छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

बुधवार, 13 जुलाई 2016

कपाट खुल्‍ला हे

जब तोला कोई मनखे नइ भाही,देख के दूर ले ओ गुरार्ही ।।
हवे कपाट खुल्‍ला दिन रतिहा, दउड़त तयं मोर घर मं च ले आबे।

नाता गोता ल जम्मों तोड़ लिही तोर डोंगा ला बीच  मं बोर दिही।
औघट रद्दा मं तोला छोड़ दिही तब तयं मोरछोर ल पूछत गउछत
 मोर करा आके दुख ल गोठियाबे ।
हावे कपाट खुल्‍ला दिन रतिहा
दउड़त मोर घर मं च ले आबे ।।

फोकटे फोकट धंसाये बर धरही तोर हालात बिगड़ तरी गिरही
तंहने संकट के पानी हर गिरही तब अपने बिपदा सुनाय  बर तयं
मोर करा आये बर झन बिसराबे। हावे कपाट खुल्‍ला दिन रतिहा
दउड़त मोर घर मं च ले आबे।।

आजा हृदय  मं डर मत कर तोर रद्दा ल जोहथो पल पल
मोला तयं हितैषी समझे कर मन हा निच ट सफा हे तोर बर
अपने सुध ल घलो भूला जाबे । हवय  कपाट खुल्‍ला दिन रतिहा
दउड़त मोर घर मं च ले आबे ।।

तोला मानत हे छोटे अउ निबर्ल लगे रहिथे गिराये बर हर पल
आही बेरा हा आज नहीं ते कल फिकर करके तयं प्रान ल झन दे
आजा जिनगी तयं अपन नवा पाबे। हावे कपाट खुल्‍ला दिन रतिहा
दउड़त तयं मोर घर मं आ जाबे ।।

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