Jक्ष्मण अचेत पड़े थे.राम ने हनुमान से कहा - लक्ष्मण अंतिम सांसें गिन रहा है.उसका उपचार होना जरूरी है वरना लोग ऊंगली उठाएंगें कि राम सौतेले भाई है.लक्ष्मण स्वस्थ हो या न हो उन्हें यिा मतलब ! इसलिए तुम डा.सुषेण को इसी वI बुुला लाओ.
हनुमान को यिा, उन्हें आज्ञा पालन करना था.वे तैयार हो गये डा.को लाने.इतने में जामवन्त आ गये.उन्होंने कहा - आप ज्ञानीनाम अग्रग·य म्, सकल गुण निधानम् कहलाते हैं मगर इस वI आपकी बुद्धि घास च रने तो नहीं च ली गई ! सुषेण शत्रु राý¬ के डाटिर है.वे लक्ष्मण को जीवन देंगे या मृत्यु ? दुख के कारण राम की मति मारी गई मगर आपको तो कुछ सोच ना चाहिए !
हनुमान को होश आया.बोले - आपका कहना ठीक है. शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.सुषेण तो विख्यात डाटिर है.उन्होंने जहर की सुई ही घुसेड़ दी तो उनका कोई यिा कर लेगा ! डाटिरों को मृत्यु दान करने के लिए ही तो सटिर्फिकेट मिला रहता है.आप ही बताइये, यिा करूं ?
जामवन्त ने रास्ता बताया - अयोध्या जाइये न,वहां भरत शत्रुघन है ही.एक यिा अनेक डाटिर भेज देगें.या च लें जाइये जनकपुर, जनक तो डाटिरों की फौज ही भेज देंगें. कौन ससुर नहीं चाहेगा कि मेरा दामाद शीघ्र स्वस्थ हो. आखिरी बा त - आप लंका के डाटिर के सिवा किसी को ला सकते हैं.आफत मुफत में तो भी नहीं खरीदनी चाहिए.
हनुमान ने प्रश्न उठाया -मगर एक बात है, राम ने सुषेण को ही लाने आज्ञा दी है. दूसरे को बुला लाया तो वे नाराज न हो जाये ? छोड़िए, जामवन्त जी, मैं सुषेण को ही ले आता हूं. लक्ष्मण अपने रिश्तेदार थोड़े ही हैं जो चिंता करें.
हनुमान च ले. वे डाटिर सुषेण के घर पहुंचे.उन्होंने पूछा - यिा आप ही डाटिर सुषेण हैं ?
सुषेण ने कहा - हां, यिो कुछ काम है.
हनुमान - जी हां, लक्ष्मण काफी सीरिय स हैं.उनकी इलाज जरूरी है. आशा है ,आप उन्हें जीवनदान देंगें .
सुषेण - किसी को जीवनदान देने का ठेका मैंने नहीं लिया है. मैं तो बस उपचार कर देता हंू .बाकी वह जिये या मरे.
हनुमान को विश्वास हो गया कि मेरी आशंका सच में बदलेगी.इतने में मेघनाथ का आना हुआ.वह सुषेण को एक ओर ले गया. हनुमान समझ गये कि गुप्त मंत्रणा होगी.वे उनकी ओर सरक लिए.मेघनाथ सुषेण से कह रहा था - देखिए, डाटिर साहब, लक्ष्मण मेरे कuर शत्रु में से हैं .मैंने निशान लगाया था कि उनकी पूरी छुuी करूं लेकिन असफल रहा.खैर, आधा काम मैंने किया. बच त काम आप करें.पिता जी से कह कर आपको पदोÛति दिलवाऊंगा साथ ही पुरस्कार भी.
सुषेण ने सहमति दी . कहा - मुझे यिा, आज्ञा का पालन करना है.जाल में फंसी मछली को कोई छोड़ता भी है !
हनुमान ने सुना तो सिर पीट लिया.इसके सिवा दूसरा चारा भी तो नहीं था.उनकी इच्छा हुई कि चुप भाग जाये मगर रामाज्ञा की बात याद आयी तो विवश होकर रूकना पड़ा.मेघनाथ और सुषेण की गुKतगूं खत्म हो चुकी थी.सुषेण हनुमान के पास आये. बोले -आप बड़े कतर्व्य विमुख हैं. वैसे तो राम काज कीन्ह बिना मोहि कहां बिश्राम का नारा लगाते हैं मगर आराम फरमाने की सोच रहे हैं.च लिए, देर न कीजिए .
