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गुरुवार, 14 जुलाई 2016

बहिष्‍कार

बहिस्कार
कालीदास कविता के क्षेत्र मे छलांग लगा चुके थे.उन्होंने कईवषोङ्घ तक कलम घसेटी.कागज खराब किया.उनका नाम ऊपर जाने के बजाय  रसातल की ओर धंसता गया.समीक्षक उधेड़ते कि हूं इनकी रच नाओं में दम ही नहीं.रच नाएं ऐसी लगती है मानों दमा के मरीज हो.न स्प्र चि त्रण न फोस.र्न संघष र्के कोई लक्षण.ये भीख मांगती प्रतीत होती है.
काली दास की रच नाएं जन्म लेते ही काल कलवित होने लगी तो उन्होंने नया प्रयोग किया.उन्होंने खुल्लम खुल्ला वणर्न  करना प्रारंभ कर दिया.जैसे एक पंढ्ढि में बीस शबद होते हैं तो उनमें तेरह गालियां होती है.बचे सात तो उन्हें भी पाठक गले नहीं उतार पाते.पति पत्नी के गुय् संबंध के पोल खोलते तो कामशाथ लजाकर सिर गढ़ा लेता.वे दुबारा समीक्षको के पास दौड़े.समीक्षकों ने उनकी रच नाओं को ठोंक बजाकर देखा.उनकी '्िर में वे खरी उतरी थी.तो उन्होंने कालीदास की प्रशंसा में चार चांद लगा दिये.उन्हें आलोच ना करने की सुधि भी नहीं रही.अपना मंतव्य  दिया- कालीदास की रच नाओं में माटी की सौंधी सुगंध है.वे जमीन के क वि है मगर साहित्य काश में च मकने की क्षमता रखते हैं.उनका आक्रोश शोषक वग र्पर हैं.भाषा ठेठ बेबाक व निष्कपट है.वे युग प्रवतर्क है.और वास्तव में कालीदास बन गये चोटी के कवि.वे संपादकों प्रकाशकों के सिर पर बैठे.अनेक पुरस्कारों से सुशोभित हुए.पाु पुस्तकों को दूसरे दिग्गजों को मार कर भगाना पड़ा.
उनकी ख्याति कस्तूरी के गंध की तरह सवर्त्र फैली तो लोगो ने आमंत्रित किया,शिक्षा ग्रहण करने उस वढ्ढ कालीदास अत्यंत व्य स्त थे.उन्हें नये कवियों को रास्ता दिखाना था.चार विश्व विद्यालयों को भाषण पिलाने जाना था. लोगो के बारम्बार टेलीफोन टेलीग्राम और हाई एप्रोच  लगाने के बाद उनकी प्राथर्ना को स्वीकृति मिली.कालीदास आये .उनकी अमृतवाणी झरने के वढ्ढ व्य वधान न हो इसलिए सुई पटक सझटा छा गया.लोगों में पिता पुत्री,भई बहन सभी थे.उनके कान और ध्यान कालीदास की ओर लगे थे.कालीदास अनेकों लेखको सम्मेलनों में दहाड़ चुके थे.य हां झिझकना यिा?लगे ऊंची आवाज में श्लोक पढ़ने -
द्वौ च रणं गगनं गत्वा द्वौ च रणं धरणी धरा ।
अ्रन्गुल गुफा घुसतो करत हलधर हलधरा ।।
लोगों ने सुनकर अवाक रह गये.बोले- हमने य ह सोच कर आमंत्रित किया था कि स्वस्थ विचार प्रकट कर बीमार  समाज का उपचार करेंगे मगर स्वयं रोगी है.आपकी बुद्धि को कु्र रोग जकड़ गया है.वह सड़ गल गयी है.आपकी  रच नाओं से पतनशीलता की बू आ रही है.उन्हें अपने पास रखिये वरना छूत का रोग समाज को लील जायेगा.
इतना कह कर लोग कालीदास की ओर घृणा '्िर फेंकते हुए लौट गये.

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