- नूतन प्रसाद -
एक दिन अकबर और बीरबल बैठे थे। अकबर ने कहा - बहुत दिनों से तुमने यह नहीं बताया कि जनता का हाल कैसा है। वह ठीक ठाक तो है न ?बीरबल ने बर्फी का टुकड़ा उठाया। खाया और कहा - जब हम खाते हैं, पीते हैं, मौज मस्ती करते हैं तो जनता मजे में होगी ही। आप तो जानते हैं - जैसे राजा, वैसी प्रजा होती है ... और बताऊं - आपके धर्म निरपेक्ष नीति का पालन बड़ी निष्ठा से हो रहा है। लोग एक दूसरे के धर्म को आदर देते हैं। सब ओर शांति है।इतने में संदेश वाहक आया। उसने बताया - हुजूर, जगह - जगह दंगों का तांडव नृत्य चल रहा है। उन्हें रोकने का उपाय कीजिये वरना जनता का नामोनिशान मिट जायेगा।अकबर बीरबल के ऊपर नाराज हो गये। बोले - जनता नहीं रहेगी तो शासन किस पर करुंगा। किसके इशारे पर दंगे हो रहे हैं, पता लगाकर आओ ...।बीरबल सिर के बल दौड़े। आये तो उत्तर भी पकड़ लाये थे। बोले - दंगे कराना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं। इनके कराने वाले बड़े प्रतिष्ठित और समाज के पथप्रदर्शक होते हैं। दंगे धर्माचार्यों के आशिर्वाद से हो रहे हैं धर्माचार्यों की स्तुति की गई है। वे प्रकटे। अहा, क्या दर्शनीय छवि थी उनकी। कमल नयन कल कुण्डल काना, बदन सकल सौंदर्य समाना। याने उन्हें किसी को उकसाने की जरुरत नहीं। उनके कमल नयन के इशारे से ही दंगे भड़क सकते थे। उन्होंने एक साथ कहा कि हमने एक ही गुरु मंत्र दिया है कि सब धर्म समान है। उनमें भेदभाव नहीं है। एक दूसरे के धर्म का अपमान करना चाहिए तभी तो वक्तव्य देने की जरुरत पड़ गयी .... और वे आपस में मार काट कर गये।वास्तव में धर्माचार्यों का दोष था ही नहीं। वे तो सगे भाई के समान रहते थे। वे एक दूसरे पर गलबहियां डालकर मुस्कराते हुए अंर्तध्यान हो गये। दंगे रोकने की कार्यवाही शुरु हुई। कर्फ्यू लगाया गया। गोलियां दागी गई। लोगों की मरम्मत न हो तो वे चेतते भी नहीं। काफी लोग दंगे की भेंट चढ़ चुके थे। इस संबंध में सरकार ने रिपोर्ट दिया गया - लोग भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को पूरे विश्व में फैलाने के इच्छुक थे, अत: उन्हें सरकारी खर्चे से विश्व भ्रमण पर भेज दिया गया।अकबर बीरबल पुन: गला फाड़ रहे थे। अकबर ने कहा - क्यों न इन धर्मों का अस्तित्व ही खत्म कर दी जाये। ये नहीं रहेंगे तो दंगे नहीं होंगे। बांस ही नहीं रहेगा तो बंासुरी कैसे बजेगी ? बीरबल ने कहा - सोच लीजिए, इधर आपने धर्म दफनाया उधर मुसीबत आप पर चढ़ जायेगी। धर्म मानव धर्म का दुश्मन है। अगर जनता को भुलावे में रखना है तो धर्म का अमर रहना आवश्यक है। साथ ही परमानंद लूटना है तो थोप दीजिए ईश्वरवाद। जनता गदही तो होती ही है, वह हंसते हंसते स्वीकार लेगी। बाई दवे वह किसी चीज की मांग करती है तो कह दीजिए - मैं निरीह मानव हूं। क्या दे सकता हूं। ईश्वर की आराधना करो। वही तुम्हारी मांगे पूरी करेगा ...आप नए धर्म की स्थापना हर हालत में करेंं। अकबर ने दीन ए इलाही नामक धर्म चला ही दिया। वास्तव में इस धर्म ने बड़ा कमाल दिखाया। लोगों ने नहर बनवाने के आवेदन को चूल्हे में डाला। सुख सुविधा की मांग को मिट्टी में मिलाया। उनकी टिप्पणी थी - हमारे बादशाह बड़े कृपालु हैं। उन्होंने हमें नया धर्म दिया है। अब धर्म हमारी रक्षा करेगा। धर्म की जय हो।जो शासक लोगों की आँखों में धूल झोंककर अपना उपकार करना चाहता है उसे धर्म की स्थापना करना चाहिए और चाटुकार को चाहिए कि राष्ट्र पतन के गर्त में चला जाये जनता का जनाजा निकल जाये मगर शासक को गलत सलाद दे। इससे कम से कम स्वयं का घर तो भरता है।
अकबर ने बीरबल को पु्रस्कारों से लाद दिया। वे फिर गुफ्तगूं में संलग्र थे कि एक स्त्री आई। उसने कहा - आपके राज्य में स्त्रियां इतनी सम्मानित है कि उनके साथ बलात्कार होते हैं। जिंदा जलाई जाती हैं क्या हम सिर्फ अत्याचार सहने के लिए ही पैदा हुई हैं ... हमें पुरुषों के बराबर अधिकार मिलना चाहिए।
बीरबल ने आँख दबाकर कहा - हां, हुजूर, इस स्त्री की मांग बिल्कुल ठीक है। स्त्रियों को वाजिब अधिकार मिलना ही चाहिए।
अकबर समता के पक्षधर थे ही। वे चौसर खेलते थे। उन्होंने हड्डी की गोटियां फेंकी। उनके बदले स्त्रियों की गोटियां बनाई। पासा फेकने लगे - पांच दो सात ...।
लीजिए, स्त्रियों को अधिकार के साथ सम्मान भी मिल गया। वैसे अकबर सामाजिक उपन्यास और अधराध को चांट जाते थे। मगर एक दिन इतिहास की पुस्तक से पे्रम कर बैठे। पढ़ी तो पुस्तक की भेद नीति पर गुस्सा आया। उन्होंने बीरबलल को बुलाया। कहा - आज तक शासक अधिकारी और अन्यायी शब्द से ही सुशोभित होते थे लेकिन अब पता चला कि पुस्तक भी अन्यायी होती है। देखो, इसमें कई राजाओं की बड़ी वंदना हुई है और कईयों की जबरदस्त खिंचाई। मेरे ही पुरखों की कथा सुनो - बाबर बड़े वीर और साहसी है और मेरे पिता हुमायूं भगेड़ू। शेरशाह को मेरे अब्बा से ज्यादा प्रशंसा मिली है। समझ नहीं आता मेरा कैसा इतिहास लिखा जायेगा। मैंने राणा प्रताप जैसे शेर के छक्के छुड़ाये हैं मगर इतिहास ने मुझे चूहा घोषित कर दिया तो ?
बीरबल ने कहा - आपको छोटी - छोटी बातों से दौरा पड़ने शुरु हो जाते हैं। आप रुपयों की जुगाड़ कर दीजिये। बाकी इतिहास में आपको प्रसिद्धि दिलाना इस बन्दे की जिम्मेदारी।
अकबर ने रुपयों का प्रबंध कर दिया। इसके संबंध में हंगामा मचा तो सफाई दे दी गई कि ये रुपये पंचवर्षीय योजनाओं में खर्च होगे।
अकबर ने फिल्म निर्माता को बुलाया। कहा - तुम्हारी सभी धांधली मुझे मालूम है। सेंसर बोर्ड के सदस्यों को दक्षिणा देकर घटिया फिल्म का ए सर्टिफिकेट लेते हो। तुम सेक्स अपराध पर फिल्म बनाकर लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर दो मगर पहले अकबर महान नामक फिल्म बनाओ। उसमें हमारे बादशाह का जबर्दस्त प्रदर्शन हो। उन्हें खलनायक न बना देना।
निर्माता ने समस्या रखी - मैं एक क्या हजार फिल्म बना दूं, मगर मेरे पास संगीतकार - गीतकार नहीं है।
बीरबल तुलसीदास के पास गये। बोले - आप राजा - महाराओं की बड़ी चमचई करते हैं। अकबर की प्रशंसा में आठ दस गीत तो लिख दीजिये।
तुलसी ने कहा - मेरा भी सुन लीजिये, मुझे मालूम है कि गीत लिखने पर रुपये मिलेगे पर मैंने प्रण किया है कि मांग के खइबो, मसीत में सोइबो। मुझे आपकी बात अस्वीकार है।
बीरबल ने सचेत किया - देखिए, किसी भी कवि के लिए उसके काव्य की कीमत सबसे अधिक होती है। आपने नाही की , आपकी रामचरित मानस पतित पावन गंगा में विसर्जित कर दी जायेगी। पाठ्यपुस्तकों से आपकी रचनाएं फेंक दी जायेगी। मान जाइये।
तुलसीदास तैयार हो गये गीत लिखने। बीरबल तानसेन के पास गये। तानसेन ने दीपक राग की तान छेड़ा कि बिजली गुल हो गई। बीरबल ने कहा - वास्तव में आप बड़े प्रतिभाशाली है। आपने दीपक राग अलापा कि अंधेरा हो गया। कृपया बताये कि और भी रागों के संबंध में कुछ ज्ञान है ?
