छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

कैंची

वह अध्यक्ष था सेंसर बोर्ड का। कितनी भी शिक्षा प्रद फिल्म हो उसमें आंख मूंदकर कैची चला देता था। नगद नारायण मिल जाये तो सैक्सी फिल्मों को भी देता था - ए सर्टिफिकेट।ं
ंएक दिन उसने नई केेैंची लायी.धार की परीक्षा लेने की तैयारी च ल रही थी कि य मराज आ गया.अध्य क्ष समझा फिल्मी य मराज होगा.डपटकर कहा -य ह शुटिंग स्थल नहीं,मेरा कायार्लय  है.बड़े-बड़े निमार्ता बिना दुआ सलाम के अंदर नहीं धंस सकते.तुम्हें फिल्मों से दूध की मखिी की तरह नहीं फिकवाया तोमुझे अध्य क्ष नहीं भूत कह देना.
य मराज हंसा.बोला-अभी भूत नहीं हो पर बन जाओगे.मैं भी किसी जगह का अध्य क्ष हूं.
य मराज ने रस्सी फेंकी और अध्य क्ष के गले को फंसा लिया.अध्य क्ष ने सोचा -पहले इस रस्सी को उड़ा लूं फिर य मराज के बग्े को ्यलाप करूंगा। वह रस्सी को काटने लगा.वह पसीना-पसीना हो गया पर रस्सी कटने से रही.य मराज ने कहा-बेटे य ह फिल्मी रील नहीं ,य मफांस है.तुम्हें भव बंधन से मुढ्ढि दिए बिना मानेगी नहीं.
अब तो अध्य क्ष घबराया.उसने लालच  दी कि जितनी लक्ष्मी चाहिए ले लो मगर मुझे जीवनदान दो.
य मराज ने कहा-दंद-फंद मृत्युलोक में ही च लते है.नक र्ही एक ऐसी जगह है जहां घूस च लता है न धांधली वहां तुम्हारे जैसे पापियों को ए सटिर्फिकेट देने का प्रावधान नहीं है.
इतना कहा य मराज अध्य क्ष के जीव को सेंसर करके अपने साथ ले गया.

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