नूतन प्रसाद
हम सदैव सत्य बोलते हैं। हम सांसद या विधायक नहीं है,जो झूठ बोले। यदा - कदा झूठ बोलने का अवसर प्राप्त भी हो जाता है। हाथ में गंगाजल या गीता रख लेते हैं। गीता और गंगा की महिमा अपार है। पापी एक बार गंगा में डूबकी लगा ले तो धर्मात्मा बन जाये और अपराधी गीता में हाथ रख दे तो वह न्यायालय से बाईज्जत बरी हो जाय। तो हम बतलाना चाहते हैं कि हम दुखी है। देश में शान्ति रहती है फिर दुखी रहते हैं। दो -चार जगह हिंसक घटनाएं घटी थीं तो मन मयूर ने नृत्य किया था। हमारा मन भी बड़ा कलाकार है। केरल में दंगा होता है तो कत्थक कली नृत्य करता है और गुजरात में दंगा हो तो गरबा नृत्य। एक दिन इच्छा ने मन से कहा - '' स्वामी, भांगड़ा नृत्य, डिस्को डांस ( बम्बई ) तो देख चुके अब ओड़िसी नृत्य देखना चाहती हूं। नाच कर दिखाइये।''
मन ने कहा - '' अभी नहीं क्योंकि मौसम ठीक नहीं है .''
- '' मैं नहीं जानती, आपको नाचना पड़ेगा .''
- '' परेशान न करो.उड़ीसा में दंगे होने दो फिर दिखा देंगे .''
- '' अगर दंगे नहीं हुए तो ?''
- '' वायुयान अपहरण होने से काम चल जायेगा .''
इस बार दुखी होने का प्रमुख कारण है - फसल का अच्छी दिखना.हाय , हमारी खुशी को धान के लहलहाते पौधों ने छीन ली है. हम पूछते हैं - '' उन्हें माहो या अन्य कोई बीमारी चर क्यों नहीं गये . समय पर पानी क्यों बरसा वे धोखा दे गये तो धरती को निगल जाना था अगर पृथ्वी अपने को दयालू बताती है तो सीता को क्यों निगल गयी . फसल ने हमारी जिन्दगी ही तबाह कर दी.जब अकाल पड़ता था खेत जल जाते थे . तो हमारे भाग्य के दरवाजे खुल जाते थे . अकाल पर रचना बना कर पत्र लिख देते थे कि सम्पादक जी , इस बार भंयकर दुभिर्क्ष पड़ा है . भूख ने लोगों के पेट को खा लिया है . ग्रामीणों की दुदर्शा देखी नहीं जाती . हमारी अंतर्मन की करूणा ने बाहर आकर कविता का रूप ले लिया है . वह आपके अखबार मे छपने के लिए कुररी की तरह विलाप कर रही है . कृपया इसे स्थान दें वरना आप क्रूर मान लिये जायेंगे....।''
और सम्पादक मेरी कविता छाप देते थे . मुझे पारिश्रमिक मिल जाता था . जीवन की गाड़ी मजे से चल जाती थी . लोग त्राहि - त्राहि करते तो हम डकार लेते हुए हरिओम कहते थे. लेकिन इस वर्षा ने हमारे साथ विश्वासघात किया है . अगर झूठ - मूठ लिखकर भेज भी देते है तो उस व्यापारी की तरह पकड़ लिये जायेंगे जो मिलावटी चीजों पर शुद्धता का लेबल चिपकाकर बेचने का प्रयास करता हैं . लेखनी को सरपट दौड़ाने के लिए करूणा चाहिए . जब श्रमिक कमाते हुए दिखते हैं तो नाटक बनता है . उनके शरीर से पसीना निकलता है तो कविता, वे हाय करते हैं तो गजल, वे भूख मरते हैं तो व्यंग्य , ठोस व्यंग्य .और तड़प - तड़प कर मर जाते हैं तब बनता है जबर्दस्त उपन्यास.
