छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शनिवार, 11 जून 2016

माडल

नूतन प्रसाद शर्मा

       देवासुर संग्राम खत्म हो गया था। देवता जीत गये। दानव हार गये। वस्तुत: समुद्र पर कब्जा जमाने और उसमें स्थित बहुमूल्य वस्तुओं पर अधिकार की लड़ाई थी। समुद्र का दूसरा नाम रत्नाकर है। साहित्य में वह पूंजीपति है। बड़ी - बड़ी नदियों का जल उसमें समाहित होता है। उसमें संचयशक्ति इतनी अधिक है कि अपार जलराशि समाने के बाावजूद उसका विस्तारीकरण नहीं होता। वास्तारीकरण के कारण जल -  क्षय होने से भी ज्यों का त्यों रहता है।
       महा भागवत के रचयिता वेदव्यास इस युद्ध को विस्तृत रूप देना चाहते थे। यदि घटना को वास्तविक रूप में दिखा दिया जाय तो पाठक पसंद नहीं करेगा। प्रस्तूतीकरण में नाटकीयता होना चाहिये।
       वे घटना का माडल की रूपरेखा की खोज में निकल पड़े । वे एक गाँव में पहुंचे। एक घर से खड़र - बड़र, खड़र - बड़र की आवाज आ रही थी। वे अंदर गये। देखा कि एक स्त्री दही बिलो रही है। भदोही (मिट्टी का पात्र) में दही है। रस्सी को खंभे से बांधा है। उस रस्सी को मथानी से बांधा है। अब प्रारंभ हुआ बिलोने का काम। वह स्त्री रस्सी को बाये ओर खींचती है। फिर दांये ओर।
       बिलोने का कार्यक्रम समाप्त हो गया। दही से मक्खन निकला। मक्खन को कड़ाही में डालकर पकाया। लो परिणाम स्वरूप घी निकल गया। महेर को अनुपयोगी समझ कर अलग रख दिया।
       व्यास को युद्ध का माडल मिल गया। इसे भागवत पुराण में विस्तृत रूप देने लगे - महौदा को समुद्र बनाया। दही को पानी। मथानी को मंदराचल पर्वत। रस्सी को वासु की सर्प। रस्सी का एक छोर देवता तो दूसरा छोर दानव है। युद्ध चल रहा है। समुद्र से मथने से घी जैसा बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त हुई। देवता जीत गये। उन्हें लक्ष्मी (धन) अमृत, ऐरावत हाथी अर्थात उच्च कोटि के रत्न मिले। दानव हार गये तो महेर जैसा हलाहल मिला।
       व्यास का उद्देश्य पूरा हो गया था। इस भव्य कथा का आज भी झांकी, प्रवचन, फिल्म, धारावाहिक के द्वारा प्रचार होता है। पाठक - दर्शक इसकी प्रशंसा करके रोमांचित होते हैं।  

भण्‍डारपुर ( करेला )
पोष्‍ट - ढारा, व्‍हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्‍तीसगढ़ )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें