नूतन प्रसाद शर्मा
भगवद्गीता ने भविष्यवाणी की है कि जब - जब अन्याय, शोषण और विसमता की वृद्धि होती है तब - तब इन दुगुणों से निजात दिलाने महापुरूष इस पृथ्वी पर आते हैं।
ताड़का और सुबालु आतंक मचा रहे थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों, समाजसेवकों को परेशान कर रखा था। अंत में राम ने उन्हें दण्डित किया और सज्जनों के हितों की रक्षा की।
वे आगे बढ़े। लोगों ने उन्हें रोका। कहा - आप उधर मत जाइये। वहां एक पतित स्त्री हैं। चरित्रहीन है। उसके पास जाने से आपके यश का क्षय होगा।
राम आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने पूछा - वह स्त्री कौन है? उसका दोष क्या है?
लोगों ने बताया - वह महापण्डित गौतम की पत्नी अहिल्या है। उन्होंने इसे त्याग दिया है। हमने भी उस पतिता का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। वह अकेली, अपमानित जीवन जी रही है।
राम वास्तविकता जानने अहिल्या के पास गये। वहां देखा कि एक स्त्री मलिन वस्त्र पहने दयनीय हालत में बैठी है। अहिल्या ने राम से कहा - आप इधर मत आइये। मैं पापिनी हूं। चरित्रहीन हूं। मैं संभ्रांत लोगों के त्याज्य के लायक हूं।
राम द्रवित हो गये। कहा - माँ, आप निर्दोष हैं। पुरूषवादी समाज ने समाज ने आपको दण्डित किया है। यह नियम क्रूर और हिंसक है। हर हाल में - पुत्र कुपुत्रों जायते- माता कुमाता न भवति।
राम ने लोगों को समझाया - अपराध तो इन्द्र की है। वह राजा है। प्रजा की आबरू की रक्षा करना राजा का धर्म है लेकिन उसने पतित कर्म किया। दण्ड तो उसे ही मिलना चाहिये।
राम ने पुन: कहा - मेरे भाइयों , वेद के निर्माण में मैत्रेयी - गार्गी जैसे नारियों का सहयोग है। जिस नारी ने पुरूषों को जन्म दिया उन्हीं पुरूषों ने अपनी शान और श्रेष्ठता को स्थायित्व देने नारी को गौण बनाकर अपमान किया।''
लोगों ने अहिल्या को अपनाया। अहिल्या को प्रसन्नता हुई। उसे ऐसा लगा - कि वह इतने दिनों तक निर्जीव पत्थर थी लेकिन आज जीवित हो गई है।
राम के इस आदर्श का समाज पर अच्छा प्रभाव पड़ा। दोषी को तत्काल दण्ड न देकर उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया गया। भूले - भटके राही को वास्तविक राय देने का संकल्प पारित हुआ।
वर्धमान ने राजपाट त्याग दिया। लोग चकित थे कि राज परिवार के सदस्यों का मुख्य कार्य आखेट करना, प्रजा पर शासन करना, इच्छित भोजन करना, युद्ध करके अपने राज्य का विस्तार करना है। लेकिन यहां तो लोभ मद मोह से नाता तोड़ लिया है और '' अहिंसा परमोधर्म: '' के सिद्धान्त पर चल रहे हैं।
वे वन की ओर जा रहे थे। लोगों ने सलाह दी - आप उधर ना जायें। चण्डकौशिक नामक एक सर्प ने आतंक मचा रखा है। उसने कई प्राणियों को डस कर मार डाला है।''
वर्धमान ने कहा - वीर वही है जो आततायी से टक्कर ले। निर्बल की रक्षा करे ''
वे चण्ड के पास पहुंचे। चण्ड ने विष का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। वर्धमान निर्विकार भाव से खड़े रहे। चण्ड का विष खत्म हो गया। वह थककर असहाय अवस्था में अपने फन को जमीन पर रख दिया। उसकी दीनता को देखकर वर्धमान दुखी हो गये।
चण्ड ने कहा - विष मेरा खत्म हुआ। शक्तिहीन मैं हुआ। लेकिन दुखी आप हैं। ऐसा क्यों ?''
