छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

बुधवार, 13 जुलाई 2016

काम परे हे

खाना पीना सोना बसना अब मोला हराम हे।
अब ठेलहा बइठ नइ पावव,बिकट अकन काम हे।।

सबके खार हा कोर गथा के,मोर करत हे हंसी
मोला चिकन चांदन कर दे - मोर हा धांसत मोला.
पर के आंखी नींद नि आये,खेती अपने सेती
लबर - लबर म काम बिगड़थे,चुरकुट होथय  खेती.
ठेलहा बिगारी मं रतियाहूं आगू तन बदनाम हे ।
खाना पीना सोना बसना अब मोला हराम हे ।।

भुइयां माता जोहत रद्दा,लइका मोर कहां गे
सुवा ददरिया अउ हाना मं कई दिन पहागे
नागर देखत टक ला बांधे,करले धान बियासी
कहूं बुता हा अटक जही ते,जग ले बाहिर हांसी.
पुन्‍नी के दिन भले थिराहूं ,आलस ल सलाम हे ।
खाना पीना सोना बसना अब मोला हराम हे ।।

ढ़ेर-ढ़ेर मंय  बइठे रहेव,बूता काम अड़े हे
बन दूबी सांवा के डर मं,कांपत धान खड़े हे.
परिया लहुटिस बड़का भर्री ,नेवरी चुनई के मारे
तिली राहेर कोदो अमारी,रोवत हे मुंह फारे.
चेत लगा के अब भिड़ना हे,बइठइया ल जय राम हे ।
खाना पीना सोना बसना अब मोला हराम हे ।।

पता
भण्‍डारपुर ( करेला )

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