छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

मूर्ख सम्‍मेलन

नूतन प्रसाद 

एक दिन राजा भोज को उनकी रानी लीलावती ने मूर्ख कह दिया.राजा साहब तुरंत दरबार में आये.वे आये तो दरबारियों को दौड़ते - पड़ते आना ही पड़ा.राजा ने एक से कहा - तुम मूर्ख हो !''
       दरबारी ने कहा - जी हां, मैं मूर्ख हूं . आप कभी गलत थोड़े ही बोलेंगे.''
       राजा ने उसे भगा दिया.दूसरे आया तो उसे भी राजा ने मूर्ख कहा तो उसने कहा - मैं मूर्ख ही नहीं, महामूर्ख हूं .''
       इसी प्रकार जितने भी दरबारी आये वे मूर्ख की पदवी से सुशोभित होकर लौट गये.अंत में कालीदास की बारी आयी.राजा ने रट्टू तोते की तरह उन्हें भी मूर्ख कहा.सुनकर कालीदास मुस्कराये.बोले -राजन, वचन देकर उसे पूरा न करने वाला, दूसरों को दुख पहुंचाकर उसके बदले प्रशंसा पाने की  इच्छा रखने वाला पत्नी के रहते दूसरी औरत पर नीयत खराब करने वाला मूर्ख, बेवकूफ, पापी सभी होता है.मैंने ये कार्य किये ही नहीं तो मैं मूर्ख किं कारणम् ?''
       राजा को प्रश्न का उत्तर मिल गया.उन्होंने एक दासी के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा था.जिसे रानी जान गई  थी. 

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