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शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

मुझे तोड़ लेना वनमाली

नूतन प्रसाद
         अब भारत को किसी के दरवाजे झांकने की आवश्य कता नहीं है.उसकी आथिर्क क्स्थति बेहद तगड़ी और सुदृढ़ है. एक दिन वह सोच  के समुद्र में डूब गया कि एफ.सी.आई. अनाज को और बैंक रूपयों को सम्हालने में असमर्थ है तो बहते धन का क्‍या करूं ? उसका खाद बनवा दूं या फिर समुद्र में फिकवा दूं ? भारत को कुछ उपाय  नहीं सूझ रहा था कि उसकी अंतरात्मा ने ही कहा कि भूल गया उन देशभक्‍त वीरों, विद्वानों को जिनकी बलिष्‍ठ  भुजाओं ने तुम्हें उन्‍नति के शिखर पर फेंका. अरे, वे मक्‍खी मच्छरों की तरह नहीं नाग की तरह इने - गिने तो है. भारत की चिंता हवा हो गई.उसने अपने लाड़लों की जेबों में पुरस्कार ठूंसना प्रारंभ कर दिया.
और यह सत्य  भी है कि भारत के ये विशिष्‍ट लाड़ले देश के प्रति इतने समपिर्त है कि इनके कर कमल पर पुरस्कार अपने आप समपिर्त हो जाते हैं.पुरस्कार को प्राप्‍त करने से पूर्व तक ये ध्वनि विस्तारक यंत्रों से घोषणा करते फिरते हैं कि हम तो नि: स्वार्थसेवी है.हमें कुछ नहीं चाहिए मगर बांटने के वक्‍त जिन्‍न की तरह प्रकट होते हैं और पुरस्कार के साथ बलात्कार कर बैठते हैं.ये खिलखिलाते हुए दूसरों को हंसते हुए कैमरे का क्लिक दबवाते हैं पर इनके दांतों के दशर्न नहीं होते क्‍योंकि इनके दांत पेट में छिपे रहते हैं.
          जिस किसी महानुभवों को पुरस्कार मिलने वाला हो वह पहले लात लगाये पर बाद में उस पर अन्याक्रांति करे.अरे, इससे बड़ा नाम होता है.अखबार समाचार उगलते हैं कि अमुक कुमार ने पुरस्कार को जूते मार दिए थे. लेकिन उनके महान कर्मों से आसI होकर पुरस्कार स्वयं आकर लिपट गया तो कोई करे क्‍या ? शरणागत को कोई दुत्कारता थोड़े ही है.इसके साथ ही अमुक कुमार पुरस्कार वितरण के वI कराटे का प्रदशर्न कर दें तो उनका यश कस्तूरी के गंध की तरह सवर्त्र फैल जायेगा.
          उपरोक्‍त कमर्कन्‍डों से पूर्व पुरस्कार रूपी चिड़िया को फांसने के लिए पापड़ बेलने पड़ते है.जूते पालिश करने पड़ते हैं मगर खुले आम नहीं, पर्दे के पीछे.जो भी सन पुरस्कार हड़पने बेचैन है वे एप्रोच  के द्वारा प्राप्ति  यज्ञ पूर्ण कर लें.एप्रोच  को शास्‍त्रों में गाय  की संज्ञा दी गई है. उनकी पूंछ पकड़कर बैतरणी से पार लगाया जा सकता है.इसमें भी एक बात कि जिसकी पूछ पकड़ी गई है उसकी पूंछ मजबूत हो. ऊंची कुर्सी पर पदासीन हो वरना ऐसे बहेंगे कि जाल डालने पर भी लाश नहीं मिलेगी. समुद्र मंथन के वक्‍त देवता,कल्पवृक्ष, उच्‍चश्रैवा,कामधेनु, ऐरावत इसलिए उड़ सके क्‍योंकि उनका सीधा एप्रोच  विष्णु तक था.
