छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

कर्मदण्‍ड

          आज कल के लोगों की बुद्धि भ्रष्‍ट हो गई है . वे बिना सोचे समझे प्रतिष्‍िठत  लोगों की निंदा कर देते हैं . वे कहते हैं कि चुनाव के बाद नेता क्षेत्र में अपना मुंह नहीं दिखाते . वे कहते हैं पर मुझे विश्वास नहीं होता . कोई कहे कि पुलिस जनता का रक्षक नहीं भक्षक है तो कौन मानेगा ? मैं  ही कह दूं कि सम्पादक - प्रकाशक, लेखकों का शोषण करते हैं तो आप विश्वास कर लेगें ? उन्हें सोचना चाहिए कि गलत वक्‍तव्‍य  प्रतिष्ठित लोगों ने सुन लिया तो लेने के देने पड़ जायेंगें .
        लो इसी बात को गब्‍बरसिंह ने मंत्री जी के कान में डाल ही दिया . यह वही गब्‍बर है जिसकी बदौलत मंत्री जी चुनाव जीते थे . मंत्री जी चुनाव हारने वाले थे . यही नहीं उनकी जमानत भी जप्‍त होने वाली थी कि मंत्री जी ने गब्‍बरसिंह की याद की . गब्‍बर भला कब भागने वाला था , वह तुरंत यमदूत की तरह हाजिर हुआ . उसने पूरे क्षेत्र में ऐसा आतंक फैलाया कि लोगों ने डर कर अपने अपने मत मंत्री जी को सौंप दिये . मंत्री जी विरोध पक्ष से जीते थे . मंत्री पद प्राप्‍त नहीं कर सकते थे अत: गब्‍बरसिंह ने सलाह दी कि आप सत्तापक्ष में कूद जाइये . मंत्री जी सत्तादल में छलांग लगा गये . वे अतिथि थे साथ ही मुख्यमंत्री को राजनैतिक हल चलाने के लिए एक कर्मठ बैल की आवश्यकता थी अत: उन्हें कृषि मंत्री का पद देकर सम्मान किया गया . गब्‍बरसिंह की सलाह से ही उन्हें मंत्रित्व मिला था अत: उसे अपने सलाहकार नियुक्‍त कर लिया .
       गब्‍बरसिंह में शासकीय  कोष से वेतन पाने की योग्यता नहीं थी इसलिए मंत्री जी ने सटोरियों को आदेश दिया कि जितने रूपये थानेदार के बंधे हैं उतने रूपये गब्‍बरसिंह को भी भुगतान किये जाये . सटोरिये ने कहा  - '' माई बाप, ऐसे में हमारा धंधा चौंपट हो जायेगा . खुद बड़ी मुश्किल से पुलिस वालों को बांट पाते हैं .''
- '' बहाना मत बनाओ. दो बार खुलता बंद निकलता है तो तुम चार बार निकालो . बम्बई - नागपुर बंद हो जाये तो तुम अपने घर से निकाल सकते हो .''
- '' कुछ डर तो नहीं...?''
- '' बिल्कुल नहीं, सरकार स्वयं लाटरी नामक जुआ चला रही है .''
        सटोरिये मंत्री जी की आज्ञा मान गये और प्रति माह गब्‍बर की जेब गर्म करने लगे .
तो उसी गब्‍बरसिंह ने कहा कि सर आपको मालूम है कि लोग आपके बारे में क्‍या कहते हैं .''
मंत्री जी ने भोले पन से कहा - '' नहीं तो ...?''
        वास्तव मे मंत्री जी बड़े भोले हैं . वे कुछ तिकड़म नहीं जानते इसलिए घूंस भी नहीं मांगते . जिन्हें देना होता है वे स्वयं आकर पहुंचा जाते हैं . मंत्री जी रूपयों को छूते भी नहीं.सीधे अपने बच्‍चों के नाम बैंक में जमा करवा देते हैं . आखिर वे बच्‍चे के हितैषी ठहरे . एक अनाथ बच्‍चा उनकी कार के नीचे आ गया . उसकी इच्छा कार के नीचे आने की रही होगी . उसके हाथ - पांव टूट गये . कोई बात नहीं. मंत्री जी को उस पर दया आ गई . उनने विकलांग कोष से साठ रूपये प्रतिमाह देने की घोषणा कर दी . आज भी वह बच्‍चा साठ रूपये माह में पाता है और मंत्री का गुण गाता है .
मंत्री ने पूछा - '' बताओ भला, लोग क्‍या कहते हैं ?''
