छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

रविवार, 24 जुलाई 2016

बरगद की छांव में

            नूतन प्रसाद

चुन्‍नीलाल मुख्यमंत्री क्‍या बने,सरकारी साधन उनके बाप के हो गये .एक   दिन वे शासकीय  जीप से घुमने जा रहे थे कि दूसरी जीप आयी और उसकी जीप से भीड़ गयी.उसमें भी एक अन्य  प्रान्त के मुख्य मंत्री बांकेलाल सवार थे.दोनों मुख्यमंत्री अपनी - अपनी सीट पर जमे रहे लेकिन चालकों के बीच  झगड़ा प्रारंभ हो गयी.चुन्‍नीलाल के ड्रायव्‍हर  कंगलू ने कहा - सड़क चौड़ी है फिर भी टक्‍कर मार दी.गाड़ी चलाना नहीं आता तो गाड़ी चलाना छोड़ क्‍यों नहीं देता ?''
            बांकेलाल का ड्रायव्‍हर मंगलू भी कम नहीं था.उसने ईट का जवाब पत्थर से दिया- बेसाइड जीप तू दौड़ाये और दोषी मुझे ठहरा रहा है.तुमसे मुर्ख कौन होगा.''
- मैं बदतमीजी बिल्कुल बर्दाश्‍त नहीं करता.अपनी जीप हटा ले नहीं तो परिणाम बहुत बुरा होगा.''
- धौंस किसी और को मारना.अब एक शब्‍द भी बोला तो जीप के नीचे डाल दूंगा.''
- मारने की धमकी देने वाले ,मेरे कराते का कमाल अब देख...।''
- आगे आ, वो धोबी पछाड़ दूंगा कि नानी याद करने का मौका भी नहीं मिलेगा.''
            दोनों चालकों ने अपनी मां का दूध पीया था .वे वाकयुद्ध से मल्‍लयुद्ध पर उतर आये.मुख्यमंत्रियो ने उन्हें समझाकर शांत कराने की गलती नहीं की.वे जीप से नीचे उतरे और गले मिले.वहां और भी छायादार वृक्ष थे लेकिन वटवृक्ष के नीचे इसलिए बैठ गये कि बरगद और नेताओं का चरित्र समान होता है.चुन्‍नीलाल ने पूछा - आपको चोट तो नहीं आई.नुकसान हुआ हो तो माफ करेंगे.''
बांकेलाल बोले - गलती न मेरी, न आपकी फिर क्षमा मांगने का सवाल ही नहीं उठता.हम चालकों की तरह बेवकूफ नही है जो आपस में लड़ेंगे.''
- हां बन्धु, देखो न वे एक वर्ग  होकर भी पटका पटकी हो रहे हैं.''
- उनके लड़ने में ही हमारी भलाई है.''
            दोनों हंसने लगे.वे भाषणबाज तो थे ही तो मुंह बंद कैसे रखते.इसलिए बातचीत पुन: शुरू हुई. बांकेलाल ने पूछा  - मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा था कि आपके कमर्चारी अपनी मांगे पूरी कराने के लिए अनशन पर बैठे हैं .''
चुन्‍नीलाल ने कहा - बैठे तो थे लेकिन मैंने उनकी मांगे रद्दी की टोकरी में डाल दी.''
- फिर तो बवाल मचा होगा ?''
- काहे का बवाल,उनके अगवा को अपने इधर फोड़ लिया.''
- अरे, आप तो राम के अनुशरण कर गये. जिन्होंने विभीषण को अपनी ओर मिलाकर शत्रु का संहार किया था.फिर तो कुछ देना नहीं पड़ा होगा.''
- वे केन्द्रीय वेतनमान लागू करने की मांग कर रहे थे.उसे नहीं देना पड़ा.जिस प्रकार कुत्ते को एक रोटी देकर  भौंकना बंद करा दिया जाता है उसी प्रकार मात्र तीन किश्त फेंककर हड़ताल खत्म करा दी.''
- वास्तव में आपके समान बुद्धिमान कोई नहीं है.''
            अपनी प्रशंसा सुनकर चुन्‍नीलाल फूले नहीं समाये.बांकेलाल ने पुन: बात निकाली - मित्र,आपसे अकेले में मिलने की तीव्र इच्छा थी.समय  अनुकूल है, कह दूं क्‍या ?''
            चुन्‍नीलाल ने स्वीकृति दी - आप तो ऐसे पूछ रहे हैं मानों विरोधी है.क्‍या विचार है खोलिए न ?''
- दरअसल मैं अपने लड़के मुकेश के नाम से एक कारखाना खोलना चाहता हूं अगर अपने ही प्रदेश में स्थापित करता हूं तो हंगामा मचेगा.इसलिए आप इजाजत दे देते तो बड़ी कृपा होती.''
- मुझे कोई आपत्ति नहीं.आपका पुत्र मेरा पुत्र है.राजधानी के आखिरी छोर पर जहां मजदूरों की झोपड़ियां है उन्हें तुड़वाकर आपके लड़के मुकेश के नाम पर  एलाट करवा देता हूं. बैंकों से कर्ज भी दिलवा दूंगा.''
- आपने तो मेरे मुुंह की बात छीन ली.मैं भी आपसे इसी संदर्भ में चर्चा छेड़ने लालायित था.''
-  जब आपको मेरी बात स्वीकार है तो मैं कैसे इंकार कर सकता हूं. आप मेरी समस्या हल कीजिए , मैं आपकी.''
            दोनों ने हाथ मिलाया.मधुर संबंध को अंतकाल तक बनाये रखने के लिए मिठाई खाने लगे.इन्हें देख चालकों ने भड़कना बंद कर दिया.मंगलू लज्जित होकर कहा - हम कितने नासमझ है. शोषित होकर भी आपस में गुत्थम -  गुत्थी  हो रहे हैं इसीलिए हमारे मुख्य शत्रुओं को मिठाइयां खाने मिल रही है.'' कंगलू ने भी अपने को धिक्‍कारा.कहा - तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो. हमारा - तुम्हारा वर्ग एक है । अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए भुटटे चोरों के विरूद्ध संगठित होना चाहिए.''
            उन्होंने फिर कभी न लड़ने की शपथ ली.जीप में बैठे और दोनों मुख्यमंत्रियों को वहीं पर छोड़ कर लौट गये. 

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