तानसेन ने कहा - आप मुझे घटिया संगीतज्ञ न समझे। मैं राग मल्हार छेड़ दूं तो वर्षा बंद हो जाये। जजवन्ती छेड़ दूं तो लोगों को भूख ही न लगे।
बीरबल चहके - बहुत खूब, अब तो अकबर महान में संगीत आप ही देंगे।
इधर बीरबल गीतकार - संगीतकार के चक्कर लगा रहे थे कि अकाल पड़ गया। वैसे अकाल बहुत उपकारी है। जैसे आप कवि हैं तो अकाल पर कविताएं लिखिए। उन्हें छपवाइये। पारिश्रमिक की वर्षा होगी ही। उससे मलाई - रबड़ी खाइये। लोग भूख से तड़पे तो आप हरिओम का डकार लीजिए न ?
अकबर ने बीरबल को बुलाया। कहा - अब क्या होगा ? खेत जल गये। लोग भूख से स्वर्ग का दर्शन कर रहे हैं। मैं सोचता हूं कि फिल्म बनाने के खर्च को लोगों में बांट दिया जाय।
बीरबल ने कहा - उदारता दिखाकर चमड़ी क्यों खिचवाना चाहते हैं। अब तक आपने लोगों का लालन पालन किया। मगर उन्होंने आपके विरुद्ध नारे लगाये। आपका पुतला जलाया। उन नमक हरामों को मरने दीजिए, आप सिर्फ इतिहास में प्रशंसा पाने की सोचिए।
फिल्म बननी प्रारंभ हो गई। बन गई तो इतिहास विदों को आमंत्रित किया गया। फिल्म देखकर इतिहासकारों ने कहा - हमें फिल्म से मतलब नहीं। उसमें वास्तविक दृष्य नहीं होते। मरियल हीरो पन्द्रह बीस गुण्डों की पिटाई एक साथ कर देता है। गरीब धनवान के बंगले में जाकर उसे गाली दे आता है।
बीरबल ने कहा - आप भी तो झूठी बातें लिखते हैं। वर्ग का इतिहास होता है मगर आप इतिहास लिखते हैं जाति और धर्म का। दंगों के कारण में आपकी कलम का ही कमाल रहता है। कृपया अपनी पोल न खुलवायें ... यहां लोग पैसे में मुसीबत खरीद लेते हैं और आप मुफ्त में फिल्म देखने से कतरा रहे हैं। चलिए,शो शुरु होने का वक्त हो गया है।
इतिहास कार फिल्म टाकीज आये। गद्देदार कुर्सियों में जमे और लगे फिल्म देखने। एक जगह उन्होंने देखा कि लोग मरे पड़े हैं। बीरबल ने इसके संबंध में बताया कि देखिए तो अकबर के शासन में लोग कितने मजे में हैं। वे आराम से खर्राटे ले रहे हैं। उन्हें कोई काम करना ही नहीं पड़ता।
दूसरा दृष्य आया। इसमें लाशें सड़ कर फूल गई थीं। बीरबल ने पुन: कहा - हमारे बादशाह के राज में अन्न की कमी नहीं। लोगों को इतना पौष्टिक आहर मिलता है कि वे खा खाकर सांड हो गये हैं ...।
मध्यांतर हुआ। इतिहासकारों के लिए मुंगोड़ी गुपचुप इत्यादि की व्यवस्था हुई। एक ने चाय के बाद लस्सी का स्वाद चखा। दूसरे ने क्रमश: सिगरेट, पान, चाय, नाश्ता लेकर पहले की नाट काटी।
फिल्म पुन: प्रारंभ हुई। इसमें दिखाया गया कि अकबर लोगों के बीच गये। समस्याएं सुनी और उनका समाधान किया।
फिल्म का प्राणांत हुआ कि इतिहासकार भोज पर आमंत्रित हुए। वहां फल मिठाई और जाने क्या - क्या चीजों की व्यवस्था थी। इतिहासकारों ने मुफ्ते माल बेरहमी से उड़ाया। वे घर आये और बैठ गये इतिहास लिखने कि अकबर एक महान शासक है। उनकी छत्रछाया में लोग सुखी हैं। अकबर का काल इतिहास में स्वर्णकाल के नाम से जाना जायेगा ...।
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