छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

बुधवार, 13 जुलाई 2016

विषपान

समुद्र मंथन का काय र् तीव्र गति से च ल रहा था कि कालकूट नामक विष निकल आया.उसके घातक प्रभाव से लोग दग्ध होने लगे.वासुकी जैसे विषधर भी मंदराच ल के पीछे छिप गया.इन्द्र ने विष्णु से कहा - प्रभु होम करते हाथ जल गया.कहां हम अमृत की खोज कर रहे थे औ कहां जहर हाथ आया.उसके गंध से ही कई मनुष्य  काल के ग्रास बन गये.
विष्णु ने सांत्वना दी - घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा.
- मौत सिर पर मंडरा रही है और आप ढ़ांढ़स बंधा रहे है.विष से बच ने के लिए कोई रास्ता तो निकालिए.
- जो हमारे सिद्धांतों का विरोधी हो.जिसके कारण हमारा वच र्स्व स्थापित नहीं हो पाता, ऐसे दुश्मन को पिला दो.
- ठीक है, दैत्यों को पिला देते हैं.
- अरे नहीं, वे मर गये तो कमाकर हमें कौन खिलायेगा !फिलहाल मंथन काय र् ठप्प पड़ जायेगा.
- तो आप ही बता दीजिए , हमारा शत्रु कौन हैं ?
-  समाजवादी शंकर है जो देवताओं की शोषण - नीति के विरोधी हैं.जाओ उन्हें प्रणाम कर पीला दो.भोले हैं , पी लेगे .

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