत प्राण
जेन मदद उपकार करे हस, ओकर कब करिहंव उमछान !”
किहिस गरीबा -”का गोठियाथस, मंय नोहंव उपकारी ।
तीर मं तुक्का लगिस निशाना तब हटगे बीमारी ।।
अड़बड़ दुख के बात हमर बर, आगू डहर बढ़िस संसार
पर हर जिनिस गांव बर कमती, वितरण नीति मं बहुते दोष.
शासन आ·ाासन भर बांटत, जनहित मं जमाय नइ काम
जे दिन पूंजीवाद खत्म तंह, जमों जगह मं सुख के राज.”
अतका बोल गरीबा नेमिस -“”मोर काम धर ढारा रेंग
दुधे ला धर के लान अपन संग, सुन पुकार पारे बिन बेंग.
कहिबे – भेजे हवय फलाना, ओकर बुढ़ुवा बाप बिमार
ओला जांचे बर बलाय अभि, चल तुरंत कर दे उपचार.”
“”मदद के बल्दा मदद चहत हस, सोचत होय सोर हर ओर
पर अरझे मोर बुता बहुत ठक, तब नइ साथ दे सकहूं तोर.”
पर के गोड़ मं कोन हा रेंगत, सिधो काम ला खुद के हाथ
लुंहगी मार पहुंच जा ढारा, दुधे ला पकड़त झपकुन लान.”
सुखी के कहना सुन कट खा गे, कथय गरीबा हा कर रोष –
“”यद्यपि निंदा करना अनुचित, लेकिन मंय हेरत हंव दोष.
तोला अपन हितू मानत हंव, पर तंय हस सब ले बेइमान
जेन समय तंय नाश करे हस, एहर आय शत्रु के काम.”
पानी रूतोे सात पुरखा मं, सुखी के घर ला छोड़िस शीघ्र
पाछू पलट निंघा नइ फेरत, आगुच डहर बढ़ावत गोड़.
सोचत हवय गरीबा – एहर मध्यम वर्ग के चाला ।
देश समाज ला घालत जइसे – खड़े फसल ला पाला ।।
मित्र बना के धोखा देथंय, एमन होत महागद्दार
पिछू कोत ले छुरा भोंकथंय, इनकर कोन हा पाही पार !
आगू मं मिल जथय गुहा हा, गाड़ी मं बइठे हे जेन
बोलिस गुहा हा गरीबा ला -“”काय बात हे फुरिया साफ?
तंय हा परेशान हस नंगत, चोंई असन दिखत मुंह तोर
लगथय – दूसर गांव जात हस, तभे हड़बड़ावत हस खूब !”
कथय गरीबा -“”का दुख रोवंव, बाप हे अंधनिरंध बीमार
ढारा जावत लाय चिकित्सक, ताकि ददा के होय इलाज.”
“”तंय हा बइठ मोर गाड़ी मं, मंय हा जावत कलकसा गांव
बीच मं ढारा गांव हा परथय, उहां उतर करबे तंय काम.”
गाड़ी मं बइठीस गरीबा, तंह गाड़ी आगू बढ़ गीस
बइला मन हा बड़ फुर्तीला, लुंहगी चाल ले मारत दौड़.
किहिस गरीबा -“”मंय देखत हंव – जमों व्यक्ति निष्ठुर नइ होंय
एक तराजू मं यदि तउलत, निश्चय गलत बहुत अंधेर.
थोरिक पूर्व के बोलत घटना – सुखी ले मंय हा मदद मंगेंव
पर ओहर हा छरक के भागिस – करिस हइन्ता बन के क्रूर.
लेकिन तंहू एक मनसे अस – मोर बिपत पर प्रश्न करेस
गाड़ी मं बइठा के लेगत, हरत कष्ट ला बन के मित्र.”
गुहा कथय -“”मंय सुखी ला जानत – ओहर हवय स्वार्थ के खान
यदि ओकर कुछ काम हा अड़थे, तब तो परत धोकर के पांव.
लेकिन ओकर स्वार्थ सधत तंह – आंखी ला देखात हे लाल
ओकर आलोचना या स्तुति, कुछ भी करना बिल्कुल व्यर्थ.”
गांव करेला के आगुच मं, हे चौरस्ता शुभ स्थान
दुनों करेला के मनसे मन, उही जगह मं करथंय भेंट.
उहिच चौंक मं खड़े हे चिंता, ओला पारिस गुहा हा हांक-
“”यदि तंय ढारा डहर जात हस, गाड़ी मं पिचरिंग ले बैठ.
मंय हा बहुत उदार आज हंव, खुद बलात हंव मार अवाज
आव मोर गाड़ी मं बइठव, फोकट मं आनंद उठाव.”
चिंता हा ठट्ठा मं बोलिस -“”मंय नइ आदिम युग के जीव
पहिली मंय हा ढारा जाहंव, फेर नहक देवकट्टा गांव.
यदि मंय गाड़ी पर बइठत हंव, मोर शान के कटही नाक
मंय आधुनिक युग के मनसे अंव, बइठत हंव जहाज या कार.”
किहिस गरीबा -“”विषय हे उत्तम, पर पहिली गाड़ी मं बैठ
काय पूर्व अउ काय आधुनिक, जमों विषय मं करबो गोठ.”
चिंता हा गाड़ी मं बइठिस, किहिस गरीबा हा कुछ सोच-
“”घोड़ा चढ़ना – गाड़ी बइठइ, हकर हकर पैदल के चाल.
एमन पिछड़ा पन के चिन्हा, यने मात्र इतिहास के चीज
लेकिन एमन हें लाभदायक, बांटय नइ एकोकन हानि.
वातावरण ला नाश करे बर, कभु नइ छोड़ंय घातक चीज
भूमि के गर्भ सुरक्षित रहिथय, दुर्घटना के खतरा दूर.”
चिंता कथय -”फेर बोलन दे मंय झपात हंव झोझा ।
इंकर कमी ला मंय गिनात – तंय सुन चुप रख के बानी।।
एमन ठिहां देर मं पहुंचत, मानव पास कमी हे टेम
ओमन लक्ष्य पाय बर चढ़थंय, हेलीकाप्टर कार जहाज.
मानव चढ़त चांद मंगल ग्रह, खोजत हवय नवा ग्रह रोज
गाड़ी ले उहां जाना मुश्किल, मात्र आधुनिक वाहन ठीक.”
कथय गरीबा -“”उचित कहत हस, पर ओमन मं बड़का दोष
वातावरण प्रदूषित होथय, सब तन फइलत विष के गैस.
ओमन मं पेट्रोल ला भरथय, जे हो जहय अवश्य समाप्त
अइसन जिनिस प्रयोग होत नइ, जेन हा अमर रहाय सदैव.
वाहन के निर्माण करे बर, पृथ्वी ला खोदत प्रण ठान
एकर फल विनाश मं मिलिहय, जमों खनिज हो जहय समाप्त.
पृथ्वी के तन अंग भंग अस, बिना जान के ओकर देह
सड़क – वायु दुर्घटना होथय, ओमां मर जाथंय कई जीव
अंधरी दौड़ मं मानव सामिल, खुद के बलि देवत खुद हाथ
बपुरा बइला खड़े कलेचुप, तेला बला लेत – आ मार.”
“”हम हा आगू बढ़त चलत हन, पाछू लहुटइ मुश्किल काम
गाड़ी मं बइठे बर कहिबो, उच्च समाज हा देही हांस.
हमला कहही – देहाती हव, तभे करत अड़हा अस गोठ
नवा – नवा वैज्ञानिक साधन, तब गाड़ी मं बइठन कार !”
“”आदिम युग मं फेर लहुटना, वाजिब मं मुश्किल के काम
मंय तक हा विकास वादी अंव, देखत हंव आगू के दृश्य.
अब हम नवा उपाय ला खोजन, प्रकृति के विनाश झन होय
जउन पदार्थ सिराही एक दिन, ओकर होवय कम उपयोग.”
गुहा कथय -“”हम स्वार्थ पूर्ति बर, सब धरती ला देबो कोड़
ओकर जिनिस ला बाहिर लाबो, अंदर ला कर देबो खाख.
हमर पुत्र बर कुछुच बचय नइ, उनकर बर हर जिनिस अभाव
ओमन हर सुख सुविधा पावंय, एकर बर हम जिम्मेदार.”
चिंता सोचिस – मजा आय अब, वातावरण मं उपजय हास्य
कहिथय – “”तंय हा अपन ला सोचत, पत्नी बेटा पर आ गेस .
पुनऊ, थुकेल के करथस चिंता, तब हम छोड़न कार जहाज
तोरेच गाड़ी बइठ गेन हम, ताकि तोर वंशज सुख पाय.
अब तंय हा निÏश्चत असन रहि, वातावरण हा रहही साफ
पृथ्वी के सब खनिज सुरक्षित, जमों काम प्रकृति अनुसार.
हम तोला आ·ाासन देवत – तोर पुत्र पाहंय सुख खूब
भावी जीवन पूर्ण सुरक्षित, हरदम बर बुतही दुख दीप.”
तीनो झन खलबला के हांसिन, फेर पहुंच गिन ढारा गांव
बोलिस गुहा -“”दयालू हव तुम, खुशी मोर बर लाथव खोज.
तब फिर मोरो फर्ज हा बनथे, मंय हा करंव तुम्हर अस काम
ढारा लाये बर करेंव वादा, ढारा मं पहुंचा तक देंव.”
ढारा मं उतरीस गरीबा, पहुंच गीस बर पेड़ के पास
सड़क श्रमिक मन उहां हें हाजिर, चलत रिहिस हे बैठक नेक.
बुल्खू झनक अउ बलवन पहरु, श्रमिक-श्रमिक नेता के भीड़
बुल्खु हा सब ला सम्बोधिस -“”साथी, तुम हव हाजिर आज.
तुमला देख प्रसन्न खूब हंव,जमों कर्मचरी हव एक
तुम्हर संगठन हे बलशाली, काम ला करो राख ईमान.
अपन कर्मपथ पर जब चलिहव, हक हा बनत रखे बर मांग
शासन घलो मांग ला मानत, कर्म के हरदम इज्जत मान.”
पहरुहा बुल्खू ला बोलिस -“”हमला बता साफ अस गोठ
हमर मांग का – काय चहत हम, आगू डहर करन का काम !
सबो श्रमिक ला समझा के कहि, एको कनिक गुप्त झन राख
तब प्रस्ताव हा पारित होये, श्रमिक करंय सहमति के दान.”
बुल्खू दस्तावेज निकालिस, पहरुके सुपूर्द कर दीस
कहिथय -”जतका असन तथ्य हे , जानय श्रमिक बिना कुछ भेद.
लेना भइ तंय स्वयं पाठ कर, श्रमिक ला सुनवा बिल्कुल साफ
तोर बात ला साफ समझिहंय, श्रमिक – श्रमिक के जीवन एक.”
पहरुहा अब मांग पढ़त हे, सब साथी ला साफ बतात-
”शासन पास मांग भेजत हन, हमला हे आवश्यक जेन.
हम्मन सड़क – श्रमिक छोटे अन, वेतन मं पावत कम नोट
जीवन स्तर सुधर जाय कहि, भेजत हवन निम्न प्रस्ताव.
हमर मूल वेतन हा बाढ़य, बोनस मिलय नवा जब साल
नवा मकान बनावन जब हम, बिगर ब्याज के ऋण मिल जाय.
हमर खून मन शिक्षित होवंय, शासन हा उठाय सब खर्च
सेवा ले हम मुक्ति पान तंह, पेंशन के होवय भुगतान.”
बुल्खू पूछिस – शासन तिर हम भेजत मांग के सूची !
यदि आक्षेप या त्रुटि कुछ शंका, तुरुत सामने खोलो ”
झनक किहिस -”हम मांग रखे हन, ओहर हे कम अकन अपूर्ण
मांग के संख्या ला बढ़ाव अऊ, कम से कम चालीस पचास.”
बुल्खू हा सब ला समझाइस -“”अगर रखत हम सूची लाम
एकर ले कुछ लाभ होय नइ, सब प्रयत्न हा जाहय व्यर्थ.
