छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

अधिकार

अधिकार
दिनेश जब से अधिकारी बने थे,निय मित रूप से दान करते थे.भ्र्र रूप से रूपये कमाने वालों को दान करना ही चाहिए.इससे पाप धुल जाते हैं जैसे साबुन से कपड़े .
नित्य  की तरह वे भिखारी को अठझ्ी  थमा कर जाने लगे कि भिखारी ने कहा - साहब, मंहगाई बढ़ गई है. आठ आने से कट चाय  भी नहीं मिलती.एक रूपिया दीजिये.
दिनेश का पारा गम र्हो गया.उनने झिड़की दी -कंगाल, किससे बात कर रहा है ,होश भी है ?
- मैं अपने अधिकार की बात कर रहा हूं .इसमें आंख लाल करने का सवाल ही नहीं उठता .
- अधिकार...कैसा अधिकार...!
- आप वेतन पाते हैं.ऊपरी आमदनी भी है उस पर भी वेतन बढ़ाने की मांग करते हैं तो मैं यिों न करूं ?
- मैं दिन रात शासकीय  काय  र्में व्य स्त रहता हूं . मंत्री और अपने बड़े अधिकारियों की डांट सुनता हूं और फिर मैं योग्य  भी हूं.तुझमें यिा योग्य ता है कि बढ़ च ढ़कर बात कर रहा है.
- मैं भी बरसात ,ठंड में योगी की तरह एक स्थान पर बैठा रहता हूं . लोगों की गालियां सुनता हूं . भीख मांगते वढ्ढ करूण शबद निकालने पड़ते हैं.जो मैंने कई वषोङ्घ में सीखे हैं .आप किसी के आगे हाथ पसार कर  देखिए. दांतों पसीना आ जायेगा.
दिनेश के क्रोध में घी पड़ गया.वे चि ल्लाये - बदतमीज, हराम का खा खा कर मोटा हो गया है. जाओ तुम्हें ढ़ेला भी नहीं देता.
भिखारी ने कहा - न देना हो तो मत दीजिए पर मैं हराम का नहीं खाता. जिसका लेता हूं पाई पाई छूट देता हूं.
- बात करने से कुछ नहीं होता.मैं दान नहीं दूंगा तो तेरे प्राण निकल जायेंगे.
- धौेस मत दीजिये.मेरे पास भी वो चीज है जिसे न दूं तो समाज में जो आपकी प्रत्रिा है वह खत्म हो जायेगी.सिर उठा कर च लना मुश्किल पड़ जायेगा.
- यिा देता है, बता न ! दिनेश ने कड़ककर पूछा.
भिखारी ने बताया - आप मुझे दान देते हैं उसके बदले आपको पुकय  कमाने का अवसर देता हूं.मैं दान न लूं तो आपको उपकारी कोई कहेगा यिा ?
दिनेश निरूत्तर रह गये. उनने गडड्ी से एक रूपया निकाला और भिखारी की ओर फेंककर च लते बने .

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