          अब मैं आपको उस स्थल की ओर घसीटना चाहूंता हूं जहां समारोह आयोजित था पुरस्कार वितरण के लिए.वैसे यह देश समारोहों का देश के नाम से सारे संसार में विख्यात है समारोह करके ही आत्मप्रचार किया जाता है कि देखो, हमने उन्‍नति कर ली. हम सक्षम नहीं होते तो समारोह कैसे करते ? हमारे यहां एशियाड हुआ अब ओलंपिक का आयोजन भी करेंगे. लोग भूख से तड़फ - तड़फ कर मर जाए. देश कर्ज के मार से रोये चिंघाड़े कोई चिन्ता नहीं पर समारोह करेंगे. जश्न मनायेंगे. है कोई माई का लाल जो रोक कर दिखाए. और समारोह होते है जिनमें लाखो रूपयों की होली जलती है पर आयोजकों से खर्चों के बारे में पूछा जाय तो वे कातर स्वर में मिमियायेंगे कि हमारी हस्ती ही क्‍या है. समारोह बिलकुल सादा था.दरअसल ये ईमानदारी इसलिए बताते हैं कि इन्कमटैक्‍स का फंदा उनका गला न कस सकें . धनी अगर कंगलू नाम रख लें तो उसके खाते जप्‍त नहीं होंगे कि हूं, इसके नाम में ही दम नहीं तो दाम क्‍या खाक होगा ? लो, यहां भी आम आदमी आम की तरह चूस डाला गया.
           समारोह स्थल को सजाने में रिजर्व बैंक के कितने कागज शहीद हुए इसे कैल्यिुलेटर भी नहीं बता सकता लेकिन यह सत्य है कि यह स्थल दूसरे स्थानों की खिल्‍ली उड़ा रहा था.निठल्‍ली दिल्‍ली देहातों के  पैसे से सजती है और देहातों से ही घृणा करती है.आखिर देहात शहरों के उपनिवेश है. मैं वहां आमंत्रित नहीं था पर खड़े होने लायक जगह मिली यह मेरे लिए गौरव की बात थी.नंगे को लंगोटी मिल जाए तो क्‍या कहना और पुरस्कार पाने का सवाल ही नहीं उठता क्‍योंकि योग्यता सदा मेरी दुश्मन रही. मैं तो बस आबंटित होने आये समानों को ललचाई दृष्टि से देख रहा था जैसे भूखा होटल में रखी मिठाइयों को.
          पुरस्कृत होने वालों में रामप्रकाश जैसे देशभक्‍त वीरभद्र जैसे वीर तथा अन्य  महान लोग थे.रामप्रकाश बंगालियों के प्रकाश दा महाराट्रानों के प्रकाश भाऊ छत्तीसगढ़ियों के परकास भइया थे. उनके हृदय  मेें देशभक्ति की इतनी हिलोरे उठती थी कि हार्ट अटैक होने का डर लगता था रामप्रकाश जैसे महापुरूष हमेशा पैदा थोड़े ही होते हैं. वो तो -
करती है फरियाद ये धरती कई हजारों साल ।
तब जाकर पैदा होता है एक जवाहर लाल ।।
          तभी ध्वनि विस्तारक यंत्र ने उपस्‍िथत जन समुदाय  के कानों में आवाज घुसेड़ी कि बाअदब, बाहोशियार, महान देशभक्‍त रामप्रकाश पुरस्कार को गौरवांवित  करने पधार रहे हैं. लोग श्रद्धावनत् खड़े हो गये. मानों जन - गन - मन गाये जाने वाला हो.रामप्रकाश ने माइक के सामने जाकर मुंह को खोला - भाइयों एवं बहनों.. हें.. हें.. हें.. आपने मुझे महान देशभक्‍त कहा उसके लिए मैं आपका ऋणी हूं. मैं तो अपने को बस देशरूपी बगिया का फूल मानता हूं.मेरी इतनी ही अभिलाषा है -
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक ।
मातृभूमि को शीश नवाने ,
जिस पथ जायें वीर अनेक ।
          सच कहूं - मुझमें पुरस्कार से अलंकृत होने की पात्रता बिल्कुल नहीं है मगर देश की वस्तु को अस्वीकार करता हूं तो देशवासी बिगड़ेंगे कि देश का अपमान कर दिया है. इसलिए अपनी स्वीकृति देता हूं.... ।
         इधर रामप्रसाद भाषण झाड़ रहे थे, उधर पुरस्कार उनके हाथ का स्पर्श पाने तड़फ रहा था तो उसने ऊंची छलांग लगा ही दी. रामप्रसाद के अलंकृत होने से तालियां इतनी प्रसन्‍न हुई कि वे अपने आप बजने लगी. उस समय  आकाश बिलकुल साफ था पर कहां से पुष्प वृष्टि हुई, पता ही नहीं चला.