सुषेण और हनुमान राम के पास आये.सुषेण ने लक्ष्मण की बारीकी से जांच की.कहा - मेरे पास संजीवनी वटी नहीं है.य दि कोई धवलागिरी क म्पनी से उI औषधि ला देता है तो फटाफट उपचार किये देता हूं.
राम ने हनुमान को पुन: बुलाया.कहा - तुम डाटिर साहब के बताये पते पर जाकर दवाई ले आओ. देर करने की जरूरत नहीं.
हनुमान च ले.वे धवलागिरी कम्पनी में प्रविý हुए. एजेन्ट से कहा -मुझे संजीवनी वटी चाहिए.मगर नकली न हो.
एजेन्ट मशीन बन गया - यिा कहते हैं हमारे य हां कि सभी दवाइयां पेटेन्ट एवं विश्वनीय है.एसिपाय री डेट खत्म होने के बावजूद एक सदी तक च लती है.दुनिया में ऐसी कोई कम्पनी नहीं जो इसकी समता करें.अपनीयोग्य ता के कारण इसने कई स्वणर् पदक जÄ किये.य दि इस कम्पनी को झूठी प्रमाणित कर दे. तो आपको एक लाख रूपये ईनाम मिलेंगे.....। य हां वटी ही नहीं रस्म भस्म भी उपलबध है.
हनुमान ने कहा - मैं संजीवनी वटी की मांग कर रहा हूं और तुम गिनती पहाड़ा पढ़ रहे हो.है या नहीं बताते यिों नहीं ?
एजेन्ट ने कहा - है, मगर कौनसी चाहिए ! य हां हजारोंप्रकार की संजीवनी वटी हैं.
अब तो हनुमान परेशान हुए.सोचा - इधर ये एजेन्ट साफ - साफ बताता नहीं.दूसरी ओर डा.सुषेण मुझे फंसाने की सोच रहे हैं.य दि लक्ष्मण को कुछ हो गया तो कह देंगें - मैंने हनुमान को संजीवनी वटी मंगायी थी.उन्होंने मृत्यु वटी लाकर पटक दी तो मैं यिा करूं ?इस तरह वे सारा दोष मेरे सिर मढ़ देंगे.उससे अच्छा पूरी कम्पनी को ही उखाड़ ले च लता हूं.उन्हें जिस दवाई की जरूरत पड़ेगी, स्तेमाल कर लेंगे.कम से कम मैं तो साफ बच जाऊंगा.
सोचा यिा , हनुमान ने पूरी धवलागिरी कम्पनी को जड़ समेत उखाड़ा.उसे लाकर सुषेण के सामने पटक दिया.सुषेण तत्काल लक्ष्मण का उपचार करने युद्ध स्तर पर भिड़ गये.उन्होंने प्रात: से पूवर् लक्ष्मण को चंगा कर दिया.लक्ष्मण ने हनुमान को देखा तो कहा - मेरा धनुष बाण तो लाना. जरा दुश्मनों के दांत खuे करूं.
हनुमान अच क्म्भत रह गये.बोले - आपका उपचार अभी ही हुआ है.कमजोरी होगी. थोड़ा और आराम कर लीजिए
लक्ष्मण ने कहा - मैं बीमार तो नहीं कि आराम करूं. मैं एकदम स्वस्थ हूं.
हनुमान दौड़े -दौड़े सुषेण के पास गये.बोले - डाटिर साहब,मैं शमिर्न्दा हूं. मुझे क्षमा करें.
सुषेण ने कहा - आपने मेरे साथ कोई दुव्य र्वहार नहीं किया.न आपकी कोई गलती दिखती तो क्षमा यिों मांगना ?
हनुमान ने कहा - मेरी शंका य ह थी कि आप शत्रु- राý¬ के डाटिर हैं.लक्ष्मण का अहित जरूर करेंगे मगर आपने उन्हें जीवनदान दे दिया.अब आप न पुरस्कृत होंगे न मिलेगी पदोÛति.अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कारण समझ नहीं आया ?
सुषेण ने कहा - डाटिर का न कोई राý¬, न धमर्, न जाति होती है.वह निलोर्भी, परोपकारी, याने मानवतावादी होता है.उसका कतर्व्य एक ही है कि रोगी को जीवन देने के लिए हर संभव प्रयास करें.मैंने वही किया.
