छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य ( गरीबा ) के प्रथम रचनाकार श्री नूतन प्रसाद शर्मा की अन्‍य रचनाएं पढ़े

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

मीठा जहर

          एक वकील था.उसने अपने व्यापार को चमकाने के लिए सच  को झूठ में बदला . गवाहो को तोड़ा मगर व्यापार दीवाला पीटता ही गया . उसका एक चाचा था - मलखान .वह संपन्‍न था . मगर नंबरी कंजूस था . वह बहुत बीमार रहता था . उसे कोई दवा कराने की सलाह देता तो वह टांग अड़ा देता कि शुद्ध दवाइयां मिलती ही कहां हैं  .इनमें भी मिलावट का साम्राज्य  है .
          एक दिन वह वकील  के पास पहुंचा. बातचीत के दौरान मलखान से कहा - '' बेटा अब जीने की कतई इच्छा नहीं बीमारी के कारण उब गया हूं . तुम कोई ऐसा उपाय  करो कि मैं मर जाऊं .''
          वकील  ने मन ही मन कहा - '' आप मर जाये तो मेरा भाग्य  ही खुल जाये , ऐसे तो धन देंगे नहीं....। इतने दिनों तक मैंने आपके पैर दबाये . कहो तो गला दबा दूं....।'' उसने खुलकर बोला - '' आप स्वर्गवासी हो गये तो हमे आर्शीवाद कौन देगा . अनुभव कौन बतायेगा .''
          मलखान ने कहा - '' बड़ी पीड़ा होती है . रात - दिन कराहता हूं . यह असाध्य  रोग मरने के पूर्व खत्म होने वाला नहीं . तुम मुझे इस भव बंधन से मुक्ति दिलाने के लिए कोई रास्ता निकालो .''
          वकील की इच्छा हुई कि हामी भर दे ,मगर सच बोले तो मारन धाय , झूठा जग पतियाये . इस कहावत की याद आयी तो वह वहां से चुपचाप वापस हो गया . रास्ते में एक डाक्‍टर मित्र मिला . उसने कहा -  '' जब तुम्हारे चाचा मरने के इच्छूक है तो एल्ड्रीन क्‍यों नहीं दे देते . मुझको कहो तो मित्रता निभा दूं .''
        वकील ने कहा - '' अगर तुम्हारी बात मान ली तो मुझे जेल की हवा खानी पड़ेगी . मैं वकील हूं . कानून जानता हूं . मैं वो चक्रव्यूह रचूंगा कि सांप मरेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी .''
          वकील आगे बढ़ा कि  नगर निगम का कर्मचारी मिला . उसके हाथ में रसगुल्ले थे . वकील ने पूछा - क्‍या अत्याचारी महापौर महाप्रयाण कर गये . जिसकी खुशी में तुम मिठाई बांटने जा रहे हो .''
कमर्चारी ने कहा - '' वह शुभ दिन नहीं आया है . दरअसल इन रसगुल्लों को कुत्तों को खिलाना है .''
वकील ने कहा - '' कुत्तों को खीर खिलाना , गदहे को गंगाजल से नहलाना ये बातें कहावत में सुनी थी . तुम तो हकीकत में बदल रहे हो .''
कमर्चारी ने भ्रांति तोड़ी - '' ये रसगुल्ले मीठे और स्वादिष्‍ट है मगर इनमे जहर मिला है . इन्हेें आवारा कुत्तों को खिलाकर मृत्युदान करना है .''
        इतने में महापौर आया . उसने कहा - '' क्‍यों जी, सब कुत्ते मर गये .''
      कमर्चारी ने कहा - '' हां , सड़क छाप कुत्ते मर गये खतरनाक कुत्ते जो आफिस में गुर्राते हैं उन्हें मारने की योजना बन रही है .''
          महापौर चला गया . वकील ने कमर्चारी से कहा - '' तुम मेरे गुरू भाई हो . तुम्हारा मेरा उद्देश्य  एक ही है . मैं भी अपने चाचा को मीठा जहर खिलाकर स्वर्ग का दर्शन कराऊंगा . बुर्जुग के ऊपर  मैं श्रद्वा रखता हूं न .''
          वकील सीधा न्यायालय  गया . वहां आवेदन प्रस्तुत किया कि मेरे चाचा बहुत बीमार है . वे अपने जीवन से त्रस्त हो चुके है . उनकी इच्छा है कि जल्दी से जल्दी असार - संसार त्यागे.निवेदन है कि उन्हें दयामृत्यु देने का आदेश दिया जाये .
          न्यायालय  में लंबी बहस चली . अंत में न्यायाधीश ने निर्णय  दिया- '' मलखान न हत्यारा है न देशद्रोही . हम निरापराध व्‍यक्ति को मारने का आदेश नहीं दे सकते अत: दयामृत्यु का आदेश निरस्त किया जाता है .''
          फैसला सुना तो वकील  खुशी से पागल हो गया . एक व्यापारी ने उससे कहा - '' मैंने आज तक तुम्हारे जैसे उल्टी खोपड़ी का आदमी नहीं देखा . यहां तो हारने के बाद लोगों के मुंह पर डामर पुत जाते हैं मगर तुम्हारा मुंह इस तरह खिल गया जैसे कमल का फूल .''
          वकील ने कहा - '' तुम जीरा धनिया के व्यापारी हो . मैं कानून का . तुम्हारे पास दो खाते होते है . उसमे से खाता क्रमांक एक पकड़ा जाये तो घी खिचड़ी में गिर जाता है . एक तो तुम्हारा धन जप्‍त नहीं होता दूसरा दुनिया की नजर में ईमानदार बन जाते हो . वैसे मैं भी केश हार कर बाजी जीत गया हूं .''
          वकील, मलखान के पास गया . कहा - क्‍यों चाचा जी न्यायालय भी भ्रष्‍टाचार और झूठ फरेब का गढ़ हो गया है . हालत यह है कि वह  मरने का अधिकार भी देने से इंकार दिया . अब आप बीमार रहिये. कर्म भोगिये मेरा क्‍या.मुझे तो फीस चाहिए . लाइये पांच  हजार बनते है...।''
          फीस का नाम सुना तो मलखान की धड़कन बढ़ गयी.उसने '' क्‍यों '' ..कहा और चल बसा.
          वकील की विजय  हो चुकी थी . वह धाड़मार कर रोने लगा - '' चाचा जी..चाचा जी.....! ''

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