छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शनिवार, 23 जुलाई 2016

आज्ञाकारी

नूतन प्रसाद 
 
        शंकर - पार्वती अपने गाँव में आनंदपूर्वक रहते थे। उनके मकान के पीछे बाड़ी थी। उसमें दोनों ने मिलकर भुटटा बोया। भुटटे के पेड़ बड़े होते गये, उनकी खुशियां बढ़ती गईं। वे आपस में चर्चा करते - भुटटों में दाने पड़ेंगे तो हम स्वाद लेकर खायेंगे। साथ ही पड़ोसी और गाँव वालों को बांटेंगे। वे भुटटों की रखवाली में लग गये।
भुटटों में दाने पड़ गये। लेकिन इसी बीच एक मुसीबत आ गई - एक सियार को पता चल गया कि शंकर ने भुटटें बोये हैं। वे खाने योग्य हो गये हैं। वह सियार रोज आता। भुटटों को तोड़कर खा जाता। बेचारी पार्वती भुटटा चोर सियार को पकड़ने दौड़ाती पर वह चोर भाग ही जाता।
        परेशान पार्वती ने शंकर से कहा - '' आप दूसरे किसानों को फसल रक्षा का उपाय बताते हैं। पर स्वयं के बाड़ी की फसलों की देखभाल नहीं करते।''
         शंकर स्तब्ध रह गये - '' क्या बात है? बाड़ी का क्या हो गया ? ''
        पार्वती ने उलाहना दी - '' क्या नहीं हुआ। एक सियार रोज आता है। भुटटों को तोड़ता है। खाकर भाग जाता है। उसे पकड़ने का कोई उपाय तो करो। ''
        शंकर ने फंदा बनाया। उसे सियार के आने के रास्ते पर बाड़ी में लगा दिया। सियार भुटटों का स्वाद चख चुका था। उसे आना ही था। पर यह क्या - वह फंदे में फंस गया। फंदे से छूटने छटपटाया। पैरों से फंदे को तोड़ने की कोशिश की पर असफल रहा। शंकर बाड़ी में आये। वहां का दृष्य देखा तो प्रसन्न हो गये। उन्होंने पार्वती को आवाज लगायी - '' कहाँ हो। यहाँ आओ। मूसल को लाओ। ''
        पार्वती ने मजाक किया - '' मूसल को क्या करोगे? कोदई छरोगे या अरहर दाल कूटोगे। यह काम तो हम महिलाओं का है। आप कब से हमारा बोझ उठाना सीख गये ? ''
शंकर ने कहा - '' मैं समाजवादी हूं। मेरी शादी की बारात में अमीर - गरीब, दिव्यांग सभी गये थे। और सुनो - चोर सियार फंस गया है। उसे चोरी की सजा देना है। ''
        पार्वती ने मूसल लाकर शंकर को दे दिया। शंकर ने सियार को '' दांय - दांय '' मारना शुरु किया। सियार दर्द से चीख रहा था। फंदे से भागने की कोशिश की पर नाकाम रहा।
इसी तरह शंकर, सियार को दिन में तीन बार मारते - प्रात:, दोपहर और शाम। मार खाने के कारण सियार का शरीर सूज गया।
        एक दिन दूसरा सियार याने कोलिहा आया। उसने सियार को मोटा - ताजा देखा तो दंग रह गया। पूछा - '' बड़े भाई, आप खाते क्या हैं। आपका शरीर तरोताजा और स्वस्थ है? ''
सियार - '' तुम तो शंकर को जानते हो - बड़े ही भोले हैं। वे स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक भोजन लाते हैं। उन्हें ही खाकर मैं हृष्ट - पुष्ट और बलवान हूं। ''
        कोलिहा की लार टपकने लगी। कहा - '' मेरे लिये भी मंगवा दिया करो। देखो न, मैं कितना दुर्बल हूं। तुम्हारे जैसा भोजन मिलेगा तो मैं भी शक्तिमान बन जाऊंगा। ''
सियार बोला - '' नहीं रे बाबा, शंकर सिर्फ एक के लिए लाते हैं। ज्यादा माँग करुंगा तो नाराज हो जायेंगे। ''
- '' तो अपने हिस्सा का आधा दे दिया करो। आखिर दोनों जाति भाई हैं। बाँट - बाँट कर खा लेंगे। ''
- '' ऊंहुक, तुम्हारी बात मानी तो मैं भूखे  कर जाऊंगा। मैं तुम्हारे जैसा कमजोर और पतला दुबला बन जाऊंगा। '' फिर सियार को दयाभाव दिखाते हुए कहा  - '' तुम स्वास्थ्य सुधारना चाहते हो तो एक उपाय है।''
कोलिहा - '' वह क्या। जल्दी बताओ, मैं आपकी हर सलाह मानने को तैयार हूं।''
- '' तुम मुझे फंदे से निकाल दो और स्वयं फंदे के अंदर बंध जाओ। अकेले रहोगे तो भर पेट भोजन तुम ही करोगे।''
        कोलिहा खुशी से उछल पड़ा। कहा - '' मुझे स्वीकार है। लो, मैं आपको फंदे से आजाद कर देता हूं। ''
कोलिहा ने सियार को फंदे से स्वतंत्र कर दिया और स्वयं फंदे के अंदर बंध गया। सियार '' जान बची लाखों पाये '' कहता हुआ सरपट भागा। कोलिहा, शंकर की प्रतीक्षा करने लगा कि कब वे आयें और स्वादिष्ट भोजन करायें।
        कुछ देर बाद शंकर आये। उनके हाथ में मूसल था। वे कोलिहा को '' दांय - दांय '' मारने लगे। कोलिहा पीड़ा से कराहने लगा। कहा - '' मुझे क्यों मारते हो। मैंने आपका क्या नुकसान किया है ? ''
शंकर बोले - '' मेरी बाड़ी के पूरे भुटटे खा गये। अब मार पड़ी तब अपने को निर्दोष बताते हो। ''
कोलिहा को समझ आ गया कि सियार क्यों मोटा था। उसका शरीर मार से ही सूज गया था। उसने कराहते हुए कहा - '' मुझे सियार ने मूर्ख बनाया है। मैं उसके झांसे में आकर फंदे में फंस गया। मुझ पर रहम करो, मुझे छोड़ दो।''
        शंकर ने कोलिहा को देखा - वास्तव में वह पतला - दुबला था। शंकर ने कहा - '' तुम निर्दोष हो। धोखा खा गये। मगर असली अपराधी को भगा दिया। इसका तुम्हें दण्ड दूंगा। तुम्हें स्वतंत्र कर दूंगा पर मेरी शर्त स्वीकार करना पड़ेगा। ''
- '' हां, मुझे सब स्वीकार है। बस मुझे मुक्ति दे दीजिये।''
- '' तुम्हें दिन में तीन बार '' हुआं - हुआं '' चिल्लाना होगा। बोलो, स्वीकार है। ''
- '' हां, मुझे स्वीकार है। आपकी सहृदयता का गुणगान करते हुए मैं प्रतिदिन चिल्लाऊंगा।''
        और वास्तव में सियार अर्थात कोलिहा शंकर को प्रणाम करते हुए दिन में तीन बार '' हुआं - हुआं '' चिल्लाते हैं।    

पता 
ग्राम - भण्‍डारपुर ( करेला )
पोष्‍ट - ढारा, व्‍हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्‍तीसगढ़ )

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