छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

जनकवि

       नूतन प्रसाद

       कालीदास गधा, बैल याने कई जानवरों के दर्शन कर चुके थे पर ऊंट का नहीं.एक दिन ऊंट ने उनकी आंखों को सफल कर ही दिया.कालीदास घबराये.बोल पड़े - उस्‍ट -उस्ट...।
       विद्योत्तमा ने सुना तो अवाक रह गई.वह दौड़ी - दौड़ी उन्हीं साहित्य पंडितों के पास गई जिन्होंने विद्योत्तमा का विवाह कालीदास से कराया था. विद्योत्तमा ने कहा - आप लोगों ने मुझे किसके गले बांध दिया.उन्हें ठीक से बोलना भी नहीं आता.''
       पडितों ने कहा - उन्होंने रामचन्द्र को रामचन, साहब को साहेब, डाक्‍टर को दांगतर कहा होगा.लेकिन ये अकारण नहीं है.दरअसल वे जनता के कवि है. जनभाषा का प्रयोग करते हैं......।
       विद्योत्तमा सारी बातें समझ गई. वह लौटी और कालीदास के चरणों पर गिर गई कि नाथ, मैं आपको जड़मति समझ रही थी.आप पहुंचे हुए विद्वान हैं.मैंने आपको अपमानित किया उसके लिए मुझ मूर्खा को क्षमा कीजिए.''
कालीदास ने कहा - '' एवमत्तु !''

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