हमें गर्म मसाला चाहिये . सामूहिक बलात्कार हो जाता है तो भी हमारी इच्छा पूर्ण हो जाती है . लेकिन आजकल वह भी नहीं हो रहा . गंडे अगर मर गये तो थानेदार हमारी मदद करे . डांके भी नहीं पड़ रहे . दुजर्नसिंह नामक एक डाकू था . वह लूटपाट करने के अलावा कतार में खड़ाकर लोगों को भून देता था . घरों को जला देता था . दूसरों ने उसे निर्दयी कहा लेकिन हमने उसका पक्ष लिया कि समाज के दुर्व्यवहार ने उसे बागी बनाया.वह शोषितों - पीड़ितों का रखवाला था . अंत में उसका नाम क्रांतिकारियों की लिस्ट में जुड़वा कर रहें . हमने राष्ट्र की टुकड़े करने की मांग करने वालों को भी क्रांतिकारी - देशभक्त का दर्जा दिलाया . हर गलत बात को सच करने की हमारे पास तर्क है . घातक हथियारों के बोझ से पृथ्वी दब रही है . इनसे संसार का नाश होगा ही लेकिन हमने सिद्ध कर दिया कि शांति स्थापित करने के लिए इनका निर्माण हुआ है.....।
अरे, बतलाना था कुछ और बतला गये कुछ.क्या बात है, गंगा लौट कर मानसरोवर चली जायेगी क्या ? देखो न जिन किसानों को पुण्य तिथि मनाना चाहिए वह जन्मोत्सव मना रहे हैं . जाओ, हम श्राप देते हैं कि उन्हें बैंक और साहूकार लूट ले . हमारा क्या , हम तो हमारे समान दुखी व्यक्ति ढ़ूंढ़ ही लेंगें.लो , लाल जी के पास खिंच भी आये . हमें चलने की जरूरत ही नहीं पड़ती . लाल जी ने मंत्र से बुलाया होगा . भारत में यह आश्चर्य की बात नहीं है . मंत्रों से बीमारी ठीक हो जाती है . मनुष्य देश - विदेश घूम लेता हैं . मंत्र के बल पर राकेश शर्मा चन्द्रमा की सैर कर आये . वे राकेट से थोड़े ही गये थे .
जिन लाला के मुख पर हमेशा मुस्कान खेलती थी, वे चिंतन में डूबे थे . हम समझ गये कि लाला जी भी हमारे समान दुखी हैं लेकिन क्यों , कारण भी तो पता चले ! क्यों उनके दो नं. का खाता जप्त हो गया या खाद्य निरीक्षक ने अधिक रूपये खींच लिए . हमने पूछा - क्या बात है लालाजी, आपकी आत्मा बड़ी पीड़ित दिखती है ?
वैसे लालाजी टेढ़ी बातें करते हैं . टेढ़ी रूपी ऊंगली से घी निकालने की जो आदत ठहरी मगर वे इस बार सीधे शब्दों में बोले - '' अपना दुख किसे बताये . अकाल पड़ता था . लोग भूखे मरते थे तो कम मूल्यों में बर्तन - गहने मिल जाते थे लेकिन फसल क्या अच्छी दिख रही,धंधा चौंपट दिखता है .''
हमने डर कर कहा - '' आपने तो बेबाक टिप्पणी कर दी.ऐसे में प्रतिक्रियावादी ठहरा दिये जायेंगे..''
हम व्यापारी के साथ सामाजिक कायकर्ता भी हैं . हमारे पास बैठने के लिए नेता अधिकारी अर्थात उच्च्वर्ग के लोग आते हैं और ऐसी ही बातें करते हैं पर जनता के सामने पर उनके पक्ष में भाषण देते हैं आपको अपना समझ कर स्पष्ट बता दिया पर दूसरों के सामने ऐसे ही थोड़े बोलेंगें . तस्कर अगर पुलिस से गुफ्तगु करेगा तो मरेगा नहीं .''
