छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

जन समर्थन

नूतन प्रसाद

    रूखमणी घर में अकेली थी। तभी तनसुखा, मनसुखा आये। उन्होंने आवाज लगायी- गिरधारी कहां हो। हम आपसे मिलने आये है। पास तो आओ।'' रूखमणी ने कहा- आप कहां से आये हैं । यहां कोई गिरधारी नहीं  रहता। यह कृष्ण का आवास है।''
    तनसुखा हंसा। कहा- हम गोकुल के रहने वाले हैं। कृष्ण हमारे बाल सखा हैं। उनके साथ हमने गेंद खेला। यमुना में नहाया। लड़ाई हुई - सुलह हुई। आप तो जानती हैं -  बालपन में नटखटिया कार्यक्रम चलता है।''
   रूखमणी ने कहा- बड़ी खुशी हुई। इसे अपना ही घर समझिये। बात यह है कि कृष्ण राजकाज में व्यस्त रहते हैं। जनता की फरियादें सुनते हैं। उनकी समस्याएं सुलझाते हैं ... खैर आप आये हैं तो भोजन कर लें। आखिर कृष्ण के मित्र हैं।''
   रूखमणी ने खाना खिलाया। पश्चात् वे वापस होने लगे। कहा- गिरधारी को बता देना कि आपके मित्र आये थे। गांव का हालचाल ठीक है। पर आपकी बहुत याद आती है।'' रूखमणी ने कहा- मैं आपका संदेश उन तक पहुंचा दूंगी। पर यह तो बताओ- कृष्ण का गिरधारी नाम कैसे पड़ा।''
-  इसका अर्थ पहाड़ को धारण करने वाला होता है? मनसुखा ने कहा- हां, यह सत्य है- कृष्ण ने गोर्वधन पहाड़ को ऊपर उठाया था।''
रूखमणी आवाक रह गई। उसने पूछा- क्या वास्तव में। मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा।''
तनसुखा ने कहा- हां, यह शत प्रतिशत सत्य है। हमें जल्दी है। गिरधारी आयें तो पूरी घटना पूछ लेना।''
दोनों चले गये। शाम को कृष्ण थके मांदे आये। उन्होंने मेज को उठाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। रूखमणी से कहा- आओ तो। इस मेज को उठाकर दूसरी जगह ले जाना है। मेरी मदद करो।''
रूखमणी ने मुस्कुराते हुए कहा- क्या कहा गिरधारी । इस छोटे से मेज को उठाने की शक्ति नहीं तो गोर्वधन पहाड़ को कैसे उठाया ?''
कृष्ण आश्चर्य में पड़ गये। पूछा - मेरा नाम गिरधारी है। गांव के लोग इसी नाम से पुकारते थे। लेकिन तुम्हें कैसे पता चला- किसने बताया ?''
आपके बालसखा तनसुखा, मनसुखा आये थे। उन्होने ही यह बात बताई। लेकिन क्या वास्तव में पर्वत को आपने उठाया था। मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा ?''
कृष्ण ने कहा- हां यह सत्य है। इन्द्र गोकुल वासियों से सदा नाराज रहता था। वह अपना प्रभुत्व जमाने अनेेेक उपाय करता लेकिन जनता उसके जनविरोधी कार्यों का विरोध करती थी। अंतत: इन्द्र ने ग्रामीणों को दण्ड देेने की सोची। उसने पानी बरसाना प्ररम्भ कर दिया। उसने इतनी तबाही मचाई कि ग्रामीण और पशु बहने लगे। हाहाकार मच गया। तब ग्रामीणों ने मेरी याद की। मैंने कहा कि भाइयों मैं आपकी मदद करने तैयार हूं। इसके लिये गोर्वधन पहाड़ को ऊपर उठाया जाय। वह उठेगा - फिर हम उसके नीचे जायेंगे। हम सुरक्षित बचेंगे- हमारे पशुधन की भी रक्षा हो जायेगी- लेकिन इस कठिन कार्य को मात्र मैं पूरा नहीं कर सकता। इसके लिये जनसमर्थन चाहिये। लोग उत्साहित हो गये। फिर तो हम सबने एक साथ प्रयत्न किया और गोर्वधन पहाड़ को ऊपर उठा लिया। इन्द्र ने हमें परेशान करने का बहुत प्रयत्न किया मगर हमारा बाल बांका नहीं हुआ। हम गोर्वधन के नीचे जाकर सुरक्षित बच गये।''
रूखमणी ने पूछा- क्या यह संभव है कि जनसमूह किसी कठिन कार्य को सफलता पूर्वक पूर्ण कर सकता है ?''
कृष्ण ने कहा- हां, जनसमूह की सम्पूर्ण शक्ति नायक पर आ जाती है। लोग उस नायक की मदद करते है। उस कार्यक्रम में मैं नायक था। लोगों के शक्ति प्रदान करने से मैं सक्षम बन गया। पहाड़ को उठाने के वक्त मैं उनका मुखिया था। अत: लोग मुझे गिरधारी कहते है।

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