वर्धमान ने कहा - प्रकृति ने आत्मरक्षा के लिये तुम्हें विष दिया था। इसके कारण प्राणी तुमसे भय खाते थे। तुम निर्भय रहते थे। लेकिन तुमने व्यर्थ ही बहा दिया। अगर इसी विष को सेवा भावना से दान कर देते तो जीवन रक्षक औषधि बनती।''
इसी बीच लोग आ गये। उनके हाथ में हथियार थे। वे चण्ड को मारने दौड़े। कहा - इसने विष के बल पर हमें बहुत डराया। हमारा अहित किया। अब इससे प्रतिशोध लेंगे। दण्ड स्वरूप इसके प्राण लेंगे ''
वर्धमान ने कहा - यह असहाय है। असहाय और निर्बल को मारना वीरों का कार्य नहीं। वीरों का काम तो क्षमा करना है। क्षमा वीरस्य भूषणम:। तुम स्वतंत्रता पूर्वक जियो और इसे भी निश्चिंतता से जीने दो।''
लोगों को '' जियो और जीने दो '' का सिद्धान्त बहुत पसंद आया। उन्होंने वर्धमान से कहा - आप तो महावीर हैं ''
हल्दी घाटी का युद्ध प्रारंभ हो गया था। महाराणा प्रताप को सैन्य संचालन के लिये धन की आवश्यकता थी। भामाशाह आये। कहा - मैं अपनी सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित करना चाहता हूं। देश हित में सेवा करने की मेरी मंसा है।''
महाराणा ने कहा - धन बड़ी मुश्किल से कमाया जाता है, भामाशाह। भावना में बहकर अपने श्रम से कमाये धन को किसी मो मत दो। धन है तब समाज में सम्मान है।वृद्धावस्था में यही धन तुम्हारा सहारा बनेगा। इसे संचय करके रखो ''
भामाशाह ने कहा - मुझे भ्रमित न करें। देश है तो मैं हूं। देश सुरक्षित रहेगा तो धन पुन: अर्जित कर लूंगा ''
भामाशाह ने अपनी सर्वस्व सम्पत्ति देशहित में दान कर दी। देशभक्ति की प्रेरणा भामाशाह के उदार कर्मों के द्वारा ही प्रदत्त है।
यह प्रसिद्ध कहावत है - नौ लोग दस चूल्हे। याने लोगों के बीच भेद की दीवारें मजबूती से खड़ी थी। अमीर और गरीब के अलग - अलग रास्ते। शासक और शासित में अंतर। गुरू रामदास समतावादी थे। वे सब को एक ही ईश्वर की संतान कहते थे। लोगों में एकता, भाईचारा को बढ़ावा देने के लिये '' लंगर '' की व्यवस्था की। इसमें राजा - रंक एक साथ बैठकर भोजन लेते थे। यह आज भी सतत है। एक ते सब नूं बंदे।
अंग्रेज ब्रिटेन से आये। उन्होंनेे व्यवसाय आरंभ किया। फिर राजनीति में आये। पूरे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। लेकिन भारतियों पर जुल्म ढाने लगे। इससे देश में आक्रोश फैल गया। चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, रामप्रसाद विस्मिल, अशहाक उल्लाह ने अंग्रेजी शासन को देश से बाहर खदेड़ने अपने प्राणों की बलि दी। आज हम उनके त्याग के कारण स्वतंत्र सांसे ले रहे हैं। कवि प्रदीप ने जवाहरलाल नेहरू के संबंध में कहा -
ताड़का और सुबालु आतंक मचा रहे थे। उन्होंने बुद्धिजीवियों, समाजसेवकों को परेशान कर रखा था। अंत में राम ने उन्हें दण्डित किया और सज्जनों के हितों की रक्षा की।
वे आगे बढ़े। लोगों ने उन्हें रोका। कहा - आप उधर मत जाइये। वहां एक पतित स्त्री हैं। चरित्रहीन है। उसके पास जाने से आपके यश का क्षय होगा।
राम आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने पूछा - वह स्त्री कौन है? उसका दोष क्या है?