हम्मन मूल मांग ला राखन, ताकि बात ला समझंय साफ
शासन पर बोझा झन आवय, हमर मांग हा स्वीकृति पाय.”
बलवन कथय -“”ठीक बोलत हस – हम्मन रखत पांच ठन मांग
मगर मांग पूरा नइ होहय, तब फिर करबो काय उपाय ?”
झनक हा सनकत टांठ बोलथय -”मंय हा खोलत गूढ़ रहस्य
जमों दोष अधिकारी मन के, शासन ला रखथंय अंधियार.
मंहगू साहब ला तुम देखव, अनुविभागीय अधिकारी आय
ओहर सब कर्तव्य ला त्यागत, सदा श्रमिक के करथय हानि.
पर अब श्रमिक ला मिलिहय घाटा, हम करबो ओकर घेराव
मंहगू ला दोंह दोंह ले पिटबो, खत्म होय इज्जत सम्मान.”
बुल्खू हा समझौती बोलिस -“”तंय हा सन्ना जथस तड़ाक
मारपीट बर तुरुत उठत हस, झगड़ा ला मानत हस मित्र.
अधिकारी या मंत्री ला तंय, झोर सकत हस थपरा – लात
गलत काम बर समय लगय नइ, पर एमां खुद के नुकसान.
हमर विरुद्ध मं थाना जाहंय, होहय उहां प्राथमिकी दर्ज
न्यायालय मं प्रकरण चलिहय, खूबेच बढ़ही धन के खर्च.
हम खुद कम वेतन झोंकत हन, सहन पान नइ आर्थिक बोझ
तब मंय हा समझे बर बोलत, दूध अउ दुहना ला झन फोर.
अपन आंख मं हम देखे हन, करिन श्रमिक मन कइ हड़ताल
कल कारखाना तोड़ फोड़ दिन, मालिक तक ला गचका दीन.
पर परिणाम हा गलती निकलिस, मिल मं तारा हा लग गीस
जमों श्रमिक के काम हा रुकगे, दाना दाना बर मुहताज.
तब अब ले आंदोलन करबो, अपन जीविका ला रख ठीक
पेट मं अन्न – हाथ मं रुपिया, तब मनसे करथय हर काम.”
सब प्रस्ताव हो जाथय पारित, गीस गरीबा पहरुपास
कहिथय -”तंय हा फिकर मं झन मर, निश्चय पूर्ण तुम्हर जे मांग.
तंय रुपिया के लाभ कमाबे, खाबे बोबरा पप्ची खीर
पर अग्रिम मं लान मिठई तंय, मंय लगांव पहिलिच ले भोग”
पहरुकिहिस -“”खूब खबड़ हस, मिठई खाय बर टपकत लार
लेकिन अभी हवय कुछ मुश्किल, एकर बर तंय धीरज राख.
हमर गांव ला जानत हस तंय – जेकर रानीगंज हे नाम
उहां के मंडई जग जहरित हे, देखे बर तुम निश्चय आव.
तोला उहें मिठाई देहंव ओकर संग मं रवाना !
देवत हवंव निमंत्रण अभि ले मंड़ई मं निश्चय आना !!
”तोर निमंत्रण मंय स्वीकारत, लाबे कोन गांव के नाच
तुम कंजूसी मं मत मरना, लाव नाच उंचहा विख्यात ?”
“”हवय रवेली नाच’ एक ठन, उही ला लाबो नेवता भेज
कलाकार जे कला देखाहंय, उंकरेच नाम बहुत विख्यात.
लालू – फीता – मदन – मंदराजी, बुलुवा – बोड़रा – ठाकुरराम
उनकर कला करत आकर्षित, दर्शक देख देत हें दाद.
ओमन चेहरा एदे निकालत – चपरासी, बुढ़ुवा के ब्याह
“सूरा वाले कजुवा’ निकलत, अउ “सीका जोती के राह.”
“”मंहू सुनेंव रवेली के नाचा, देखे बर हे प्रबल विचार
तुम्हर मंड़ई म निश्चय आहंव, मोर साद हा होही पूर्ण.
अब चर्चा आगू तन जावत, कथय गरीबा बन गंभीर-
“”बुल्खू के सब नीति हे उत्तम, ओकर कार्य हा अनुकरणीय.”
पहरुहा स्वीकार के कहिथय -“”तंय सुन बुल्खू के सिद्धान्त
उग्र कार्यक्रम ला टरियाथय, चलथय सदा धैर्य के राह.
पहिली चिंतन मनन ला करथय, फिर सोचत एकर परिणाम
एकर बाद काम ला करथय, तब उद्देश्य हा सुफ्फल होत.
छेरकू नेता हा मंत्री हे, ओकर हर सिद्धान्त मं स्वार्थ
ओहर काम उही बस धरथय, जेमां बचय शान पद मान.
तंय हा जब ए पास आय हस, बुल्खू साथ भेंट कर लेव
अपन अपन सिद्धान्त ला खोलव, ताकि बाद मं आवय काम.”
गीस गरीबा हा बुल्खूू तिर, कहिथय -“”जब तंय करथस काम
हिंसा – गुस्सा ला त्यागत हस, शांति अहिंसा ला अपनात.
मगर प्रश्न के उत्तर दे तंय – भिड़ के करत कार्यक्रम जेन
ओमां सफल अवश्य हो जाबे, यदि “हां’ तब फुरिया दे साफ. ?”
बुल्खू बोलिस -“”तंहू पढ़े हस, सबो जगह के हर इतिहास
लड़ई के वर्णन ले पटाय हे, खूब बोहाय खून के धार.
रामायण – महाभारत पढ़ लेस, होय उहू मं हिंसा – मौत
मानव के दुश्मन मानव बन, एक दुसर के लाश बिछैन.
मगर समस्या बचे अभी तक, मानव बनिस क्रूर ले क्रूर
तब हम धरेन शांति के अंचरा, हमर राह हा बिल्कुल ठीक.
लेकिन तंय काबर पूछत हस, मंय हा रखत जउन सिद्धान्त
यदि ओमां कुछ दोष या गल्ती, रहि निÏश्चत बता तंय साफ ?”
पहरुहा स्पष्ट बताथय -“”वैज्ञानिक जब करथय शोध
साफ प्रतिक्रिया ला जाने बर, लेवत वरिष्ठ से मंतव्य.
तोर राह पर चलत – चहत हे सुम्मतराज ला लाना ।
एकर शंका खत्म करव – अउ काम के होय समीक्षा ।।
बुल्खू हा गरीबा ला बोलिस -“”तोर कर्म अउ पथ हा ठीक
एमां धीरज समय हा लगथे, तंह उद्देश्य हा निश्चय पूर्ण.”
कथय गरीबा – “”मोर दोष सुन – यद्यपि मंय नइ बोलंव साफ
पर अंदरूनी गुस्सा करथंव, हिंसा तक बर करत विचार.
करथंव प्रण – धनवा ला मारंव, ओहर आय पाप के मूल
यदि ओकर बिन्द्राबिनास तब, खत्म हो जाहय अत्याचार.”
बुल्खू कथय -“”ठीक बोलत हस, एकर बर तंय हा निर्दाेष
मनसे समय देख के चलथय, होवत उग्र करत हे क्रोध.
तंय सोचत – धनवा ला मारंव, पर हत्या के काम अनर्थ
कोई प्रश्न के हल नइ निकलय, अउ हो जथय समस्या गाढ़.
सोनू मण्डल डोकरा हो गिस, छूट जहय अब ओकर जीव
तब धनवा के राज आ जाहय, करिहय जन विरुद्ध के काम.
यदि धनवा के जान मारबे, पर नइ होय कुछुच कल्याण
ओकर बेटा मनबोध तेहर, जनता ला देहय तकलीफ.
एकर ले उत्तम तंय ए कर – जलगस धनसहाय के प्राण
अपन कार्यक्रम ला चालू कर, पश्त करो ले जन सहयोग.
धनसहाय ला आकर्षित कर, गांव के मुख्य धार मं जोड़
ग्राम व्यवस्था मं सामिल तब, ओकर होय पूछ – सम्मान.
सनम के पुत्र गली ला जानत, धनवा के बेटा मनबोध
एमन ला तंय स्नेह बांटबे, दुनों ला बइठाबे जब खांद.
तभे तोर उद्देश्य हा सुफ्फल, सुम्मत राज व्यवस्था नीक
सब मनसे अधिकार ला पाहंय, खतम सदा बर भेद के राज.”
पैस गरीबा राह नेक अस, उहां ले हट डाक्टर तिर गीस
दुधे ला बोलिस – “”मोर साथ चल, मोर ददा के प्राण ला राख.
अंधनिरंध रोग जम्हड़े हे, रनबन परे स्वास्थय हा हीन
घर के धारन मोर ददा ला, मोर साथ चल के कर ठीक.”
दुधे कथय -“”अउ हवंय अजरहा, ओमन ला मंय देवत जांच
तेकर बाद तोर संग चलिहंव, झन मर फिकर – आय नइ आंच.”
दुधे अजरहा मन ला जांचिस फिर कर दीस दवाई ।
अब सुन्तापुर जावत हे करना हे उंहो भलाई ।।
दुधे – गरीबा गांव पहुंच गिन, ठाड़ होत सुद्धू के पास
ओहर बिसुध परे – नइ बोलत, नइ लेवत एको कल्दास.
दुधे हा देखिस रोगी के पय, दवई करत फिर आवय होश
छिन छिन रुक नारी ला देखत, रोग हा झन मारे कुछ रोष.
सुद्धू के तन दवई हा भींजिस, सांस लेत अब कल्थीमार
दुधे कथय -“”बिल्कुल झन घबरा, रोग हार जाहय सब दांव.
दवई होय ते लाभ बता दिस, अउ औषधि मंय जावत छोड़
एला समयानुसार खवाबे, यदि शंका तब प्रश्न उछाल ?
अभी जान दे तंहा फेर मंय आवत हंव संगवारी ।
अपन समझ के जतन ला करिहंव तंहने खतम बिमारी ।।
दुख भर बिनती करिस गरीबा -“”अभी सियनहा परे बिचेत
ओहर थोरिक होय टंच अस, तंय हा बिलम जा घंटा एक.
ए बपुरा सग बाप मोर नइ, ना मंय बिंद – न अंव औलाद
तब ले अपन लहू सहि पालिस, पूरा करिस मोर सुख – साद.
अगर उदुप एला कुछ होवत, मंय हो जहंव बहुत बदनाम –
यदि सग पुत्र गरीबा होतिस, करतिस जतन अपन ला बेच.
सुद्धू बपुरा ताप खूब दुख, एला जिया करिस परमार्थ
पर के पुत्र गरीबा हा तब, देखत हे बस खुद के स्वार्थ.
काकर कोख ले अंवतरे हंव मंय, कते मनुष्य मोर सग बाप !
एकर भेद कुछुच नइ जानंव, मंय हा अंव मानव के पुत्र.
सुद्धू पोंस के राखिस जीवन, तब सेवा कर छूटंव कर्ज
तंय कर ठीक तभे जा ढारा, अतिक कष्ट बर करथों अर्ज”
दुधे उदेल लहुट नइ पाइस, जहां गरीबा जोड़िस हाथ
सुद्धू के हालत ला जांचत, बात चलावत ओकर साथ.
दुधे कथय -“”एक बात सुने हंव – तिजऊ जेन सोनू के भृत्य
ओहर फांसी लगा के मरगे, काबर करिस अबुज अस काम ?”
“”हर मनसे जीये बर चाहत, पर सब डहर कुलुप अंधियार
जब उत्थान के कुछ आशा नइ, तब निराश मं देवत जान.”
देत गरीबा हा फिर उत्तर -“”तिजऊ रिहिस हे कंस परेशान
अपन कमई के अन्न पाय नइ, दुख मं हरिस स्वयं के प्राण.
सोनसाय पर दोष हा जातिस, लेकिन बाच गीस बेदाग
धन मं नंगत ताकत होथय, तब सोनू हा बच गिस साफ.