राजदारी की बातें समाप्त हुई . हम दुखी व्यक्ति ढ़ूंढ़ने निकलने लगे तो लाला जी ने अपने नौकर से कहा - '' दूकान ठीक से देखना, हम आ रहे हैं .''
हमने टांग अड़ायी - '' आजकल किसी का भरोसा नहीं . नौकर ने चोरी कर ली तो ?''
- '' उसके बारे में गलत सोचिए भी मत . बहुत ईमानदार है .''
इसे कहते हैं बुद्धि का कमाल . जनता को सीधी कहकर उस पर गोली दाग दी जाये तो वह उफ् भी नहीं करेगी . मतदाता को दानी कहकर ही उसका मत हड़पा जाता है . हमें मालूम है कि लाला अपने नौकर को भूखे पेट जीने के लायक वेतन देते हैं लेकिन उसकी प्रसंशा हुई है तो वह लाला के धन की रक्षा करेगा ही .
हम आगे चले तो एक ठेकेदार मिल गये . ठेकेदार का मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं . यहां विद्वान, पहलवान, भगवान मिल जाये लेकिन ढ़ूंढ़ने पर भी आदमी नहीं मिलेगा. खोजकर देेखिए भला . ठेकेदारों के प्रकारों की गणना वैसे ही दुरूह कार्य है जैसे समाज के खलनायक की पहचान कर पाना . एक ठेकेदार वह थे जिसने जंगलों को मैदान में बदल दिये . उनके ही पुण्य प्रताप से वन विभाग और कृषि विभाग की दाल रोटी चल रही है . दूसरे ठेकेदार वे हैं जो लोगों के चरित्र निर्माण के लिए शराब , चरस, गंजे की सप्लाई कर दे . वैसे कई गणमान्य यहां की ऐतिहासिक मूतिर्यों गोपनीय दस्तावेजों को इतने गुप्त तरीके से विदेश भेज देते हैं कि गुप्तचर विभाग भी पता नहीं पाता है .
हमारी मुलाकांत जिन ठेकेदार से हुई वे गाँव के श्रमिकों को शहर में ले जाकर काम दिलाते हैं। गाँव में काम है ही कहाँ ? गाँव का किसान नगर में जाकर मजदूर में बदल जाते हैं। जैसे भारत का रुपये अमरीकी डालर में। ठेकेदार के अथक परिश्रम के कारण ही गाँव में शांति और शहर में रौनक है। लेकिन इस वक्त उनके चेहरे की रौनक गायब थी। हमने सोचा किसी ने इनकी जेब से सौ दो सौ रुपये उड़ा तो नहीं दिये। अगर ऐसा हुआ तो चोर के विरुद्ध गवाही देंगे। हमारी आँखों के सामने बीस लाख की बैंक डकैती पड़ी। हम अपराधियों को पहचानते भी थे। लेकिन उनके विरुद्ध गवाही देने से मुकर गये पर सौ दो सौ के चोर को दण्ड दिला कर रहेंगे।
लो हम इधर सोच रहे हैं और उधर ठेकेदार ग्रामीणों से कह रहे हैं - '' भइयों, तुम गांव में क्यों सड़ रहे हो . तुम्हारी गरीबी हम देख नहीं सकते . हमारे साथ बम्बई चलो . यहां से चार गुनी मजदूरी मिलेगी . रहने को पक्का मकान देखने को सिनेमा . पीने को व्हिस्की और खाने को चाट मिलेगा . अरे, चल तो . बड़ा मजा आयेगा .''
