छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

दोहरी नीति

शाला में ब‚े दजर् किये जा रहे थे.एक पालक ने प्रधानाध्यापक के पास आकर कहा - मैं अपने लड़के को शाला में भतीर् कराना चाहता हूं .
प्रधानाध्यापक ने कहा - ठीक है, अपने लड़के का नाम बताइये ?
- महेश ...। पालक ने बताया.
- आपका ?
- रामप्रसाद ।
- और जाति ।
पालक ने आश्च य र् में भरकर कहा - आप भी बड़े विचि त्र हैं.य हां तो जात पात समाÄ करने की बात च ल रही है और आप जाति पूछ रहे हैं ?
प्रधानाध्यापक ने असमथर्ता व्य I की - यिा करूं , मजबूरी है.
- कैसी मजबूरी,एक ओर आप जैसे शिक्षित लोग सबको समान करने के लिए धुंआधार प्रचार कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर जाति - जाति का रट लगा रहे हैं.ऐसी दोहरी नीति यिों ?
- ये सब औपचारिकताएं हैं श्रीमान,वास्तविकता तो दूसरी है.
पालक ने ठोस शबदों में कहा - भले ही आपकी कथनी और करनी में अंतर हो पर किसी भी क्स्थति में अपनी जाति नहीं बताऊंगा.
प्रधानाध्यापक ने भीअंतिम निणर्य  दिया - न बताना हो तो कोई दबाव नहीं हैं लेकिन य ह भी सुन लीजिए कि जाति बताये बिना आपका लड़का शाला में भतीर् हो ही नहीं सकता.    

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