तिजऊ के लागा बचिस तेन ला छूटत ओकर बेटा ।
कातिक घलो उबर नइ पावत – जस पुजवन के घेंटा ।।
बात चलत ते बीच मं सुद्धू, ऊंऊं करके खोलिस नैन
स्थिति सुधरत देख दुनों मन, मन मं पैन चैन संतोष.
हालत पूछत दुधे – गरीबा, सुद्धू ढिलत साफ अस बोल-
“”वइसे मोला बने जनावत, पर कमजोरी अंतस खोल.”
“”बने करे बर दवई करे हंव, तंय झन कर एको कन फिक्र
ताकत फेर लहुट के आहय, नवा पान सहि हरियर कंच.”
दुधे दीस सांत्वना तंहा फिर, अपन गांव जावत हे लौट
अपन पिता ला छोड़ गरीबा, दूसर बल लेगत नइ पांव.
कुछ दिन तक औषधि खा सुद्धू, स्वास्थय लाभ पा – किंजरत खोर
पहिली अतिक तन मं ताकत नइ, मगर चले के लइक सजोर.
सुद्धू रिहिस अपन घर मं तंह, लइका मन पहुंचिन दोर दोर
रंगी जंगी गज्जू मोंगा, गुन्जा के संग पुनऊ थुकेल.
सुद्धू ला चिढ़ाय बिजरावत, कूद करत हल्ला चिरबोर
लइका मन ला मना के छेंकत, तभो उदबिरिस मारत जोर.
गज्जू हा सुद्धू ला बोलिस -“”हम तोला बोचकन नइ देन
आज “जनउला कथा’ जमाबो, कुछ दिन पूर्व गुने हन जेन.
कथय गरीबा -”आज बनय नइ, कुछ दिन रुक के आना।
तंहने ददा सुनाहय तुमला कथा – बिस्कुटक – हाना ।।
ललिया आंख थुकेल घघोलिस -“”हमर बीच मं तंय झन बोल
पूछत हवन अपन संगी ला, हमर आंतरिक चर्चा आय.
यदि हंसिया अस लफ ले लूबे, या हमला कहिबे – भग जाव
तब तो बहुत बुरा हो जाहय, हमर तोर मं झगरा जोर.”
सुद्धू घलो मरत समझाइस -“”मोर शरीर हवय कमजोर
थक – थक थक थक लगत ते कारण, खेले बर हिम्मत नइ मोर.”
रंगी किहिस -“”अगर दुर्बल हस, घिंव गांकर काबर नइ खाय !
नखरा झनिच मार वरना हम, खटिया ले गिरा देबो धांय.”
सुद्धू सोचिस – यदि नइ मानत, सच मं गिरा दिहीं चेचकार
बेलबेलहा इतरवला मन ले, कोन सुजानिक पाइस पार !
सुद्धू हा खटिया ले उतरिस, बइठिस बालक मन के पास
ओमन हा उत्साहित होये, सुद्धू बोलत भर उत्साह –
“”होय “जनउला कथा’ हा शूरू, प्रश्न जवाब ला होवन देव
जेन जुवाप देन नइ पावय, ओहर लाय खजानी खाय.”
लइका हुंकी भरिन हर्षित भर, गज्जू कथय बढ़ा के जोश-
“”हमर बात ला तंय माने हस, पहिली प्रश्न तिंही हा पूछ.”
सुद्धू हा लुकलुका जथय अब, ओहर करिस प्रश्न बरसात –
“”आय लुलू अउ जाय लुलू पर, पानी ले डर्रावत कोन ?”
एक दुसर के मुंह ला ताकत, बालक मन उत्तर नइ देत
बहुत सोच के रंगी फोरिस -“”पनही आय कहत हम नेत.”
रखत सवाल टुरा जंगी अब -“”लाल तूस अउ करिया तूस
एकर उत्तर ला झपकुन दे, नइ जानत तोर ददा ला पूछ.”
सुद्धू हा सकपका गीस सुन, बालक मन कइसे हकरैन !
पर उत्तर देना आवश्यक, तब बोलत बालक मन साथ-
”दाई अउ ददा ला जोहारत- वह इतरौला बच्चा ।
कान खोल के सुन लव – गोमची – एहर उत्तर सच्चा ।।
सुद्धू हा तड़ ढिलिस प्रश्न अब – ”देव जुवाप गिनत बस बीस
नदिया पास चरत बोकरा हा, पानी खतम तहां मर गीस.”
बच्चा परिन सोच मं अड़बड़, बुढ़ऊ बिया कर दिस बकवाय
मोंगा किहिस -“”समझ मं आगिस – पूछे हस ते – दीपक – आय.”
“”ए एकटंग – काय जी चरटंग ? कते डहर चल दिस दूटंग ?”
“”छोड़ के चरटंग डरपोकना ला, अभिच गीस दस टंग ला लाय ?”
रंगी किहिस – “”बोल ए बुढुवा, अपन बुद्धि के मारत टेस
बइठक मं तंय न्याय भंजाथस, कतको के काटत हस नाक.
हमर प्रश्न के उत्तर देबे, हम हा देबो बड़े इनाम
नांदगांव ले मिठई ल मंगवा, तोला देबो सक भर खाय.”
लइका मन बेंझाय ला, रखिन सवाल बहुत बिकराल
सुद्धू हा घोरवत हे अड़बड़, पर नइ देवन पात जवाब.
कथय गरीबा ला – “”रे बाबू, एकर उत्तर बता तड़ाक
अगर मदद तंय नइ पहुंचाबे, काट लिहीं लइका मन नाक.”
अरकट्टा कट भगिस गरीबा -“”तुम्हर बीच कइसे गोठियांव !
अगर कूद मंय चुट ले लूवत, मेकरा मन करिहंय हांव हांव.”
सुद्धू सोचे रिहिस अपन मन, दिही गरीबा निश्चय ज्वाप
लेकिन उल्टा धुरा पटक दिस, सुद्धू हारत अपने आप.
करिस बहाना -“”मितवा सुन लव, तुम कल पहुंच के उत्तर लेव.
यदि तुम जानत – तुम्हीं बता दव, खाये बर खजानी लेव.”
सुद्धू जहां थथमरागे तंह मरगे ओकर नानी ।
लइका मन हा विजय पाय बर आगू कहत कहानी ।।
जंगी बोलिस -“”साफ कथा सुन, एकटंग के मतलब चटवार
दूटंग मनसे – चरटंग बघवा, दसटंग हा केकरा सरकार.
एक किसान मेड़ बांधे बर, धर चटवार फजर गिस खेत
ओतकी बखत बाघ पहुंचिस तंह, कृषक के उड़गे चेत दिमाग.
मेड़ मं झप चटवार गड़ा दिस, अपन लुका गिस जीव बचाय
बाघ गीस चटवार के तिर मं, पर धथुवा गे बिगर शिकार.
बघवा हा चटवार ला पूछिस -“”तंय उपकारी – कर परमार्थ
एक आदमी तउन कहां गिस, खाय चहत हंव ओकर मांस ?”
हंस चटवार बताथय फरिहर -“”तंय अबूज हस यथा नदान
तोर ले बली कृषक हा हावय, खंइच दिही तोर जीयत प्राण.
मोला छोड़िस इही मेर अउ, निकल गीस दसटंग ला लाय
मनसे हा दसटंग ला खाहय, कचम कचम जस स्वादिल साग.
यदि तंय हा ए पास बिलमबे, आहय तोरो बर भी काल
कृषक हा तोला गप गप खाहय, तोर मांस के बढ़िया स्वाद.”
बघवा डर मं कांप के सोचत-दसटंग ला बनात जब लाश
काबर चार टांग वाले मंय, बनंव ग्रास भिड़ मनखे साथ.”
बघवा एको क्षण नइ बिलमिस, सल्टिस तुरुत उठा के पूंछ
मरत व्यक्ति के जीवन बच गिस, छाती अंड़ा के टेंड़त मूंछ.”
लइका पूछिन -“”बता सियनहा, हार गेस नइ बाजी आज !
हमर खाय बर लान खजानी, सब झन खाबो बांट बिराज.”
सुद्धू स्वीकारिस -“”तुम्मन सच, लइका ले जीतत हे कोन!
थोरिक थया रखव – मंय लावत, तुम्हर खाय बर चरबन मीत.”
सुद्धू लान खजानी बांटिस लान गचक भर ओली ।
लड़का मन खावत लहुटत हें कूदत करत ठिठोली ।।
कथय गरीबा -“”बालक मन तिर, तंय गोठियाय हवस दिल खोल
अनुभव बता – राह दे मोला, ताकि जान लंव जग के पोल ?”
सुद्धू कथय – “”संगठित होवव, झोंकय भाड़ चना नइ एक
तइसे एक जूझना मुश्किल, जलगस सुंट नइ बंधिहव एक.
डढ़ियल बर के तरी मं जइसे, हिनहर घास सकय नइ जाम
बर हा पर हक के रस पीथय, नइ जानय परमार्थ के काम.
ओ बुर्जुआ हा चिड़िया मन ला, अपन तिलिंग मं रखथय पाल
पेड़ गिराय शत्रु मन आहंय, कोतल दिहीं मदद तत्काल.
बर के निसनाबुत करना हे, पर नइ बनत कुछुच बेवसाय
उद नइ जरा सकत एक टंगिया, बुड़ना चहत धार बिच नाव.
यदि बिन्द्राबिनास करना हे, टंगिया झुण्ड फेंट बंध जाय
चारो तन ले झूम के पहटंय, बर भर्रस गिर जहय जमीन.
ए बिस्कुटक अकड़दन्ती ए, पर व्यवहार मं सच जस बेर
करो काम तब भविष्य फरिहर, सिर्फ सोच मं बढ़थय क्लेश.”
सुन के बात गरीबा सोचत – ददा देत हे नेक सलाह
एकर बिन सब बुता हा गड़बड़, सुम्मत बंध धरना हे राह.
सुद्धू तिर ले ज्ञान मांग के, काम करे बर जावत खेत
पिनकू साथ भेंट होइस तंह, थोरिक रुकिस करे बर बात.
मुसका पूछत हवय गरीबा -“”लम्हा चलत कते तंय गांव
बड़े काम मं फंसे जनावत, फुरिया का लगाय हस दांव ?”
पिनकू कथय -“”ठीक बोलत हस, मुश्किल थमई देर तक पांव
हमर महाविद्यालय मं अभि, छात्र संघ के होत चुनाव.
देत पलोंदी छात्र मित्र मन, टक्कर लेवत मंय कंगाल
मोर विरुद्ध हठील लड़त हे, जउन आय धनपति के लाल.
करत हठील प्रचार खर्च कर, धन ला पानी असन बोहात
मगर तोर तिर धन के कमती, का परिणाम – उमंझ नइ आत !”
पिनकू हकन के कह नइ पावत, ओकर हृदय हा धक धक होत
पिनकू के उमंग बाढ़े बर, भरत गरीबा हा उत्साह-
धन वाले से लड़ना याने डबरा – सिन्धु लड़ाई ।
लेकिन बिन संघर्ष करे हिनहर के कहां भलाई ।।
भले हार के हार तोर गल, पर मन मं तंय भय झन पाल
होहय नाम – बड़े अदमी संग, टक्कर लीस एक कंगाल ”
दीस गरीबा हा हिम्मत ला, पिनकू धरिस जाय बर राह
नांदगांव मं जहां पहुंचथय, ठंडा परिस जति उत्साह.
चौक – चौक मं टंगे हे पोस्टर, ओमां लिखे हवय संदेश
मित्र हठील चुनाव लड़त हे, करत छात्र मन पर वि·ाास.
ओला सब मिल देव पलोंदी, जुर मिल के निश्चय जितवाव
एकर सहि प्रतिभा नइ पर तिर, सब के मदद करत हे दौड़”
तभे उहां नंदले हा आइस, ओहर पिनकू ला कहि दीस-
“”तंय हा इहां पढ़त हस पोस्टर, पर ओ डहर काम कुछ और.
तोर विरुद्ध प्रचार होत हे, जमों छात्र मन ला उकसात
हवय हठील हा उत्तम मनखे, ओकर हृदय हा बिल्कुल साफ.
चहत महाविद्यालय के उन्नति, यदि तुम चहत पाय अधिकार
तब हठील ला देव अपन मत, वरना नइ ककरो उद्धार.
हठील भइया बड़े गोसंइया, एकर मदद कोन नइ पाय !
जमों छात्र के इही सहायक, एकर मुड़ी तरी झन जाय.
पिनकू ला मत, मत देवव तुम, खुद भुखमर्रा – महादलिद्र
अपन टोंड़का सिल नइ पावत, कहां मूंद सकिहय पर – छेद !
याने जब पिनकू नइ पावत, अपन पेट भर खाय अनाज
तब पर – मदद का थोथना करिहय, व्यर्थ रखई ओकर मुड़ ताज.”
पिनकू हा मुसका के बोलिस -“”एकर अर्थ जान मंय लेंव
मोला सब हराय बर सोचत, एकर बर कंस करत प्रयास.
लेकिन नंदले, फुरिया सच तंय – चल दिस कहां छात्र के हेट !
खोजेंव मरत मगर दर्शन नइ, धन तो अभर गेस तंय मात्र ?”
नंदले कथय “” बतावंव का मंय ठग दिन सब विद्यार्थी ।
लालच दे के हठील बनगे सब झन ले परमार्थी ।।
जतिक छात्र पाती दबाय बर, खाय रिहिन किरिया कई घांव
तेन तोर ले भागत दुरिहा, टकटक दिखत के बुड़ही नाव.
मोर पास मं हठील हांकिस -“” तंय मंय आन अभिन्न मितान
समझ भरोसिल आय तोर तिर, दुसरा अस तंय देबे साथ.”
लेकिन नट – इंकार देंव मंय – हम अन मितवा ध्रुव अस ठीक
यदि मित्रता के चाहत बल्दा, प्राण ले सकथस निज तिर झींक.
पर असमस मत ला संउपे बर, एमां हवय बहुत जड़ राज
कतको झन के रांड़ बेचाहय, जे निर्दाेष के मुड़ पर गाज.
प्राध्यापक ला बहुत सताबे, गलत बात के करबे मांग
जमों छात्र ला अपन पक्ष कर, ओमन ला करबे गुमराह.”
मोर बात ले हठील भड़किस, कूद कूद के लात जमैस
बइला अस कुचरई झेले हंव, ते कारन तन मरत पिरात.
अंउ उपरहा हठील जोहारिस – “”खतम होन दे होत चुनाव
मंय तोला केंघरा के रहिहंव, घुसड़ जहय जतका अस ताव.
तोला नइये जग के अनुभव, तभे कहत उंचहा सिद्धांत
आज सत्यवादी अस बोलत, खोलत हवस मोर सब दोष.
लेकिन बाद मं पता हा चलिहय – वास्तव मं संसार हा काय !
तंय जब दुख – अभाव ला पाबे, सब सिद्धांत हा होही नाश.
तंय खुद गलत राह पर चलबे, करबे निम्न – निम्नतर काम
कतको बद्दी तोर मुड़ी पर, नक्टा अस रहिबे चुपचाप.”
पिनकू दुख मानिस ओकर सुन, नंदले के हिम्मत संहरात-
“”मंय हा भले चुनाव ला हारंव, पर दुंख माने के नइ बात.
तोर असन सैद्धान्तिक मनखे, अमरा होवत अड़बड़ नाज
मुड़ी गर्व मं ऊपर जावत – मंय पहिरे हंव विजय के ताज.
लेकिन मोला समझ आत नइ – चल दिन कहां पढ़ैया ।
उंकर साथ मंय मिलना चाहत – ज्ञात होय सच भैय्या ।।
नंदले फोरिस -“”जमों छात्र ला, रखे हठील अपन घर धांध
जइसे बिन मुंह के गरुवा ला, रखथंय गेंरवा मं कंस बांध.
यदि हठील तिर तंय हा जाबे, मढ़ देहय फोकट के दोष
कुछुच असम्भव नइ ओकर बर, काबर के चुनाव के रोष.”
“”बहना मं मुड़ डार चुके हंव, मूसर ला काबर डर जांव !
मंय हठील तिर निश्चय जाहंव, चाहे उहां होय अनियाव.
ओकर ले कुछ भय खाये बिन, सफा सफा मंय लुहू जुवाप –
विद्यार्थी ला बेंड़ रखे हस, काबर देवत हस संताप !”
अतका असन बोल पिनकू हा, ओहिले बल दिस गोड़ उसाल
जब हठील के घर तिर पहुंचिस, उहां के लेवत सुनगुन हाल.
जे हठील के मांई चमचा, तेन अंजोरी देखिस झांक
पिनकू ला ओहर देखिस तंह, फेंकत घृणा – सिकोड़त नाक.
गीस अंजोरी हा हठील तिर, कहिथय -“”मित्र, बात सुन मोर
जेकर मुंह ला अशुभ हे कहिथस, संउहत आय विरोधिल तोर.”
कथय हठील व्यंग्य भाषा मं – “”उत्तम खबर लाय हस आज
पिनकू बर हे बेंस हा खुल्ला, अंदर लाव मान के साथ.”
खुद हठील दरवाजा खोलिस, हंसत गीस पिनकू के तीर –
“”कोन मोर अस भाग्यवान हे, प्यासा पास आत खुद नीर !
परबहिरा अस कार खड़े हस, अंदर चल करबो हंस गोठ
कभूकाल रद्दा बिसरे हस, दुहूं खाय बर गांकर रोंठ.”
पिनकू थोरको ध्यान दीस नइ ओकर कपटी बोली ।
अंदर गीस बिगर भय चाहे मृत्यु मंगे बिन झोली ।।
जइसे गरी मं फँस के आथय, बिन अन्हो मीन सुएम
तइसे पिनकू पर दुख आवत, चांटी आथय धर के रेम.
उहां रिहिन हें छात्र बहुत झन, खावत पियत करत हें मौज
ओमन जब पिनकू ला देखिन, मुच मुच करत नचा के आंख.
पिनकू के अपमान करे बर, सोचत हे हठील हा खूब
व्यंग्य शब्द मं छात्र ला बोलिस -“”पिनकू झन अवहेलित होय.
बपुरा तुम्हर शरण मं गिर गिस, एकर करो खातरी – मान
एकर काम हवय तुम्हर तिर, स्वयं अभर के दर्शन देव.
खोजत हवय पेज पसिया धर, खुद के सुध बुध सब ला खोय
तुम अब कृपा करो ओकर पर, कर के घृणा भगव झन छेंव.
पिनकू डारत दोष मोर पर – तुमला मंय धांधे हंव बेंड़
पिनकू चहत स्वतंत्र कराना, चहत लेगना तुरूत खखेड़.”
विद्यार्थी मन थपड़ी पीटत, पिनकू के कंस हंसी उड़ात
मींधू किहिस -“”मित्र, तंय हा सुन, इहां आय हस धर के आस.
हमर पास मं हे जतका मत, लेना चहत अपन के ओर
याने तंय चुनाव जीते बर, मंगत हवस हम सब के वोट.
जइसे हठील हा खर्चा कर, हमला खूब खवात पियात
तइसे तंय हा खवा – पिया अउ, नगदी रूपिया के कर भेंट.”
हंसिस हठील -“”कहां दे सकिहय, पिनकू खुद मांई कंगाल
पर के मुंह ला जोहत रहिथय, अपन ला पालत मुश्किल बाद.
मंय जानत हंव साफ भेद ला, पिनकू काबर करत विरोध –
के हठील हा रूपिया गिनिहय, तंहने बइठ जहंव मनबोध.
पर मोला एकोकन भय नइ – पाहंव नइ चुनाव के पार
बहुत भरोसा जमों छात्र पर – गला डारिहंय विजय के हार.
अपन ला बेचे बर पिनकू हा, मोर द्वार मं हंफरत आय
उचित दान मर सोग देत हंव – कड़कड़ रूपिया गिन दस लाख.”
पिनकू कथय -“”मंहू समझत हंव तोर एल्हई के भाषा ।
अंदर भरे करुविष लेकिन ऊपर लगत बतासा ।।
तुम धनवन्ता धन के बल मं, हम गरीब ला नीच बनात
बइला जइसे मोल करत हव, पर पत लूट अनंद मनात.”
पिनकू के खिल्ली उड़ाय बर, कथय अंजोरी घुमा के आंख-
“”सुन हठील, तंय हा गिरात हस, भले मनुष्य के इज्जत साख.
पिनकू अस सैद्धान्तिक अउ नइ, जांच लेंव मंय जगत टटोल
भूल कुराह चलय नइ तब फिर, कहां ले बिकही नोट के मोल !”
पिनकू किहिस अंजोरी ला खब -“”सुरो झनिच तंय उल्टा दांव
तंय हठील के पक्ष ला लेवत, लेकिन करत हवस अन्याय.
हम तुम भिना फूट ते कारन, धनी लेत लाहो टिंग पांच
सुम्मत बंध विरोध जब करबो, इंकर निकलिहय शेखी कांच.”
अतका सुन हठील पगला गे, झोरत पिनकू ला बन शेर
बकथय -“”मोर साथ लड़थस तब, फल ला चीख तुरूत ए मेर.
समझउती ला फॉक देत हस, मोरे घर घुस मारत टेस
तोर प्राण ला लुहूं क्रूर बन, कुछ परिणाम फिकर नइ लेश.”
मरते दम हठील थूरत बंगी पढ़ गावत होरी ।
तिसने मं बचाय पिनकू ला कूदिस बीच अंजोरी ।।
किहिस अंजोरी हा हठील ला -“”व्यर्थ भिड़त माछी के साथ
एकर ले तोर सोर उड़य नइ, ऊपर ले गंधाहय हाथ.
तंय पिनकू संग झंझट करबे, तोर स्वयं के इज्जत नाश
तोला कोन हरान सकत अब, राई दुसर – हठील पहाड़.
यदि पिनकू ला कुछ हो जावत, होत चुनाव मं परिहय आड़
अभी छात्र मन तोर पक्ष मं, ओमन बिदक के होहींे दूर.
ओमन तोला हरा दिहीं भिड़, तोर जीत हा हो जहि हार
तंय हा पिनकू ले दुरिहा हट, अपन साख ला बना के राख.”
हठी हठील बहुत मुश्किल मं, पिनकू ऊपर दया देखैस
पिनकू ला चींगिर चांगर धर, घर के बार फेंकवा दीस.
पिनकू टेंग टेंग कर रेंगत, पत्रकार टैड़क संग भेंट
ओकर तिर हर भेद खोल दिस – कइसे होत रिहिस आखेट !
टैड़क किहिस -“”मंय जम्मों जानत – हवय हठील कतेक चण्डाल
कोनो ला घेपय नइ थोरको, कीरा परे हे ओकर चाल.
अपन लाभ – यश भर ला देखत – जबकि हवय मरखण्डा – क्रूर.
लेकिन मंय हठील अस नोहंव, मंय हा पत्रकार जागरुक
देवत हंव समाज ला एका, दीन हीन के करत सहाय.
सत्य खबर के करत सूचना, जन दुश्मन के खोलत पोल
यदि तंय मोर मदद ला चाहत – मोर साथ चल मोर निवास.
एक चिकित्सक बला के लाहंव, दवाई खवा के करिहय ठीक
तेकर बाद कहूं जा सकबे, फुरिया – गलत कहत ते नेक !”
“”एक व्यक्ति हा भूख मरत हे, ओकर तिर मं थारी अ‍ैस
ओमा सजे हे स्वादिल जेवन, भुखहा कहां ले सरका पैस !
तइसे तंहू दयालू हस जी, मोर मदद बर आगू आत
तोर बात ला कइसे मेटंव, मंय तैयार तोर संग जाय.”
पिनकू हा अतका अस बोलिस, तंहने टैड़क के घर अ‍ैस
ओहर अपन दिमाग मं सोचत – इही बचाहय जावत प्राण.