         गब्‍बरसिंह ने नमक मिर्च लगाकर बताया - '' वे कहते हैं कि चुनाव के बाद मंत्री जी ने क्षेत्र का दौरा एक बार भी नहीं किया . मैंने सुना तो बहुत क्रोध आया . दो - चार को कच्‍चा खाने की इच्छा भी हुई थी लेकिन.....।''
        गब्‍बरसिंह गुस्सेे से दांत पीसने लगा पर मंत्री जी स्‍िथत प्रज्ञ रहे . उन्हें क्रोध छुआ तक नहीं  . वे बोले - '' लोगों का क्‍या , वे कुछ भी बक जाते हैं . हमारा बड़प्पन इसी में है कि छोटों की बातों की बुरा न मानें . भगवान भक्‍त के ऊपर नाराज नहीं होता . जब लोग दर्शन करने तड़प रहे हैं  तो अवश्य  जाना चाहिए .''
        और वे उसी वक्‍त गांव की ओर निकल पड़े . उनके पास पुल का उद्घाटन करने, विदेश जाने जैसे अनेक कार्य थे पर उन्हें छोड़ दिया . समयानुसार दल भी तो छोड़े थे . बहुत दिनों से गांधी के कदमों पर चलने की प्रबल इच्छा थी इसलिए कुछ दूर तक कार में आये और बाद में पैदल यात्रा प्रारंभ हुई . पैरों के जूते भी फेंक दिये . कौन जाने जिसका जूता उसी का सर नामक कहावत करनी में बदल जाये . लोगों का कोई ठिकाना है . काले झंडे और सड़े अंडे से स्वागत तो कई बार किये हैं .
        उनके साथ कृषि उपसंचालक वर्मा थे . ये साहब वर्तमान पद पाने के लिए हल्दीघाटी और प्लासी युद्ध जैसे अनेक युद्ध कर चुके थे . अपने प्रतिद्वंदी को पीठ पर छूरा भोंककर ही उन्‍नति के एवरेस्ट पर चढ़े थे . उनके संचालन कुशलता के कारण किसानों को कभी भी परेशानी नहीं उठानी पड़ी . सरकारी रिकार्ड ऐसे ही बताते हैं .
हां , अब मंत्रीजी फसलों का निरीक्षण करने लगे . देखने में क्‍या है . काम थोड़े ही करना है .  काम करने के लिए श्रमिक है . वे पसीना बहाये . भूख मरें . उनके बच्‍चे नंगे और अशिक्षित रहें श्रमिकों की सही व्याख्या यही है न !उनकी नजर में फसल अच्छी दिखी . वे खराब चीजों की ओर दृष्टि फेंकते भी नहीं . मैले  - कुचैले कपड़े पहने  गंदे व्‍यक्तियों को मुुंह भी नहीं लगाते . मंत्री ने वर्मा साहब से कहा - '' देखो तो, लोग कितने झूठे हैं . धान कितना बढ़िया है . पेड़ हरे हैं फिर भी कहते हैं कि धान को गंगई खा गई ?''
     वर्मा साहब को इससे उत्तम अवसर और कहां मिलता . तुरंत हां में हां मिलाया - '' जी हां, धान में तो खराबी नहीं फिर भी किसान रो रहे हैं . ये देहाती ऐसे ही होते हैं . मेरे कार्यालय  में आते हैं तो फिल्मी डायलाँग मारते हैं.''
        जिसे वे धान समझ रहे थे वह कोदो था . दरअसल  दोनों ने चश्में नही चढ़ाये थे इसलिए भूल हो गई .  खैर हमें बड़ों की गल्ती ढ़ूंढ़ना भी नहीं है . इससे पाप लगता है.वर्मा साहब ने कहा - '' सर, आप कुछ भी कहे मुझे तो विश्वास हो चला है कि लोग मेरी शिकायत करेंगे .''
        अब हुई कोई बात ! वर्मा साहब ने लाखों रूपये के घोटाले किये थे . उन्हें ज्ञात था कि  शिकायतों की गोलियां पड़ेगी इसलिए पहले से ही रक्षा कवच बांधने लगे . मंत्री जी ने पूछा -  '' तुम्हें कैसे पता, कुछ कारण तो होगा ?''
- '' कारण कुछ नहीं, बस उनका स्वभाव है . वे बासी खाते हैं, गंदे पहनते हैं तो विचार कहां से स्वच्छ होंगे ! जैसे आपके ऊपर लांछन लगाते हैं वैसे ही मुझ पर भी दोषारोपण कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं ''.
- '' खैर, कोई बात नहीं.देख लेंगें .''
- '' आपकी बड़ी कृपा होगी . मैं साफ बच  गया तो आपकी सेवा करूंगा .''
