छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

माखन चोर

           कृष्ण ने द्वारिका का शासन सम्हाल लिया था। लोग उन्हें द्वारिकाधीश कहकर सम्मान करते। पर उन्हें अपना पुराना गांव गोकुल की याद आती।
         एक दिन उन्होंने समय निकाल ही लिया। वे गोकुल आये। उन्होंने यमुना में स्नान किया। गोबर्धन पर्वत का परिक्रमा किया। उन्हें बड़ा सुकून मिला।
       उनके साथ अधिकारी पत्रकार और गणमान्य नागरिक थे। कृष्ण ने अपने गांव के बुजुर्ग महिलाओं बालसखाओं की बड़ी तारीफ की। पत्रकारों को गोकुल भ्रमण की इच्छा हुई। वे एक जगह गये। वहां तनसुखा - मनसुखा मिल गये। पत्रकार ने कहा - '' कृष्ण बड़े  ही सज्जन मिलनसार और शांतिप्रिय हैं, वे किसी से लड़ते झगड़ते नहीं।''
        तनसुखा ने टेढ़ी नजरों से देखा। पूछा - '' आप कृष्ण को कब से जानते हैं ?''
पत्रकार -  '' द्वारिका के शासक बने हैं तब से।'' 
- '' आप हमसे ज्यादा नहीं जानते। हमने उनके साथ बचपन से लेकर युवावस्था तक बिताया। उनके साथ कबड्डी, बांटी, भौरा और गेंद भी खेला। वे हार जाते तो भी जीत का दावा प्रस्तुत करते। बड़े  रोग - धनिया थे ।
        पत्रकारों को बुरा लगा। वे आगे बढ़े। वहां युवतियां थी। पत्रकार ने कहा - '' कृष्ण बड़े  ही चरित्रवान हैं। वे नारी जाति का सम्मान करते हैं।''
        युवती ने कटाक्ष किया -  '' गांव में छेड़कानी कृष्ण ही तो करते थे न। हम यमुना में नहा रहे थे तो वे कपड़ों को लेकर कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गये। बहुत विनती की तब लौटाया। वे पूर्णिमा की रात में मधुबन में रास नचाते थे। हमने उनके साथ नृत्य किया हैं।''
        पत्रकार हैरान रह गये। उधर अधिकारी ने कहा -  '' आपके कृष्ण बहादुर और महाबली हैं। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को ऐसे उठा दिया मानों खिलौना हो।''
         ग्रामीण बौखला गये। कहा - '' आप कृष्ण का दिया वेतन पाते हैं तब उनका पक्ष ले रहें हैं, गोवर्धन को हमने उठाया। कृष्ण छलिया हैं। अपनी प्रशंसा करवाने अफवाह फैला दिया होगा।''
         अधिकारी की बोलती बंद हो गई। वे आगे बढ़े। वहां स्त्रियां थीं। अधिकारी ने कहा - '' कृष्ण बड़े  न्यायप्रिय हैं। उनके राज में शांति व्यवस्था बड़ी अच्छी हैं। वे चोर डाकू को कड़ा दण्ड देते हैं।''
         स्त्रियां हंस पड़ी। कहा -  '' कृष्ण स्वयं बड़े  चोर हैं। उन्होंने हमारी मटकी फोड़ी, दही चुरा कर खाया। हम पकड़कर यशोदा के पास ले गये तो कृष्ण ने बहाना बनाया -  '' मैंया मोरी मैं नहीं माखन खायो।'' आप उनका पक्ष न लें। आज भी लोग कृष्ण को माखन चोर कहते है।''
        पत्रकार और अधिकारी हैरान थे। गांव के किसी भी व्यक्ति ने कृष्ण की प्रशंसा नहीं की। लौटने का वक्त आया। कृष्ण ने गांव की मिट्टी को प्रणाम किया। उसे माथे पर लगाया। रास्ते में पत्रकारों ने पूछा -  '' आप गांव और निवासियों की सदा याद करते हैं। उनका गुणगान गाते हैं, लेकिन आज हमने देखा कि हर कोई आपकी बुराई कर रहा हैं। एक भी प्रशंसक नहीं हैं।''
        कृष्‍ण मुसकाये। कहा -  '' गांव में पला बढ़ा। मित्रों से लड़ाई हुई। मिलन हुआ। मेरी गल्तियों पर बुजुर्गों ने डांट लगाई .... मैं अभी भी ग्रामवासियों के लिये अपना किशन हूं .... गांव का व्यक्ति बाहर जाकर कितना भी महान बन जाये - उच्चपद पर आसीन हो जाये पर वह पुरानी यादों के अनुसार मित्र  नटखट और छलिया रहता हैं। अपनत्व भाव के कारण आदर या प्रशंसा नहीं कर पाते।

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