साथियों, भंडारपुर निवासी श्री नूतन
प्रसाद शर्मा द्वारा लिखित व प्रकाशित छत्तीसगढ़ी महाकाव्य “ गरीबा” सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत कर
रहा हूं। यह
महाकाव्य दस पांतों में विभक्त हैं। जो “चरोटा पांत” से लेकर “राहेर पांत”
तक है। यह महाकाव्य कुल 463 पृष्ट का है।आरंभ से लेकर अंत तक “गरीबा महाकाव्य” की लेखन शैली काव्यात्मक है मगर “गरीबा महाकाव्य” के पठन के साथ दृश्य नजर के समक्ष उपस्थित हो जाता है। ऐसा अनुभव होता है कि “गरीबा महाकाव्य“ काव्यात्मक के साथ कथानात्मक भी है। ऐसा लगता है कि लेखक ने एक काव्य की रचना करने के साथ यह भी ध्यान रखा कि कहानी समान चले अर्थात गरीबा महाकाव्य को पढ़ने के साथ – साथ उसकी कहानी भी समक्ष आने लगती है। “गरीबा महाकाव्य” दस पांतों में विभक्त है पर हर पांत कहानी को जोड़ती हुई चली जाती है। “गरीबा महाकाव्य” की इस खासियत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि छत्तीसगढ़ी के लुप्त होते शब्दों को भी बचाने का पूरा – पूरा प्रयास किया गया है। अर्थात “गरीबा महाकाव्य” में छत्तीसगढ़ी के वे शब्द जो अब लुप्त होने के कगार पर है उसे बचा लिया गया है।
“गरीबा महाकाव्य” में लेखक ने छत्तीसगढ़ी जनजीवन, सामाजिक परिवेश, सांस्कृतिक, साहित्यिक पक्ष का समावेश किया है। इससे छत्तीसगढ़ के जीवन शैली का जीवंत तस्वीर सामने आ जाती है। निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के जनजीवन को यथा संभव जैसे छत्तीसगढ़ के लोग है रखने का प्रयास किया है वहीं पूरे महाकाव्य को छत्तीसगढ़ी में लिखकर छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्धिशाली बना दिया गया है।
मेरा पाठकों से अनुरोध है कि इस उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण साहित्य को अवश्य पढ़ें एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य का आनंद लेवें।
सुरेश सर्वेद
गली नं. - 5, एकता चौंक
ममता नगर, राजनांदगांव(छ.ग.)
ममता नगर, राजनांदगांव(छ.ग.)
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