खटिया दसा सोवा पिनकू ला, टैड़क हेरिस मंदरस बोल
“”मंय जावत हंव लाय चिकित्सक, तोर स्वास्थय ला कर दे ठीक.
सेवा तोर बजाय भिड़े हंव मुंह झन लान उदासी ।
टंच खड़ा नइ होबे तलगस कहां ले खाहूं बासी ।।
टैड़क चल दिस लाय चिकित्सक, पिनकू उहां हवय बस एक
ओहर करत विचार अपन मन – हर इंसान एक नइ होंय.
सब के कुथा कुथा हे बूता, क्रूर हठील हा बिखहर नाग
कंस फुँफकार जहर ला उगलिस, जान हरे बर करिस प्रयास.
पर टैड़क हा बहुत दयालू, अमृत अस करथय उपकार
मोर प्राण के रक्षा खातिर, उदिम उचावत भोजन त्याग.”
पिनकू हा मन मन मं घोखत, पत्रकार टैड़क हा अ‍ैस
ओकर संग मं दू आरक्षक, लौह हथकड़ी उनकर हाथ.
आरक्षक मन पलक के झपकत, पिनकू के मरूवा धर लीन
कलमा पढ़िस एक आरक्षक -“”अरे चोर, तंय कर कुछ लाज !
तंय बजरंगा असन युवक हस, श्रम के लइक हवय तन तोर
पर टैड़क के घर घुसरे हस, ओकर जिनिस करे बर साफ.
कते मेर सब जिनिस रखे हस, मोर पास मं तुरते लान
यदि आज्ञा के करत उदेली, सोझिया देहूं थपरा मार ?”
दूसर कथय -“”मंहू जानत हंव – ए चोरहा के गलत सुभाव
चोरी करना एकर धंधा, जुन्ना अनुभव एकर पास.
सूनसान घर मं फट घुसथय, करत सेंधमारी ए ताक
टैड़क ला गैरहाजिर पाइस, चोरी बर फट ले घुस गीस.
देखव भला बहाना एकर – हमला देखिस घर मं आत
तंह खटिया पर सोगिस चटपट, हाय हाय कर बिपत बढ़ात.
पर आतंकी क्रूर अपराधी, गुण्डा अउ असमाजिक जीव
एमन कतको देत छटारा, आखिर हमर हाथ मं आत.
ए चोरहा हा करिस चलाकी, जान लेन हम नकली रूप
मछरी एतन – ओतन सल्टत, मगर जाल मं फंसथय बाद.”
पिनकू हा अचरज मं फंस गिस, कहां ले मुड़ पर बिपत पहाड़ !
कृषक ला बोना हवय धान ला, जोहत हे वर्षा के राह.
लेकिन वर्षा ऋतु हा ठग दिस, सीधा पहुंच गीस ऋतु जाड़
तइसे पिनकू धोखा खा गिस, दुख के वर्षा आपसरूप
बीते दुख ला ओरिया बोलिस -“”तुम्हर बात कर दीस अवाक
मंय हा अपराधी चोरहा नइ, वास्तव मं कालेज के छात्र.
यदि मंय हा कुछ कहत लबारी, टैड़क ला पूछव तुम साफ
मोला शरण दीस बपुरा हा, तब ओकर घर करत अराम.”
टैड़क टप फांकिस -“”रे लबरा, तोर मोर कब के पहिचान
चोरी करत मोर घर घुस अउ, मेटत हस मोर सच ईमान !”
प्रथम आरक्षक ललिया बोलिस -“”हम जानत हन चोर सुभाव
पकड़े बाद बनत हें सुधुवा, अउ ऊपर ले झड़थंय ताव.
रंगे हाथ तंय हाथ आय हस चल तंय पहिली थाना ।
कतका तर्क तोर तिर तेला उंहचे अमर बताना ।।
पिनकू हा टैड़क ला बोलिस -“”तंय समाज के धारन आस
तंय जनता मं लात चेतना, गलत काम ले मारत रोक.
पर खुद भटकेस गलत राह पर, कथनी कर्म अलग हे तोर
लाय चिकित्सक गेस दया मर, पर आरक्षक मन ला लाय.
मोला स्वस्थ कराय केहे तंय, पर अभियुक्त के लग गे दाग
पत्रकारिता तोर क्षेत्र हे, तेमां लग गे करिया दाग.
पर मोला अफसोस हे एकर – होय बहुत धोखा षड़यंत्र
दैनिक पत्र मं खबर हा छपतिस , लेकिन कहुंचो छप नइ पाय.”
टैड़क किहिस -“”जउन तंय सोचत, पूर्ण हो जाहय सबो विचार
तोर खबर हा निश्चय छपिहय, प्रथम पृष्ट पर अक्षर मोठ.
सुन्तापुर के एक युवक हा, जेहर लगत सरल ग्रामीण
ओहर हा अपराधी बन गिस, गलत जगत मं करिस प्रवेश.”
आरक्षक मन पिनकू ला धर, अपन साथ थाना मं लैन
दू असाढ़ दुब्बर बर होवत, मरते दम हलात छे हाल.
उहां उपस्थित रिहिस हे अगमा, जेहर महिला थानेदार
ओला आरक्षक हा बोलिस -“”मैडम, तंय सुन हमर गोहार.
पिनकू आय बड़े अपराधी, ओला हम हा पकड़ के लाय
टैड़क के घर घुसे रिहिस हे, ताकि चोराय कीमती चीज”
अगमा हा पिनकू पर बफलिस -“”मानव ला चहिये धन अर्थ
ओला पाय करय कंस मिहनत, गलत राह ले कभु झन पाय.
पत्रकार हा अलख जगाथय, ओला तंय हा देतेस लाभ
पर ओकर घर डाका डारत, आखिर कार करत अपराध ?”
पिनकू अपन पक्ष ला रखथय -“”मैडम, सुनव कलपना मोर
मंय कालेज के विद्यार्थी अंव, छात्र संघ के लड़त चुनाव.
रच षड़यंत्र फंसावत मोला, मंय बलि के बोकरा निर्दाेष
करो भरोसा मोर काम पर, मोला झप कर देव अजाद.”
अगमा बोलिस -“”चालबाज हस, भितर लुकात स्वयं के दोष
तोर विरोधी हार जाय कहि, ओकर मुड़ डारत सब दोष.
मंय हा अंव कानून के रक्षक, तोला कर नइ सकंव स्वतंत्र
हवालात मं लेग के धांधत, अपन कर्म के फल ला भोग.”
पिनकू हवालात मं चल दिस, थोरिक मं मीधू हा अ‍ैस
अपन साथ मं लाय चंदाही, ओमां हे जेवन स्वादिष्ट.
मींधू कथय -“”लाय हंव जेवन, मीठ कलेवा ऊंच पदार्थ
जमो फिकर ला तंय हा टरिया, पहिली सक भर जेवन झोर.
दुख – सागर मं बुड़े हठिल हा, लेवत हवय तोर बस नाम –
पिनकू काबर धरिस कुरद्दा – काबर चहिस होय बदनाम !
तोर खाय जेवन लाने हंव, ओला भेजिस मित्र हठील
यदि आग्रह ला लतिया देबे, तब हठील पाहय दुख दून.”
पिनकू कथय -“”मोर भाई अस, तोर ओसला मोर समान
पर हठील ला देत पलोंदी, ओकर कोतल तक बन गेस.
तंय हठील के यश फइलावत, लेकिन मोर बात रख याद
पाछू चल के धोखा खाबे, बोम पार के परिहय रोय.
मंय अनाज ला नइ दुर्रावंव, सुत उठ परथंव ओकर पांव
मंय हा गांव के रहवइया अंव, जानत उहां के वाजिब हाल.
कृषक श्रमिक मन मरत कमाथंय, तेकर बाद अन्न उपजात
तब अनाज के इज्जत होवय, एकर कृपा ले बचथय प्राण.
तंय हा जेवन अभी लाय हस – लपटे हे छल – कपट के खून
मोला निश्चय धोखा मिलिहय, तब ए जेवन ला नइ नांव ”
पिनकू के बोली ला सुनथंय, होगिन दंग उहां के लोग
वाकई काय बात ए कहि के, थारी जांचत खोल के नैन.
मींधू हा पिनकू पर झपटिस -“”तंय हस चलवन्ता इन्सान
तोला धरे भूत बयरासू, तब तो बोलत ऐन बैन.
काबर बोलत झूठ कहां जेवन मं रकत ललामी ।
वास्तव मं तंय करना चाहत हठील के बदनामी ।।
पिनकू कथय -“”जउन बोले हंव, ओहर सत्य असन सच गोठ
मोर बात ला साफ समझ तंय, कान के कनघौवा ला हेर.
पर के श्रम के हक ला खाथय, ओहर लहू पियइया जोंख
खुद उठाय बर पर ला पाटत, हे चलाक पर सच मं धूर्त.
हे हठील हा अवगुण के घर, पर के खून कमई ला खात
ओकर जेवन ला यदि खाहंव, दीन आह चढ़िहय मुड़ मोर.
अगर हठील खवाये चाहत, कर मिहनत चुहाय श्रम बूंद
निरपराध ला झन फंसाय कभु, पर ला करय झनिच गुमराह.
विजय पाय बर ओहर सोचत, पकड़य तुरूत सत्य के मार्ग
तब ओकर जेवन ला खाहंव, काबर के अनाज निष्पाप.”
“”कंगला काबर गरब देखावत, तोर भरे हे ओंटइट पेट
पर अनाज ला फेंकन कइसे, हम्मन भिड़ के देत चहेट.”
अतका कहि आरक्षक मन हंस, भोजन बांट उड़ात गफेल
अउ पिनकू ला टुहू देखावत, बपुरा ला सड़ात कर एल.
तभे हठील हा उहंचे आथय, मींधू हा कई चुगली खैस –
“”भेजे रेहेस तंय जउने जेवन, ओला पिनकू हा नइ खैस.
उल्टा ओकर करिस हइन्ता – जेवन मं सनाय हे खून
तब मंय ओला कइसे खावंव, लहुटा देव हठील के पास !”
लानिस मुंह ऊपर नकली दुख, कथय हठील केंघर के खूब –
“”पिनकू हा जेवन झन खावय, जमों दोष डारय सिर मोर.
रखत सहानुभूति ओकर पर, हम दूनों सहपाठी आन
साथ साथ हम हलत चलत हन, ओकर दुख हा ए दुख मोर.”
पिनकू ला हठील हा कहिथय -“”मित्र, उचाय आज का काम
सिरिफ तोर नइ होत हइन्ता, तोर साथ हम तक बदनाम.
कोकड़ा के सफेद झक पांखी, दिखत उपर ले साधु समान
लेकिन भितरंउधी मन करिया, टप लेवत मछरी के प्राण.
तइसे तंय हा सुघुवा लगथस, तोर आचरण पर वि·ाास
पर धोखा दे हस ते कारण, जमों छात्र मन होय हताश.
यदि रूपिया के अतिआवश्यक, मोर पास रखते तंय मांग
मंय करतेंव मदद हरहिन्छा, बता भला कभु जुच्छा गेस !”
करत दया के वर्षा मानों हठील हा परमार्थी ।
हाय हाय अउ शर्म शर्म कहि थूंकत सब विद्यार्थी ।।
पिनकू कथय – “”हाथ जोड़त हंव, तंय झन भुरक घाव में नून
चक्रव्यूह रच खुद धंसाय अउ, दउड़े हस जराय बर खून.”
किहिस हठील -“”पियत हंव मानी, मित्र समझ मंय आय छोड़ाय
पर तंय उल्टा बिफड़त तब रहि, दानव किला सदैव धंधाय.”
– “”मंय भर नइ अउ कतको साथी, सत बर भोगत कारावास
जगलस ले उद्देश्य पूर्ति नइ, अपन राह पर चलिहय पांव.”
– “”सोचत तेन कठिन तेकर ले, किला ला बनवा अउ सुदृढ़
पहरादार ला लगा पलोंदी, छकते तक झड़ बोबरा – खीर.”
