छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

स्‍वर्गाधिकारी

शहर के जाने माने डाटिर का स्वगर्वास हुआ लेकिन जगह मिली नकर् में.उन्होंने चि त्रगुÄ से पूछा- आखिर मैंने कौन सा पाप किया है कि  नकर् का भागी बना.
चि त्रगुÄ ने कहा- तुम्हारी दवाई खाने से कई व्य Iि काल कलवित हुए है.इसी कारण तुम्हें य हां आना पड़ा है.
- अगर कुछ आदमी मर भी गये तो आप लोगों का यिा गया.उन्हें खत्म कर मैंने पृथ्वी का भार हल्का ही किया.और फिर मरना तो प्रकृति का शाश्वत निय म है. फिर व्य थर् ही मुझे यिों घसीटा जा रहा है.
- य ह मुझे नहीं मालूम.य मराज से पूछो.
डा.साहब महाकाल के समीप पहुंचे.उस समय  नकार्ध्य क्ष कुछ बेचैन थे.उन्होंने चि कित्सक के मन की बात को जान कर कहा- मैं तुम्हें य हां आने का कारण बता दूंगा लेकिन अभी ऐसी दवाई दो, जिससे मुझे आराम मिले.
डा.ने तत्काल बिना जांच  किये य मराज को औषधि दे दी.दवाई के खाते ही महाकाल की क्स्थति और भी गंभीर हो गयी.वे हाय - हाय  चि „ाने लगे.हाथ पांव पटकने लगे.उन्होंने कहा- डा. तुमने कैसी दवाई दे दी.अब मैं मरने को हूं.मेरा  जल्दी इलाज करो और दुखद क्स्थति से बचाओ.
डा.बोले - मैं आपको पूणर् स्वस्थ कर दूंगा.लेकिन इस नकर् से उबारेगे तब.इसके बाद यमराज की तबियत ठीक हुई या नहीं पता नहीं लेकिन इतना ज्ञात अवश्य है कि डॉ. साहब स्वर्ग में आनंद भोग रहे हैं।

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