कालीदास जिस पर डाल पर बैठे थे उसी पर कुल्हाड़ी च ला रहे थे.उधर से कुछ लोग निकले.उनमें से एक ने कहा-बेचारी डाल ने आपको आश्रय दिया.उसका उपकार मानना चाहिए था लेकिन आप उसका ही घात करने तुले हैं.य ह तो सरासर बेईमानी है.
कालीदास अपने काय र् पर डंटे रहे.उनके पास पसीना पोंछने का वI नहीं था तो बात करने का सवाल ही नहीं उठता.लोगों में एक अनुभवी बूढ़ा भी था.उसने कहा - किसी के काम में रोड़ा यिों बनते हो ! कालीदास को कवि बनना हैं तो पूवार्¨यास कर रहे हैं.उनका ध्यान भंग मत करो.
- बुâे, तुम्हारी बुद्धि सठिया तो नहीं गई - ऐसा कैसे हो सकता है !
बुâे ने कहा - साहित्य के झमेले में तुम पड़े नहीं तो आश्च य र् करोगे ही.देखो, कोई भी कवि साहित्यि क क्षेत्र में पदापर्ण करता है तो सम्पादकों, प्रकाशकों, समीक्षकों गिड़गिड़ाता है.ये शरण देते हैं तो वह च मक भी जाता है.तब कवि का रौद्ररूप आता है सामने.वह इन तीनों को शोषक, लुटेरे और अत्याचारी करार देता है.कालीदास वैसे ही अपने आश्रय दाता के साथ घात नहीं करेंगे तो उनकी इच्छा कैसे पूणर् होगी.
और वास्तव में उस बूढ़े की भविष्य वाणी सत्य साबित हुई. कालीदास कवि बन कर रहे.
कालीदास अपने काय र् पर डंटे रहे.उनके पास पसीना पोंछने का वI नहीं था तो बात करने का सवाल ही नहीं उठता.लोगों में एक अनुभवी बूढ़ा भी था.उसने कहा - किसी के काम में रोड़ा यिों बनते हो ! कालीदास को कवि बनना हैं तो पूवार्¨यास कर रहे हैं.उनका ध्यान भंग मत करो.
- बुâे, तुम्हारी बुद्धि सठिया तो नहीं गई - ऐसा कैसे हो सकता है !
बुâे ने कहा - साहित्य के झमेले में तुम पड़े नहीं तो आश्च य र् करोगे ही.देखो, कोई भी कवि साहित्यि क क्षेत्र में पदापर्ण करता है तो सम्पादकों, प्रकाशकों, समीक्षकों गिड़गिड़ाता है.ये शरण देते हैं तो वह च मक भी जाता है.तब कवि का रौद्ररूप आता है सामने.वह इन तीनों को शोषक, लुटेरे और अत्याचारी करार देता है.कालीदास वैसे ही अपने आश्रय दाता के साथ घात नहीं करेंगे तो उनकी इच्छा कैसे पूणर् होगी.
और वास्तव में उस बूढ़े की भविष्य वाणी सत्य साबित हुई. कालीदास कवि बन कर रहे.
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