“”हम नइ – मगर हमर कुछ साथी, किलादार ला देवत साथ
फुलगी चढ़ दीपक बारत तब, जेन बसुन्दरा तेन अनाथ.
लेकिन तंय धोखा मं झन रहि, किला भर्र गिरिहय मुंह फार
पहरेदार हा चपका मरिहय, तब सब पाहंय अन्न के थार.”
जब हठील के ज्वाप सिरागे, थाना के बाहिर मं अ‍ैस
उहां अंजोरी – पौना हाजिर, उंकर साथ कई छात्रा – छात्र.
पाय हठील हा सुघ्घर अवसर, ओहर किहिस छात्र तन देख-
“”तुम परखव पिनकू के करनी, ओकर चाल गलत के नेक !
मितवा समझ समोखे आएंव, पर बरनिया आंख ललियात
खोटहा काम करिस खुद लेकिन, हमर मुड़ी पर डारत दोष.
दिखथय – व्यर्थ चुनाव लड़ई – जब बिन कारण बरबादी।
मुखिया दुसर बनाव – तुम्हर ले लेना चहत सलामी ।।
अब हठील हा थथमराय अस, ओहर दिखत दुखी मायूस
ओमा फिर उत्साह भरे बर, आगू रखिन नवा प्रस्ताव.
किहिस अंजोरी -“”सच मं बदरा, तेन धान हा दिखब मं ठोस
विद्युत तार चमक मन मोहत, लेत जीव ला खुद आगोश.
तइसे पिनकू छद्य आदमी, ओकर ले समाप्त वि·ाास
समय – पूर्व सब चरित्र फरिहर, होन पैस नइ भावी नाश.”
पौना घलो दबाथय पाती -“”सुन हठील, तंय हमर विचार
तोला – पिनकू ला तउले हन, होगिस पता कोन हे नेक !
तंय एकोकन संसो झन मर, मन आगर कर जीत चुनाव
खावत कमस – बनाबो विजयी, उसलय नइ अंगद के पांव.”
दीन छात्र मन हा हठील ला, आ·ाासन हिम्मत प्रण ठान
थुवा – थुवा करथंय पिनकू ला, ओकर मेट दिन पत – मान.
विद्यार्थी मन संग हठील हा, ओ तिर ले लहुटिन तत्काल
जब उद्देश्य हा पूरा हो गिस, काबर करंय समय बर्बाद !
पिनकू हा निर्दाेष सत्य अस, लेकिन कोन करत वि·ाास
आरक्षक मन हा बेली भर, लेग बेड़ दिन कारावास.
पिनकू हा निरघा कर जांचत – चौमुन्दा मजबूत हे जेल
बाहिर भगना कठिन हे जइसे – दीन, धनी ले हारत खेल.
एला देख उहां के कैदी मन ला आगे हांसी ।
चलव एक अउ संगी आगे चढ़े हमर संग फांसी ।।
द्वासू कथय -“”तंहू जानत हस – होथय कई प्रकार अपराध
हत्या डाका बलवा चोरी, मारपीट धोखा अउ लूट.
ऊपर मं मंय नाम टिपे हंव, तंय हा करेस कते अपराध
अपन अपन हन – इहां दुसर नइ, रख जुवाप बिन भय निर्बाध ?”
पिनकू किहिस -“”कहां डर मोला, ककरो घर लगाय नइ सेंध
लेकिन एकर फिकर बियावत, कारागृह धंधाय बिन दोष.”
बंदी बेदुल खलखला हंसिस -“”वाकई तंय बुद्धू इंसान
पहिली बखत इहां पहुंचे हस, तभे फिकर कर देवत जान.
कान खोल सुन हमर कहानी – जेल ले हमला नंगत प्यार
एक गोड़ हा जेल मं रहिथय, दूसर गोड़ हा बाहिर पार.
हमर मकान – ठौर नइ दूसर, कारागृह हा ए ससुराल
इहां कर्मचारी तेमन हा, लगथंय जस – सग रिश्तेदार.
यदि बंदी मन इहां नइ आहंय, इंकर जीविका खत्म बलात
तब मर सोग इहां हम आवत, ककरो पेट परय झन लात.”
बुल्खू लड़त श्रमिक के हित बर, देत हीन दुर्बल ला साथ
उहू धंधाय हवय कारागृह, पर के कारण भोगत जेल .
बुल्खू हा सब ला सम्बोधिस – “” पर के मदद करत हे जेन
जे शोषण विरुद्ध निर्दाेषी, निरपराध मन इहें धंधात.
शोषक अत्याचारी घालुक, जेकर ले दुख पात समाज
छेल्ला किंजरत पात प्रतिष्ठा, दुनिया भर के भोगत राज.
चाहत कोन बनंव अपराधी – कोन निबुद्धि चहय नइ शांति
पर समाज के रूप हा बिगड़त, तब बदले बर करथंय क्रांति.”
जेवन नाय बुलउवा होइस, बंदी मन कतार बंध गीन
जउन जिनिस ला पशु नइ सूंघय, तइसन चीज खाय बर पैन.
बंदी मन मुंह मं नइ बोलिन, निंदा करिन इशारा मार
उहां रिहिन कई झन आरक्षक, उंकरे भय हा चुप रख दीस.
बंदी मन हा का कर सकथें – इगिल चिगिल कर भोजन लीन
एकर बाद लहुट गिन बैरक, उहां चलत हे उंकर जबान.
बेदुल किहिस -“”खाय हव तुम अभि, खूब हिनत हव ओकर स्वाद
पर शासन हा पेट ला भर दिस, ओकर कृपा के कर लव याद !
जेवन रिहिस मोर बर अमृत, कुछ तो मिलगे जीव बचाय
यदि मंय कारागृह ले बाहिर, काम अन्न बिन जातिस प्राण.”
बुल्खू हा बेदुल ला बोलिस -“”मंय समझत हंव भाषा व्यंग्य
शासन पर कटाक्ष मारत हस – ताकि व्यवस्था आय सुधार.
तंय हा क्रांतिकारी अस लगथस, फुरिया भला अपन उद्देश्य
जनता ला सुख शांति पाय कहि, कोन किसम के उदिम उठात ?”
बेदुल उग्र रूप धर कहिथय -“”मंय जनता के सेवक आंव
हिनहर असक के मदद ला करथंव, तभे मोर मन पाथय शांति.
शोषक अत्याचारी मन ला, मानत नाग सांप अस शत्रु
धर्म नाम मं जउन हा लूटत, ओला यम बन देथंव दण्ड.
याने शोषण खत्म करे बर, मंय धर सकत क्रूर अस राह
हिंसा मारपीट तगड़ा कर, देश शत्रु के टोरत रीढ़.”
बुल्खू किहिस -“”मंय स्वीकारत हंव, बिल्कुल ठीक तोर सिद्धांत
हिनहर – दीन ला देत पलोंदी, देशभक्त अस रत कर्तव्य.
पर शोषण ले टक्कर लेथस, तेकर राह भरे हे खून
हिंसा मात्र क्रूरता बांटत, एकर ले नइ सही सुधार.
शासन से संघर्ष करत यदि, चहत व्यवस्था मं बदलाव
बुद्धि कर्म संगठन शक्ति पर, गलत नीति से टक्कर लेव.”
बेदुल फांकिस -“”रहत सुरक्षित, सब खतरा ले जन के शत्रु
पूंजी पद कानून उंकर तिर, सब तन ले सक्षम बलवान.
नीति साथ यदि टक्कर लेवत, अरि के जीत सुनिश्चित होत
तब हम हिंसा के पथ धरथन, एकर सिवा राह नइ और.”
“”लात के देव बात नइ मानय, लोहा ले लोहा कट जात
ऊपर के सिद्धान्त भी हमला, झगरा हिंसा तन बंहकैस.
वरना शोषक साथ लड़े बर, खोज सकत अउ अन्य उपाय
मुड़ी दरद पर परय न पथरा, चुपरे जाथय ठंडक तेल.”
बुल्खू मीठ उल्थना देवत, पर बेदुल ला करुजनात
मित्र नराज झनिच होवय, कहि, बुल्खू करथय बहस समाप्त.
जहां रात हा आथय तंहने सब तन करिया कारी ।
किंजरे बर नइ जान सकत काबर के पहरा भारी ।।
सोय बखत बंदी मन सोइन, पर दसना के घलो अभाव
काकर करा अपन दुख रोवंय, कोन उबारय इनकर नाव !
अउ मन नाक बजावत घड़ घड़, मगर जगत पिनकू के आंख
अटपट बात बहुत मन सोचत, इसने मं अधरतिया राख.
घोण्डू प्रहरी देवत पहरा, जेन हा हावय अंड़ के ठाड़
लोहा के कपाट हे बड़जक, उही बीच मं आवत आड़.
पिनकू हा कपाट के तिर गिस, घोण्डू ले कर दीस सवाल-
“”एक प्रश्न के उत्तर मांगत, झन हो जबे भड़क के लाल.
जब मनसे पर चिंता आथय, ओकर नींद भगाथय दूर
ककरो साथ करय नइ चर्चा, ओहर करत स्वयं से बात.
तंहू ला टकटकी लागे हावय , सोचत हस पर बंद जबान
आखिर तोला चिंता काकर, काय दबाव हवय मुड़ तोर ?”
घोण्डू गुर्राइस बघवा अस -“”अपन पेट भर दोंह दोंह खाय
सब तन ले निश्चिन्त सुखी हंव, मोला एकोकन नइ फिक्र.
सब बंदी मन नाक बजावत, तंहू हा चुप सुत मिटका आंख
मोर कान ला बिल्कुल झन खा, मोला करन दे खुद के काम.”
“”वास्तव बात बतावत हंव अब, मंय हा रखत प्रश्न गंभीर
एकर उत्तर लान सामने, तंहने मंय सुतिहंव चुपचाप –
हम्मन अन जघन्य अपराधी – धोखाबाज, क्रूर बदनाम
तब बेंड़ाय हम कारागृह मं, अधम कर्म के फल ला पात.
पर तंय का अपराध करे हस, ठाड़ खड़ा रहि जागत आंख
आखिर कोन सजा देवत हे, तोला कोन रखे हे धांध ?”
प्रहरी हा खखुवा के बोलिस -“”हम हा अपराधी नइ आन
हमला कोन सजा दे सकिहय, हमला कोन सकत हे धांध !
तुम्मन इहां ले झन भग जावव, तुम्हर रखे बर हम तैनात
इहिच हमर कर्तव्य आय सुन, हम कर्तव्य ला करथन पूर्ण.”
“”कहि असत्य पर लाभ ले वंचित, तंय नइ आस हमर रखवार
तंय करिया कानून के रक्षक, कुकुर असन पोंसे सरकार.
तभे जेन शासन तिर जाथय वाजिब हक ला मांगे ।
तेला तुम भूंकत कुदात हव कोकने चाबे पांगे ।।
घोण्डू हांव हांव कंस करथय, पिनकू पर हो गीस नराज
झोरे बर आगू तन बढ़थय, पर ओकर सब यत्न बेकार.
लगे हवय लोहा दरवाजा, तेहर बीच मं परगे आड़
धोण्डू हा हड़बड़ा के रहिगे, पिनकू पास पहुंच नइ पैस.
पिनकू पीछू डहर सरक गिस, इसने मं कटगे कुछ टेम
प्रहरी हा पिनकू ला बलाथय, ओतका बखत बहुत गंभीर.
बोलिस -“”तंय हा उत्तर मांगत, तब मंय देवत साफ जवाब –
वास्तव मं तंय नइ अपराधी, मंय नइ करेंव कभुच अपराध.
जग मं हवय एक अपराधी – ओकर नाम हे पापी पेट
ओला पाले बर हम मानत, शासन के हर एक आदेश.
अच्छा बुरा – निघरघट साऊ, आथंय इहां जउन इंसान
ओकर गुण अवगुण नइ देखन, कर के बंद राखथन मात्र.
एकर बल्दा पाथन रुपिया, ओकर एवज बिसात अनाज
खा के अन्न पेट ला भरथन, तब बच जाथय तन के प्राण.
