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बुधवार, 13 जुलाई 2016

अंकाल

नूतन प्रसाद
हम सब ला बिगाड़े बर तयं आथस रे अंकाल !
तोर आये ले दुनिया के होथे बुरा हाल !!

तोर नाव नई लेवय  कोई निरलज आथस आगू !
लात शरम ला बेच  डरे हस,पहिरे छल के साजू !!
पर हित ल तयं छोंड़ केच लथसबेईमानी के चाल !
हम सब ला बिगाड़े बर तयं आथस रे अंकाल !!

बैरी तोर आये ले होथय ,तन लकड़ी मुंह पिंवरा !
रोना-करलई ल नई सुनस,होगेस तयं भैरा !!
झींका -पुदगा मं मिलथे का परोसे थाल !

तोर आये ले होथय  ऐ दुनिया के बुरा हाल !!

चिरई रूख मइनखे अउ गरूवा,तोर ले बड़ घबराथे !
धरती माता पानी बिन रोथे अउ लुलवाथे !!
निरदई काबर फैलाथस तयं जीव जाये के जाल !
हम सब ला बिगाड़े बर तयं आथस रे अंकाल !!

जग मं आगी भभका के तयं का पाथस अज्ञानी !
अपने भर मुड़पेलवा करथस,हस बड़ अभिमानी !!
हृदय  तोर जुड़थे ,जब तयं हमला करथस कंगाल !
तोर आये ले होथय  ऐ दुनिया के बुरा हाल !!

बने समय  देतेस त का हाथ मं परतिस फोरा !
हरियर - हरियर सुघ्घर दिखतिस - धरती मां के कोरा !!
घेरी - बेरी घुमत रहितिस,ओ लइका के गाल !
हम सब ल बिगाड़े बर तयं आथस रे अंकाल !!

कलहर -कलहर लइका रोथय ,बुढ़वा आंखी मं पानी !
मुड़ गड़ियाके सांसों करथे,सिसकत हे जवानी !!
नास करे बर तोर जभड़ा हा हे विकराल !
तोर आये ले होथय  ऐ दुनिया के बुरा हाल !!

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