छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

भाषणबाज

नेताजी आजकल स्वगर् में ही निवास कर रहे थे.य द्यपि उन्हें सब प्रकार की सुविधाएं प्राÄ थीं तो भी अनशन पर बैठ गये.इसकी खबर अधिकारियों को लगी तो वे दौड़े आये.उनने अनशन पर बैठने का कारण पूछा तो नेता जी बोले -हम य हां की व्य वस्था से संतुष्ट नहीं हैं इसलिए व्य वस्था बदली जाय .
अधिकारियों ने साश्च य र् कहा -आप भी बड़े विचि त्र जीव हैं. आपको दूसरों के समान भोजन कपड़े अथार्त आवश्य कता की सारी वस्तुएं मिल रही है.आपसे भेदभाव भी नहीं किया जाता फिर आपकी असंतुýि का कारण समझ नहीं आता.
- य ही तो दुख है कि हमारे बराबर दूसरों को भी अधिकार दे दिया गया है जबकि हम विशिý हैं. गरीबा को देखो - वह हमारा नौकर था. जूते साफ करता था.हम मलाई खाते थे तो वह दुत्कार खाता था.लेकिन वही अब हमारे साथ बैठकर भोजन करता है.य ही नहीं हमसे टकि र भी लेता है जबकि ये बातें हमारी शान के खिलाफ है.
- आपकी शान मिuी में मिल जाये पर हम व्य वस्था नहीं बदलेंगें.
- तो हमें नकर् भेजने का प्रबंध किया जाये.वहां के जीव जो बहुत दुखी हैं.उनकी सेवा करेंगे.
- झूठ यिों बोलते हैं.आपने कब किसकी सेवा की.य दि सत्य  बतायेंगे तो नकर् भेजने के लिए विचार भी करेंगे.
नेताजी बहुत देर तक सोच ते रहे फिर बोले-हकीकत य ह है कि जब मैं य हां की व्य वस्था की आलोच ना करता हूं तो दूसरे जीव मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते.य दि वहां नकर् च ला जाऊंगा तो वहां की व्य वस्था के बारे में उल्टा सीधा आक्षेप करने का अवसर मिलेगा.
अधिकारियों ने पूछा - भाषण देना जरूरी है यिा ? मुंह पर ताला लगाकर रखेंगें तो काम नहीं बनेगा ?
नेता जी तुनके - मैं नेता हूं.भाषण दिये बगैर कैसे रह सकता हूं.
- आप कैसे भी रहें पर न तो व्य वस्था बदली जायेगी न तो आपको नकर् में भेजा जायेगा.य हीं पर दूसरों के समान रहना पड़ेगा.
इतना कह अधिकारियों ने उनकी बोलती बन्द कर दी और  उन्हें काम पर ले गये. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें