नूतन प्रसाद
विद्योत्तमा ने सुना तो अवाक रह गई.वह दौड़ी - दौड़ी उन्हीं साहित्य पंडितों के पास गई जिन्होंने विद्योत्तमा का विवाह कालीदास से कराया था. विद्योत्तमा ने कहा - आप लोगों ने मुझे किसके गले बांध दिया.उन्हें ठीक से बोलना भी नहीं आता.''
पडितों ने कहा - उन्होंने रामचन्द्र को रामचन, साहब को साहेब, डाक्टर को दांगतर कहा होगा.लेकिन ये अकारण नहीं है.दरअसल वे जनता के कवि है. जनभाषा का प्रयोग करते हैं......।
विद्योत्तमा सारी बातें समझ गई. वह लौटी और कालीदास के चरणों पर गिर गई कि नाथ, मैं आपको जड़मति समझ रही थी.आप पहुंचे हुए विद्वान हैं.मैंने आपको अपमानित किया उसके लिए मुझ मूर्खा को क्षमा कीजिए.''
कालीदास ने कहा - '' एवमत्तु !''
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