छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

अंधे

सूरदास महान कवि के पद पर प्रतिþित हो चुके थे. इसी बीच  उनकी पुस्तकों के प्रकाशक को किसी ने बताया कि सूरदास अंधे है.प्रकाशक हड़बड़ाये.वे सम्पादक के पास दौड़े.उस वI सम्पादक सूरदास की रच ना को स्वीकृति देने की सोच  रहे थे.उन्होंने प्रकाशक से कहा - रच ना को पढ़कर तो देखिये.सूरदास जी ने कृष्ण के बाल - च रित्र का कितना सजीव वणर्न किया है -मैंया मैं नहीं माखन खायो,ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो...। सच  कहूं - सूरदास के सिवा मुझे कोई दूसरा कवि जमता नहीं.मैं उन्हें फस्टर् प्रिफरेंस देता हूं.
प्रकाशक ने सिर पिट लिया.कहा - बहुत खूब,मेरी सलाह है - पूरी पत्रिका ही उनके नाम से कर दीजिये.लेकिन कभी पता लगाया कि सूरदास अंधे है ?
सम्पादक विश्वास कैसे करते.पूछा - ऐसे कैसे  हो सकता है.अंधा कोई काव्य  रचेगा.
प्रकाशक ने कहा - य ही प्रश्न तो मेरा भी है.देखिये,आपने सूरदास को धड़ाधड़ छापा तो मैंने सोचा कि आप उनसे अच्छी तरह परिचि त होगे.मैंने भी उनकी पुस्तक निकाल दी.अब किसी दूसरे कवि ने मुकदमा दाय र कर दिया कि मेरी पांडुलिपियां चोरी च ली गई.उन्हें प्रकाशक सूरदास के नाम पुस्तकाकार दे रहे हैं.मैं तो सफाई देते - देते परेशान हो जाउंगा.अब यिा होगा. आप ही रास्ता निकालिये.आपने ही मुझे धंसाया है.
सम्पादक ने कहा - इतने दिनों तक आपने राय ल्टी हड़पी.माले मुKत दिले बेरहम से उड़ाया.जब फंसने की नौबत आयी तो दोष मुझ पर मढ़ रहे हो.मुझसे भूल हो गयी तो आपको ही छानबीन कर लेनी थी.
प्रकाशक ने कहा - आपस में जुझने से कोई  फाय दा नहीं.पहले तो य ह पता कर लें कि सूरदास अंधा है या नहीं .साहित्य  में एक दूसरे की टांग खींची जाती है.किसी ने ईष्यार्वश अफवाह उड़ा दिया हो तो ?
सम्पादक बोले - अब आये लाइन पर.ठीक है किसी जासूस को निय I कर देते हैंवास्तविकता ज्ञात करने .
और उन्होंने सूरदास के पीछे एक जासूस लगा दिया.जासूस ने अपना काय र् प्रारंभ दिया.वह पूरा छानबीन कर चुका तो सम्पादक - प्रकाशक के पास आया.बोला - वास्तव में सूरदास अंधे है...।
सम्पादक प्रकाशक के होश उड़ गये.चीखे - ऐं, यिा सच  ?
जासूस ने कहा -हां, मगर घबराइये नहीं..साफ  बात य ह है कि  सूरदास की आंखें कम्प्यूटर Òýि सी तेज है.वे किसी भी चीज का बारीकी से अवलोकन करते हैं.फिर भी सूरदास अंधे है यानि साहित्यि क अंधे.देखिये समझाता हूं - आपने मुझे भेजा तो मैं उनके पीछे छाया की तरह लग गया.एक दिन की बात है - सूरदास कुछ ढ़ूंढ़ते हुए सड़क नाप रहे थे.इतने में उनका भाग्य  च मका.उन्होंने देखा कि कुछ गु·डे एक लड़की को छेड़ रहे हैं.एक आदमी ने सूरदास को पानी च ढ़ाया कि कविवर, आपके रहते इतना बड़ा अनथर्.च लिए तो गु·डों की ठुकाई करें.लड़की की इƒत बचाये.
सूरदास उस आदमी के ऊपर बरसे -दाल भात के बीच  तू मूसलकंद कहां से टपक पड़ा.अरे, बहुत दिनों से लिखने के लिए मैं मसाला ढ़ूंढ़ रहा था, मिला भी तो तू सत्यानाश करने च ला है.तू य हां से रफूच Oर होता है कि  नहीं.मुझे इस पर लिखने तो दे...।
उन्होंने लड़की को गु·डों से मुI नहीं कराया.हां, उस घटना पर शानदार कविता जरूर लिखी.
सूरदास पेन कागज लेने बाजार जा रहे थे.उन्होंने देखा कि पुलिस लोगों पर गोलियां की वषार् कर रही है.एक आदमी ने सूरदास से कहा-आपके सामने जनता पर अत्याचार हो रहा है आप विरोध यिों नहीं करते ?
सूरदास ने कहा - विरोध यिों करूं ?पुलिस अत्याचार करेगी और जनता सहेगी.इस पच ड़े में पड़ूंगा तो कविता कौन लिखेगा ?
और उन्होंने उस घटना पर कविता लिखी.अब आप समझ गये होंगे कि सूरदास की आंखें दिखती है.मगर जुल्म और दमन को सूरदास जी अनदेखा कर जाते हैं तो वे अंधे ही है.
सम्पादक - प्रकाशक के सिर से चिंता का बोझ उतर गया. 

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