नूतन प्रसाद
उस सम्मेलन में सभी राष्ट्रों बुलाया था.निधार्रित समय में महादेश, छोटे राट्रों एवं द्वीप पहुंच गये.एक द्वीप ने छोटे राट्र से कहा - भैया,चलो चाय पी कर आये.सुस्ती खत्म हो जायेगी.''
छोटे राट्र ने झिड़की दी - यहां जहर खाने के लिए पैसा नहीं है और तुम्हें मटरगश्ती की सूझी है.देखते नहीं महादेशों की हालत, वे चिंता के कारण सूख कर कांटे हो गये है .''
द्वीप ने कहा - हालात खराब है तो यहां आये क्यों ? बेमतलब हमें भी घसीट लिया.''
छोटे राष्ट्र ने कहा - तुम बड़े बुद्धु हो.तृतीय विश्व युद्ध होने वाला है.उस पर अंकुश लगाने के लिए यहां विचार विमर्श होगा.''
द्वीप थर्रा गया.बोला - युद्ध होगा ! अरे बाप रे, तब तो निश्चय ही सौ - दो सौ जानें जायेगी.''
छोटे राष्ट्र ने कहा - मैं यहां सम्पूर्ण विश्व के स्वाहा होने की बात कर रहा हूं पर तुम समझते क्यों नहीं.भोंदू हो. अपनी औकात बताओगे ही.स्टील की गहने पहनने वाले हीरा जवाहरत की बात क्या जानेगा.''
द्वीप रूठ गया - लो, तुम्हीं समझदार हो तो बताओ..?''
छोटे राष्ट्र ने कहा - तुम तो जानते ही हो - ये महादेश बड़े सक्षम है.इनके पास बम मिसाइल जैसे जाने क्या क्या घातक अस्त्र - शस्त्र है. इनका तर्क है कि हमने अपनी सुरक्षा के लिए बनाया है मगर वास्तविकता यह है कि दूसरों पर रौब जमाने और घुड़कने के लिए बनाया है.ये हथियार के बल पर विश्व पर शासन करने की सोच रहे हैं''
- जब ऐसी ही बात है तो हम भी सौ पचास बम बना ही लेते हैं.किसकी इच्छा नहीं होगी कि रूतबा मारे ''.
छोटे राष्ट्र - फिर वही बेकूफ जैसी बातें.तुम अपने को बीच बाजार में नीलाम कर भी दोगे फिर भी हथियारों का जमाव नहीं कर सकते.उसके लिए भी बहुत धन चाहिए...।''
इनमें सम्मेलन शुरू होने की घंटी बज गई .सभी देश बैठक कक्ष में जाने लगे कि द्वीप ने देखा - महादेश हथियार रखे हैं. द्वीप ने एक महादेश से कहा - इन्हें क्यों रखे हो.बिना अस्त्र -शस्त्र के आते तो आपकी शान थोड़ी घट जाती.''
महादेश गुर्राया - कोई दुश्मन वार कर दे तो मैंने इसे अपनी रक्षा के लिए रखा है.''
द्वीप ने कहा - हमारे ही प्राण क्यों जाये.हमें भी हथियार दो.''
महादेश - बद्तमीज, तू पहले अपना पेट तो पाल ले.फिर हथियार रखेगा.दूर हट.मुझे जाने दे.''
द्वीप डर कर हट गया.सभा की कार्यवाही प्रारंभ हुई.एक महादेश ने अपील की कि आज विश्व विनाश के कगार पर खड़ा है.हम इसे बचाने के लिए एक जूट होकर प्रयास करें.हथियार बनाने पर पाबंदी लगाये.साथ ही पहले के भंडार को नष्ट करें.....।''
इसी तरह महादेशों ने विश्वशांति पर प्रभावशाली एवं आदर्श से सराबोर भाषण दिये.छोटे राष्ट्र एवं द्वीप बोलने के इच्छुक थे मगर उनकी प्रार्थना ठुकरा दी गई.उन्हें सिर्फ यही अधिकार मिला था कि भाषण के बाद तालियाँ बजायें.
सभा की कार्यवाही खत्म हुई.महादेश प्रसन्न थे कि कार्यक्रम सफल रहा.वे बाहर निकलते कि छोटे राष्ट्र एवं द्वीपों ने दरवाजा जाम कर दिया.कहा - शांति का पुजारी हो तो तुम जैसे.तुम ही हथियार बनाओ, बेचों और गला फाड़ कर चिल्लाओं कि विश्वयुद्ध न हो.हमारे पास हथियार नहीं है मगर तुम गेंहूं के साथ हम कीड़े भी मरेेंगे.तुम चाहते तो पूरे विश्व की गरीबी गरीब हो जाती.मगर तुम वैसा क्यों करोगे.तुम्हें हमारे जैसे दीन अनाथों को डरा धमका कर महान कहलाना है न !''
महादेशों का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया.उन्होंने छोटे राष्ट्र और द्वीपों को धक्का मारकर गिराया.उन्हें कुचलते हुए यह कहते चले गये '' हमसे जो टकरायेगा, मिट्टी में मिल जायेगा.''
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