छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

पितृभक्ति

च मरूराम श्रमिक नेता था.उसका च न्द्रमा के समान एक ही पुत्र था- कमलेश.च मरू की सिफर् एक ही इच्छा थी-मैं मजदूरों का सेवक हूं.मेरा पुत्र पढ़ लिख गया तो उसे भी मजदूरों की सेवा में लगा दूंगा.
और एक दिन हो गया उसका सपना पूरा.याने कमलेश बन गया लेबर इंस्पे×टर.पिता ने उसे उपदेशामृत पिलाया कि बेटा,मैंने गरीब मजदूरों से चंदे वसूले.उन पैसों के बल पर ही तुम शिक्षित हुए.य हां तक कि तुम्हारी नौकरी के लिए अधिकारियों को खिलाने के पहले पिलाया भी.तुम मजदूरों के हितों का ध्यान रखना वरना मेरी आत्मा रो पड़ेगी.
कमलेश पितृभI था ही.हाथ में गंगाजल लेकर कहा- आप निक्श्चंत रहिये.मैं मजदूरों का सदा पक्ष लूंगा.
कमलेश एक गांव में आया.वह कंगालसिंह के खेत में गया.वहां देखा तो मजदूर अपने कतर्व्य  में जूटे हैं.कमलेश ने उनसे पूछा-तुम्हें कितनी मजदूरी मिलती है.कंगालसिंह तुम्हें चुस तो नहीं रहा है?
मजदूरों ने बताया-ना बाबा ना.कंगालसिंह तो बड़े उपकारी हैं.वे हमें जीने के लाय क रोजी देते हैं.
कमलेश ने कंगालसिंह की कालर पकड़ी.फटकारा- यिों जी,तुम मजदूरों को मजबूर जानकर उन पर अत्याचार करते हो.काम तो खूब लेते हो मगर उचि त मजदूरी नही देते.दयालु सरकार गरीबों को पूंजीपति बनाने के लिये धुंआधार घोषणाएं कर रही है और तुम उसके काय र्क्रम को सत्यानाश करने तुले हो ?
कंगालसिंह उवाच -शहर के होटलों में जो लोग दिन रात खपते हैं.उन्हें सिफर् भजिया चाय  मिलती है.आपने कभी उन पर दया बरसायी?सरकसों में लोग जानवरों की तरह सामान ढ़ोते हैं.उन्हें जानवरों से बचे जूठन ही मिलते हैं.उनकी ओर देखने के लिए सरकारी आंखें अंधी यिों हो जाती है?मजदूर मेरे ब‚े हैं.उन्हें कुछ दूं या न दूं पाप का फल तो मुझे च खना है.
कमलेश क्रोधित हो उठा-च लाना किसी और को.तुम्हारा काम अवैधानिक है.मैं तुम्हारे विरूद्ध रिपोटर् देता हूं.तब आटा दाल का भाव पता च लेगा.
कंगालसिंह के हाथ पांव फूल गये.वह गिड़गिड़ाया- अजी साब,मैं तो मजाक कर रहा था.आप ही मांई -बाप है.कुछ ले देकर मामला रफा दफा कीजिये न !
कमलेश ने कहा-तुम घूंस खिलाकर मेरा ईमान खरीदना चाहते हो.मजदूरों का नुकसान हुआ तो मेेरे पिता की आत्मा को ठेस नहीं पहुचेगी.हां,एक रास्ता है-मुझे एक मजदूर दे दो उसकी मजदूरी तुम ही अदा करना.मुझे घरू काम के लिये एक आदमी की जरूरत है.
कंगालसिंह को तैयार होना ही पड़ा.उसने बुद्धू से कहा- जा रे साहब के साथ.इनके साथ रहेगा तो तेरी बड़ी इƒत होगी.
बुद्धू ने कहा-मैँ नहीं जाऊंगा.दंगे के बीच  फंस गया तो ?वाहन के नीचे आकर च टनी बन गया तो ?
कंगालसिंह ने कहा- अबे,गांव में रखा यिा है!य हां अपढ़ गंवारों के बीच  रहता है.शहर च ला गया तो स¨य ता सीखेगा.आलीशान बंगले देखने मिलेंगे.
बुद्धू कमलेश के साथ जाने तैयार हो गया.कंगालसिंह ने कमलेश से कहा-मुझ कंगाल का ध्यान रखियेगा.मुझ पर सरकारी गाज न गिरे.
कमलेश ने विश्वास दिलाया - तुमने मजदूरों का हक कभी छीना नहीं तो घबराते यिों हो!बेफिक्र रहो.
कमलेश बुद्धू को लेकर घर आया.पिता से कहा- आप श्रमिकों पर श्रद्धा रखते हैं.लीजिये इसके दशर्न च ौबीसों घ·टे कीजिये.
कमलेश अपने कायार्लय  गया.वहां उसने रिपोटर् दी कि कंगालसिंह हृदय  से बहुत धनवान है.उसके पास मजदूर बहुत सुखी है.आखिर बात- वह स्वयं मजदूर है तो मजदूर लोग मालिक......।

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