ग्रामीणों ने कहा - '' हम नहीं जायेंगे. मिट्टी के घरों में रह लेंगें . तालाब का गंदा पानी पी लेंगें . फसल अच्छी है . अब यहीं पेट भर अन्न मिल जायेगा . ग्रामीण अंगूठा दिखाते चले गये . ठेकेदार दुखी हो गये . उन्होंने हमसे कहा - '' इस साल फसल अच्छी क्या हुई , हमारी ठेकेदारी समाप्त हो गई . जीवन कैसे चलेगा ?''
अब हम लालाजी और ठेकेदार मिल कर त्रिदेव हो गये हैं . तीनों दुखी हैं . देवताओं का दुखी होना अच्छा नहीं होता इसलिए हमारे जीवन रूपी बाग को हरा करने के लिए हरी फसलें नष्ट कर दी जाये.
मन ने कहा - '' अभी नहीं क्योंकि मौसम ठीक नहीं है .''
- '' मैं नहीं जानती, आपको नाचना पड़ेगा .''
- '' परेशान न करो.उड़ीसा में दंगे होने दो फिर दिखा देंगे .''
- '' अगर दंगे नहीं हुए तो ?''
- '' वायुयान अपहरण होने से काम चल जायेगा .''
इस बार दुखी होने का प्रमुख कारण है - फसल का अच्छी दिखना.हाय , हमारी खुशी को धान के लहलहाते पौधों ने छीन ली है. हम पूछते हैं - '' उन्हें माहो या अन्य कोई बीमारी चर क्यों नहीं गये . समय पर पानी क्यों बरसा वे धोखा दे गये तो धरती को निगल जाना था अगर पृथ्वी अपने को दयालू बताती है तो सीता को क्यों निगल गयी . फसल ने हमारी जिन्दगी ही तबाह कर दी.जब अकाल पड़ता था खेत जल जाते थे . तो हमारे भाग्य के दरवाजे खुल जाते थे . अकाल पर रचना बना कर पत्र लिख देते थे कि सम्पादक जी , इस बार भंयकर दुभिर्क्ष पड़ा है . भूख ने लोगों के पेट को खा लिया है . ग्रामीणों की दुदर्शा देखी नहीं जाती . हमारी अंतर्मन की करूणा ने बाहर आकर कविता का रूप ले लिया है . वह आपके अखबार मे छपने के लिए कुररी की तरह विलाप कर रही है . कृपया इसे स्थान दें वरना आप क्रूर मान लिये जायेंगे....।''
और सम्पादक मेरी कविता छाप देते थे . मुझे पारिश्रमिक मिल जाता था . जीवन की गाड़ी मजे से चल जाती थी . लोग त्राहि - त्राहि करते तो हम डकार लेते हुए हरिओम कहते थे. लेकिन इस वर्षा ने हमारे साथ विश्वासघात किया है . अगर झूठ - मूठ लिखकर भेज भी देते है तो उस व्यापारी की तरह पकड़ लिये जायेंगे जो मिलावटी चीजों पर शुद्धता का लेबल चिपकाकर बेचने का प्रयास करता हैं . लेखनी को सरपट दौड़ाने के लिए करूणा चाहिए . जब श्रमिक कमाते हुए दिखते हैं तो नाटक बनता है . उनके शरीर से पसीना निकलता है तो कविता, वे हाय करते हैं तो गजल, वे भूख मरते हैं तो व्यंग्य , ठोस व्यंग्य .और तड़प - तड़प कर मर जाते हैं तब बनता है जबर्दस्त उपन्यास.
हमें गर्म मसाला चाहिये . सामूहिक बलात्कार हो जाता है तो भी हमारी इच्छा पूर्ण हो जाती है . लेकिन आजकल वह भी नहीं हो रहा . गंडे अगर मर गये तो थानेदार हमारी मदद करे . डांके भी नहीं पड़ रहे . दुजर्नसिंह नामक एक डाकू था . वह लूटपाट करने के अलावा कतार में खड़ाकर लोगों को भून देता था . घरों को जला देता था . दूसरों ने उसे निर्दयी कहा लेकिन हमने उसका पक्ष लिया कि समाज के दुर्व्यवहार ने उसे बागी बनाया.वह शोषितों - पीड़ितों का रखवाला था . अंत में उसका नाम क्रांतिकारियों की लिस्ट में जुड़वा कर रहें . हमने राष्ट्र की टुकड़े करने की मांग करने वालों को भी क्रांतिकारी - देशभक्त का दर्जा दिलाया . हर गलत बात को सच करने की हमारे पास तर्क है . घातक हथियारों के बोझ से पृथ्वी दब रही है . इनसे संसार का नाश होगा ही लेकिन हमने सिद्ध कर दिया कि शांति स्थापित करने के लिए इनका निर्माण हुआ है.....।
अरे, बतलाना था कुछ और बतला गये कुछ.क्या बात है, गंगा लौट कर मानसरोवर चली जायेगी क्या ? देखो न जिन किसानों को पुण्य तिथि मनाना चाहिए वह जन्मोत्सव मना रहे हैं . जाओ, हम श्राप देते हैं कि उन्हें बैंक और साहूकार लूट ले . हमारा क्या , हम तो हमारे समान दुखी व्यक्ति ढ़ूंढ़ ही लेंगें.लो , लाल जी के पास खिंच भी आये . हमें चलने की जरूरत ही नहीं पड़ती . लाल जी ने मंत्र से बुलाया होगा . भारत में यह आश्चर्य की बात नहीं है . मंत्रों से बीमारी ठीक हो जाती है . मनुष्य देश - विदेश घूम लेता हैं . मंत्र के बल पर राकेश शर्मा चन्द्रमा की सैर कर आये . वे राकेट से थोड़े ही गये थे .
जिन लाला के मुख पर हमेशा मुस्कान खेलती थी, वे चिंतन में डूबे थे . हम समझ गये कि लाला जी भी हमारे समान दुखी हैं लेकिन क्यों , कारण भी तो पता चले ! क्यों उनके दो नं. का खाता जप्त हो गया या खाद्य निरीक्षक ने अधिक रूपये खींच लिए . हमने पूछा - क्या बात है लालाजी, आपकी आत्मा बड़ी पीड़ित दिखती है ?
वैसे लालाजी टेढ़ी बातें करते हैं . टेढ़ी रूपी ऊंगली से घी निकालने की जो आदत ठहरी मगर वे इस बार सीधे शब्दों में बोले - '' अपना दुख किसे बताये . अकाल पड़ता था . लोग भूखे मरते थे तो कम मूल्यों में बर्तन - गहने मिल जाते थे लेकिन फसल क्या अच्छी दिख रही,धंधा चौंपट दिखता है .''
हमने डर कर कहा - '' आपने तो बेबाक टिप्पणी कर दी.ऐसे में प्रतिक्रियावादी ठहरा दिये जायेंगे..''
हम व्यापारी के साथ सामाजिक कायकर्ता भी हैं . हमारे पास बैठने के लिए नेता अधिकारी अर्थात उच्च्वर्ग के लोग आते हैं और ऐसी ही बातें करते हैं पर जनता के सामने पर उनके पक्ष में भाषण देते हैं आपको अपना समझ कर स्पष्ट बता दिया पर दूसरों के सामने ऐसे ही थोड़े बोलेंगें . तस्कर अगर पुलिस से गुफ्तगु करेगा तो मरेगा नहीं .''
राजदारी की बातें समाप्त हुई . हम दुखी व्यक्ति ढ़ूंढ़ने निकलने लगे तो लाला जी ने अपने नौकर से कहा - '' दूकान ठीक से देखना, हम आ रहे हैं .''
हमने टांग अड़ायी - '' आजकल किसी का भरोसा नहीं . नौकर ने चोरी कर ली तो ?''
- '' उसके बारे में गलत सोचिए भी मत . बहुत ईमानदार है .''
