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रविवार, 24 जुलाई 2016

सपने देखिए

          आज की रात बड़ी अच्छी व्यतीत हुई. मैने एक से एक मधुर सपने देखे. सपने देखना और मन के लड्डू खाना हमारी नियति बन गई है. हमें वास्तविक जीवन में चांवल - दाल तक नहीं मिलते पर सपने में पेड़े - बर्फी खाने को मिल जाते हैं . सपने हमारे जीवन के लिए संजीवनी है. यदि ये छुट्टी कर ले तो हम निराश होकर रेल की पटरी में बिछ जाएं .
          सपने में मैं कभी जिलाधीश बना तो कभी क्रांंतिकारी.एक बार तो चूहा भी बन गया . त्रिनेत्र खोलकर देखा जाएं तो हम चूहे ही हैं . सरकार रूपी बिल्ली और उसके वफादार कुत्ते हमें उदरस्थ करने घूरते रहते हैं . चूहे का खत्म होना असंभव है . पर चूहे बेहतर जीवन जीने के लिए एक सूत्र में बंधकर दुश्मनों से बदला ले तभी बिल्ली के गले घंटी बंधेगी और कुत्तों की पूंछ सीधी होगी .
          सपना प्रांरभ हुआ कि मैं अपने को जिलाधीश की कुर्सी में बैठा पाया. मेरे हाथ में असीमित अधिकार है. चाहूं तो पूरे जिले को खुदवाकर झील बनवा दूं .जब नायब तहसीलदार किसानो को बेदखल कर गांव से निष्कासित करा देता है . तो जिले की जनता को जिला बदर करा कर अपने  अधिकारी होने का प्रमाण प्रस्तुत कर दूं . अधिकारों का दुरूपयोग करने के लिए ही तो अधिकारी बना हूं .
          दूसरों और अपने में खास अंतर है। वे आदेश का पालन कर कर्तव्य का निर्वहन करते हैं, मैं कर्तव्य का निवर्हन करता हूं, आदेश का पालन करवा कर। मैंने तत्काल आदेश निकाला कि कर्फ्यु लगवा दो। इस पर छोटे अफसरों ने मुझसे कहा  - '' सर, हमें अच्छी तरह ज्ञात है कि न कहीं दंगे हो रहे हैं न आंदोलन। और तो और छोटी - मोटी लड़ाई भी नहीं हो रही है तो कर्फ्यु क्यों ?''
          मेरे पास रद्दी की कई टोकरियां हैं। ये मेरे बड़े काम के हैं। राज्य शासन का आदेश हो या संभागायुक्त का सब इन्हीं टोकरियों के हवाले कर देता हूं। मेरे आदेश को कोई कच्चा चबाने का प्रयास करता है तो मेरे अंदर का अफसरी रौब ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ता है। मैंने डपटकर कहा - '' मैं कोई शिक्षक नहीं हूं, जिसकी आज्ञा को बच्चे भी टाल जाते हैं। मैं जिले का स्वामी हूं। यदि मेरे आदेश की अवहेलना हुई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। अपनी खैरियत चाहते हैं तो जहां शांति हैं, वहां दंगे कराइए। लोगों के बीच फूट की जहर का छिड़काव कीजिए। कोई न मिले तो विद्यार्थियों के द्वारा दो - चार बसों में आग लगवाईये। पर मेरे आदेश का अमोघ बनना चाहिए।''
          विस्फोट करने पर अधिकारी नहीं राकेट की तरह नहीं उड़े तो मैने पुलिस अधिकारी से कहा - '' क्‍यों साहब आप क्‍यों खामोश बैठे हैं . कुछ बोलते नहीं ?''
          पुलिस अधीक्षक ने कहा -'' सर क्‍या बोलूं , मैंं भी तो दूसरों के समान अपने को असमर्थ पाता हूं .''
         मुझे इसी समय  रामायण का वह प्रसंग याद हो आया , जब वानर समुन्द्र के पास चिंतित बैठे थे . वे समुद्र को लांघना चाहते थे पर कोई अपने को समर्थ नहीं पा रहा था . हनुमान भी एक ओर सिर झूकाए बैठे थे .  जामवन्त ने कहा - '' हे हनुमान, तुम जानते हो कि सीता के वियोग में राम पागल हो गए हैं यदि सीता का पता नहीं लगा तो हमारा खैर नहीं .तुम समुद्र पार करो . लंका जाओ और सीता का पता लगाओ .''
          हनुमान ने कांपते हुए कहा - '' आप मुझे बलि का बकरा बना रहें हैं। समुद्र को लांघना मेरे बस की बात नहीं। हम बंदरों को पानी में घूसते हुए भी डर लगता है।''
- '' तुम्हें खुद अपनी शक्ति का पता नहीं , मैं जानता हूं कि तुम सबसे बुुद्धिमान हो . वीर हो . तुमसे बड़े तैराक इस भीड़ में है ही नहीं.चाहो तो ओलम्‍िपक में बाजी मार सकते हो .''
        जामवन्त ने जोश चढ़ाया तो हनुमान ने समुद्र में छलांग लगा दिए . उन्होंने सीता का पता लगाया . राक्षसों को मारा . अशोक वाटिका को उजाड़ी . यही नहीं लंका में आग भी लगा दी . मैने पुलिस अधीक्षक को चंग में चढ़ाया - आप सर्वशक्तिमान हैं . आपके पास पुलिस , बंदुके , गोलियां , अश्रुगैस सब कुछ तो हैं.मुझे विश्वास है कि मेरे आदेश का पालन आपके अलावा कोई दूसरा कर ही नहीं सकता .''
         पुलिस अधीक्षक को अपनी शक्ति का पता चला तो वे तनकर खड़े हो गए . बोले  - '' सर , आप दूसरों को मुंह न तांके . वास्तव में यह काम अपने विभाग का है . जब हम निरापराध को धारा में फंसा कर हवालत में डाल सकते हैं हत्यारे को मुक्‍त कर गवाह को पकड़ लेते हैं तो शांतिकाल में कर्फ्यु के आदेश का पालन करके रहेगे.

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