छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

कृतध्‍न

       एक साधू थे.उनकी कुटिया में एक चूहे ने शरण ले ली.एक दिन एक बिल्ली आयी.वह चूहे को खाने दौड़ी.
चूहा घबराकर साधु के पास गया.चूहे ने कहा - मैं तो यह सोच कर आपके यहां आश्रय लिया कि मेरा बाल भी बांका नहीं होगा.मुझे क्‍या मालूम कि यहां भी मेरा काल धमक सकता है.''
       साधु ने कहा - तुम कृतध्न हो. जिसका खाते हो, उसी के पत्तल में छेद करते हो.मेरे सारे कपड़े कुतर डाले. मुसीबत सिर पर आयी तो गिड़गिड़ा रहे हो.अब बांधों न बिल्ली के गले में घन्‍टी !''
       चूहे ने विनती की - मेरे अपराध क्षमा कीजिये. बिल्ली से बचाइये.''
- बचाना क्‍या , तुम्हें ही बिल्ली बना देता हूं.''
       इतना कह साधु ने चूहे को बिल्ली बना दिया.एक दिन वह बिल्ली सौ चूहे खाकर हज करने जाने वाली थी कि उसे कुत्ता काटने दौड़ाया.बिल्ली साधु के पास दौड़ी.साधु ने कहा - मैं सिर्फ तुम्हारी ही रक्षा करता रहूं या मेरा भी कुछ काम है ! दूध चुराकर खाती हो, अब भोगो चोरी का फल ! तुम ऐसी हो कि पिछली बातें भूला जाती हो और गल्तियां दोहराने लग जाती हो .''
       बिल्ली ने कहा - लीजिये, अब कभी गलती न करने के लिए गंगाजल उठाती हूं.''
     साधु ने बिल्ली को कुत्ता बना दिया.इस तरह उस चूहे की इतनी पदोन्‍नति हुई कि एक दिन वह शेर बन गया.अब क्‍या था - वह घास पात थोड़े ही खाता.उसे चाहिए था खून और मांस .वह साधु के ऊपर झपटा. साधु ने कहा - अरे अरे, ये तुम क्‍या कर रहे हो.मैं तुम्हें चूहे से शेर बनाया तो मुझे ही सफाचट करने चले.ऐसे में मैं तुम्हें पुन:  '' मुसको भव '' का श्राप देकर तुम्हारी शक्ति  छीन लूंगा.''
       शेर ने कहा - गुरू अब ऐसा होने से रहा.तरक्‍की करके मैं गिरने वाला नहीं.आप मूर्ख हैं जो दूसरो की उन्‍नति  चाहते हैं.परोपकार करने का फल भोगिये.....।''
और शेर ने साधु को अपना भोजन बना लिया.

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