नूतन प्रसाद शर्मा
रामायण के अनुसार रावण के पास पुष्पक विमान था। लंका विजय के पश्चात राम -सीता, लक्ष्मण और हनुमान के साथ पुष्पक से ही अयोध्या लौटे।
इस पर बहस छिड़ गई - क्या साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व रामायण काल में विमान के निर्माण की तकनीक आ गई थी? क्या लोग किसी उड़ते हुए वाहन में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे?
उत्तर आया - कदापि नहीं। वस्तुत: पक्षियों को उड़ते हुए देखकर बुद्धिजीवियों ने सोचा - पक्षी और मनुष्यों के शारिरिक संरचना में अंतर है। अत: मनुष्य में उड़ने का सामर्थ्य नहीं है। मगर हम चिंतन के द्वारा वाहन तो बना सकते हैं। उन्होंने कल्पना की कि एक वाहन है। वह आकाश में उड़ रहा है। उसमें लोग बैठे हैं। इच्छित गंतव्य की ओर जा रहे हैं। फिर विमान निर्माण पर अनुसंधान आरंभ हो गया। माडल तैयार हुआ। उड़ने के लायक कम भार वाले वस्तु की खोज हुई। इसमें अनेक वैज्ञानिक प्रयासरत थे लेकिन अलवर बिलवर राइट बंधु ने सर्वप्रथम सफलता पाई।अब तो विमान से बढ़कर द्रुतगामी राकेट आ गया है। वह चंद्रमा और मंगलग्रह में प्राणियों के रहने लायक वातावरण की खोज कर रहा है।
समुद्र मंथन से अमृत और हलाहल निकला। विष तो सरलता से प्राप्त हो सकता है। लेकिन अमृत अभी तक नहीं मिला है। अमृत सर्वमान्य गुण यह है कि उसके सेवन से प्राणी अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।
मनुष्य खोजी प्रवृति का है। वह अमर नहीं हुआ लेकिन लम्बी उम्र जीने का उपाय ढूंढा। शरीर का एक अंग रोगग्रस्त है उसे शल्यक्रिया के द्वारा काटा गया। अनुपयोगी को हटाया गया। नेत्रबंद है तो दूसरे के नेत्र को प्रत्यारोपण किया। रोगों को दूर भगाने अनेक औषधियों की खोज हुई। शरीर में स्थित सेल '' एनिंग प्रोटोस '' के कारण कमजोर होता है। तब प्राणी बूढ़ा होता है। वर्तमान में वृद्धावस्था रोकने '' एन्टी एजिंग '' विधि पर शोध जारी है। तो क्या प्राणी वृद्ध नहीं होगा। उसकी मृत्यु नहीं होगी? इसका भविष्यवाणी करना असंभव है लेकिन औसत आयु में वृद्धि अवश्य हुई है।
मनुष्य को इच्छित वस्तु खाने की लालसा सदा से रही है। बिना श्रम के बैठे बिठाये मुफ्त में मिल जाये तो ब्रहृमानंदकी प्राप्ति हो गई ...। कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर कल्पना से ही इच्छित स्वादिष्ट व्यंजन प्राप्त हो जाता है। यद्यपि यह काल्पनिक है मगर पाक कला को उत्तम बनाने लोगों का ध्यान गया। षटरस और छप्पन प्रकार के भोजन की खोज हुई। मसाले, सूखे मेवे और दूध को शामिल किया गया। शीघ्र पकाने गैस और कूकर का स्तेमाल हो रहा है। स्टार होटलों में प्रशिक्षित कुक ग्राहक की माँग के अनुरुप भोजन देते हैं। विद्यालय में होम साइंस है। पाककला का पाठ पढ़ाया जाता है।
समुद्र का जल खारा है। मगर ग्रंथों में क्षीरसागर अर्थात दूध के समुद्र का वर्णन है। यह सर्वथा असंभव है। मगर स्वादिष्ट बलवर्धक वस्तु अधिकाधिक मात्रा में पाने की लालसा सदा से रही है। इसके लिये मनुष्य ने पशुपालन और डेयरी की व्यवस्था की। गाय को माता दर्जा दिया ताकि लोग उसका पालन करें। उसके पौष्टिक चारे की व्यवस्था करें। ताकि वह गाय अधिक से अधिक दूध दे।
लोहे को पारस पत्थर में स्पर्श कराने से लोहा तत्काल सोना बन जाता है '' लोहा छुअत सोन भइजाय '' कम मूल्य की वस्तु कई गुना अधिक मूल्य की बन जाती है। अहो प्रन्यतोहे सर्व गुण के अनुसार मनुष्य की सदा लालसा रही है कि अल्पश्रम से अधिक लाभ हो। श्रम के मुकाबले अधिक सुख - सुविधायें मिले। उसने प्रयत्न प्रारंभ किया - हल चलाते - चलाते थक गया तो जुताई के लिए ट्रैक्टर का आविष्कार किया। पत्र लेखन से विकास करके मोबाईल आया। शारीरिक श्रम से आय और उत्पादन कम हुआ तो मशीन आया। पहले अनाज से रूपिया आता था आज रूपिया से अनाज है। बैंकों में कतार बनाकर रूपिया आहरण करने की आवश्यकता नहीं है। ए.टी.एम. है। क्रेडिट कार्ड है। विश्व की जानकारी प्राप्ति के लिए इंटरनेट है। पदयात्रा करते - करते थक गया तो बैलगाड़ी, सायकिल, मोटर सायकिल, से होते हुए विमान तक फिर राकेट तक गया।
मनुष्य अपनी आवश्यकता की कल्पना करके उस वस्तु को यथार्थ में पाने सतत प्रयासरत है।
इस पर बहस छिड़ गई - क्या साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व रामायण काल में विमान के निर्माण की तकनीक आ गई थी? क्या लोग किसी उड़ते हुए वाहन में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे?