          अब वीरभद्र की बारी आयी. उन्होंने इहलोक परान्‍न दुलर्भे को भी सुलभ करके देह बनायी थी. उनकी बलिष्‍ट भुजाएं बता रही थी कि वे ब्रम्हांड को गेंद की तरह फेंक देंगी. वे मुछें ऐसे मरोड़ रहे थे मानों दुश्मन का गला दबा रहे हो. सब तो ठीक था पर उनके नाम में भद्र शब्‍द क्‍यों आया यही समझ से परे था. वे उठकर चले तो पृथ्वी डगमगाने लगी और दिशाएं इधर से उधर भागती नजर आयी - डगमगानि महि दिग्गज डोले । लोग हांफते हुए आगे का दृष्य  देखने से मूंगफल्ली के बदले भय  खा रहे थे कि वीरभद्र ने पुरस्कार का शिकार वैसे ही कर लिया है जैसे शेर हिरण. वे पुरस्कार पकड़े चारों ओर घूमने लगे मानों कह रहा हो - इसका भक्षण तो अपने को ही करना था. शेर के शिकार का खून बकरी थोड़े ही पी सकती हैं.
          इसी प्रकार महानपुरूषों ने पुरस्कारों पर डांके डाले. वे वापस होने लगे तो मैं बधाई देने उनके पास पहुंच  गया. मैंने रामप्रसाद से कहा - क्‍यों साब, आपने देशभक्ति का पुरस्कार पाया. इसका अर्थ यही हुआ न कि आप ही देश के सच्‍चे सेवक है और बांकी लोग देशद्रोही ? मैं पूछता हूं सीमा से सैनिक हट जाएं, कृषक - श्रमिक काम करने छोड़ दे तो आप अकेले देश को सम्हाल लेंगे ? रामप्रकाश  भड़के - यहां सब मेरे गुणगान कर रहे हैं और तुम अपमान करने उतारू हो. तुम्हारे साहित्य  में भी महाकवि राष्‍ट्र ¬ कवि होते हैं तो क्‍या दूसरे कवि छोटे कवि या अराष्‍ट्रीय  हुए. अपना सुधार किया नहीं और कूद गया इंद्र की तरह हजार आंखें लेकर परदोष का दशर्न करने.
          अपनी जाति पर बम बरसते देख मैंने रामप्रकाश से अड्डी ले ली.अगर भूले - भटके पुरस्कार मुझ पर दीवाना हो गया तो दूसरे लेखक  मेरी चमड़ी उधेड़ लेंगे. मैं वीर भद्र की ओर मुड़ा. उनसे कहा - वास्तव में आप शेर है.
          वीरभद्र प्रसन्‍न हुए.बोले - तुमने मुझे ठीक समझा. मैंने पुन: कहा - आप शेर हैं तो बाकी गाय , हिरण, और बकरी हैं जिनका खून पीकर आप हृष्‍ट - पुष्ट हुए हैं. यह भी ठीक होगा.
वीरभद्र ने दहाड़ लगायी - ऐ मिस्टर होश से बात करो.
         मैंने कहा - मैं होश में हूं. बेहोश तो आप हैं जिन पर शक्ति का नशा चढ़ा है. मैंने आपको कई बार दुर्लबों पर अत्याचार करते. बहू - बेटियों की इज्‍जत लूटते देखा है. आप वीर नहीं कायर हैं. आपको कायरता का पुरस्कार मिलना चाहिए था.
         वीरभद्र गुस्से से कांपने लगे मैंने सोचा उन्हें मलेरिया तो नहीं हो गया मगर नहीं वे मेरी ओर झपटे. इतने में एक अन्य  पुरस्कृत सज्‍जन ने उन्हें रोका - अरे यार, छोड़ों भी. कहां लफंगे से भिड़ने चले. कुत्ता कितना भी भूंके पर हाथी को बाजार जाना चाहिए.
         और वे इठलाते - मचलते चले गये. मैं गुबार देखता वहीं का वहीं खड़ा रहा.
पता
ग्राम - भण्‍डारपुर ( करेला)
पोष्‍ट - ढारा, व्‍हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव

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