छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

गोरा और काला

गोरा और काला
गोरा और काला कहीं जा रहे थे.गोरा अपनी देह देखकर गव र्करता पर काले की ओर देखकर नाक भौं सिकोड़ता.उसके विचि त्र काय र्कलाप से तंग आकर काला ने पूछा -यार, ये तुम यिा ऊटपुटांग हरकत करते हो.कुछ समझ नहीं आता ?
गोरे ने छाती फुलाकर कहा - मैं य ह देख रहा हूं कि प्रकृति हम पर कितनी मेहरबान है.उसने हमें सुदशर्न बनाया और तुम्हें कुरूप.
- य ह तुम्हारी बुद्धि का दिवालियापन है.प्रकृति भेद भाव जैसा ओझा व्य वहार कभी नहीं करती.
गोरे ने अपनी श्रे्रता दशार्यी - करती है. तुममे और हममें बुद्धि और शढ्ढि  में भी अंतर है.हम बुद्धिमान हुए तभी तो तुम पर शासन किया.शढ्ढि में अंतर देखना चाहते हो तो अभी तुम्हें जमीन सुंघाकर दिखा दूं.
काले ने कहा - कुतक र्यिों रखते हो.बुद्धिमान कभी दूसरों पर शासन करता ही नहीं.सही अथोङ्घ में तुमने हमारा शोषण किया.हमें चूसा. और शढ्ढि कमजोरों की रक्षा करने को मिली है पर उल्टे उन पर अत्याचार करते हो.
गोरा और लाल हो गया - यू बलैक मेन,तुम कुछ नहीं समझते...।
गोरा अपना बड़प्पन झाड़ने में मस्त था कि अचानक ओझोन के छाते में छेद पड़ गया.पैराबैंगनी किरणों की तीव्र बौछारें पड़ने लगी.काले पर उसका प्रभाव पड़ा लेकिन नहीं के समान पर गोरा त्राहि - त्राहि चि ल्लाने लगा.उसने अतर्स्वर में काले से मदद की याच ना की - भाई, मुझे बचाओ... मैं तो मरा...।
काला ने कहा - यिा हो गया श्रे्र आदमी.तुम पर तो प्रकृति की विशेष कृपा है.तुम्हें कोई क्र हो ही नहीं सकता.यिों हाहाकार कर रहे हो ?
- मजाक कैसा... और मढ़ो न दोष प्रकृति ऊपर.अब मैं कहूं कि प्रकृति मुझ पर मेहरबान है और तुम पर नाराज तो य ह भ्रम होगा,दम्भ होगा....।
तभी पैराबैंगनी किरणों की बौछारें बन्द हो गई.कुछ देर बात गोरा स्वस्थ हुआ.उसने अपनी भूल सुधारते हुए कहा - वास्तव में प्रकृति का रहस्य  पाना असम्भव है.हम आज तक भ्रमित रहे.गल्ती स्वयं की और दोष प्रकृति पर डालते रहे.समुन्द्र पहाड़ को हंसे या सूय  र्च न्द्रमा की हंसी उड़ाये तो उनकी मूखर्ता ही होगी.
अब  गोरे का घमंड चूर चूर हो चुका था.उसके मन की कालिमा धुल चुकी थी.उसने काले की बांह पकड़कर कहा - च लो मित्र, आगे बढ़े...।

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