छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

बुधवार, 13 जुलाई 2016

सुसमाचार

       नूतन प्रसाद

एक सकरी नदी थी.उस पर एक पुलिया बना था.उससे एक बार मे एक ही व्‍यक्ति पार कर सकता था. एक बार दो नेता जो हट्टे - कट्टे थे वे पुलिया के बीच  आमने - सामने हो गये.उनमें से एक का नाम रामू था और दूसरे का नाम श्यामू था.रामू ने कहा- '' मित्र,तुम्हें मालूम होगा कि हम लोगों के समान ही दो बकरों को भी ऐसी ही परेशानी उठानी पड़ी थी.दोनों आमने - सामने आ गये थे.फिर उनमें समझौता हुआ.एक बकरा लेट गया दूसरा बकरा उसके पेट के ऊपर से चढ़ कर निकल गया.पश्चात पहला बकरा भी उठकर पुलिया पार कर लिया.वैसे ही तुम भी लेट जाओ तो मैं तुम्हारे ऊपर से चढ़ कर निकल जाता हूं फिर तुम भी आसानी से पुलिया पार कर लेना.''
       रामू की बात सुनकर श्यामू को बहुत क्रोध आया.उसने कहा - '' ऐ मिस्टर,होश के साथ बोलो. मैं बकरा नहीं.बकरे का गोश्त खाने वाला इंसान हूं.और मैं तुमसे किस मामले में कमजोर हूं, जो सो जाऊं.तुम ही लेट जाओ.मैं तुम्हारे ऊपर चढ़ कर पहले पार हो लेता हूं.''
- '' मैंने समझौते की बात कही तो नाराज हो गये.तुम कैसे पार होओगे. पुलिया मैंने बनवायी है.''
- '' तभी तो संकरी और कमजोर है.जनता के साथ बेईमानी करने में जरा भी शर्म नहीं आयी.डूब मर बहुत पानी है.''
- '' तू कितना दूध का धुला है सबको ज्ञात है.सड़क बनवाने में कितने घपले किये.मुझको मालूम नहीं है क्‍या चोर ?''
- '' चोर कहने वाला होता कौन है.जुबान बंद कर नहीं तो दो - चार झापड़ रसीद कर दूंगा.''
- '' मारने वाला होता कौन है.जरा आगे बढ़ कर देख भला.टांगे तोड़ दूंगा.''
- '' अबे आता हूं. क्‍या करता है, देखता हूं.''
- '' अच्छा आ.''
       दोनों आगे बढ़े.झगड़ा शुरू हुआ.पहले लात घूंसे चले फिर उठा पटक हुई.वहां बीच  बचाव करने वाला कोई नहीं था.अत: लड़ते- लड़ते नदी में गिर पड़े और मर गये.
       लोगों ने जब इस समाचार को सुना तो उन्हें काफी दुख हुआ.उन्होंने कहा- '' काश,ऐसे ही सब नेता मर जाते.....।    

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