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बुधवार, 13 जुलाई 2016

दीया ल बार दे

नूतन प्रसाद

बार दे बार दे बार दे तंय  दीया ल बार दे।
लगे हे अंधियार के खिड़की जम्मों ल उजियार दे।।

बिजरावत हमल अंधियार हर बार के देखो तो एक बार
जइसे बिलई हर मुसवा खाथय ,अंधियार के खुंटी उजार.
ये दीया कभू झन बुताये अइसन तेल ल डार दे ।
बार दे बार दे बार दे............................।।

जिंहा जाय  नइ चंदा सूरज ,दीया ह आथय  उंहा काम
चुप्पे सपटे रहिथे अंधेरा,दीया ल बीन बीन के खात
ज्ञानी गुनी दीया ल संगी पियार दे दुलार दे ।
बार दे बार दे बार दे............................।।

बत्तर हे अंधियार के वासी,दीया बुझाये के करथे काम
कहिथे तोर अंजोर करे मं मिट जाथे संगी के नाम.
मर जाथय  जर के बत्तर दीया के जय  उतार दे ।
बार दे बार दे बार दे...............................।।

परमारथ बर दीया बिचारा खुद के तन ल देथे बार
जम्मों जगत ल बांट उजियारा,अपन तरी रखथे अंधियार.
दुख पाके सुख बटइया ल दया मया के धार दे ।
बार दे बार दे बार दे.............................।।

बत्तर के संगवारी हवा हर,आथे दल बादल के साथ
दीया के तीर टिक्‍की नइ लागय ,पल्‍ला भागथे रोवत गात.
बलि दीया के नाव ल संगी दसो दिशा परचार दे ।
बार दे बार दे बार दे..................................।।

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