हनुमान उनकी आदशर्वादिता के सामने झुक गये. अपने को धिOारने लगे मगर वे उस समय सÛ से रह गये जब उन्हें ज्ञात हुआ कि धवलागिरी कम्पनी को डाटिर सुषेण के नाम च ढ़ाने का आश्वासन राम ने दे दिया है.
हनुमान को यिा, उन्हें आज्ञा पालन करना था.वे तैयार हो गये डा.को लाने.इतने में जामवन्त आ गये.उन्होंने कहा - आप ज्ञानीनाम अग्रग·य म्, सकल गुण निधानम् कहलाते हैं मगर इस वI आपकी बुद्धि घास च रने तो नहीं च ली गई ! सुषेण शत्रु राý¬ के डाटिर है.वे लक्ष्मण को जीवन देंगे या मृत्यु ? दुख के कारण राम की मति मारी गई मगर आपको तो कुछ सोच ना चाहिए !
हनुमान को होश आया.बोले - आपका कहना ठीक है. शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.सुषेण तो विख्यात डाटिर है.उन्होंने जहर की सुई ही घुसेड़ दी तो उनका कोई यिा कर लेगा ! डाटिरों को मृत्यु दान करने के लिए ही तो सटिर्फिकेट मिला रहता है.आप ही बताइये, यिा करूं ?
जामवन्त ने रास्ता बताया - अयोध्या जाइये न,वहां भरत शत्रुघन है ही.एक यिा अनेक डाटिर भेज देगें.या च लें जाइये जनकपुर, जनक तो डाटिरों की फौज ही भेज देंगें. कौन ससुर नहीं चाहेगा कि मेरा दामाद शीघ्र स्वस्थ हो. आखिरी बा त - आप लंका के डाटिर के सिवा किसी को ला सकते हैं.आफत मुफत में तो भी नहीं खरीदनी चाहिए.
हनुमान ने प्रश्न उठाया -मगर एक बात है, राम ने सुषेण को ही लाने आज्ञा दी है. दूसरे को बुला लाया तो वे नाराज न हो जाये ? छोड़िए, जामवन्त जी, मैं सुषेण को ही ले आता हूं. लक्ष्मण अपने रिश्तेदार थोड़े ही हैं जो चिंता करें.
हनुमान च ले. वे डाटिर सुषेण के घर पहुंचे.उन्होंने पूछा - यिा आप ही डाटिर सुषेण हैं ?
सुषेण ने कहा - हां, यिो कुछ काम है.
हनुमान - जी हां, लक्ष्मण काफी सीरिय स हैं.उनकी इलाज जरूरी है. आशा है ,आप उन्हें जीवनदान देंगें .
सुषेण - किसी को जीवनदान देने का ठेका मैंने नहीं लिया है. मैं तो बस उपचार कर देता हंू .बाकी वह जिये या मरे.
हनुमान को विश्वास हो गया कि मेरी आशंका सच में बदलेगी.इतने में मेघनाथ का आना हुआ.वह सुषेण को एक ओर ले गया. हनुमान समझ गये कि गुप्त मंत्रणा होगी.वे उनकी ओर सरक लिए.मेघनाथ सुषेण से कह रहा था - देखिए, डाटिर साहब, लक्ष्मण मेरे कuर शत्रु में से हैं .मैंने निशान लगाया था कि उनकी पूरी छुuी करूं लेकिन असफल रहा.खैर, आधा काम मैंने किया. बच त काम आप करें.पिता जी से कह कर आपको पदोÛति दिलवाऊंगा साथ ही पुरस्कार भी.
सुषेण ने सहमति दी . कहा - मुझे यिा, आज्ञा का पालन करना है.जाल में फंसी मछली को कोई छोड़ता भी है !
हनुमान ने सुना तो सिर पीट लिया.इसके सिवा दूसरा चारा भी तो नहीं था.उनकी इच्छा हुई कि चुप भाग जाये मगर रामाज्ञा की बात याद आयी तो विवश होकर रूकना पड़ा.मेघनाथ और सुषेण की गुKतगूं खत्म हो चुकी थी.सुषेण हनुमान के पास आये. बोले -आप बड़े कतर्व्य विमुख हैं. वैसे तो राम काज कीन्ह बिना मोहि कहां बिश्राम का नारा लगाते हैं मगर आराम फरमाने की सोच रहे हैं.च लिए, देर न कीजिए .
सुषेण और हनुमान राम के पास आये.सुषेण ने लक्ष्मण की बारीकी से जांच की.कहा - मेरे पास संजीवनी वटी नहीं है.य दि कोई धवलागिरी क म्पनी से उI औषधि ला देता है तो फटाफट उपचार किये देता हूं.
