छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 10 जुलाई 2016

काबर मुड़ गडि़याये हस

नूतन प्रसाद

तंय जोहत हस पर के मुंह ला का निच्‍चट कमजोर हस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

एक सुरुज हा मार भगाथे, अंधियारा के कई दल ला।
एक ग्रंथ हा टोर डारथे, अज्ञानता के कई घर ला।।
अतका बात ला जान के काबर, बइठे बिल मं मुसुवा अस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

बघवा हा एके झन रहिथे पर हरिना रहिथे दस बीस।
तब ले बघवा बाजी मारत - हरिना ला देवत हे पीस।।
तंय हा सवा सेर तब काबर, खड़े कलेचुप कांपथस।
तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

जउन जगा तंय पांव जमाबे, भुइंया ले जल निकल जही।
ओ पानी ला बना सकत हस - अमरित गोरस दही मही।।
अतका कूबत तोर मेर तब काबर मुड़ गडि़याये हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

तन मं लाल लहू रेंगत हे, हाड़ा नोहे लोहा आय।
छाती पथरा के समान हे, आंखी नोहे अंगरा ताय।।
तंय पहाड़ अस तब फेर काबर पोनी असन उड़ावत हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

चल - चल आघू चलते जा तंय, का होगे हस एक्‍के झन।
तंय खत्‍तम सफलता पाबे , नाम लिही तोर कन कनकन।।
जम्‍मों बात ला जान के काबर, आगू पग नइ लेगत हस।
 तंय रहिबे छाती अडि़या के, कांटा कंटक खाही खस।।

पता
भण्‍डारपुर ( करेला )
पोष्‍ट - ढारा, व्‍हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्‍तीसगढ़ )

 

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