छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सुअवसर

एक शेर  हिरण और सांभर का खून पी कर आराम कर रहा था कि एक चूहा आया.शेर ने उसे पकड़ लिया.चूहे ने कहा - मेरी स्वतंत्रा पर तू यिों डांका डाल रहा है , मुझे छोड़ दे.
शेर गुरार्कर बोला - हरगिज नहीं, मैं तुझे खाऊंगा.
- तुमने दो जानवर मार खाये फिर भी भूख नहीं मिटी ? चूहेे ने कहा .
- बेवकूफ नहीं जानता समुद्र में सबसे अधिक पानी रहता है फिर भी वह प्यासा रहता है ?
- तुम कैसे राजा हो, जो निबर्ल का भक्षण करते हो ?
- जो निबर्ल - असहायों के अधिकार छीनने, उन्हें सताने में सक्षम होता है. वह तो राजा बनता है.
- दूसरों का खून पीते हुए दया नहीं आती ?
- बिल्कुल नहीं, दूसरों का खून पीने के कारण ही तन्दुरूस्त और बलवान हूं.खून न पीने के कारण तुम कमजोर हो तभी तो बि„ी मौसी भी उदरस् थ कर  लेती है.
चूहे ने शेर की पकड़ से छूटने का प्रय त्न किया.वह असफल रहा.उसने पुरानी बातों की दुहाई दी -एक बार एक शिकारी ने तुम्हें अपने जाल में फंसा लिया था. तुमने बहुत प्रय त्न किये पर जाल से छूट न सके .मैं दौड़कर आया और जाल काटकर तुम्हारी रक्षा की.उसका अहसान भूल जाओगे ?
- हां....।
- यिों ?
- वह तो तुम्हारा कतर्व्य  था.छोटों को चाहिए कि वह बड़ों के हित की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दें.अगर मैं तुम्हारे जैसों का ऋणी बनता रहा तो दुबला होक र मर जाऊंगा .
- मैं तो तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकता.फिर अभय दान देने से यिों डर रहे हो ?
- इसका उत्तर देने से पहले छत्तीसगढ़ी कहानी सुनो - एक हाथी सन के खेत में घुस जाता था और सन के पेड़ को रौंद डालता था.सन दुखी तो थे पर हाथी से लोहा लेने में अश्मथर् थे.एक दिन वे संगठित हुए और डोर बन गये. इतने में हाथी झूमता हुआ आया कि डोर ने उसे बांध कर जमीन पर पटक दिया.साथ ही उसके गले के लिए फांसी का फंदा भी बन गया.फिर यिा था हाथी थोड़ी ही देर में मर गया.इसी तरह मैंने अगर हाथ आया अवसर खो दिया तो तुम अपने साथियों को बुला लोगे और सब मिलकर मुझे ही खत्म कर दोगे.इसलिए मैं भूलकर भी खतरा मोल नहीं ले सकता.
इतना कह शेर ने चूहे को मार डाला.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें