छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

विशेषता

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वहां विश्रि जन आमंत्रित थे.स्वागतकता र्हंस हंस कर आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे.इतने में एक वैज्ञानिक आये.स्वागतकता र्ने च हकते हुए कहा - आइये..आइये,बहुत देर से आपका ही इंतजार हो रहा था. आप कहां लटक गये थे.
वैज्ञानिक ने कहा - परीक्षण संबंधी कुछ काम अड़ गया था.साथ ही मैं य ह बताने आया हूं कि मैं रूक नहीं सकता.अभी वापस जाना है.
- ऐसा कैसे होगा ! आपके बिना काय र्क्रम फीका  पड़ जायेगा.आपकी उपक्स्थति अनिवाय  र्है.
स्वागतकता र्ने वैज्ञानिक को इघ्त के साथ कुसी र्पर बिठा दिया.दूसरे सघ्न पधारे.उनसेस्वागतकता र्ने पूछा - आपका परिच य  ?
- मैं उपकुलपति हूं...। आगंतुक ने बताया.
- ओह् ,पधारिये. आपके लिए कुसी र्सुरक्षित रखी है.
- मुझे देरी तो हुई नहीं.
- जी नहीं, हो भी जाती तो इंतजार करते.आप जैसे महानुभवों के आने से हम गौराक्न्वत हुए है.
उपकुलपति आदरपूवर्क बिठाये गये कि राजदूत ने प्रवेश किया.स्वागतकता र्ने विनम्र शबदों में कहा - सर, आप यिा आये. ईश्वर के दशर्न हो गये.अब महफिल में चार चांद लग जायेंगे...।
इतने में स्वागतकता र्की दिव्य  च क्षु एक मरिय ल पर पड़ी.उन्होंने रूखे पन से पूछा- तुम कौन हो ?
मरिय ल ने कहा - मैं आदमी हूं.
- यिा अधिकारी नेता कुछ नहीं हो.यानि तुममें कुछ विशेषता नहीं है ?
- ऊंहुक , मैं केवल आदमी हूं .
स्वागतकता र्ने फुंफकारते हुए कहा -आदमी  के बच्चेे , तुम्हें यहां बुलाया किसने ! भाग यहां से...।

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