नूतन प्रसाद
शिव ने टोंका - मुझे तो चनों में फल्लियां ही नजर नहीं आती। खेत का मालिक भूखों मरेगा।''
पार्वती अचरज मे भर गयी। कहा - साफ दिख रहा है कि चनों खेत भरा पड़ा है। पर आपको कमजोर लगती है, क्या आपकी आँखें साफ नहीं देख पातीं ?''
वास्तव में फसल उत्तम थी। पर शिव ने इसके रहस्य को गुप्त रखा। वे दूसरे खेत में गये। वह साहूकार (ब्याज में ऋण और बाढ़ी में अनाज बांटने वाला ) का था। वहां की फसल क्षीण थी। पार्वती ने कहा - यहां की फसल चौपट है। चनों में फल्लियां नहीं दिखती।''
शिव ने बात काट दी। कहा - ओहो, यहां की फसल शानदार है। चनों में लटालट फल्लियां लगी है। इस खेत का मालिक ऊंची किस्मत वाला है।''
पार्वती अचरज में पड़ गई। कहा - आज तुम्हारी बुद्धि को क्या हो गया - किसान के शानदार फलस को खराब कहते हो पर साहूकार के कमजोर फसल को शानदार कहते हो। उल्टा - पुल्टा कहने का कारण तो बताओ ?''
शिव ने कहा - समय आने पर तुम स्वयं समझ जाओगी।''
वे लौट गये। कुछ दिन बाद चने पक गये। शिव - पार्वती किसान के घर गये। वह सिर पर हाथ रखकर चिंता मग्न बैठा था। पार्वती ने पूछा - तुम्हारी फसल अच्छी थी, चनों मे खूब फल लगे थे। तुम्हें खुश होना था पर क्या कारण है कि दुखी दिख रहे हो ?''
किसान ने बताया - मैंने साल भर मिहनत की। खेत की रखवाली की। पर अपने लिये नहीं वह तो साहूकार के लिये थी। मैंने साहूकार से कर्ज लिया। चक्रवृद्धि ब्याज के कारण ऋण का बोझ बढ़ता गया। ऋण पटाना था तो साहूकार को सभी चने सौंपने पड़े। मेरी ददिद्री यही खत्म नहीं हुई। मूलधन और ब्याज अभी भी शेष है। उन्हें अगले वर्ष की फसल आने पर पटाना होगा।''
शिव - पार्वती साहूकार के घर गये। वहां चनों के ढेर लगे थे। पार्वती ने पूछा - तुम्हारी फसल कमजोर थी। पर यहांं चनों का ढेर लगा है। तुम्हें दुखी दिखना था पर खुश नजर आ रहे हो ?''
साहूकार हंसा। बोला - मुझे फसलों के होने या ना होने से क्या लेना - देना। मैं साहूकार हूं। ऋण बांटता हूं। फसल आने पर वसूलता हूं। तुमने देख कि किसान की फसल मुझसे कई गुना अच्छी थी। लेकिन उसके सभी चने मेरे पास आ गये।''
शिव - पार्वती बाहर आये। पार्वती को किसान और साहूकार में फर्क का कारण समझ में आ गया था।
पता
भण्डारपुर ( करेला )
पोष्ट- ढारा, व्हाया - डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
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