नूतन प्रसाद शर्मा

महाभारत का युद्ध प्रारंभ हो गया था। कौरव और पाण्डव एक दूसरे को हराने ताल ठो रहे थे। अर्जुन के कृष्ण से कहा कि मुझे दोनों सेनाओं के बीच ले चलिए। मैं देखना चाहता हूं कि हमारे विरुद्ध कौन - कौन से वीर युद्ध करने तत्पर है?
कृष्ण ने अर्जुन को दोनों सेनाओं के मध्य ले जाकर खड़ाकर दिया। वहां उसने पाया कि भीष्म पितामह, कर्ण, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा - पाण्डवों को युद्ध में परास्त करने हुंकार भर रहे हैं। इसे देख अर्जुन ने अपना अस्त्र जमीन पर रख दिया। कृष्ण से कहा - मैं आश्चर्य चकित हूं- मेरे दादा, गुरुदेव, बड़े भाई और सहपाठी हैं। ये सब मेरे सम्मानीय स्वजन हैं। मैं इनके विरुद्ध युद्ध कैसे करुंगा?
कृष्ण ने समझाया - यदि व्यक्ति समाजसेवी है। नि:स्वार्थी है, निर्बल को सहायता देने वाला तो उसका पक्ष लिया जाता है। पर वही व्यक्ति स्त्री का अपमान करें, असहाय को प्रताड़ित करे तो परपीड़क स्वजन से भी युद्ध करना जायज है। देखो - कंस मेरे मामा हैं। उन्होंने गोकुल के लोगों से वहां के दूध - दही - खाद्यान्न पदार्थों को मथुरा में जमा करने का आदेश निकाला। गाँव को निर्धन बनाने और नगर को सम्पन्न करने का षड़यंत्र रचा। श्रमजीवियों के अधिकार को छीनकर परजीवियों याने मुफ्तखोरों के स्वार्थों की रक्षा की। मुझे निमंत्रण देकर मेरा अपमान किया। यही नहीं नवजात शिशुओं की हत्या करने का आदेश निकाला। अंतत: मैं क्या करता - मैंने स्वयं उसके प्राण लिये।
यह सत्य है कि कृष्ण युग तक इन्द्र की पूजा होती थी। लेकिन उसी इन्द्र ने लोगों को अनेक प्रकार से कष्ट दिया तो कृष्ण ने इन्द्र के कार्यक्रमों का बहिष्कार किया। इन्द्र का सम्मान घटता गया।
इसका अर्थ यही हुआ कि रूढ़िगत समाज के परिवर्तन के लिए युद्ध आवश्यक है। प्रकृति का भी यही विधान है - ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें अत्यन्त गर्मी प्रदान करती हैं। इससे समुद्र का जल वाष्प बनकर आकाश में उड़ता है। वह बादलों से टकराता है। तब जीवन - दायिनी वर्षा होती है। किसान जमीन से युद्ध करके अनाज पैदा करता है।
राम और रावण का युद्ध हुआ। राम ने वानर जाति के वीरों से गठबंधन किया - राम जीते। इससे यह जागृति आई कि राजनीति में गठबंधन आवश्यक है। देवासुर संग्राम मुख्यत: समुद्र में स्थित वस्तुओं की प्राप्ति का युद्ध है। वास्तव में समुद्र रत्नाकर है। समुद्र में अथाह धनराशि है। मुम्बई हाइवे में पेट्रोल मिला है।
हम देखेंगे कि इतिहास में युद्ध ने समाज में प्रभावशाली परिर्तन लाया है। मुगलों ने भारत पर हमला किया। वे अपने साथ बारुद लाये। वे विजयी हुए। इससे युद्ध नीति और अस्त्रशस्त्रों की शक्तियों में वृद्धि हुई। अरबी और भारतियों में सांस्कृतिक - आध्यात्मिक आदान - प्रदान हुआ। सूफी विचारधारा आई। यह प्रेम और अहिंसा का संदेश देता है।
अंग्रेज आये। उनका भारतियों से युद्ध हुआ। वे जीते लेकिन इससे भारत को लाभ ही मिला। यहां रेल, डाकतार, विद्यालय, अस्पताल, बाजार, समाचार पत्र, बिजली, फिल्म याने आज का प्रगतिशील भारत उनकी ही देन है।
भारत और चीन के युद्ध में भारत की शर्मनाक हार हुई। लेकिन इससे यह जागृति आई कि आत्मरक्षा के लिये पर्याप्त अस्त्रशस्त्र का भण्डार रखना आवश्यक है। आज भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र है। कई - कई बार अकाल पड़ा। इससे निपटने के लिए अनाज उत्पादन में वृद्धि करने नहर और बांध बनवाया। सिंचाई की व्यवस्था की गई।
मार्क्सवाद का मुख्य सिद्धांत संघर्ष और द्वन्द पर आधारित है। इसके बाद ही समाज में नया पन आता है। वह उत्तरोत्तर विकास की गति पकड़ता है।
द्वितीय विश्व युद्ध में अपार जनधन की हानि हुई। लेकिन इसमें यह चिंता उभरी कि पूरे विश्व को एकजुट होकर शांति की स्थापना करनी होगी। इसके लिए संयुक्त राष्ट संघ की स्थापना हुई। आज सम्पूर्ण विश्व एक सम्मिलित परिवार है। एक देश, दूसरे देश से शत्रुभाव से आंखें नहीं तरेर सकता। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है। यहां पीड़ित देश अपना पक्ष रख सकता है। सेवा के लिए यूनिसेफ की स्थापना हुई है। यह युद्ध में हताहत सैनिकों से यह नहीं पूछता कि तुम्हारे देश का क्या नाम है? वरन वह उसके प्राणरक्षा के लिये चिकित्सा करता है। एक देश पर प्राकृतिक आपदा या आतंकी हमले होने पर दूसरे देश उसकी हर सभंव मदद करते हैं। सहानुभूति प्रकट करते हैं।
गांधीजी अहिंसावादी थे। गोरखपुर जिला के चौरा - चौरी थाने में आग लगा दी गई। सिपाहियों को मार डाला। गांधी जी असहयोग आंदोलन चला रहे थे। उन्होंने आंदोलन खत्म कर दिया। उनकी भर्त्सना हुई कि वे अंग्रेजों के पिटठू हैं। लेकिन गांधी जी ने इस अपमान को सहन कर लिया।
अंग्रेजी सरकार भारतियों पर बर्बरता पूर्वक अत्याचार कर रही थी। क्रांतिकारियों को जेल में डाल रही थी। निहत्थों पर लाठियां बरसा रही थी। गांधीजी अहिंसक थे मगर मुम्बई के आजाद मैदान में हुंकार भरी कि अंग्रेजों भारत छोड़ों। लोगों से कहा कि करो या मरो। यद्यपि यह नारा उग्र है। युद्ध की ओर प्रेरित करता है, लेकिन इसका सुखद परिणाम यह आया कि देश को उसका स्वराज मिला। अंग्रेजी सरकार बोरिया - बिस्तर समेट कर ब्रिटेन लौट गयी।
संसद में - विधानसभाओं में पक्ष - विपक्ष में मल्ल युद्ध होते हैं। यह जनहित में आवश्यक है। इस आरोप - प्रत्यारोप में जनता के सुख सुविधाओं के लिए अनेक योजनायें बनती है।
यह सर्वविदित है कि दही और मथानी के मध्य भयंकर युद्ध होता है। इसके फल में शक्तिवर्धक घी निकलता है।
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