छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

आश्‍वासन की रेवड़ी

गोपाल कहीं जा रहा था.उसे रास्ते में एक ढ़पोरशंख पड़ा मिला.गोपाल ने उसे लालच वश उठाया कि ढ़पोरशंख ने कहा -मैं कई वषोYसे पड़ा सड़ रहा था लेकिन किसी ने छुआ तक नहीं.मैं तुमसे अत्यंत प्रसÛ हूं.बताओ यिा चाहिए, जो मांगोंगे , मैं दूंगा.
गोपाल को बिना मांगें मोती मिल रहे थे.उसकी खुशी का ठिकाना न रहा.उसने कसम खिलाई कि यिा सच मुच  मेरी इच्छा पूणर् कर दोगे ?
- यिों नहीं, य ह भी कोई पूछने की बात है. बेहिच क मांगो न . ढ़पोरशंख ने विश्वास दिलाया तो गोपाल ने अपनी मांग रखी - मुझे दस हजार रूपये चाहिए...।
- यिा करोगे ? ढ़पोरशंख ने पूछा.
- धंधा खोलूंगा . गोपाल ने कहा.
ढ़पोरशंख ने हंसा - इतनी छोटी रकम से धंधा यिा खाक खुलेगा ! ज्यादा मांगों.
- तो पचास हजार दे दो.
ढ़ पोरशंख ने गोपाल की हंसी उड़ाई - य हां मैं सवर्स्व लुटाने बैठा हूं पर तुम्हें मांगना भी नहीं आ रहा.समुद्र से एक ग्लास पानी मांगोगे तो समुद्र की बेइƒती नहीं होगी.पचास हजार में ठीक से जनरल स्टोसर् भी नहीं खुलेगा.खूब सोच कर मांगो.
गोपाल शमिर्न्दा हुआ कि य हां दाता अपना खजाना खोलकर बैठा है लेकिन भिखारी हाथ फैलाने में भी कंजूसी दिखा रहा है.आखिर उसने खूब सोच  समझ कर मांग रखी- मुझे दो लाख दे  दो, छोटा मोटा होटल खोल लूंगा.
ढ़पोरशंख ने कहा - उससे अच्छा फाइव स्टार होटल खोल. रूपये तो मैं दूंगा.
गोपाल ने कहा - ठीक है, य दि तुमने मेरी इतनी सहाय ता कर दी तो मेरा जीवन सफल समझो.
ढ़पोरशंख ने कहा - तुम्हारा जीवन सफल बनाने के लिए ही मैंने बीड़ा उठाया है.मेरा मानो तो दो चार टाकीज भी खोल लो.उनसे  भी अच्छी आय  होगी.....।
अब गोपाल का दिमाग च कराया.उसने भड़ककर कहा - यिा तुम मुझे उ„ू समझते हो, जो सिफर् बातों के जाल में उलझाते हो.जब कुछ देना नहीं हैं तो फोंक  यिों मारते हो ?
ढ़पोरशंख ने असलिय त बताई - यिा करूं, विवश हूं.पूवर्जन्म की आदत नहीं छूटती.
गोपाल ने पूछा - पूवर्जन्म में यिा था ?
ढ़पोरशंख ने कहा - नेता....।    

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