छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सही रास्‍ता

सही रास्ता
जब भी मैं उस पुस्तक-दूकान के पास से निकलता हूं तो वहां की कामिसि, सामाजिक उपन्यास, फिल्मी व अपराध साहित्य  की पुस्तकें मुझे चि ढ़ाती हैं.
एक दिन मैं दूकानदार की छाती में च ढ़ा.विक्रेता को फटकारा -तुम्हें शम र्नहीं आती इन गंदी पुस्तकों को रखने में.इनके पठन से लोगों की बुद्धि दूषित होगी.आज जो अपराध हो रहे हैं, उनमें इनका प्रमुख हाथ है.शिक्षित होकर भी तुमने गलत धंधा चुना यिों....?
मैं उसे झाड़ रहा था कि दो तीन ग्राहक आ गये.विक्रेता ने उन्हें पुस्तकें सौंपी.अपनी जेब गम र्किया फिर मुझ पर गम र्हुआ- मैं ठीक  रास्तें पर हूं.देखो मैं पहले आर. आई. था.रेन्यू इंस्पेटिर नहीं रोड इंस्पेटिर.नौकरी खोजते- खोजते मेरे जूते पुरातत्व विभाग के सुपुद र्हो गये पर नौकरी मिलने से रही.आखिर मैंने पुस्तक दूकान खोल ली.साहित्यि क  पुस्तकें रखता तो कोई उसे सूंघता भी नहीं, इसलिए कामिसि इत्यादि की भीड़ जुटाई.इनके ही कारण जीवन की गाड़ी सरार्टे से दौड़ रही है.य दि मेरे पास जीविका का कोई साधन न होता तो लाखनसिंह बनता, नटवर बनता.इन्हीं पुस्तकों ने मुझे अपराध क्षेत्र में कूदने से बचा लिया.बताओ भला मैं कहां पर गलत हूं ?
उसके प्रश्न बाण को झेलने की मेरी शढ्ढि नहीं थी.मैं पीठ दिखा कर भाग गया.

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