इसे कहते हैं बुद्धि का कमाल . जनता को सीधी कहकर उस पर गोली दाग दी जाये तो वह उफ् भी नहीं करेगी . मतदाता को दानी कहकर ही उसका मत हड़पा जाता है . हमें मालूम है कि लाला अपने नौकर को भूखे पेट जीने के लायक वेतन देते हैं लेकिन उसकी प्रसंशा हुई है तो वह लाला के धन की रक्षा करेगा ही .
हम आगे चले तो एक ठेकेदार मिल गये . ठेकेदार का मिल जाना कोई बड़ी बात नहीं . यहां विद्वान, पहलवान, भगवान मिल जाये लेकिन ढ़ूंढ़ने पर भी आदमी नहीं मिलेगा. खोजकर देेखिए भला . ठेकेदारों के प्रकारों की गणना वैसे ही दुरूह कार्य है जैसे समाज के खलनायक की पहचान कर पाना . एक ठेकेदार वह थे जिसने जंगलों को मैदान में बदल दिये . उनके ही पुण्य प्रताप से वन विभाग और कृषि विभाग की दाल रोटी चल रही है . दूसरे ठेकेदार वे हैं जो लोगों के चरित्र निर्माण के लिए शराब , चरस, गंजे की सप्लाई कर दे . वैसे कई गणमान्य यहां की ऐतिहासिक मूतिर्यों गोपनीय दस्तावेजों को इतने गुप्त तरीके से विदेश भेज देते हैं कि गुप्तचर विभाग भी पता नहीं पाता है .
हमारी मुलाकांत जिन ठेकेदार से हुई वे गाँव के श्रमिकों को शहर में ले जाकर काम दिलाते हैं। गाँव में काम है ही कहाँ ? गाँव का किसान नगर में जाकर मजदूर में बदल जाते हैं। जैसे भारत का रुपये अमरीकी डालर में। ठेकेदार के अथक परिश्रम के कारण ही गाँव में शांति और शहर में रौनक है। लेकिन इस वक्त उनके चेहरे की रौनक गायब थी। हमने सोचा किसी ने इनकी जेब से सौ दो सौ रुपये उड़ा तो नहीं दिये। अगर ऐसा हुआ तो चोर के विरुद्ध गवाही देंगे। हमारी आँखों के सामने बीस लाख की बैंक डकैती पड़ी। हम अपराधियों को पहचानते भी थे। लेकिन उनके विरुद्ध गवाही देने से मुकर गये पर सौ दो सौ के चोर को दण्ड दिला कर रहेंगे।
लो हम इधर सोच रहे हैं और उधर ठेकेदार ग्रामीणों से कह रहे हैं - '' भइयों, तुम गांव में क्यों सड़ रहे हो . तुम्हारी गरीबी हम देख नहीं सकते . हमारे साथ बम्बई चलो . यहां से चार गुनी मजदूरी मिलेगी . रहने को पक्का मकान देखने को सिनेमा . पीने को व्हिस्की और खाने को चाट मिलेगा . अरे, चल तो . बड़ा मजा आयेगा .''
ग्रामीणों ने कहा - '' हम नहीं जायेंगे. मिट्टी के घरों में रह लेंगें . तालाब का गंदा पानी पी लेंगें . फसल अच्छी है . अब यहीं पेट भर अन्न मिल जायेगा . ग्रामीण अंगूठा दिखाते चले गये . ठेकेदार दुखी हो गये . उन्होंने हमसे कहा - '' इस साल फसल अच्छी क्या हुई , हमारी ठेकेदारी समाप्त हो गई . जीवन कैसे चलेगा ?''
अब हम लालाजी और ठेकेदार मिल कर त्रिदेव हो गये हैं . तीनों दुखी हैं . देवताओं का दुखी होना अच्छा नहीं होता इसलिए हमारे जीवन रूपी बाग को हरा करने के लिए हरी फसलें नष्ट कर दी जाये.
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