राम ने हनुमान को पुन: बुलाया.कहा - तुम डाटिर साहब के बताये पते पर जाकर दवाई ले आओ. देर करने की जरूरत नहीं.
हनुमान च ले.वे धवलागिरी कम्पनी में प्रविý हुए. एजेन्ट से कहा -मुझे संजीवनी वटी चाहिए.मगर नकली न हो.
एजेन्ट मशीन बन गया - यिा कहते हैं हमारे य हां कि सभी दवाइयां पेटेन्ट एवं विश्वनीय है.एसिपाय री डेट खत्म होने के बावजूद एक सदी तक च लती है.दुनिया में ऐसी कोई कम्पनी नहीं जो इसकी समता करें.अपनीयोग्य ता के कारण इसने कई स्वणर् पदक जÄ किये.य दि इस कम्पनी को झूठी प्रमाणित कर दे. तो आपको एक लाख रूपये ईनाम मिलेंगे.....। य हां वटी ही नहीं रस्म भस्म भी उपलबध है.
हनुमान ने कहा - मैं संजीवनी वटी की मांग कर रहा हूं और तुम गिनती पहाड़ा पढ़ रहे हो.है या नहीं बताते यिों नहीं ?
एजेन्ट ने कहा - है, मगर कौनसी चाहिए ! य हां हजारोंप्रकार की संजीवनी वटी हैं.
अब तो हनुमान परेशान हुए.सोचा - इधर ये एजेन्ट साफ - साफ बताता नहीं.दूसरी ओर डा.सुषेण मुझे फंसाने की सोच रहे हैं.य दि लक्ष्मण को कुछ हो गया तो कह देंगें - मैंने हनुमान को संजीवनी वटी मंगायी थी.उन्होंने मृत्यु वटी लाकर पटक दी तो मैं यिा करूं ?इस तरह वे सारा दोष मेरे सिर मढ़ देंगे.उससे अच्छा पूरी कम्पनी को ही उखाड़ ले च लता हूं.उन्हें जिस दवाई की जरूरत पड़ेगी, स्तेमाल कर लेंगे.कम से कम मैं तो साफ बच जाऊंगा.
सोचा यिा , हनुमान ने पूरी धवलागिरी कम्पनी को जड़ समेत उखाड़ा.उसे लाकर सुषेण के सामने पटक दिया.सुषेण तत्काल लक्ष्मण का उपचार करने युद्ध स्तर पर भिड़ गये.उन्होंने प्रात: से पूवर् लक्ष्मण को चंगा कर दिया.लक्ष्मण ने हनुमान को देखा तो कहा - मेरा धनुष बाण तो लाना. जरा दुश्मनों के दांत खuे करूं.
हनुमान अच क्म्भत रह गये.बोले - आपका उपचार अभी ही हुआ है.कमजोरी होगी. थोड़ा और आराम कर लीजिए
लक्ष्मण ने कहा - मैं बीमार तो नहीं कि आराम करूं. मैं एकदम स्वस्थ हूं.
हनुमान दौड़े -दौड़े सुषेण के पास गये.बोले - डाटिर साहब,मैं शमिर्न्दा हूं. मुझे क्षमा करें.
सुषेण ने कहा - आपने मेरे साथ कोई दुव्य र्वहार नहीं किया.न आपकी कोई गलती दिखती तो क्षमा यिों मांगना ?
हनुमान ने कहा - मेरी शंका य ह थी कि आप शत्रु- राý¬ के डाटिर हैं.लक्ष्मण का अहित जरूर करेंगे मगर आपने उन्हें जीवनदान दे दिया.अब आप न पुरस्कृत होंगे न मिलेगी पदोÛति.अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कारण समझ नहीं आया ?
सुषेण ने कहा - डाटिर का न कोई राý¬, न धमर्, न जाति होती है.वह निलोर्भी, परोपकारी, याने मानवतावादी होता है.उसका कतर्व्य एक ही है कि रोगी को जीवन देने के लिए हर संभव प्रयास करें.मैंने वही किया.
हनुमान उनकी आदशर्वादिता के सामने झुक गये. अपने को धिOारने लगे मगर वे उस समय सÛ से रह गये जब उन्हें ज्ञात हुआ कि धवलागिरी कम्पनी को डाटिर सुषेण के नाम च ढ़ाने का आश्वासन राम ने दे दिया है.
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