छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

फायदा

फायदा

कवि सम्मेलन का आयोजन था.श्रोता अपने आसन पर बैठ चुके थे.कवियों का कहीं अता पता नहीं था.स्टेज के समीप ही दो व्य ढ्ढि मल्लयुद्ध कर रहे थे जो दिखने में बड़े सघ्न प्रतीत होते थे.तीसरे महानुभव उनके पास पहुंचे. उन्होंने पूछा - आप लोग यिों लड़ रहे हो ?
पहले लड़ाके ने कहा - मैं कवि हूं . अपनी कविता पहले सुनाना चाहता हूं.यिोंकि मेरी कविता कविता नहीं आग है आग...।
दूसरे लड़ाके ने अपना परिच य  दिया - मैं भी कवि हूं.मेरी कविता में वह शढ्ढि है कि उठे चिंगारी को भी बुझा दे. शांत कर दें.मेरी कविता हीे विश्व में शांति स्थापित करेगी.
तीसरे ने कहा - ओह, तो य ह बात है ! तो ऐसा कीजिये - एक आग लगाइये, दूसरा बुझाइये.तब तक मैं ही कुछ सुनाता हूं.
इतना कह तीसरे महोदय  स्टेज पर कूदे और लगे कविता सुनाने.

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