छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

परिक्रमा

सरपंच  पद पाने के लिए  चुनाव होने वाला था.इसके लिए अनेक व्य ढ्ढि दावेदार थे.शंकरसिंह भी चाहते थे कि उसका दुलारा गणेशसिंह सरपंच  की गद्दी पर बैठे.लेकिन उनकी इच्छा पूण र्कैसे हो ? आखिर उनने उपाय  निकाला- उन्होंने उम्मीदवारोंको बुलवाया.पूछा-तुम सब सरपंच  बनना चाहते हो न ?
सभी उम्मीदवारों ने एक स्वर में कहा - जी हां,आपने तो मुंह की बात छीन ली.
- लेकिन ऐसा तो नहीं होगा यिोंकि पद एक है और उम्मीदवार अनेक.इसके लिए तुम आपस में लड़ोगे. धन बबार्द करोगे, याने तुम अपने ही हाथों अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हो.
- आप ठीक कह रहे हैं पर बबार्दी से कैसे बचे ?आप ही ऐसा रास्ता निकालिए कि सांप मर जाये लाठी भी न टूटे ।
शंकरसिंह ने तपाक से कहा -मैंने इसीलिए ही बुलाया है.ऐसा करो कि गांव का सात च ह्रर लगाओ.मेरे पास सवर्प्रथम आयेगा वह ही सरपंच  निय ढ्ढ होगा.
शंकरसिंह की सदा से च लती आयी थी.किसी ने आपत्ति नहीं की.उम्मीदवार गांव का च ह्रर लगाने लगे.उनमें से कुछ ईश्वर को प्यारे हुए तो कुछ च ह्रर खाकर गिर पड़े.बाकी उम्मीदवार हांफते हुए आये तो देखा कि गणेशसिंह अपने पिता शंकरसिंह के सामने श्रद्धावनत बैठा है.उम्मीदवारों ने  पूछा - अरे ,हम गांव का एक नहीं सात - सात बार परिक्रमा कर लौट गये पर गणेशसिंह ऊंघते बैठा है.इसे सरपंच  नहीं बनना है यिा ?
शंकरसिंह ने हंसते हुए कहा - हां- हां, मेरे गणेश तुम्हारे समान सुस्त थोड़े ही है.उसने सबसे पहले अपना काय  र्कर दिखाया.
उम्मीदवारों ने साश्च य  र्पूछा - ऐसा कैसे हो सकता है.वह तो हमारे साथ दौड़ा ही नहीं.आप कैसे इसे विजयी घोषित कर रहे हैं ?
शंकरसिंह ने स्प्र किया -इसमें आंखें फाड़ने का सवाल ही नहीं उठता.मैं गांव का सबसे बड़ा कृषक हूं ,यानि गांव का मालिक.गणेश ने मेरा च ह्रर लगाया.अब तुम मुखोङ्घ सा दुनिया भर का च ह्रर मारो तो कोई करे भी यिा ?सरपंच  का बुद्धिमान होना पहली शत र्है.मेरा गणेश बुद्धिमान है , योग्य  है इसलिए उसके सिवा कोई दूसरा सरपंच  बन ही नहीं सकता.
उम्मीदवार शंकरसिंह के च क्रव्यूह में अभिमन्यु बन गये.गणेशसिंह सरपंच  की कुसी र्पर चि पका गया. 

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