सरकारी कुत्ता
सरकार जनता के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं च ला रही है. उनके अंतर्गत किसानों को ऋण देने का प्रावधान भी है ताकि वे कृषि में उझ्ति करे और अपना जीवन स्तर सुधारे.इससे कृषकों को इतना अधिक लाभ हुआ कि ऋण पटाने के लिए उन्हें घर - खेत बेच ने पड़े. जब वे अवधूत हो गये तो सैर करने के लिए दिल्ली और बम्बई की ओर निकल गये हैं.
मैं भी सरकार का तीन सौ आठ रूपये का कजर्दार हूं. कज र्पटाने का सामथ्य र्नहीं है तो नहीं पटा.तहसीलदार गांव पधारे.वैसे वे साल भर तहसीलदार रहते हैं पर कज र्वसूली के वढ्ढ विक्रय अधिकारी बन जाते हैं.उन्हें अधिकार मिला रहता है कि वे जोर जबरदस्ती कर जुल्म करके कज र्वसूले.ऋणी मर जाये पर साहूकार का खजाना लबालब भरा रहना चाहिए.उन्होने मुझे बुलाया.साहब की आज्ञा कौन टाले.मैं उनके पास गया.उन्होंने घूरकर देखा और पूछा - हूं. तम ही नूतन हो.
- जी हां...। मैंने कहा.
- तुम कज र्यिों नहीं पटाते ?
- मेरी क्स्थति ठीक नहीं है. फसल ने धोखा दे दिया.गांव वालों से पूछ लीजिए.
- मैं किसी से यिों पूछू ! जैसे भी हो मैं रूपये लेकर रहूंगा. सरकार के आदेश का पालन करना मेरा फज र्है....।
वे मुझ पर बरसते रहे.सरकारी भाषा में गाली गलौज करते रहे. आगे उन्होंने कहा - मैं कुत्ते सा भौंक रहा हूं पर तुम कान ही नहीं दे रहे हो.बहरे हो यिा ?
अब नहले पर दहला जड़ने की मेरी बारी थी - आप अपने को कुत्ता कहते हैं तो य ह सच है.आप उसे काटने दौड़ जाते हैं जिसकी ओर सरकार इंगित करती है.
- तो अब मुझे सुअर भी कहोगे ?
- आपके मुंह में दूध भात. इतने दिनों तक आप शहर के पखानों में भोजन ढ़ूंढ़ लिया करते थे पर अब ्यलैश बन गये हैं तो गांव की ओर आये हैं.
वे आपे से बाहर हो गये.गांव से बाहर हो जाते तो मैं बजरंगबली में प्रसाद च ढ़ा देता. उन्होंने कहा - मैं विक्रय अधिकारी हूं. तुम्हारी च ल - अच ल सम्पत्ति नीलाम करवाता हूं तब आफिसर से जुबान लड़ाने का फल मिल जायेगा.
मैंने कहा -मैं इस आशा के साथ आपके पास च ला आया कि मुझसे सद्व्य वहार करेंगे पर आपने मेरी इज्जत ही ले ली इसलिए मुझसे भी सहन नहीं हुआ.पहले आप शिक्षक थे तो मधुर वाणी थे.एक बार मुझ पर विपत्ति आयी थी तो आपने सहाय ती की थी पर अब आप कितने न्रिुर हो गये हैं ?
- पहले की बात और थी. अब तो तहसीलदार हो गया हूं.देखो मेरी शढ्ढि...।
इसके बाद उन्होंने कोटवारों को मेरे बैलों को बल पूवर्क लाने का आदेश दे दिया.कोटवारों की नियुढ्ढि गांव में फूट कराने, राजस्व और पुलिस विभाग के अफसरों के लिए मु्यत का मुगा र्खोजने के लिए हुई है.कोटवार बिना वारंट के मेेरे घर घुसे और बैल ले गये.मुझे इसका कतई दुख नहीं है.अब चारा पानी का इंतजाम तो करना नहीं पड़ेगा.