पापी पेट अगर नइ होतिस, रहि के खड़ा जागतेन कार !
होथय रात अराम करे बर, हमूं हा लेतेन गहगट नींद.”
घोण्डू लम्हा सांस खींचथय, फेर करत पहरा के काम
पिनकू हा खुस खुस मुसकाथय, एकर बाद सोय बर गीस.
पिनकू हा मिटका के ढलगिस, जाने बिगर लगिस चप नींद
नींद करत उपकार सबो पर, कृपा ला कर मारय नइ डींग.
रात के शासन हे सब मुंहड़ा, घुघुवा रहि रहि देत अवाज
सच मं लात खात पिनकू हा, पर सपना मं भोगत राज.
जीते हे चुनाव अलखेली, मन प्रसन्न मुसकावत ओंठ
नव अध्यक्ष बने ते कारण, गरब मं मुड़ हा ऊपर जात.
लड़का लड़की मन प्रसन्न हें, पिनकू गला मं डारिन हार
पिचरिंग कूद नाच के गावत, एक दुसर पर चुपर गुलाल.
पिनकू ला नइ तजत छात्र मन, आंवर भांवर किंजरत झार
जइसे दंवरी के बइला मन, घूमत असलग लग मेड़वार.
थोरिक दुरिहा मं हठील हा, चुप ठाढ़े मुड़ गड़ा – हताश
अब तक लहुट के जातिस तिसने, पिनकू पहुंचगे ओकर पास.
कहिथय -“”का होगे मंय विजयी, चलिहंव मगर तोर बुध मान
कभू नमूसी तोर होय नइ, गिरन देंव नइ तोर जबान.”
किहिस हठील क्रोध ला उगलत -“”तंय हस कपटी धोखाबाज
मोर पक्ष मं रिहिन छात्र मन, पियत सबो झन मानी तोर.
घाव बनाय हवस घायल कर, अब मलहम चुपरे बर आय
तोर जरूरत नइये मोला, मोर आंख ले भग जा दूर.”
भड़क हठील हा हटथे दुरिहा, पर पिनकू हा ढाढस देत
ओकर बंहा ला हांसत झींकिस, ताकि निकल जावय हठील.
सपना मं हठील ला तीरत पर सच दुसर कहानी ।
बेदुल तिर मं सोवत तेकर कर दिस नींद के हानी ।।
बेदुल हा रकमका के उठगे, बोमफार सक भर चिल्लैस-
“”दउड़व दउड़व जीव बच दव, मोला कोन हा कबिया लीस !”
कैदी मन भी झझक के उठगें, द्वासू हा रख दीस सवाल-
“”कइसे पिनकू, काय बात ए – बेदुल ला झींके हस कार ?”
पिनकू हा चुरमुरा के कहिथय -“”अपन भूल मंय काय बतांव –
मंय हा हाथ मं सोना रखथंव – लेकिन सच मं ढेला गोल.
सपना मं चुनाव जीते हंव, अउ हठील हा खा गिस हार
पर सच ला तुम टकटक जानत – मंय भोगत हंव दुख के जेल.”
बंदी मन बिखेद ला जानिन, बुल्खू किहिस धैर्य के साथ –
“”वाकई हम अंधियार के वासी, दुरिहा भगथय सुबह – प्रकाश.
पेट भरत मन के लडुवा मं, स्वप्न मं लेवत सुख के सांस
आवत हाथ गुलाब के कांटा, पर तिर जाथय फूल गुलाब.”
बंदी मन फिर नींद मं सुत गिन, जागत हे पिनकू के आंख
बारा तन के फिकर बियापत, इसने कटत हवय दिन – रात.
होगिस खतम चुनाव के झगरा, अउ हठील विजयी मैदान
तब पिनकू ला मिलिस अजादी, झुक्खा फसल मं बरसा तान.
बन्दी मन ला नमस्कार कर, कारागृह ले हटिस बेहाल
“जांव महाविद्यालय के नइ ! सोच – चलत केकरा अस चाल.
तभे एक ठक घटना घट गिस – ओतिर रिहिस सुंदरिया भैंस
ओहर रेंगत रिहिस सड़क पर, इही बीच एक ट्रक हा अ‍ैस.
ओहर भैंस ला टक्कर मारिस, गिरिस सुंदरिया भैंस दनाक
ओकर तन ले लहू बोहावत, चोट आय तब बन गे घाव.
पिनकू हा ए दृश्य ला देखिस, ओकर हृदय मं भर गिस पीर
दीस बरदिहा मंगतू शिक्षा, फट ले आ गिस ओकर याद –
यदि असहाय या घायल पशुधन, आवारा अस भटकत पास
ओकर सेवा जतन तंय करबे, ओकरेच कमई रखे हे जान.,
मनखे मन हा आवत जावत, उंकर ले पिनकू मंगिस सहाय –
“”भाई बहिनी, मोर ला सुन लव – एक भैंस ला पर गे चोट.
एहर दरद मं बहुते केंघरत, एला उठा खड़ा कर देव
सेवा जतन होय आवश्यक, मोला कोई मदद तो देव.”
पिनकू अड़बड़ करत केलवली, पर प्रार्थना जात हे व्यर्थ
तभे उहां पर चुनू हा आथय, जेहर दिखिस सरल इंसान.
चुनू कथय -“”काबर चिल्लाथस, कते व्यक्ति के करत पुकार
आय तोर पर काय कष्ट दुख, उत्तर ला तंय रख विस्तार ?”
पिनकू बोलिस -“”देख भैंस ला, एकर हालत मरे के लैक
मंय जनता से मदद मंगत हंव, पर सब देवत हें दुत्कार.”
“”भइया, तंय हा स्वयं बता भइ – ककरो मदद करय इहां कोन
हर दिन मरत जानवर मनसे, टक्कर दुर्घटना हर रोज.
मनसे मन दुर्घटना देखत फेर बढ़त हें आगू ।
खुद के काम के चिंता हे तब कहां ले करहीं सेवा ।।
तभे चुनू हा उभे ला देखिस, ओला किहिस मार आवाज –
“”देख तो थोरिक ए भैंसी ला – एहर आय सुंदरिया तोर.
दुर्घटना मं होय हे घायल, एला अपन साथ झप लेग
बपरी के जीवन रक्षा बर, तुरूत करा दे दवई इलाज.”
उभे हा दूनोंे हाथ ला जोड़िस – “”भाई, मोला कर दे माफ
ए सुंदरिया फुरिस नइ मोला, मंय हा सहेंव गंज नुकसान.
मंय बारा हजार खर्चा कर, ए भैंसी ला लाय खरीद
पर एकर गोरस बेचे हंव – अधिक से अधिके सात हजार.
पांच हजार लगे हे घाटा ऊपर ले तंय देत दबाव –
करो सुंदरिया के सेवा अउ, ओकर करो उचित उपचार.
लेकिन तुम्हर बात नइ मानंव – अगर भैंस पर करिहंव खर्च
परलोदसा मोर हो जाहय, सबो धनदोंगानी हा नाश.
मंय दूकान एक खोले हंव, यदि ओकर पर देहंव ध्यान
दुनों ज्वार भोजन हा मिलिहय, ऊपर ले बचिहय अउ नोट.”
उभे उहां ले झपकुन खपकिस, मरत भैंस ला ओतिर छोड़
चुनू जोहारत हे पिनकू ला -“”अपन आंख मं हालत देख –
इहां खवाथंय मनसे मन हा, ताकि लाभ मं रुपिया आय
सेवा ला करथंय ए कारण, आवय “मानपत्र’ हा हाथ.
जलगस भैंस दूध ला देइस, उभे हा ओकर गुण ला गैस
ओकर नाम सुंदरिया रख दिस, दीस खाय बर दाना – भूंस.
मगर दूध के देवई बंद तंह, खेद दीस भंइसी ला मार
ओकर प्राण सड़क पर छूटत, पर थोरको नइ दया न आह.”
पिनकू खुद थथमरा के कहिथय -“”अपन हाल मंय काय बतांव –
सेवा करे बढ़े हंव आगू, दया करेंव भैंस पर खूब.
लेकिन सब हा व्यर्थ बोहा गिस, अब का करंव उमझ नइ आत
बचे सुंदरिया के जीवन हा, फुरिया तिंहिच नेक अस राह ?”
कहिंथय चुनू -“”एक ठन संस्था – हे “गौ सेवा सदन’ सुनाम
जे दुर्घटनाग्रस्त बिमरहा, बिगर पुछन्ता अति लाचार.
याने सब असहाय जानवर, उंहचे रहत सुरक्षा साथ
संस्था सेवा जतन ला करथय, एकर साथ उचित उपचार.
तंय ए भैंस ला उंहचे पहुंचा, तब पा सब झंझट ले मुक्ति
एकर बर मंय मदद दे सकहूं, तोर बोझ हा हल्का होय.”
पिनकू हा उत्साहित होथय -“”मंय हा पहिली होय निराश
ककरो ऊपर दया दिखाना, ओहर लगिस मुरूख के काम.
तोर आसरा के लउठी धर, बढ़ गिस दून मोर उत्साह
धान के पौधा अब तब मरतिस, तंय जल छींच हरा कर देस.
चल संस्था मं दुनों चलन हम, उहां भैंस ला पहुंचा देन
बपरी के इलाज हा होवय, बन के स्वस्थ जियय कुछ और.”
दूनों झन तनिया के आखिर उठा दीन भैंसी ला ।
एमन आगू तन सरकिन संस्था मं मिलिस ठिकाना ।।
उहां बेवारस घायल पशु हें, गदहा घोड़ा छेरी गाय
ककरो उंकर टांग हा टूटे, ककरोे पेट बड़े जक घाव.
एमन उंकर कष्ट ला देखिन, इंकर हृदय ले चलिस कराह
तभे उहां सुंखमा हा अभरिस, जे संस्था के कर्ता आय.
सुखमा हा अब चुनू ला पूछिस -“”तंय हा इहां आय हस कार
यदि संस्था मं तोर काम कुछ, मोर पास तंय फुरिया साफ ?”
चुनू हा सुंदरिया ला देखिस, कहिथय -“”ए निरीह ला देख
एहर दुर्घटना मं घायल, दरद के कारण तलफत खूब.
बहुत परोपकारी तोर संस्था, होय भैंस के इंहे इलाज
हमर कलपना ला तंय सुनबे, इही सोच हम एला लाय.”
सुखमा हा स्वीकार लीस फट -“”हमला तुम्हर बात स्वीकार
ए पशु ला तुम इहंचे छोड़व, ओकर हम करबो उपचार.
बपरी सुधर ठाड़ हो जाहय, एकर उम्र हा बढ़ही और
एला मिलिहय नवा जिन्दगी, हम पाबो मन मं संतोष.”
उहें के कमैया नीयत ला, सुखमा हा बलैस भर हांक-
“”अपन साथ ए भैंस ला लेगव, एकर करा उचित उपचार.”
नीयत हा भैंसी ला लेगिस, पिनकू के उतरिस सब बोझ
ओहर सुखमा के जस गावत -“”तंय हस नेक दया के खान.
असक बेसहारा रोगी पशु, एमन ला खेदत सब मार
पर तंय तन मन धन ला खरचत, तंय हस धन्यवाद के पात्र.”
सुखमा हा खलखला के हांसिस -“”मंय हा खोल कहत सब भेद
यदि आधच बिखेद ओरियाहंव, तंय हा वास्तव समझ ले दूर.
कोई मनसे क्रूर होय नइ – मंय नइ आंव दयालू जीव
पहिली मंहू हा इसने सोचंव, पर ला कहंव निर्दयी क्रूर.
पशु के बदतर हालत देखंव, मंय हो जांव द्रवित अंधेर
मगर बाद मं सत्य ज्ञात तंह, मोर जमों भ्रम हा मिट गीस –
“मनसे मन तिर समय के कमती, पर ला देखंय कतका टेम
उंकर पास मं बहुत समस्या, उही ला सुलझावत दिन रात.