उत्तर आया - कदापि नहीं। वस्तुत: पक्षियों को उड़ते हुए देखकर बुद्धिजीवियों ने सोचा - पक्षी और मनुष्यों के शारिरिक संरचना में अंतर है। अत: मनुष्य में उड़ने का सामर्थ्य नहीं है। मगर हम चिंतन के द्वारा वाहन तो बना सकते हैं। उन्होंने कल्पना की कि एक वाहन है। वह आकाश में उड़ रहा है। उसमें लोग बैठे हैं। इच्छित गंतव्य की ओर जा रहे हैं। फिर विमान निर्माण पर अनुसंधान आरंभ हो गया। माडल तैयार हुआ। उड़ने के लायक कम भार वाले वस्तु की खोज हुई। इसमें अनेक वैज्ञानिक प्रयासरत थे लेकिन अलवर बिलवर राइट बंधु ने सर्वप्रथम सफलता पाई।अब तो विमान से बढ़कर द्रुतगामी राकेट आ गया है। वह चंद्रमा और मंगलग्रह में प्राणियों के रहने लायक वातावरण की खोज कर रहा है।
समुद्र मंथन से अमृत और हलाहल निकला। विष तो सरलता से प्राप्त हो सकता है। लेकिन अमृत अभी तक नहीं मिला है। अमृत सर्वमान्य गुण यह है कि उसके सेवन से प्राणी अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।
मनुष्य खोजी प्रवृति का है। वह अमर नहीं हुआ लेकिन लम्बी उम्र जीने का उपाय ढूंढा। शरीर का एक अंग रोगग्रस्त है उसे शल्यक्रिया के द्वारा काटा गया। अनुपयोगी को हटाया गया। नेत्रबंद है तो दूसरे के नेत्र को प्रत्यारोपण किया। रोगों को दूर भगाने अनेक औषधियों की खोज हुई। शरीर में स्थित सेल '' एनिंग प्रोटोस '' के कारण कमजोर होता है। तब प्राणी बूढ़ा होता है। वर्तमान में वृद्धावस्था रोकने '' एन्टी एजिंग '' विधि पर शोध जारी है। तो क्या प्राणी वृद्ध नहीं होगा। उसकी मृत्यु नहीं होगी? इसका भविष्यवाणी करना असंभव है लेकिन औसत आयु में वृद्धि अवश्य हुई है।
मनुष्य को इच्छित वस्तु खाने की लालसा सदा से रही है। बिना श्रम के बैठे बिठाये मुफ्त में मिल जाये तो ब्रहृमानंदकी प्राप्ति हो गई ...। कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर कल्पना से ही इच्छित स्वादिष्ट व्यंजन प्राप्त हो जाता है। यद्यपि यह काल्पनिक है मगर पाक कला को उत्तम बनाने लोगों का ध्यान गया। षटरस और छप्पन प्रकार के भोजन की खोज हुई। मसाले, सूखे मेवे और दूध को शामिल किया गया। शीघ्र पकाने गैस और कूकर का स्तेमाल हो रहा है। स्टार होटलों में प्रशिक्षित कुक ग्राहक की माँग के अनुरुप भोजन देते हैं। विद्यालय में होम साइंस है। पाककला का पाठ पढ़ाया जाता है।
समुद्र का जल खारा है। मगर ग्रंथों में क्षीरसागर अर्थात दूध के समुद्र का वर्णन है। यह सर्वथा असंभव है। मगर स्वादिष्ट बलवर्धक वस्तु अधिकाधिक मात्रा में पाने की लालसा सदा से रही है। इसके लिये मनुष्य ने पशुपालन और डेयरी की व्यवस्था की। गाय को माता दर्जा दिया ताकि लोग उसका पालन करें। उसके पौष्टिक चारे की व्यवस्था करें। ताकि वह गाय अधिक से अधिक दूध दे।
लोहे को पारस पत्थर में स्पर्श कराने से लोहा तत्काल सोना बन जाता है '' लोहा छुअत सोन भइजाय '' कम मूल्य की वस्तु कई गुना अधिक मूल्य की बन जाती है। अहो प्रन्यतोहे सर्व गुण के अनुसार मनुष्य की सदा लालसा रही है कि अल्पश्रम से अधिक लाभ हो। श्रम के मुकाबले अधिक सुख - सुविधायें मिले। उसने प्रयत्न प्रारंभ किया - हल चलाते - चलाते थक गया तो जुताई के लिए ट्रैक्टर का आविष्कार किया। पत्र लेखन से विकास करके मोबाईल आया। शारीरिक श्रम से आय और उत्पादन कम हुआ तो मशीन आया। पहले अनाज से रूपिया आता था आज रूपिया से अनाज है। बैंकों में कतार बनाकर रूपिया आहरण करने की आवश्यकता नहीं है। ए.टी.एम. है। क्रेडिट कार्ड है। विश्व की जानकारी प्राप्ति के लिए इंटरनेट है। पदयात्रा करते - करते थक गया तो बैलगाड़ी, सायकिल, मोटर सायकिल, से होते हुए विमान तक फिर राकेट तक गया।
मनुष्य अपनी आवश्यकता की कल्पना करके उस वस्तु को यथार्थ में पाने सतत प्रयासरत है।
भण्डारपुर ( करेला )
पोष्ट - ढारा, व्हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
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