- '' वो तो बाद की बात है . आज किसान तुम्हारी शिकायत करेंगें तो मैं तुन्हें डाटूंगा पर तुम चुपचाप सुन लेना .''
- '' ठीक है सर, आप मार भी लीजिए पर नौकरी बचनी चाहिेये .''
- '' उसकी चिंता मत करो. आई विल सी .''
        रास्ते में ही उनकी गुप्‍तवार्ता हो गई . मंत्री और अधिकारी के लिए यह कोई नया काम नहीं है . नये कमर्चारियों की निक्तियां होने जा रही है . लाखों नौयुवकों ने आवेदन दे रखा है लेकिन नौकरी उन्हें ही मिलेगी जो नेता और अधिकारियों के सुपुत्र , साले या स्नेही होंगें . दूसरों को हवा भी नहीं लगेगी . एक मंत्री को विदेश से प्रतिबंधित सामाग्री मंगाना था . उनके इसके सम्बंध में पूछा तो कस्टम अधिकारी ने कहा - '' सर, पूछ कर मुझे शर्मिन्दा न करें . आपके एप्रोच  ने ही मुझे इस पद पर बिठाया है . मैं आपकी आज्ञा का पालन कर धन्य  होना चाहता हूं'' .और वह धन्य  हुआ . दूसरों के कान में फिर हवा नहीं घुसी.
        आखिर में गांव आ गये . जैसा कि कोई भी नेता आते हैं तो ग्रामीणों की दुर्दशा पर रोते हैं . मंत्री जी ने भी खाना पूर्ति की . आंसू भी गिराये जिन्हें वर्मा साहब ने अमूल्य  निधि समझकर रूमाल में सोख लिया . बातचीत के दौरान मंत्री जी ने पूछा - '' क्‍यों भाई, कुछ कहना है ?''
ग्रामीणों ने कहा - '' अपना दुख किसे बताये. कौन सुनेगा ?''
- '' हम सुनेंगें और कार्यवाही भी करेंगें.''
       लो, वर्मा साहब की भविष्यवाणी सत्य  हो गई . लोगों ने उनकी शिकायत कर ही दी . मंत्री जी ने गंभीरता पूर्वक सुना और वर्मा साहब के ऊपर चढ़ बैठे -  '' क्‍यों जी, तुम किसानों की भलाई करने नियुक्‍त हुए हो न !तुम उनकी बात क्‍यों नहीं सुनते ! धान की फसल बर्बाद हो गई . अब क्‍या होगा बताओ भला !''
       वर्मा साहब सर्र से उड़ गये -'' इसमें मेरी क्‍या गल्ती !ग्राम सेवक ने कभी नहीं बताया .''
      इसे कहते हैं - बांध फूटकर बह जाये तो दोष टाइमकीपर पर मढ़ दो.वर्मा साहब ने बचने का बहुत प्रयास किया पर मंत्री जी दूध का दूध पानी का पानी करने कटिबद्ध थे . बोले - '' तुम झूठ बोलते हो ( मानो खुद सत्य वादी हो ) जब किसान तुम्हारी शिकायत कर रहे हैं तो गल्ती तुम्हारी होगी.क्‍या मैं अनर्गल बक रहा हूं .''
        वर्मा साहब ने घुटने टेक दिये . बोले - '' नहीं सर, मैं अपनी भूल के लिए क्षमाप्राथी र्हूं .अब से ऐसी कभी नहीं होगी .''
- '' मैं कुछ नहीं जानता . किसानों की जो क्षति हुई है . उसके बदले तुम्हें दण्‍ड मिल कर रहेगा .''
       मंत्री का डांटना और साहब का एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने का कार्यक्रम सदा की तरह समाप्‍त हुआ . किसानों की क्षतिपूर्ति भी नहीं हुई . मंत्री जी ने स्वभावत: आश्वासन और सांत्वना दिये और वर्मा साहब के साथ लौट गये .
उनके जाने के बाद एक आदमी ने कहा - '' अब वर्मा साहब की धज्‍जी उड़ेगी .''
दूसरे ने कहा - '' मुझे भी ऐसा ही लगता है . मंत्रीजी बड़े ही न्याय प्रिय  हैं.वे वर्मा साहब को बर्खास्त नहीं तो कम से कम निलम्बित करके रहेंगे.....।''
        और वास्तव में वर्मा साहब को दण्‍ड मिला . भंयकर दण्‍ड . वे कृषि उपसंचालक से कृषि संचालक बना गये . कृषि और संचालक के बीच का उप शब्‍द उड़ गया.

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