शहर के मनसे तिर घर नइये, नभ के नीचे करत निवास
तब पशु मन ला कतिंहा राखंय, पर उपकार कठिन हे काम.’
पशु के होवय ठीक सुरक्षा, एकर बर हम करेन उपाय
बना लेन एक संस्था जुरमिल, बनिन सदस्य मनुष्य उदार.
संस्था ला सुचारुलेगे बर, आर्थिक मदद करे हन मांग
एको अदमी नइ दुत्कारिन, हरहिन्छा कर दिन सहयोग.
“मंगलिन मिल’ के प्रमुख हे मंगलिन-ओहर दान मं दीस जमीन
भवन बनाये के जरूरत मं, दीस मुख्यमंत्री अनुदान.
हवंय श्रमिक खलकट अउ भाना, करिन उहू मन आर्थिक भेंट
इसने सब सहयोग ला करदिन, तब संस्था हा चलत हे ठीक.”
पिनकू – चुनू निकालिन रूपिया, ओला सुखमा ला दे दीन
पिनकू कथय -“”बहुत ठन संस्था – मानव हित मं जोंगत काम.
पर पशु मन के जतन करे बर, तुम्मन करत यत्न भरपूर
तुमला धन्यवाद एकर बर, तुम हव सराहना के पात्र.
हमर डहर ले राशि देत हन, ओला तुम कर लव स्वीकार
पशु निरीह के देखभाल बर, हमर हवय अतकिच सहयोग.”
सुखमा प्राप्ति रसीद काट दिस, पिनकू चुनू के असगल दीस
उनकर सब उद्देश्य पूर्ति तंह, उहां ले रेंगिन आगू कोत.
पिनकू गीस महाविद्यालय, देखत हवय उहां के हाल –
सब चुनाव ला हठील जीते, बनगे छात्रसंघ अध्यक्ष.
जमों छात्र – छात्रा उत्साहित, खुशी मं भर आनंद मनात
रंग गुलाल सबो के तन पर, नाचत गावत लगा अवाज.
तभे अंजोरी के आंखी हा, झझक गीस पिनकू ला देख
किहिस अंजोरी हा हठील ला -“”आवत हवय तोर पर क्रोध.
जीते हस तब करत घमंड – बिना अंकुश के हाथी ।
आंखी खोल देख तो पहुंचे इहां तोर प्रिय साथी ।।
जेहर तोला विजय देवाइस, तउन मित्र ला तंय बिसरेस
हार ला पहिरा के स्वागत कर, काम करे बर मंग उपदेश.”
करत अंजोरी रिस हठील पर – अउ पिनकू के लेवत पक्ष
मगर व्यंग्य के छुरी मं मारत, ताकि परय पिनकू पर घाव.
पौना हा हठील ला बोलिस -“”कहत अंजोरी बिल्कुल ठीक
तंय कृतध्न अस बुता जोंग झन, पिनकू के मानो उपकार.”
गीस हठील तुरूत पिनकू तिर, कहिथय -“”होय मोर ले भूल
एकर बर मंय क्षमा मंगत हंव, करबे क्षमा हवय वि·ाास.
तोर कृपा – निश्छल उदारता, मोला विजय देवा दिस आज
तोर याद कई बार करे हंव, मंय हा करत तोर सम्मान.”
अपन गला के हार ला हेरिस, पिनकू के टोंटा दिस डार
मिठई जबरवाली मुंह नावत, कबिया उठा करत जयकार.
पिनकू हा हठील ला बोलिस -“”तंय हा मोर करत हस मान
या फिर एहर मात्र दिखावा – मंय नइ जानंव एकर भेद.
पर मंय अतका कहना चाहत – हानि होत तब दुख अउ फिक्र
नफा होत तब मन खुश होथय, काम करे बर बढ़थय जोश.
अपन हार मं पाय निराशा, तोर विजय पर ईष्र्या होय
पर चुनाव ला जीते हस तब, गरब मं झन जाबे तंय भूल.
एकर ले सब काम बिगड़थय, गलत दिशा मं चलथय गोड़
मनसे जहां सफलता पाथय, ओहर हा होथय गुमराह.
तंय कालेज के चाहत उन्नति, एकर बर तंय मंगत सलाह
तब मंय हा अतकिच बोलत हंव, रखबे अपन हृदय मं धांध –
इहां छात्र – छात्रा हें जतका, छोटे भाई बहन तुम्हार
उंकर भविष्य सुरक्षित रखबे, गलत काम ले रखबे दूर.”
मींदू हा हठील ला टोंकिस -“”तंय सुन लेस बहुत उपदेश
अब ले गलत काम झन करबे, रहिबे साधू संत समान.
हम पर कभू बिपत हा छाहित, तब तंय आगू आबे धांय
अपन प्राण के बलि ला देबे, हमर कष्ट ला करबे दूर.”
विद्दार्थी मन ताना मारत, एल्हत खेलत थपड़ी पीट
पिनकू चुप रहि जगा ला छोड़त, अउ काबर बिलमय बन ढीठ !
बइसाखू व्याख्याता तिर गिस, मुंह उतरे अस हे गंभीर
बइसाखू हा ओला देखिस, पिनकू ला बोलिस कुछ हांस-
“”नेपोलियन अपन मन सोचिस, करंव आल्प्स पर्वत ला पार
पहिली ओहर नहक सकिस नइ, पर अंतत& सफल हो गीस.
जग मं कतको काम बड़े जक, होत पूर्ण श्रम धैर्य के बाद
पर चुनाव हारेस ततकिच मं, मरे के लाइक दिखत उदास.
नान्हे पोटा के मनसे अस, अगर तोर हिम्मत कमजोर
तरी नाक कर बइठ जा कोन्टा, ककरो साथ लगा झन जोर.
देख-तोर कारण हठील हा, करत मोर पर अड़बड़ जिद्द
लोफड़ छात्र ला धर के लानिस, कलमा पढ़त करिस खिरखींद.
बोलिस-मंय तोला जानत हंव, पिनकू तन हे तोर झुकाव
सोचत हस-कंगला हा जीतय, अउ हठील हार जाय चुनाव.
पिनकू के तंय लेत संरोटा, तउन तोर बर बहुत खराब
मोर राह ले हट जा वरना, चुनवा देहंव करा सिलाप.
दू कउड़ी के व्याख्याता हस काबर डारत आड़ा ।
कोलिहा हा बच सकथे का यदि घुसरत बाघ के माड़ा ।।
तंय लेखक अस तहू ला जानत, बनत समीक्षक सब ले श्रेष्ठ
मगर लिखे ले का होवत हे, एकर ले नइ जग उद्धार.
रचनाकार बिकिन हें धन मं, तंय झन अंड़ा टांग कंगाल
बेर के संग दीया लड़थे पर, जीतत बेर-दीप के हार.”
पढ़िस हठील हा बिक्कट बंगी, अपन मित्र संग रेंगिस राह
ओकर संग संबंध बिगड़ गिस, मुश्किल दिखत होय निर्वाह.
तभो ले हिम्मत टांठ रखिन्गे, भले मुड़ी पर कष्ट पहाड़
करबो युद्ध कुचाली मन संग, टोर के रहिबा ओकर हाड़.
जउन छात्र मन गलत राह पर, अपन भविष्य करत बर्बाद
ओमन मं सुधार लाने बर, हम्मन देबो नेक सलाह.
ठीक बात ला यदि बिजराहंय, तब हम चलबो दूसर राह
मगर छात्र मन ला सुधारबो, हम किरिया खावत प्रण ठान.”
पिनकू किहिस- “”मदद तुम देवत, सर सर बढ़त मोर उत्साह
अरि के नख्शा मार के रहिबो, हम्मन पाबो निश्चय जीत.”
-“”लेकिन एक बात तंय अउ सुन-इंहा आय हव शिक्षा पाय
राजनीति लामकलेड़ी मं, तुम्हर भविष्य नाश झन होय.
काबर के कई विद्यार्थी मन, चलत कुपथ होके गुमराह
हो जावत समाज बर घातक, सुख के एवत देत दुख दाह.
पिनकू हा सतमार्ग चलय कहि समझाइस व्याख्याता ।
अधिक बोलना अनुचित तब छेंकिस भाषण के खाता ।।
उहां ले हट के पिनकू रेंगिस, पत्रकार चइती मिल गिस
चइती किहिस-“”तुम्हीं ला खोजत, मुश्किल बाद होय हे भेंट.
तंय चुनाव मं हार खाय हस, अउ हठील हा जीत ला पैस
ओकर बारे मं कुछ कहना तुरूत बोल तंय बिन संकोच.
“शान्तिदूत’ मं काम करत हंव, छपिहय उहां खबर हा तोर
हम्मन तथ्य ला कुछ नइ टोरन, जे वक्त्व्य छपत उहि मात्र.”
पिनकू हा कलबला के बोलिस- “”मंय जानत हंव तुम्हर सुभाव
मन के बात कोड़ के पुछत, बाद मं कर देवत बदनाम.
तुम्मन खुद लगात हव आगी, फिर बुझाय दउड़त धर नीर
तन मं आग लगन भर पावय, तुम्ही भुरक देवत हव नून.
मंय वक्त्व्य करंव नइ जारी, मन मं रखत अपन सम्वाद
मंय चुनाव मं हार खाय हंव, कोन देवा सकिहय फिर जीत !”
चइती हा अब साफ खोल दिस- “”तंय झन राख व्यर्थ के क्रोध
सब मनसे नइ होंय एक अस, कुछ हा गलत अउ कुछ हा नेक.
तंय चुनाव मं हार खाय हस, मंय जानत हंव कारण साफ
“शांतिदूत’ मं मंय कमात हंव, पत्रकार टैड़क के साथ.
शांतिदूत के मालिक जहरी, जेकर नाम हवय विख्यात
गीस हठील तुरूत ओकर तिर, मदद मंगिस डारे बर जाल.
जहरी हा टैड़क ला बोलिस-रच षड़यंत्र एक ठन ठोस
तब टैड़क हा फांदा खेलिस, तोला कारागृह डरवैस.
जहरी छेरकू हठील टैड़क, इन चारों के सुम्मत एक
पर के रांड़ बेचथंय जुरमिल, करथंय सबो डहर खुरखेद.
छेरकू मंत्री हा हठील हा, देत पलौंदी अइसे सोच-
“जेन बखत चुनाव मंय लड़िहंव, एहर मदद दिही घर बेच.’
पिनकू के तरूवा हा सुखगे, मंगथय क्षमा हाथ ला जोड़-
“”मंय सुक्खा व्यवहार करे हंव, मिट गिस शंका मन के मैल
अपन कर्म पर मंय शर्मिन्दित, मोर भूल ला कर दे माफ.”
चइती कथय- “”अपन समझे हंव, तब मंय फोर देंव सच तथ्य
एतन मोर बिखेद घलो सुन, मंय हा का भोगत तकलीफ-
सच या झूठ कुछुच हो लेकिन, छपिहय पत्र मं खबरे तोर
जिनगी नाव चलत हे कइसे-जानत कोन बेवस्ता मोर!
पत्र पत्रिका के मालिक मन, कहिंथय के सुधरय संसार
मगर हमर दुख चिन्हय नइ जइसे-दिया के खाल्हे घुप अंधियार.
दूसर मन हड़ताल मं जाथंय, एमन उंकर पक्ष ला लेत
पर हम अपन मांग ला रखथंन, हमर निवेदन ला चिर देत.
प्रेस मं जेन कर्मचारी हें, ब्रायलर के मुर्गा अस आंय
मुर्गा के जीवन निश्चित नइ, ओला कभू मार के खात.
तइसे प्रेस के जेन कमइया, काम करत हें रख ईमान
प्रेस के लाभ ला सोचत हरछिन, मालिक के दाबत हे पांव.
पर ऊंकर पर बिपदा आथय, कर देथय सेवा ले मुक्त
जेहर रोटी दार ला खातिस, तेहर खावत दुख अउ भूख.
पिनकू हा पूछत जावत अउ साफ बतावत चैती ।
दूनों अपन राह ला धरलिन रोक के निंदा गैंती ।।
३. कोदो पांत समाप्त

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