नूतन प्रसाद
इस वर्ष भी आम पक गये तो हमने एक मंत्री को बुलाया.वे हमारे गांव आने सहर्ष तैयार हो गये.उनने सोचा कि चुनाव जीतने के बाद गांव का दौरा नहीं किया है तो वह कार्य पूरा हो जायेगा.साथ ही मुफ्त मे आम खाने मिल जायेगे.इस तरह वे आम के आम गुठली के दाम भुनाने का निश्चय कर बैठे.
मंत्री जी आ गये.हमने उनके आगे आम रख दिये. वे तीन आम खाकर बोले - तुम्हारे आम बड़े स्वादिष्ट है.मीठे इतने कि शक्कर भी शर्म से पानी भरने लगे.
उनने आमों की प्रंशसा की और मुस्कराने लगे मंत्री का मुस्कराना खतरनाक और शंकोत्पादक होता है.हमने कहा - आपने आमों की बड़ी प्रशंसा पर खाये मात्र तीन.और खाइये न,आपके लिए ही शबरी की बेर की तरह छांट कर रखे हैं ''.
मंत्री जी मुंह बिगाड़ते हुए बोले- खाक खाऊं , तुम्हारे आम बिल्कुल बेकार है.खट्टे के कारण मुंह का स्वाद बिगड़ गया.''
- क्या कह रहे हैं ?''
- मैं सच कह रहा हूं.उनने एकाएक गंभीरता धारण कर ली फिर बोले - मैंने सुना है कि जो जैसी वस्तु खाता है उसके मन और आचरण वैसे ही हो जाते हैं .देखो न इन आमों के खाते ही मैं झूठ बोल गया.इसका मतलब यही हुआ कि आम के पेड़ों को जिसने भी लगाया होगा वह निश्चय ही झूठा मक्कार रहा होगा.''
हमने कहा - क्या पता सर, लेकिन यह सच है कि इन वृक्षों को वृक्षारोपण कायर्क्रम के अंतर्गत आपने ही लगाया था.''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें