गोपाल साहू
आभा मार के बलाये तंय मयं दउड़े चले आयव
तोर सुघ्घर चेहरा , मंय चिनह नई पायव
मंय नई जानेव मीठ लबारी ये कहिके
निरवा लबारी ये कहिके,
तरिया पार आय तयं हर मोरे घटोंदा मं
छम - छम पायजेब बजाये अउ बेनी ल हलाये
मुसुर - मुसुर देखके मोला मुसकाये
मंय फंस गेंव बिन सेाचे जाने तोर फंदा मं
मोला भरमाय अपन बनाहू कहिके
कसम किरिया खाये जिनगी बिताये के
संझा - संझा आहू कहिके , रात भर नइ जगाय
तोरे संग मिले बर मयं हर , सारा दिन गंवायेव
मही जान मुंहू लगायवं , ओहर निकलगे दूध
पी डरेंव गटगटाके,पी नइ पायेव मंय फूंक फूंक
धन ल देखे तयं मोर , मोही डारे मन ला
अब मंय समझ पायवं , उलटगे कोठी मोर
अउ भरगे अंचरा तोर,
त '' गोपाल '' रोवय खोरे- खोर
मयं का जानेवं झूठ लबारी आय कहिके
निरवा लबारी ये कहिके.
पता
भण्डारपुर ( करेला )
पोष्ट - ढारा, व्हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
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