लोगों ने बताया - वह महापण्डित गौतम की पत्नी अहिल्या है। उन्होंने इसे त्याग दिया है। हमने भी उस पतिता का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। वह अकेली, अपमानित जीवन जी रही है।
राम वास्तविकता जानने अहिल्या के पास गये। वहां देखा कि एक स्त्री मलिन वस्त्र पहने दयनीय हालत में बैठी है। अहिल्या ने राम से कहा - आप इधर मत आइये। मैं पापिनी हूं। चरित्रहीन हूं। मैं संभ्रांत लोगों के त्याज्य के लायक हूं।
राम द्रवित हो गये। कहा - माँ, आप निर्दोष हैं। पुरूषवादी समाज ने समाज ने आपको दण्डित किया है। यह नियम क्रूर और हिंसक है। हर हाल में - पुत्र कुपुत्रों जायते- माता कुमाता न भवति।
राम ने लोगों को समझाया - अपराध तो इन्द्र की है। वह राजा है। प्रजा की आबरू की रक्षा करना राजा का धर्म है लेकिन उसने पतित कर्म किया। दण्ड तो उसे ही मिलना चाहिये।
राम ने पुन: कहा - मेरे भाइयों , वेद के निर्माण में मैत्रेयी - गार्गी जैसे नारियों का सहयोग है। जिस नारी ने पुरूषों को जन्म दिया उन्हीं पुरूषों ने अपनी शान और श्रेष्ठता को स्थायित्व देने नारी को गौण बनाकर अपमान किया।''
लोगों ने अहिल्या को अपनाया। अहिल्या को प्रसन्नता हुई। उसे ऐसा लगा - कि वह इतने दिनों तक निर्जीव पत्थर थी लेकिन आज जीवित हो गई है।
राम के इस आदर्श का समाज पर अच्छा प्रभाव पड़ा। दोषी को तत्काल दण्ड न देकर उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया गया। भूले - भटके राही को वास्तविक राय देने का संकल्प पारित हुआ।
वर्धमान ने राजपाट त्याग दिया। लोग चकित थे कि राज परिवार के सदस्यों का मुख्य कार्य आखेट करना, प्रजा पर शासन करना, इच्छित भोजन करना, युद्ध करके अपने राज्य का विस्तार करना है। लेकिन यहां तो लोभ मद मोह से नाता तोड़ लिया है और '' अहिंसा परमोधर्म: '' के सिद्धान्त पर चल रहे हैं।
वे वन की ओर जा रहे थे। लोगों ने सलाह दी - आप उधर ना जायें। चण्डकौशिक नामक एक सर्प ने आतंक मचा रखा है। उसने कई प्राणियों को डस कर मार डाला है।''
वर्धमान ने कहा - वीर वही है जो आततायी से टक्कर ले। निर्बल की रक्षा करे ''
वे चण्ड के पास पहुंचे। चण्ड ने विष का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। वर्धमान निर्विकार भाव से खड़े रहे। चण्ड का विष खत्म हो गया। वह थककर असहाय अवस्था में अपने फन को जमीन पर रख दिया। उसकी दीनता को देखकर वर्धमान दुखी हो गये।
चण्ड ने कहा - विष मेरा खत्म हुआ। शक्तिहीन मैं हुआ। लेकिन दुखी आप हैं। ऐसा क्यों ?''
वर्धमान ने कहा - प्रकृति ने आत्मरक्षा के लिये तुम्हें विष दिया था। इसके कारण प्राणी तुमसे भय खाते थे। तुम निर्भय रहते थे। लेकिन तुमने व्यर्थ ही बहा दिया। अगर इसी विष को सेवा भावना से दान कर देते तो जीवन रक्षक औषधि बनती।''
इसी बीच लोग आ गये। उनके हाथ में हथियार थे। वे चण्ड को मारने दौड़े। कहा - इसने विष के बल पर हमें बहुत डराया। हमारा अहित किया। अब इससे प्रतिशोध लेंगे। दण्ड स्वरूप इसके प्राण लेंगे ''
वर्धमान ने कहा - यह असहाय है। असहाय और निर्बल को मारना वीरों का कार्य नहीं। वीरों का काम तो क्षमा करना है। क्षमा वीरस्य भूषणम:। तुम स्वतंत्रता पूर्वक जियो और इसे भी निश्चिंतता से जीने दो।''
लोगों को '' जियो और जीने दो '' का सिद्धान्त बहुत पसंद आया। उन्होंने वर्धमान से कहा - आप तो महावीर हैं ''
हल्दी घाटी का युद्ध प्रारंभ हो गया था। महाराणा प्रताप को सैन्य संचालन के लिये धन की आवश्यकता थी। भामाशाह आये। कहा - मैं अपनी सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित करना चाहता हूं। देश हित में सेवा करने की मेरी मंसा है।''
महाराणा ने कहा - धन बड़ी मुश्किल से कमाया जाता है, भामाशाह। भावना में बहकर अपने श्रम से कमाये धन को किसी मो मत दो। धन है तब समाज में सम्मान है।वृद्धावस्था में यही धन तुम्हारा सहारा बनेगा। इसे संचय करके रखो ''
भामाशाह ने कहा - मुझे भ्रमित न करें। देश है तो मैं हूं। देश सुरक्षित रहेगा तो धन पुन: अर्जित कर लूंगा ''
भामाशाह ने अपनी सर्वस्व सम्पत्ति देशहित में दान कर दी। देशभक्ति की प्रेरणा भामाशाह के उदार कर्मों के द्वारा ही प्रदत्त है।
यह प्रसिद्ध कहावत है - नौ लोग दस चूल्हे। याने लोगों के बीच भेद की दीवारें मजबूती से खड़ी थी। अमीर और गरीब के अलग - अलग रास्ते। शासक और शासित में अंतर। गुरू रामदास समतावादी थे। वे सब को एक ही ईश्वर की संतान कहते थे। लोगों में एकता, भाईचारा को बढ़ावा देने के लिये '' लंगर '' की व्यवस्था की। इसमें राजा - रंक एक साथ बैठकर भोजन लेते थे। यह आज भी सतत है। एक ते सब नूं बंदे।
अंग्रेज ब्रिटेन से आये। उन्होंनेे व्यवसाय आरंभ किया। फिर राजनीति में आये। पूरे भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। लेकिन भारतियों पर जुल्म ढाने लगे। इससे देश में आक्रोश फैल गया। चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, रामप्रसाद विस्मिल, अशहाक उल्लाह ने अंग्रेजी शासन को देश से बाहर खदेड़ने अपने प्राणों की बलि दी। आज हम उनके त्याग के कारण स्वतंत्र सांसे ले रहे हैं। कवि प्रदीप ने जवाहरलाल नेहरू के संबंध में कहा -
करती है फरियाद ये धरती कई हजारों साल
तब होता है जाकर पैदा एक जवाहर लाल।गांधी जी के संबंध में कवि प्रदीप ने ही कहा -
दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबर मती के संत तूने कर दिया कमाल।।
कवि प्रदीप ने पुन: चेताया -
हम लाये है तूफान से कश्ती निकाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के।
महान क्रांतिकारियों, देशप्रमियों ने हमें देश रक्षा की जिम्मेदारी दी है। इसे कर्म के द्वारा सम्हालना होगा।
तब होता है जाकर पैदा एक जवाहर लाल।गांधी जी के संबंध में कवि प्रदीप ने ही कहा -
दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबर मती के संत तूने कर दिया कमाल।।
कवि प्रदीप ने पुन: चेताया -
हम लाये है तूफान से कश्ती निकाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के।
महान क्रांतिकारियों, देशप्रमियों ने हमें देश रक्षा की जिम्मेदारी दी है। इसे कर्म के द्वारा सम्हालना होगा।
भण्डारपुर ( करेला )
पोष्ट - ढारा, व्हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
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