सरकार जनता के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं च ला रही है. उनके अंतर्गत किसानों को ऋण देने का प्रावधान भी है ताकि वे कृषि में उझ्ति करे और अपना जीवन स्तर सुधारे.इससे कृषकों को इतना अधिक लाभ हुआ कि ऋण पटाने के लिए उन्हें घर - खेत बेच ने पड़े. जब वे अवधूत हो गये तो सैर करने के लिए दिल्ली और बम्बई की ओर निकल गये हैं.
मैं भी सरकार का तीन सौ आठ रूपये का कजर्दार हूं. कज र्पटाने का सामथ्य र्नहीं है तो नहीं पटा.तहसीलदार गांव पधारे.वैसे वे साल भर तहसीलदार रहते हैं पर कज र्वसूली के वढ्ढ विक्रय अधिकारी बन जाते हैं.उन्हें अधिकार मिला रहता है कि वे जोर जबरदस्ती कर जुल्म करके कज र्वसूले.ऋणी मर जाये पर साहूकार का खजाना लबालब भरा रहना चाहिए.उन्होने मुझे बुलाया.साहब की आज्ञा कौन टाले.मैं उनके पास गया.उन्होंने घूरकर देखा और पूछा - हूं. तम ही नूतन हो.
- जी हां...। मैंने कहा.
- तुम कज र्यिों नहीं पटाते ?
- मेरी क्स्थति ठीक नहीं है. फसल ने धोखा दे दिया.गांव वालों से पूछ लीजिए.
- मैं किसी से यिों पूछू ! जैसे भी हो मैं रूपये लेकर रहूंगा. सरकार के आदेश का पालन करना मेरा फज र्है....।
वे मुझ पर बरसते रहे.सरकारी भाषा में गाली गलौज करते रहे. आगे उन्होंने कहा - मैं कुत्ते सा भौंक रहा हूं पर तुम कान ही नहीं दे रहे हो.बहरे हो यिा ?
अब नहले पर दहला जड़ने की मेरी बारी थी - आप अपने को कुत्ता कहते हैं तो य ह सच है.आप उसे काटने दौड़ जाते हैं जिसकी ओर सरकार इंगित करती है.
- तो अब मुझे सुअर भी कहोगे ?
- आपके मुंह में दूध भात. इतने दिनों तक आप शहर के पखानों में भोजन ढ़ूंढ़ लिया करते थे पर अब ्यलैश बन गये हैं तो गांव की ओर आये हैं.
वे आपे से बाहर हो गये.गांव से बाहर हो जाते तो मैं बजरंगबली में प्रसाद च ढ़ा देता. उन्होंने कहा - मैं विक्रय अधिकारी हूं. तुम्हारी च ल - अच ल सम्पत्ति नीलाम करवाता हूं तब आफिसर से जुबान लड़ाने का फल मिल जायेगा.
मैंने कहा -मैं इस आशा के साथ आपके पास च ला आया कि मुझसे सद्व्य वहार करेंगे पर आपने मेरी इज्जत ही ले ली इसलिए मुझसे भी सहन नहीं हुआ.पहले आप शिक्षक थे तो मधुर वाणी थे.एक बार मुझ पर विपत्ति आयी थी तो आपने सहाय ती की थी पर अब आप कितने न्रिुर हो गये हैं ?
- पहले की बात और थी. अब तो तहसीलदार हो गया हूं.देखो मेरी शढ्ढि...।
इसके बाद उन्होंने कोटवारों को मेरे बैलों को बल पूवर्क लाने का आदेश दे दिया.कोटवारों की नियुढ्ढि गांव में फूट कराने, राजस्व और पुलिस विभाग के अफसरों के लिए मु्यत का मुगा र्खोजने के लिए हुई है.कोटवार बिना वारंट के मेेरे घर घुसे और बैल ले गये.मुझे इसका कतई दुख नहीं है.अब चारा पानी का इंतजाम तो करना नहीं पड़ेगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें